ग्राउंड रिपोर्ट: कागजों में संचारी रोग नियंत्रण अभियान, धरातल पर मुंह चिढ़ाता मंडलीय अस्पताल और ट्रौमा सेंटर का द्वार

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मिर्जापुर। बरसात शुरू होने से पूर्व ही संचारी रोगों से बचाव के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा विभिन्न गोष्ठी, कार्यक्रमों के जरिए लोगों को जागरूक करते हुए बचाव पर जोर दिया गया था। नगरी इलाकों से लेकर गांवों में अभियान चलाएं गए थे। अप्रैल के बाद जुलाई महीने में विशेष अभियान चलाया गया था जो पूरे महीने भर चला। संचारी रोग नियंत्रण के लिए मिर्जापुर जिले में एक जुलाई से चलायें गये विशेष अभियान के दौरान सभी ग्राम पंचायतों में सार्वजनिक स्थानों के साथ ही नाले और नालियों की सफाई कराकर दवाओं का छिड़काव कराया जाएगा, ऐसे निर्देश दिए गए थे, लेकिन कुछेक स्थानों को छोड़ दिया जाए तो बाकी के स्थानों पर ही दवाओं के छिड़काव से लेकर साफ-सफाई कराई गई।

अस्पताल के पीछे जमा पानी

यह अभियान कोई नया नहीं बल्कि हर वर्ष चलाया जाता है, इसके लिए एक भारी भरकम रकम भी पानी की तरह बहाया जाता है। जुलाई का महीना बीत चुका है, अगस्त का महीना भी बीतने की ओर अग्रसर हो चला है। बावजूद इसके न तो नालियों की सफाई पूरी हो पाई है और ना ही जलजमाव से मुक्ति मिल पाई है। कही सड़क के किनारे नाली के अभाव में नहर का दृश्य दिखता है तो कहीं पटरी से लेकर सड़क पर पानी बहता हुआ दिखाई देता है। ऐसे में आपको जिले में चलाएं गए संचारी रोग नियंत्रण अभियान को करीब से देखने समझने के लिए कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं है, आपको बिल्कुल जिला मुख्यालय के करीब यानी प्रशासनिक अधिकारियों के नाम नीचे का नजारा दिखाते हैं।

अस्पताल परिसर में जल जमाव और गंदगी

जिलाधिकारी कार्यालय (कलेक्ट्रेट) से महज़ यही कोई दो सौ मीटर की दूरी पर स्थित मंडलीय अस्पताल और ट्रौमा सेंटर स्थित है जहां जाने के लिए बरसाती पानी और जल-जमाव के बीच से होकर गुजरना पड़ता है। जहां आने वाले सैकड़ों मरीजों और उनके तीमारदारों को ही नहीं आस पास के उन दुकानदारों को भी नारकीय स्थित से दो-चार होना पड़ता है, जो रोजी-रोटी के लिए अस्पताल गेट के आस-पास सड़क की पटरियों से लगकर अपना ठेला इत्यादि लगाकर परिवार का पेट पालते आ रहे हैं।

सड़क ऊंची और सड़क की पटरी नीचे होने से जलजमाव कीचड़ की समस्या गंभीर हो उठी है। वहीं जल निकासी के लिए नाली न होने से हल्की बारिश में भी जलजमाव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। सबसे बुरी गत मंडलीय अस्पताल के गेट नंबर एक एवं ट्रामा सेंटर के मुख्य गेट की हुई है, जहां अत्यधिक जलजमाव के चलते मच्छरों के प्रजनन को बढ़ावा मिल रहा है तो वहीं कीचड़ और दुर्गन्ध के मारे लोगों का बुरा हाल हो उठा है।

