Tuesday, March 19, 2024

आदिवासियों को ‘हिंदू’ बनाने में संघ की सहयोगी बनी कांग्रेस, राम वन गमन पथ योजना में 75 जगहों पर मंदिर निर्माण की तैयारी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार केंद्र के हिंदू राष्ट्र के कांसेप्ट की तर्ज पर छत्तीसगढ़ के आदिवासी, पिछड़े बाहुल्य क्षेत्र में 75 जगहों पर राम वन गमन पथ योजना के तहत मंदिर निर्माण में लगी है। हिंदुत्व की आखरी कील छत्तीसगढ़ के बहुजनों पर ठोंकते हुए मंगलवार को भूपेश बघेल ने अपने रायपुर निवास परिसर में राम वन गमन पर्यटन परिपथ के प्रचार के लिए सभी पांच संभागों के लिए तैयार किए गए विशेष प्रचार रथ को हरी झंडी दिखाकर रवाना किया। इस रथ में एलईडी स्क्रीन के माध्यम से छत्तीसगढ़ में राम के चौदह वर्षों के वनवास के दौरान छत्तीसगढ़ से होकर जाने वाले सभी स्थलों के बारे में जानकारी दी जाएगी।

छत्तीसगढ़ सरकार आरएसएस और बीजेपी के कांसेप्ट को धरातल पर उतारने के लिए उतारू है। एक तरफ जहां केंद्र में आरएसएस और बीजेपी हिंदू राष्ट्र के निर्माण को लेकर खुले चेहरे से सामने दिखाई पड़ रही है तो वही कांग्रेस पर्दे के पीछे से हिंदू राष्ट्र के निर्माण में अपना योगदान देती दिखाई पड़ रही है।

बता दें कि छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी, तो राम को केंद्र में रखकर एक आक्रामक सांप्रदायिकता की नीति पर अमल किया जा रहा था। इसके लिए शोध का पाखंड रचा गया। राम के वन गमन की खोज पूरी की गई। बताया गया कि छत्तीसगढ़ के धुर उत्तर में कोरिया जिले के सीतामढ़ी से लेकर धुर दक्षिण में सुकमा जिले के रामाराम तक ऐसी कोई जगह नहीं है, जो कि राम के चरण-रज से पवित्र न हुई हो। संघी गिरोह के इतिहासकारों की यह नई खोज है, इसे आगे बढ़ाते हुए छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार राम वन गमन पथ योजना के तहत 75 स्थलों को चिन्हांकित कर राम मंदिर निर्माण कर रही है।

दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस आदिवासी समाज ने अपनी धर्म, संस्कृति और परंपरा के संरक्षण की आस लेकर कांग्रेस को भारी बहुमत से सरकार बनाने के लिए वोट दिया था, उसी की संस्कृति परंपरा को तहस नहस करने के लिए ताना बाना बुना जा रहा है।

सरकार के जनसंपर्क विभाग से मिली जानकारी के अनुसार पुरातन काल से छत्तीसगढ़ में राम लोगों के मानसपटल पर भावनात्मक रूप से जुड़े हैं। वहीं पर भगवान राम ने 14 वर्ष वनवास के दौरान लंबा समय छत्तीसगढ़ की धरा पर गुजारा था। वनवास के दौरान श्रीराम छत्तीसगढ़ के जिन स्थानों से गुजरे थे, उसे राम वन गमन पथ के रूप में विकसित करने की योजना बनाई गई है।

उल्लेखनीय है कि पर्यटन विभाग द्वारा राम वन गमन पर्यटन परिपथ के विकास के लिए 137 करोड़ का कॉन्सेप्ट प्लान बनाया गया है। इस परिपथ के तहत कुल 75 स्थान चिन्हित किए गए हैं। प्रथम चरण में 9 स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (सरगुजा), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्तऋषि आश्रम (धमतरी), जगदलपुर (बस्तर), रामाराम (सुकमा) शामिल है।

इस परियोजना की शुरुआत रायपुर के निकट स्थित चंदखुरी से हो गई है। चंदखुरी को भगवान राम का ननिहाल बताया जाता है। यहां माता कौशल्या का प्राचीन मंदिर है, जो सातवीं शताब्दी का है। माता कौशल्या मंदिर परिसर के सौंदर्यीकरण और विकास के लिए 15 करोड़ 45 लाख रुपये की कार्य योजना पर काम किया जा रहा है। राम वन गमन पर्यटन परिपथ के तहत लगभग 2260 किलोमीटर सड़कों का विकास किया जाएगा।

इस योजना के बाद छत्तीसगढ़ में आदिवासी खासे नाराज नजर आ रहे हैं। हाल ही में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के दिन छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले में स्थानीय विधायक शिशुपाल शोरी का पुतला तक दहन किया गया था। उनका आरोप था कि स्थानीय विधायक आदिवासी होते हुए भी आदिवासी संस्कृति विरोधी काम को अंजाम दे रहे हैं।

