370 हटने के बाद कैसा है जम्मू-कश्मीर, बताया उत्तराखंड के कैबिनेट मंत्री ने

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नई दिल्ली। वैसे तो चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में चुनावों की घोषणा कर दी है। और चार अक्तूबर तक उसके नतीजे भी आ जाएंगे। दस सालों बाद होने वाले इन चुनावों पर पूरे देश की निगाहें लगी हैं। केंद्र सरकार का दावा है कि घाटी में हालात सामान्य हो गए हैं। लेकिन तमाम खबरें और सामने आने वाली तस्वीरें इन दावों के उलट कहानी कहती हैं। 

सरकार ने पहला दावा तो यही किया था कि वहां से आतंकवाद का सफाया कर दिया गया है। लेकिन पिछले छह महीनों या कहिए एक साल से वहां जिस तरह से आतंकवादी गतिविधियों में बाढ़ आयी है पिछले कुछ सालों में उसकी कोई दूसरी मिसाल नहीं मिलेगी। इन घटनाओं में सेना के सामान्य सैनिक नहीं बल्कि एक के बाद एक बड़े अफसर हलाक हो रहे हैं। 

लाख कोशिशों के बाद भी सरकार आतंकी गतिविधियों पर लगाम नहीं लगा पा रही है। अब कोई पूछ सकता है कि पिछले पांच सालों से सरकार वहां आखिर कर क्या रही है? गौरतलब है कि केंद्र ने अनुच्छेद 370 हटाकर 5 अगस्त, 2019 को सूबे के राज्य का दर्जा खत्म कर दिया था। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर एक सूबा नहीं बल्कि यूनियन टेरिटरी में तब्दील हो गया था। जिसमें एलजी की शक्तियां चुनी हुई विधायिका से भी ज्यादा होंगी। एक तरह से उसकी स्थिति दिल्ली के बराबर हो गयी।

सरकार ने दावा किया था कि इस फैसले से सूबा और उसकी कानून-व्यवस्था की स्थिति और मजबूत होगी। तथा आतंकवादी गतिविधियों पर लगाम लगेगी। लेकिन पांच सालों के बाद सूबे का जो चेहरा सामने आ रहा है वह बेहद डरावना है। मौजूदा समय में सूबे के क्या हालात हैं उसको समझने के लिए किसी और का नहीं बल्कि बीजेपी के खुद अपने नेताओं और मंत्रियों का बयान सुन लिया जाए तो वह काफी होगा। उत्तराखंड के एक मंत्री हैं धन सिंह रावत। 

वह जम्मू-कश्मीर के दौरे पर गए थे और इस बीच उन्हें घाटी में भी जाने का मौका मिला। लौटने के बाद सूबे की स्थिति के बारे में उन्होंने जो खुलासा किया है। वह केंद्र की मोदी सरकार के लिए शर्मनाक है। उन्होंने देहरादून में नागरिकों की एक सभा में कहा कि घाटी के हालात बेहद बुरे हैं। और बाहर जो दावे किए जा रहे हैं वो हकीकत से बहुत दूर हैं। 

उनका कहना था कि जब “मैं चुनाव प्रचार के लिए बाहर गया तो जिले के एसएसपी ने कहा कि मुझे उनकी शर्तों के मुताबिक चुनाव प्रचार करना होगा। जब मैं जम्मू-कश्मीर के डोडा में गया उन्होंने कहा कि आपको दस बजे से लेकर चार बजे तक ही प्रचार करना होगा। बाकी आप रात को कहां रहेंगे यह हम बताएंगे। आपको हमेशा ड्राइवर बदलना है आपको हमेशा घर बदलना है”। ये बयान हैं उत्तराखंड के मंत्री के जहां बीजेपी की सरकार है। 

अब अगर ये हालात हैं तो समझा जा सकता है कि मोदी सरकार के दावे कितने खोखले हैं। दरअसल पिछले पांच सालों में सरकार ने सैनिक और पुलिस के बल पर वहां सत्ता तो ज़रूर चलायी लेकिन उसमें न तो जनता की कोई भूमिका रही और न ही स्थानीय लोगों की कोई भागीदारी। बंदूक की नोक पर पैदा हुई शांति को असली शांति मान लिया गया। जबकि वह डर और दहशत में सहमी जनता की चुप्पी थी। केंद्र की सत्ता और उसके फैसले के प्रति लोगों में बेहद आक्रोश था लेकिन वह फौजी बूटों के डर से न तो सड़कों पर फूटा न ही उसको निकलने का कोई और रास्ता मिला। 

अंतत: वह जहर बनकर लोगों की रगों में दौड़ता रहा। और जब चीजें एक सीमा से बाहर चली गयीं तो इस बीच वह आतंकवाद की मवाद बनकर फूट पड़ा। जिसको संभालने की हर कोशिश केंद्र के लिए नाकाम साबित हो रही है। केंद्र को समझना चाहिए कि लोकतंत्र और लोकतांत्रिक प्रक्रिया कोई जुमला नहीं है। बल्कि सार्वजनिक जीवन, समाज और राजनीति को चलाने का एक ऐसा माध्यम है जिसको चलाने की एकमात्र शर्त लोगों की भागीदारी है।

और इसको सुनिश्चित करने के जरिये ही किसी समाज को स्वस्थ और समृद्ध बनाया जा सकता है। सूबे को अगर चलाना है तो वह जन एकता के बल पर चलेगा न कि पुलिस और फौज-फाटा से। ऊपर से अगर जनता को दोस्त समझने और उसके प्रतिनिधित्व के आधार पर प्रशासन का संचालन करने की जगह उसके दमन और उत्पीड़न के जरिये उसे चलाने की कोशिश होगी तो समय के साथ समाज के भीतर एक ऐसा लावा पकेगा जो किसी भी समय ज्वालामुखी का रूप ले सकता है। 

पिछले पांच सालों में जम्मू-कश्मीर को चारों तरफ से बंद कर दिया गया था और सबक सिखाने के नाम पर उसे हर तरीके से दबाने की कोशिश की जा रही थी। लेकिन बर्दाश्त की भी एक सीमा होती है। जो गुस्सा कभी पत्थर लेकर सड़कों पर फूटता था वह हाथों में हथियार लेकर घने जंगलों में सुरक्षाकर्मियों पर फूट रहा है। 

लेकिन मशल पावर में विश्वास करने वाली बीजेपी को न तो इसका इलहाम है और न ही इसको समझने की सलाहियत। लिहाजा पिछले दस सालों में आए मौके को उसने गवां दिया। और अब जबकि चुनाव होने जा रहे हैं तो देखना होगा कि इसके क्या नतीजे निकलते हैं और इससे क्या कुछ हासिल होने जा रहा है। और स्थितियां कितनी बनेंगी और बिगड़ेंगी। यह सब कुछ भविष्य के गर्भ में है।  

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