अस्पताल परिसर में जल जमाव

मंडलीय अस्पताल के समीप फल बेंच कर परिवार की जीविकोपार्जन करने वाले सोनू केसरवानी कहते हैं “हल्की बारिश में भी नारकीय स्थित हो उठती है, अस्पताल गेट की पटरी पर जल निकासी की व्यवस्था नहीं होने से पानी जमा हो गया है इससे कीचड़, जल-जमाव के साथ-साथ मच्छरों को बढ़ावा मिल रहा है। इससे आस-पास के दुकानदारों का जीवन नारकीय हो उठा है। पटरी दुकानदारों की परेशानी बढ़ गई है।”

एक फल दुकानदार द्वारा सड़क की पटरी पर फैले हुए कीचड़ की सफाई कर स्वयं कचरा उठा भी उठा जा रहा था, जिसकी ओर इशारा करते हुए सोनू बताते हैं कि “यह कोई एक दो दिन की बात नहीं है यह नियति बन चुकी है रोज की बरसात में हमलोगों का जीवन कैसे गुजरता है, कैसे रोजी रोटी का जुगाड़ करना पड़ता है यह लोगों का जी ही जानता है। ” वह मंडलीय अस्पताल के गेट नंबर एक के आगे जमा बरसात के पानी और उसमें पनप रहे मच्छरों की ओर ध्यान इंगित कराते हुए आगे भी कहते हैं “देखिए यह क्या है? एक पल भी यहां खड़ा हो पाना मुश्किल हो जाता है, ग्राहक भी यहां खड़े नहीं होना चाहते हैं बोलते हैं बहुत गंदगी है। जब ग्राहक ही नहीं आएंगे तो हमारा धंधा कैसे चलेगा, धंधा नहीं चलेगा तो परिवार का पेट कैसे पलेगा?”

सोनू केसरवानी, फल बिक्रेता

ठेले पर लाई चना (दाना भूनकर) बेचने वाले पिंटू गुप्ता कहते हैं “हम लोग गरीब हैं किससे अपनी परेशानी कहने जाएं, साहब (अधिकारी) लोग भी इधर से बराबर गुजरते हैं लेकिन किसी का भी ध्यान इधर जाता ही नही है। जब कि यह स्थान मंडलीय अस्पताल से लगा हुआ है, अस्पताल रोड का है। यहां बराबर साफ-सफाई और दवा का छिड़काव होना चाहिए लेकिन ऐसा कुछ होता नहीं है।”

पिंटू गुप्ता, दुकानदार

हद की बात तो यह है कि यह नारकीय दृश्य मंडलीय अस्पताल परिसर में भी देखने को मिलता है जहां जलजमाव, कीचड़ गंदगी दिखाई दे जाएगा। सड़क की पटरियों से लेकर परिसर तक बरसाती पानी जमा होता है, प्रवेश द्वार से लेकर निकास द्वार पर मजबूरी में होता है आवागमन, नगर पालिका से लेकर स्वास्थ्य महकमा बेखर बना हुआ है।

जोर-शोर से चला संचारी रोग नियंत्रण अभियान

संचारी रोग नियंत्रण के लिए जिले में एक जुलाई से विशेष अभियान चलाया जाता है जो महीने भर चलता है। अभियान के दौरान सभी ग्राम पंचायतों में सार्वजनिक स्थानों के साथ ही नाले और नालियों की सफाई कराकर दवाओं का छिड़काव कराया जाता है, लेकिन यह अभियान कितना कारगर होता है और कितने गांवों में इसका बखूबी पालन सुनिश्चित होता है यह किसी को बताने की आवश्यकता नहीं है।

मिर्जापुर जनपद के कुल 12 विकास खंड क्षेत्र सिटी, पहाड़ी, नरायनपुर, सीखड़, मझवां, जमालपुर, राजगढ़, पटेहरा कला, लालगंज, हलिया, छानबे और कोन के 809 ग्राम पंचायतों में एक से 31 जुलाई तक विशेष संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलाया गया। इसके लिए बाकायदा जिला पंचायत राज अधिकारी ने सभी सहायक विकास अधिकारियों (पंचायत) को पत्र भेजकर अभियान को सफल बनाने का निर्देश दिया था।

