कामरेड सीताराम येचुरी हमारे बीच नहीं रहे। उनका इस प्रकार अचानक, चंद दिनों की बीमारी के बाद ही असमय चला जाना भारत में वामपंथी और जनतांत्रिक आंदोलन से जरा भी हमदर्दी रखने वाले व्यक्ति के लिए सचमुच किसी वज्रपात से कम नहीं कहलायेगा।
भारत के वाम-जनतांत्रिक आंदोलन के लिए कामरेड सीताराम का क्या महत्व था उसे किसी दुखांत में सौंदर्य की भूमिका के बारे में प्रसिद्ध मनोविश्लेषक जॉक लकान के इस कथन से समझा जा सकता है कि “वह सौंदर्य ही दर्शकों को दुखांत में अंतर्निहित डर की गिरफ्त में जाने से बचाने की आड़ के रूप में काम करता है।” (the ultimate barrier that forbids access to a fundamental horror)
वामपंथी छात्र राजनीति के शिखर से वामपंथी राजनीति की मुख्यधारा के सर्वोच्च शिखर तक जाने के अपने पचास साल से ज्यादा के राजनीतिक जीवन की नाना भूमिकाओं से कामरेड सीताराम की जो छवि तैयार हुई थी वह वाम-जनतांत्रिक राजनीति की एक ऐसी मजबूत और खूबसूरत शख्सियत की छवि थी जिसकी उपस्थिति किसी भी पर्यवेक्षक को इस राजनीति के दुर्दिन के डर से बचाती थी, उम्मीदों को सदा बनाए रखने की अहम् भूमिका अदा करती थी।
सन् 1952 में जन्मे कामरेड सीताराम जब सिर्फ 32 साल की उम्र के थे, उन्हें सीपीआई (एम) की केद्रीय कमेटी का सदस्य चुन लिया गया था। चालीस साल की उम्र में वे पोलिट ब्यूरो के सदस्य बन गए। तभी सोवियत-समाजवादोत्तर काल में उभरे नये मूलगामी विचारधारात्मक प्रश्नों पर पार्टी के तपे-तपाए नेताओं के साथ कंधे से कंधा मिला कर पार्टी की वैचारिक एकसूत्रता को बनाए रखने की चुनौती का मुकाबला करने में एक जागरूक युवा प्रतिभा के रूप में उन्होंने उल्लेखनीय योगदान किया।
सीपीआई (एम) के उस विचारधारात्मक दस्तावेज को पूरी दुनिया के कम्युनिस्ट आंदोलन का अनुमोदन मिला था। परवर्ती दिनों में कामरेड सीताराम ने दुनिया की कई कम्युनिस्ट पार्टियों के सम्मेलनों में शिरकत की और उनके अनुभवों से भारत के कम्युनिस्टों को परिचित करवाया।
छात्र राजनीति में भी 1977-78 में उनका लगातार तीन बार जेएनयू के छात्र संघ के अध्यक्ष पद पर चुनाव आज भी छात्र नेता की जनप्रियता की एक किंवदंती की तरह याद किया जाता है। आपातकाल के दिनों में जेएनयू के प्रांगण में इंदिरा गांधी की उपस्थिति में उनसे विश्वविद्यालय के कुलाधिपति पद से इस्तीफे की मांग करने वाले प्रस्ताव का पाठ करते हुए कामरेड सीताराम की तस्वीर भारत के जनतांत्रिक छात्र आंदोलन के इतिहास की आज भी सबसे यादगार तस्वीर बनी हुई है।
परवर्ती काल में, कामरेड सीताराम सीपीआई (एम) के पोलिट ब्यूरो के उस क्रांतिकारी ‘युवा समूह’ से जुड़ गए जिसने 1996 में पार्टी की केंद्रीय कमेटी में बाकायदा मतदान करवा के ज्योति बसु को प्रधानमंत्री पद का दायित्व स्वीकारने से रोक दिया था।
ज्योति बसु तभी से सार्वजनिक रूप में इस घटना को वामपंथ की ऐतिहासिक भूल कहने से चूकते नहीं थे। जाहिर है कि सत्ता की राजनीति करने पर भी 1996 के एक अहम मुकाम पर सीपीआई (एम) ने सत्ता को नहीं चुना। परिणाम में उसे जो मिला, उसे ही अपना पसंदीदा चयन मान लेना उसकी मजबूरी हो गया।
बहरहाल, सन 1996 में ही एचडी देवगौड़ा के नेतृत्व की संयुक्त मोर्चा सरकार में कामरेड सीताराम ने सरकार के न्यूनतम साझा कार्यक्रम को तैयार करने वाली समन्वय समिति में विशेष भूमिका अदा की। सन् 2004 में बनी मनमोहन सिंह के नेतृत्व की यूपीए सरकार के संचालन में भी उनकी सक्रिय भूमिका रही। पर 2008 में अकस्मात उस सरकार से समर्थन वापस लेने के फैसले से भी वे जुड़े रहे।
समय की चुनौतियों के अनुसार जनतांत्रिक ताकतों के भीतर समन्वय कायम करने, वर्तमान के ‘इंडिया गठबंधन’ के निर्माण में भी कामरेड सीताराम अपने जीवन के अंतिम काल तक एक प्रमुख सहयोगी और सिद्धांतकार की जो भूमिका अदा करते रहे, उसे देश के सभी विपक्षी दल खुले मन से सराहते हैं।
कामरेड सीताराम 2005 से 2016 तक पश्चिम बंगाल से राज्य सभा के सदस्य रहे। राज्य सभा में उनके हस्तक्षेपों को आज भी हर कोई संसदीय राजनीति में उनकी अविस्मरणीय भूमिका के रूप में याद करता है। सन 2015 में कामरेड सीताराम सीपीआई (एम) के महासचिव चुने गए और मृत्यु की अंतिम घड़ी तक वे इस पद पर बने रहे।
कामरेड सीताराम के पचास साल के राजनीतिक जीवन के इन अनेक रूपों ने ही उन्हें वाम-जनतांत्रिक राजनीति का एक सबसे आकर्षक और हरदिल अजीज नेता बना दिया था। उनके धैर्य, ज्ञान और सुचिंतित वक्तव्यों का तो हर कोई कायल था।
उन्होंने ही हमारी पुस्तक ‘आरएसएस और उसकी विचारधारा‘ की भूमिका लिखी थी। इसीलिए हमने शुरू में ही उनकी निर्मिति को वाम-जनतांत्रिक राजनीति का ऐसा खूबसूरत चरित्र कहा है जो इस राजनीति के लिए सदा उम्मीदों को कायम रखता था। आज उनके न रहने से वाम-जनतांत्रिक राजनीति की जो भारी क्षति हुई है, उसका सचमुच सहज अनुमान नहीं लगाया जा सकता है।
कामरेड सीताराम अपने पीछे पत्नी सीमा और एक बेटी और एक बेटा छोड़ गए हैं। हम कामरेड सीताराम की तमाम प्रिय स्मृतियों के प्रति अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनके सभी परिजनों के प्रति आंतरिक संवेदना प्रेषित करते हैं।
लाल सलाम कामरेड सीताराम येचुरी!
(अरुण माहेश्वरी लेखक-आलोचक और स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)