Friday, April 19, 2024

जिला न्यायाधीश अधीनस्थ न्यायाधीश नहीं हैं, उनके साथ समानता का व्यवहार किया जाना चाहिए : सीजेआई चंद्रचूड़

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने सोमवार को जिला न्यायाधीशों के बीच “अधीनता” की भावना को बदलने की आवश्यकता के बारे में बात की। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के न्यायाधीशों को जिला न्यायपालिका को “अधीनस्थ” न्यायपालिका के रूप में देखने की अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित एक सम्मान समारोह में बोलते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “मुझे लगता है कि हमने अधीनता की संस्कृति को बढ़ावा दिया है। हम अपनी जिला न्यायपालिका को अधीनस्थ न्यायपालिका कहते हैं। मैं जिला न्यायाधीशों को अधीनस्थ न्यायाधीशों के रूप में संबोधित नहीं करने का सचेत प्रयास करता हूं, क्योंकि वे अधीनस्थ नहीं हैं। वे जिला न्यायपालिका से संबंधित हैं।

चीफ जस्टिस ने कहा कि कई जगहों पर यह परंपरा है कि जब हाईकोर्ट के जज लंच या डिनर कर रहे होते हैं तो जिला जज खड़े होते हैं। कभी-कभी, जिला न्यायाधीश हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के लिए भोजन परोसने का प्रयास करते हैं। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि जब भी वह जिला अदालतों का दौरा करते थे, तो वह इस बात पर जोर देते थे कि जब तक जिला जज भी उनके साथ टेबल साझा नहीं करेंगे, तब तक वह खाना नहीं खाएंगे। उन्होंने कहा कि कई बार जब जिला न्यायाधीश हाईकोर्ट के न्यायाधीशों के सामने बैठने की हिम्मत नहीं करते हैं, जब उन्हें बैठकों के लिए बुलाया जाता है। ऐसे उदाहरण भी हैं जब मुख्य न्यायाधीश यात्रा करते हैं और जिलों को पार करते हैं, न्यायिक अधिकारी जिलों की सीमाओं पर एक पंक्ति में खड़े होते हैं। सीजेआई ने कहा कि इस तरह के उदाहरण हमारी औपनिवेशिक मानसिकता की बात करते हैं। उन्होंने कहा कि यह सब बदलना होगा। हमें एक अधिक आधुनिक न्यायपालिका की ओर बढ़ना होगा; एक समान न्यायपालिका की तरफ जाना होगा।

हाईकोर्ट के न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए प्रस्ताव भेजते समय सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस कर रहे वकीलों के नाम पर भी विचार करने के सवाल पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि मेरे दिमाग में वकीलों की एक सूची है। मेरा मानना है कि मेरे सभी सहयोगियों की भी सूचियां हैं और मैं उन नामों का उल्लेख उन मुख्य न्यायाधीशों से करता रहा हूं जो मुझसे पहले आए हैं। हालांकि, उन्होंने संतुलन बनाए रखने और हाईकोर्ट के वकीलों को न्यायाधीशों के रूप में पदोन्नत होने से वंचित न करने की आवश्यकता पर जोर दिया।

सीजेआई ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट में लिस्टिंग एक वास्तविक समस्या है। उन्होंने प्रक्रिया को काफी हद तक सुव्यवस्थित करने और इसे पारदर्शी बनाने में पूर्व सीजेआई यूयू ललित के योगदान को स्वीकार किया। उन्होंने बार को आश्वासन दिया कि वह लिस्टिंग को अधिक पारदर्शी, उद्देश्यपूर्ण बनाने के लिए सिस्टम का निर्माण करेंगे। उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि वे मानव विवेक के तत्व को समाप्त करने के लिए लिस्टिंग की प्रक्रिया में तकनीक को नियोजित करना चाहते हैं।

वापस काम पर लौटिए, वरना अवमानना या लाइसेंस रद्द

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को राज्य के पश्चिमी भाग के संबलपुर में उड़ीसा हाईकोर्ट की स्थायी पीठ की मांग को लेकर ओडिशा में हड़ताल कर रहे वकीलों को जमकर फटकार लगाई। जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस अभय एस ओक की पीठ ने वकीलों को स्पष्ट रूप से बुधवार से काम फिर से शुरू करने का निर्देश दिया व चेतावनी दी कि आदेश का पालन करने में विफल रहने के परिणामस्वरूप सुप्रीम कोर्ट अड़ियल वकीलों को अदालत की अवमानना का दोषी ठहराएगा और यहां तक कि उनके लाइसेंस के निलंबन या रद्द भी किए जाएंगे।

धार्मिक नामों, प्रतीकों के दुरुपयोग का आरोप

सुप्रीम कोर्ट सोमवार को निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वह राजनीतिक दलों पर धार्मिक नामों और प्रतीकों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाली याचिका पर जवाब दाखिल करे । निर्वाचन आयोग की ओर से पेश वकील ने न्यायमूर्ति एमआर शाह और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ से याचिका पर जवाब दाखिल करने के लिए समय मांगा ।