जिले भर में लगभग दो हजार सफाईकर्मी हैं। जिला पंचायत राज अधिकारी ने एडीओ पंचायतों को दस-दस सफाईकर्मियों की टीम गठित कर प्रत्येक ग्राम पंचायत में सामूहिक रूप से सफाई कराने का निर्देश दिया था। अभियान में नोडल अधिकारी के तौर पर संबंधित गांवों के ग्राम प्रधान बनाए गए थे जिनकी देखरेख में अभियान के दौरान ग्राम पंचायत में आने-जाने वाले प्रमुख मार्गों पर उगी झाड़ियों की सफाई, नाले और नालियों की सफाई के अलावा पंचायत भवन, स्कूल, कॉलेज, स्वास्थ्य केंद्र के आसपास भी सफाई कराए जाने के निर्देश दिए गए थे।

अभियान में ढिलाई बरतने वालों के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी भी दी गई थी। लेकिन यह निर्देश भी कितना कारगर साबित हुएं हैं गांवों के मार्गो पर उगी हुई झाड़ियों, गंदगी आदि को देख अंदाजा लगाया जा सकता है। अभियान बीत चुका है, लेकिन अभियान की सार्थकता पर अभी भी सवाल खड़े के खड़े हैं।

जिला मलेरिया अधिकारी संजय द्विवेदी बताते हैं कि “अभियान की सफलता के लिए ब्लाक स्तरीय नोडल बनाये गये थे जिन्हें ब्लॉक स्तर पर अभियान की समीक्षा करना था। अभियान के लिए 2058 टीमों का गठन किया गया था। अभियान के दौरान मच्छर से होने वाले बीमारियों को खात्मे के लिए जन समुदाय का सहयोग लेने के साथ-साथ कूड़ा का निस्तारण करके जल को एकत्र न होने दें के प्रति जागरूक करना था।”

वह बताते हैं कि नियमित जल का निकासी हो, गांव, नगर व मोहल्लों के लोग अपने-अपने तरीकों से साफ-सफाई के कार्य में विभाग का सहयोग करें। कहा कि समुदाय में जागरूकता लाकर ही समस्या खत्म किया जा सकता है।”

अस्पताल में मच्छरदानी लगा कर सोता मरीज

अब जिला मलेरिया अधिकारी को कौन समझाए जिस समुदाय की बात वह करते हैं उनके उपर जो मुलाजिम और जिम्मेदार महकमा है उनके क्या दायित्व बनते हैं? कोई उनसे भी पूछे कि जनसमुदाय को संक्रामक रोगों से बचाने की जिम्मेदारी किसकी है, साफ-सफाई व्यवस्था के लिए भारी भरकम सफाई कर्मियों की जो फ़ौज खड़ी है, वह कहां हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि जिले में अप्रैल से संचारी रोग नियंत्रण अभियान शुरू होकर जुलाई में दूसरे चरण को भी पूर्ण कर चुका है, बावजूद इसके अभियान के दौरान कई जगह साफ-सफाई तक नहीं की गई। कुछ को छोड़कर बाकी जगह अभियान के नाम पर महज़ औपचारिकताएं पूरी की गईं।

गौरतलब हो कि जिले भर में कुल 1714 सफाई कर्मचारी तैनात हैं। संचारी रोग नियंत्रण अभियान के लिए सिटी विकास खंड में 148, कोन में 51, मझवां में 33, छानबे में 152, पहाड़ी में 82, हलिया में 45, लालगंज में 95, जमालपुर में 48, नरायनपुर में 24, पटेहरा कला में 61 तथा राजगढ़ में 39 सफाई कर्मियों समेत कुल 778 सफाई कर्मियों की ड्यूटी लगाई गई थी। संचारी रोग नियंत्रण अभियान के दौरान ही भेदभाव देखने को मिला था।

