उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तापमान लगातार बढ़ाया जा रहा है

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महाराष्ट्र में जिस नारे के कारण योगी जी की सभाएं रद्द हो गईं, लखनऊ शहर के तमाम चौराहों पर उनका का वह बहुचर्चित नारा “बटोगे तो कटोगे” अलग-अलग अंदाज में दीवालों पर लिखा हुआ है। उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक तापमान लगातार बढ़ाया जा रहा है। जगह जगह पिछले दिनों प्रदेश के विभिन्न इलाकों में जो घटनाएं घटी, वे इसका संकेत देती हैं। इनका एक सुनिश्चित पैटर्न है जिसे बहराइच की घटना की चीर फाड़ से समझा जा सकता है।

बहराइच देश के सबसे पिछड़े और गरीब जिलों में है। यहां मुसलमानों की कुल आबादी 35% है। बहराइच शहर में हिंदुओं से ज्यादा मुसलमान हैं। उपचुनावों के ठीक एक महीने पहले वहां महराजगंज में जो कुछ हुआ, वह इस बात का साफ सुबूत है कि योगी राज में हिंदुत्ववादी ताकतों को खुली छूट मिली हुई है और मुसलमानों को हाशिए पर धकेल दिया गया है।

धार्मिक जुलूस तो हमेशा से निकलते रहे हैं, लेकिन उनका पहले से तय रास्ता होता है ताकि कोई सांप्रदायिक तनाव न पैदा हो। सही बात तो यह है पहले परम्परागत रूप से जो जुलूस निकलते थे, समाज में सौहार्द का ऐसा माहौल रहता था कि दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे की खुशियों में शरीक होते थे। लेकिन मोदी योगी राज आने के बाद सब कुछ बिल्कुल बदल गया है।

महराजगंज में जो मूर्ति विसर्जन का जुलूस निकला, वह एक ऐसे रास्ते से निकला जहां मुस्लिम आबादी थी और मस्जिद थी। पुलिस को संभवतः इसका अंदेशा हो गया था कि माहौल बिगड़ सकता है। इसके पहले वहां अगस्त में दोनों समुदायों के युवाओं के बीच क्रिकेट मैच को लेकर झगड़ा फसाद हो गया था जिसमें 3लोगों को NSA में बंद कर दिया गया था। तो स्थानीय पुलिस ने किसी अप्रिय घटना की आशंका होने पर अतिरिक्त फोर्स की मांग की थी लेकिन उच्चाधिकारियों द्वारा उसे अनसुना कर दिया गया। अब यह एक संगीन मामला है जिसकी जांच होनी चाहिए कि आखिर अतिरिक्त पुलिस बल की मांग को क्यों अनसुना किया गया।

बहरहाल उस दिन 13 अक्टूबर को जब जुलूस निकला तो वह मुस्लिम बस्ती और मस्जिद के सामने से गुजरा। डीजे बज रहा था, वैसे बताया जाता है कि ऐसे जुलूसों में डीजे बजाना प्रतिबंधित है लेकिन पुलिस की मौजूदगी में डीजे बजाते हुए मूर्ति विसर्जन का जुलूस आगे बढ़ा। मां दुर्गा के धार्मिक जुलूस में जो अश्लील गाने बज रहे थे, वह जुलूस में शामिल लोगों के लंपट चरित्र की गवाही देते हैं। बहरहाल जुलूस जब मुस्लिम बस्ती के बीच पहुंचा तो मुसलमानों के खिलाफ अश्लील गाली गलौज शुरू हो गया।आम तौर पर ऐसे माहौल में कोई प्रतिवाद करने की बजाय मुसलमान किनारे हो जाते है, अपने घरों में चले जाते हैं। जाहिर है इसमें टकराव की कोई सूरत नहीं बन पाती है, जो कि हिंदुत्ववादी तत्व चाहते है।

महराजगंज में भी यही हुआ। लेकिन टकराव को अवश्यंभावी बना देने के लिए उनमें से एक नौजवान एक मुस्लिम परिवार के घर में घुसकर उनकी छत पर चढ़ गया। उसने वहां लगा इस्लामी हरा झंडा उतारकर अपना भगवा झंडा फहरा दिया। गौरतलब है कि इस बीच वहां उपस्थित पुलिस मूकदर्शक बनी रही। न उसने मुस्लिम बस्ती में जुलूस को जाने से रोका, न डीजे बजाने और अश्लील गाने या गाली गलौज पर उन्हें रोका। आखिर इसके पीछे क्या कारण हो सकता है। उत्तर प्रदेश पुलिस ने अगर अपनी जिम्मेदारी निभाई होती तो महाराजगंज में उस दिन घटी घटना को टाला जा सकता था।

