Friday, April 19, 2024

जलवायु सम्मेलन से बड़ी उम्मीदें

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र का 26 वां सम्मेलन (सीओपी 26) ब्रिटेन के ग्लास्गो नगर में 31 अक्टूबर से 12 नवंबर के बीच होने जा रहा है। यह सम्मेलन जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के फ्रेमवर्क कन्वेंशन और पेरिस समझौता के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को साझा मंच प्रदान करेगा।

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि अपने बच्चों और अगली पीढ़ियों के भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए जरूरी है कि जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने में सभी देश तत्काल कार्रवाई करें। ब्रिटेन में होने वाले जलवायु सम्मेलन (सीओपी 26) के दौरान हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम अपनी धरती को अधिक स्वच्छ और अधिक हरियाली युक्त बनाने का संकल्प करें। ब्रिटेन जलवायु परिवर्तन को लेकर सभी देशों के साथ मिलकर काम करने को उत्सुक है और इसमें नागरिक समाज के संगठनों, कॉरपोरेट जगत के लोगों और आम जनता की हिस्सेदारी को प्रोत्साहित करना चाहता है।

जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र के इस 26 वें सम्मेलन (सीओपी 26) की आयोजन समिति के अध्यक्ष आलोक शर्मा ने कहा कि कोविड की महामारी ने पूरी दुनिया में करोड़ों लोगों को बर्बाद कर दिया है। वैश्विक अर्थव्यवस्था तहस-नहस हो गई है। सरकारें लोगों के जीवन और आजीविका को बचाने के लिए आगे आईं। पर जलवायु परिवर्तन जारी है जो पृथ्वी पर जीवन-मात्र के लिए खतरा उत्पन्न कर रहा है। अब जब दुनिया कोरोना वायरस से उबर रही है तब हमें इसके साथ-साथ जलवायु परिवर्तन से निपटने का प्रयास भी निश्चित रूप से करना चाहिए जिससे स्थिति पहले से बेहतर बन सके। हम बेहतर रोजगार, करोड़ों के निवेश और अत्याधुनिक तकनीकों के सहारे समूची दुनिया को हरा-भरा बना सकते हैं। हमें यह निश्चित करना चाहिए।

पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने, इसकी बढ़ोत्तरी को 1.5 डिग्री पर सीमित करने के लिए विज्ञान के अनुसार इस शताब्दी के दूसरे हिस्से में हमें वायुमंडल से उससे अधिक कार्बन निकालना होगा जितना उसमें शामिल होता है। इस संतुलन की स्थिति को ‘नेट जीरो’स्थिति कहते हैं। इस दिशा में कार्य चल रहा है। महामारी के बावजूद कार्बन की गति की दिशा बदल रही है। विश्व अर्थव्यवस्था की लगभग 70 प्रतिशत अब नेट जीरो के लक्ष्य के करीब है, केवल तीस प्रतिशत हिस्सा ही इससे ऊपर है। विश्व को निम्न कार्बन भविष्य की ओर बढ़ना है। स्वच्छ ऊर्जा जैसे पवन और सौर्य ऊर्जा अधिकतर देशों में बिजली का सस्ता स्रोत बन गया है। विश्व की अनेक कार-निर्माता कंपनियां केवल इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड गाड़ियां बनाने की तरफ बढ़ रही हैं। अनेक देश प्रकृति के संरक्षण और पुनर्बहाली की दिशा में महत्वपूर्ण पहल कर रहे हैं। विश्व के अनेक क्षेत्र, राज्य और नगर उत्सर्जन को पूरी तरह समाप्त कर शून्य करने की प्रतिबद्धता जता रहे हैं।

ब्रिटेन सरकार में मंत्री रहे भारतीय मूल के शर्मा ने सम्मेलन के प्रचार-पत्र में कहा है कि हमारा देश ब्रिटेन इसकी राह दिखा रहा है। पिछले 30 वर्षों में ब्रिटिश सरकार ने उत्सर्जन में 44 प्रतिशत की कटौती करके देश की अर्थव्यवस्था में 78 प्रतिशत बढ़ोत्तरी की है। इससे पता चलता है कि हरित विकास संभव है। 2012 में हमारी 40 प्रतिशत बिजली कोयले से बनती थी। अब यह 2 प्रतिशत से भी कम है। यह दिखाता है कि परिवर्तन संभव है। ब्रिटेन पहला देश है जिसने कार्बन उत्सर्जन में 2035 तक 78 प्रतिशत कमी करने का संकल्प किया है। कोयला से बिजली बनाना 2024 तक पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा। नई पेट्रोल और डीजल गाड़ियों की बिक्री 2030 तक पूरी तरह बंद कर दी जाएगी। हम प्रकृति को फिर से बहाल करने के लिए वैधानिक व्यवस्था बनाने और कृषिगत अनुदानों में व्यापक सुधार करने जा रहे हैं।

प्रधानमंत्री बोरिस ने हरित औद्योगिक क्रांति के लिए दस सूत्री कार्यक्रम बनाया है ताकि जलवायु को लेकर प्रतिबद्धताओं को पूरा किया जा सके, साथ ही हजारों अति कौशलपूर्ण रोजगार प्रदान किए जा सकें। ब्रिटेन में ढेर सारे लोग स्वच्छ व हरित कार्यों में रोजगार करने लगे हैं। समूचे विश्व में इस दिशा में प्रगति हो रही है। फिर भी अभी बहुत कुछ किया जाना है। ऐसा नहीं हो सकता कि हम 2029 में अचानक जगें और 2030 तक कार्बन उत्सर्जन में 50 प्रतिशत कटौती करने की घोषणा कर दें। इसके लिए अभी से बड़े नीतिगत फैसले लेने होंगे। कोयला से बिजली बनाना बंद करना होगा, प्रदूषणकारी वाहनों को इस्तेमाल से हटाना होगा, कृषि को अधिक टिकाऊ बनाना होगा, वन-विनाश को बंद करना होगा और विकासशील देशों को इन कामों के लिए आर्थिक सहायता करनी होगी। केवल उत्सर्जन को घटाना पर्याप्त नहीं है।

सीओपी 26 में हमारी कोशिश होगी कि विकासशील देशों की बातों को ठीक से सुनी जाए जो विकसित देशों की तरह औद्योगिक विकास करना चाहते हैं। इनमें जलवायु परिवर्तन से सर्वाधिक जोखिमग्रस्त देश भी शामिल हैं। जहां लोगों के घर पानी से डूब गए हैं, खेती की उपज घट रही है। 2009 में अमीर देशों ने 2020 तक गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन का मुकाबला करने के लिए 100 खरब डालर सालाना देने का वायदा किया था। उन्हें इस लक्ष्य को प्राप्त करने की कोशिश करनी चाहिए।

सीओपी 26 के मानद अध्यक्ष के रूप में मैं इसे पूरा होते देखना चाहता हूं। अगर हम वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री से अधिक बढ़ने देना नहीं चाहते तो हमें नेट जीरो लक्ष्य को जल्दी से जल्दी हासिल करने की कोशिश करनी चाहिए। हमें धरती और समुद्र के प्रति अपने व्यवहार पर विचार करने और हम अपना भोजन कैसे हासिल करते हैं, इस पर ध्यान देने की जरूरत है। इसके साथ ही हमें जैव-विविधता को बचाने की कोशिश करनी होगी जिस पर सभी प्रकार का जीवन निर्भर करता है। इस तरह सीओपी 26 को निश्चित रूप से निर्णायक होना होगा।

(अमरनाथ वरिष्ठ पत्रकार हैं और आजकल पटना में रहते हैं।)

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