दिव्यांग बऊर, नगरपालिका पर सवाल

नगर पालिका की साफ-सफाई व्यवस्था पर सवाल खड़े करते हुए दिव्यांग बऊर कहते हैं, “अस्पताल गेट से लगाए आसपास की पूरी की पूरी सड़क की पटरी पर बरसात का पानी जमा रहता है। मच्छरों की भनभनाहट से लेकर कीचड़ से सांस लेना मुश्किल हो जाता है। आना जाना मुश्किल बना ही है। वह अपनी दिव्यांगता का हवाला देते हुए सवाल करते हैं, देखिए कैसे आना जाना होता है।

संचारी रोग नियंत्रण अभियान की हवा निकालता मंडलीय अस्पताल, ट्रौमा सेंटर द्वार

सदैव सुर्खियों में बने रहने वाले जिला मंडलीय अस्पताल, ट्रौमा सेंटर को विवादों, सुर्खियों से फिलहाल नाता टूटता नहीं दिखाई देता है। मौजूदा समय में बरसात का मौसम होने से जल-जमाव और कीचड़ आम हो चला है। लेकिन बात जब होती है संचारी रोग नियंत्रण की, तो बरबस ही सरकारी अस्पताल परिसर से लेकर बाहर तक जलजमाव का नजारा देखा जा सकता है। हालत तब और जटिल हो जाती है जब अस्पताल के मुख्य प्रवेश द्वार पर ही जमा बारिश के पानी से होकर मरीजों तीमारदारों को आना जाना पड़ जाता है।

अस्पताल के दोनों मुख्य गेट, अस्पताल परिसर से लगे सड़क की पटरियों किनारे जल निकासी की मुकम्मल व्यवस्था न होने से हल्की बारिश में ही जल-जमाव का दृश्य उत्पन्न हो जाता है। यही हाल परिसर के अंदर भी देखने को मिलता है। अस्पताल में सफाई कर्मीयों की फौज होने के बाद भी चोंक पड़ी नालियां मच्छरों की जमात फैला रही हैं अब सोचा जा सकता है कि भला कैसे संचारी रोग पर नियंत्रण रखा जाएगा?

अस्पताल के गेट पर जमा पानी

करोड़ों रुपए की लागत से तैयार ट्रामा सेंटर भवन की दरो-दिवारों से रिसता पानी, जगह-जगह दिखती दरार निर्माण की गुणवत्ता की पोल खोलने के साथ-साथ चोंक पड़ी नालियों, परिसर के अंदर जलजमाव का दृश्य ट्रौमा सेंटर की उपयोगिता पर सवाल खड़े करते हैं। मां विंध्यवासिनी स्वशासी राज्य मेडिकल कॉलेज ट्रामा सेंटर के मुख्य प्रवेश द्वार पर जल-जमाव कीचड़ के साथ हमेशा गंदगी का आलम बना हुआ रहता है। सामने कूड़े-कचरे का ढेर स्वच्छता अभियान के साथ संचारी रोग नियंत्रण अभियान की हवा निकाल दे रहे हैं। मज़े की बात है कि ट्रामा सेंटर गेट से होते हुए जिला महिला अस्पताल के लिए भी जाने का रास्ता है बावजूद इसके स्वास्थ्य महकमा गेट और आस-पास में व्याप्त जलजमाव से पूरी तरह से बेख़बर बना हुआ है।

आश्चर्य की बात है कि समय-समय पर स्वास्थ्य विभाग के आलाधिकारियों के साथ ही जिलाधिकारी का भी आना-जाना होता है बावजूद इसके अस्पताल गेट से लगाए इर्द-गिर्द जलजमाव की ओर किसी का भी ध्यान नहीं जाता है। दूसरी ओर मंडलीय अस्पताल का गेट नंबर-1 दोपहर बाद वाहन स्टैंड का रूप धारण कर देता है, जहां आसपास के पैथोलाजी सेंटर के वाहनों का जमावड़ा लग जाता है वहीं जल-जमाव कीचड़ के मारे लोगों का बुरा हाल होने लगता है।

(संतोष देव गिरी स्वतंत्र पत्रकार हैं)

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