महराजगंज की उस दिन की घटना में एक व्यक्ति की मौत हो गई, अनेक लोग घायल हुए और 80आरोपी गिरफ्तार हुआ जिसमें अधिकांश मुस्लिम हैं। तमाम मुस्लिम युवा अपने घरों को छोड़कर भाग गए हैं। गिरफ्तार मुसलमानों पर भारतीय न्याय संहिता की तमाम गंभीर धाराओं में मुकदमे दर्ज किए गए हैं। विपक्ष ने पूरे घटनाक्रम के पूर्व नियोजित होने और जानबूझकर तनाव फैलाने का आरोप लगाया है।

दरअसल विपक्ष क्या, यह तो स्वयं भाजपा विधायक सुरेश्वर सिंह ने ही भाजपा के कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाया कि उनकी और उनके बेटे की हत्या के लिए बहराइच में बवाल किया गया। 23 घरों पर नोटिस चस्पा करके 3 दिन के अंदर उन्हें हटाने का आदेश दिया गया। यह अब योगी राज में अल्पसंख्यकों पर दमन का स्टैंडर्ड पैटर्न बन चुका है कि मुसलमानों को पहले चिन्हित किया जाता है और फिर बुलडोजर से उनकी प्रॉपर्टी को गिराने के लिए उनके अवैध निर्माण होने का तर्क दिया जाता है।

मजेदार यह है कि यही तर्क हिंदुओं के घरों या संपत्ति के लिए लागू नहीं होता। सच्चाई यह है कि तकनीकी दृष्टि से देखा जाय तो सभी शहरों में यहां तक कि ग्रामीण इलाकों में भी तमाम निर्माण अवैध हैं। लोग कहते हैं कि इस पैमाने पर देखा जाय तो आधा लखनऊ शहर अवैध निर्माण से बसा हुआ है। बहरहाल मुसलमानों के खिलाफ यह बुलडोजर आक्रामकता योगी राज की विशेषता है। उन्हें यह इतना पसंद है कि 2022 के चुनाव में तो इसे उन्होंने अपने चुनाव अभियान का एक प्रतीक ही बना दिया था।

सर्वोच्च न्यायालय ने योगी सरकार के बुलडोजर एक्शन पर चेतावनी दिया कि वह अपने रिस्क पर ही उच्चतम न्यायालय के निर्देशों का उल्लंघन करे।अलबत्ता उसने यह भी जोड़ दिया कि निर्माण अगर अवैध है तो उस पर यह आदेश लागू नहीं होगा और उसे गिराने के लिए सरकार स्वतंत्र है। लेकिन इसके लिए भी सर्वोच्च न्यायालय ने बाकायदा एक गाइडलाइन जारी किया है।

इस पूरे प्रकरण में मीडिया की भूमिका बहुत ही शर्मनाक और एक तरह से आग में घी डालने वाली रही। गोदी मीडिया के एंकरों ने यह खबर चलाना शुरू कर दिया कि मृत हिंदू नौजवान के साथ बहुत ही अमानवीय व्यवहार किया गया। मारने के पहले उसे टॉर्चर किया गया। उसके नाखून उखाड़ लिए गए आदि। बाद में स्वयं बहराइच पुलिस ने बयान देकर इसका खंडन किया।

योगी के पहले कार्यकाल में भी सांप्रदायिक घटनाओं में यूपी शीर्ष पर था। अभी तो उन्होंने “बंटोगे तो कटोगे” का नारा दे दिया है। जाहिर है इसका उद्देश्य हिंदुओं को डरा करके उनको एकजुट करने का है। दरअसल विपक्ष ने जाति जनगणना और आरक्षण की सीमा खत्म करने तथा संविधान बचाने का जो मुद्दा लोकप्रिय बनाया है, उससे संघ भाजपा घबड़ाए हुए हैं।उन्हें लग रहा है कि इससे दलित और पिछड़ों के बीच उनका जो बड़ा वोट बैंक बन गया था, वह बिखर सकता है। उक्त भड़काऊ नारे के माध्यम से अपने उस वोटबैंक को डराकर एकजुट रखने की यह कवायद है।