न्यायालय ने वकील के अनुरोध को ध्यान में रखते हुए मामले को 25 नवंबर को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया । शीर्ष अदालत सैयद वसीम रिजवी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी । इसमें कहा गया है कि धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है । न्यायालय ने सितंबर में निर्वाचन आयोग को नोटिस जारी किया था ।

जबरन धर्मांतरण से गंभीर खतरा

सुप्रीम कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को ‘बहुत गंभीर’ मुद्दा करार दिया है । कोर्ट ने सोमवार को केंद्र से कहा कि वह इसे रोकने के लिए कदम उठाए और इस दिशा में गंभीर प्रयास करे। अदालत ने चेताया कि यदि जबरन धर्मांतरण को नहीं रोका गया तो एक ‘‘बहुत मुश्किल स्थिति’’ पैदा होगी ।

जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस  हिमा कोहली की पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि सरकार प्रलोभन के जरिए धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए उठाए गए कदमों के बारे में बताए । पीठ ने कहा कि यह बेहद गंभीर मुद्दा है, जो राष्ट्र की सुरक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता को प्रभावित करता है । इसलिए, बेहतर होगा कि केंद्र सरकार अपना रुख स्पष्ट करे और इस तरह के जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए आगे क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इस पर जवाबी हलफनामा दाखिल करे ।

सुप्रीम कोर्ट वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें केंद्र और राज्यों को ‘‘डरा-धमकाकर, प्रलोभन देकर और पैसे का लालच देकर’’ धर्मांतरण पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कदम उठाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है ।

केरल हाईकोर्ट कुलपति की नियुक्ति रद्द की

केरल हाईकोर्ट ने पाया कि केरल मत्स्य पालन और महासागर अध्ययन विश्वविद्यालय के कुलपति की नियुक्ति के दौरान यूजीसी के उस नियम का पालन नहीं किया गया, जिसके तहत कुलाधिपति को तीन या उससे अधिक दावेदारों की सूची भेजना अनिवार्य है । बीते दिनों राज्यपाल ने भी कुलपति से इसी आधार पर इस्तीफ़ा मांगा था ।

जस्टिस एस. मणिकुमार और जस्टिस शाजी पी. चाले की पीठ ने कहा कि डॉ. के. रीजि जॉन को केयूएफओएस का कुलपति नियुक्त करने के दौरान यूजीसी के उस नियम का पालन नहीं किया गया, जिसके तहत कुलाधिपति को तीन या उससे अधिक दावेदारों की सूची भेजना अनिवार्य है ।

पीठ ने कहा कि नए कुलपति के चयन की प्रक्रिया शुरू करने के लिए कुलाधिपति एक चयन समिति गठित कर सकते हैं । उसने स्पष्ट किया कि कुलपति के चयन में यूजीसी के मानदंडों का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए ।यह फैसला राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान द्वारा जॉन का इस्तीफा मांगे जाने के कदम को जायज ठहराता है ।

राज्यपाल ने इसी तरह 21 अक्टूबर को पूरे केरल में 10 कुलपतियों के इस्तीफे मांगे थे। पिछले हफ्ते, हाईकोर्ट ने कुलपतियों को अंतरिम राहत देते हुए राज्यपाल से जवाब दाखिल करने को कहा था ।डॉ. जॉन को नियुक्त करने वाली चयन समिति की अध्यक्षता केरल राज्य योजना बोर्ड के उपाध्यक्ष वीके रामचंद्रन ने की थी, जो सरकार द्वारा नामित थे ।

हत्याकांड में 11 संघ कार्यकर्ताओं को उम्र कैद

केरल की एक सत्र अदालत ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 11 कार्यकर्ताओं को उम्र कैद की सजा सुनाई है। यह फैसला साल 2013 में हुई अनावूर नारायणन नायर की हत्या के मामले में आया है। गौरतलब है कि नारायणन नायर की हत्या उसके परिवार के सामने की गई थी और अब इसके नौ साल बाद नेय्याट्टिनकरा अतिरिक्त सत्र अदालत ने आरोपियों को दोषी मानते हुए सजा का ऐलान किया।

इस मामले में उम्रकैद की सजा के साथ नेय्याट्टिनकरा अदालत की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश कविता गंगाधरन ने दोषियों पर एक-एक लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया है। सजा का ऐलान 11 नवंबर को हुआ था। सजा के ऐलान से पहले अदालत में सभी आरोपी एक जैसे कपड़े और एक जैसी हेयर स्टाइल में पहुंचे थे। गवाहों को भ्रमित करने के लिए गंजे सिर वाले लोगों के जैसे विग लगा दिए गए थे।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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