इसी तरह की बातें मोदी और भागवत भी बोल रहे हैं। अभी महाराष्ट्र चुनाव प्रचार में में मोदी ने अपने शब्दों में योगी के नारे को दोहराया। उन्होंने नारा दिया एक हैं तो सेफ हैं। जाहिरा तौर पर यह नारा आदिवासी दलित और ओबीसी की गोलबंदी के लिए है। उन्होंने कहा कि अगर हम बंटेंगे तो कांग्रेस का फायदा होगा। यह दरअसल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का नारा है।

उत्तर प्रदेश में पिछले दिनों बहराइच की तरह की ही घटनाएं देवरिया और बाराबंकी में भी हुईं। 9 नवंबर को खैर विधानसभा क्षेत्र में मुख्यमंत्री योगी ने फिर अपने भड़काऊ नारे को दोहराया। उच्चतम न्यायालय के उस फैसले पर वे प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे जिसमें कहा गया है कि किसी केंद्रीय विश्वविद्यालय को माइनॉरिटी संस्था माना जा सकता है। उन्होंने कहा कि जब सरकारी खजाने से उन्हें पैसा और तमाम सुविधाएं दी जा रही हैं तो वे मुसलमानों को 50%आरक्षण कैसे दे सकते हैं और आदिवासी, एससी और ओबीसी को कैसे वंचित कर सकते हैं।

उन्होंने कहा कि रामजन्भूमि, कृष्ण जन्मभूमि और काशी विश्वनाथ मंदिर को लेकर हमें कितना अपमान झेलना पड़ा। हमारी मां बहनों के साथ क्या बर्ताव हुआ। अगर इतने अपमान के बाद भी है बंटे रहेंगे तो हमें काट डाला जाएगा। उन्होंने कहा कि यह सब कांग्रेस सपा बसपा की विभाजनकारी और वोटबैंक की राजनीति के कारण हो रहा है। बहरहाल विपक्ष ने उन्हें याद दिलाया कि। उच्चतम न्यायालय का फैसला संविधान के तहत धार्मिक सांस्कृतिक अल्पसंख्यकों के अधिकारों की गारंटी देता है।

दरअसल उत्तर प्रदेश में ध्रुवीकरण की नीयत से लगातार मुसलमानों के खिलाफ प्रोवोकेटिव कार्रवाई की जा रही है। हिंदू संगठनों की शिकायत पर तमाम मस्जिदों के कागजात की छानबीन हो रही है। उन्हें नोटिस भेजे जा रहे हैं। सांप्रदायिक माहौल किस तरह बिगाड़ा जा रहा है इसकी एक बानगी राजधानी लखनऊ के अस्ती गांव की घटना है।

उस गांव में 70% ठाकुर हैं और महज 32 घर मुसलमान हैं। कभी गांव के हिंदुओं ने ही मुसलमानों को जमीन का एक टुकड़ा दे दिया था जिस पर एक मस्जिद बनी है। बारावफात के दिन मुसलमानों ने पुलिस परमिशन लेकर एक छोटा सा कार्यक्रम आयोजित किया था। कार्यक्रम चल रहा था तभी भाजपा के झंडे लगे गाड़ियां वहां पहुंचने लगीं।वे लोग पुलिस की मौजूदगी में वहां हंगामा करते रहे। मुसलमानों पर यह आरोप लगा दिया कि वे लोग पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। दरअसल यह एक पैटर्न बन गया है कि जब भी मुसलमानों पर हमला करना हो तो इस तरह के आरोप लगा दिए जाय।

उप चुनाव के दौरान जिस तरह मुस्लिम मतदाताओं को जगह जगह पुलिस प्रशासन द्वारा मतदान से रोका गया, वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। बहरहाल जनता अपने ढंग से प्रतिरोध में डंटी हुई है। अपना वोट डालने के लिए बहादुरी से अड़ी अनपढ़ गरीब महिलाओं पर मुजफ्फरनगर के मीरापुर में पिस्तौल ताने दरोगा का वीडियो वायरल हो चुका है। मेहनतकश हाशिए के तबकों का वोट डालने के अपने बुनियादी लोकतांत्रिक अधिकार की रक्षा का यह जज्बा और हिम्मत हमारे देश में लोकतंत्र को जिंदा रखेगी।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)

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