छत्तीसगढ़ बीजापुर के सर्व आदिवासी समाज के नेता अधिवक्ता लक्ष्मीनारायण गोटा ने कहा कि राम वन गमन पथ निर्माण परियोजना को मंजूरी देकर राज्य सरकार जहां इसे ऐतिहासिक और आस्था का केन्द्र बनाने तथा पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने का दावा कर रही है, वहीं इलाके के आदिवासी समुदाय ने श्रीराम वन गमन निर्माण को लेकर विरोध दर्ज कराया है हाल ही में 9 अगस्त को हुए विश्व आदिवासी दिवस के मौके पर राष्ट्रपति समेत राज्यपाल और मुख्यमंत्री को सोंपे ज्ञापन में आदिवासी समाज ने इसे आदिवासी रूढ़ी प्रथा को प्रभावित करने वाला तथा बस्तर में सांस्कृतिक टकराव का खतरा बताया है।

प्रेस को जारी अपने वक्तव्य में सर्व आदिवासी समाज के नेता और अधिवक्ता लक्ष्मीनारायण गोटा ने कहा कि भूपेश बघेल रमन सरकार की तरह राम नाम से अपनी आगामी चुनावी नैया पार लगाना चाहती है। बस्तर के अंदर राम वनगमन पथ निर्माण के नाम पर आदिवासियों की रूढ़ी प्रथा को भंग करना चाहते हैं। भूपेश बघेल सरकार को चाहिए कि सही मायने में आदिवासियों का विकास चाहते हैं तो जितनी राशि राम वनगमन पथ पर खर्च कर रहे हैं वह जनजाति क्षेत्र में स्कूल, अस्पताल बनवाने पर खर्च करें। महाविद्यालयों के लिए विषयवार व्याख्याता उपलब्ध कराएं।

उन्होंने कहा कि राम नाम की नैया से चुनावी वैतरणी पार करने का दिवास्वप्न देख रहे हैं पर उनके इस स्वप्न से बस्तर में सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक एवं रूढ़ी प्रथा पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। यह आंतरिक कलह को बढ़ावा देगा, साथ ही भविष्य में गैर बस्तरिया प्रवासी संस्कृति से टकराव के कारण अप्रिय घटनाएं होंगी। गोटा ने कहा कि इस परियोजना से सीधा लाभ किसी को नहीं दिख रहा है। अलबत्ता सांस्कृतिक टकराव की संभावना ज्यादा नजर आ रही है, इसलिए श्रीराम वन गमन पथ परियोजना को निरस्त किया जाना चाहिए।

सामाजिक कार्यकर्ता विजय भाई कहते हैं कि धीरे-धीरे ब्राम्हणवादी-हिंदुत्व तत्व ने ऐसी सांस्कृतिक धरोहर पर कब्जा किया है। ऐसी अन्य परम्पराओं के साथ, बुद्ध, जैन और दूसरी विचारधारा आया आस्था वाली परंपराओं को ब्राम्हणवादी ताकतों ने या तो नष्ट कर दिया है या फिर अपने में मिला लिया है। अब सघन रूप से आदिवासी क्षेत्रों पर निशाना है, इसलिए कि संसाधन वहीं हैं। ये तरीका पूरी दुनिया में चल रहा है। चाहे अलास्का (अमेरिका) हो या आमेजन (ब्राज़ील) के वनों को जलाकर कब्ज़ा करना हो।

विजय भाई कहते हैं, “राम गमन के साथ साथ इस पूरे इलाके में राजनीतिक रूप से सत्ता-शक्ति का पूरा परिवर्तन हो जाएगा। 5वीं अनुसूची को लेकर कोर्ट इत्यादि पर ज़्यादा भरोसा नहीं किया जा सकता है। नागा संघर्षों से सीखने की जरूरत है। आज केंद्र सरकार परेशान तो है।” उन्होंने कहा कि कांग्रेस पर भरोसा नहीं किया जा सकता है। वे ऊपर गांधी टोपी, अंदर खाकी चड्डी पहने हुए हैं। इनका इतिहास वही रहा है। आदिवासियों के मामले में सारी पार्टियों का कमोबेश ऐसा ही हाल रहा है। आदिवासियों को अपनी लड़ाई का रास्ता खुद तय करना ही होगा। अकेले नहीं बल्कि अन्य मुक्तिकामी समूहों के साथ मिल कर।

“छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता कनक तिवारी अपनी फेसबुक वॉल पर लिखते हैं कि राम वन गमन योजना कौशल्या का मायका, हनुमान जी का मंदिर, रामनामी तिलक, जनेऊ धारण करना, सब भाजपा के खाते में चला जाएगा, कांग्रेस जी!”

आदिवासियों की सभ्यता और संस्कृति पर आक्रमण कोई नया नहीं है। वनवासी कल्याण आश्रम के जरिए संघी गिरोह दशकों से यह काम आदिवासियों को शिक्षित करने के नाम पर कर रहा है। इस अभियान में उन्होंने रामायण का गोंडी और अन्य आदिवासी भाषाओं में अनुवाद कर उसे बांटने का काम किया है। जगह-जगह ‘मानस जागरण’ के कार्यक्रम भी हो रहे हैं।

हिंदुओं के त्योहारों को मनाने और उनके देवों को पूजने, हिंदू धर्म की आस्थाओं पर टिके मिथकों को आदिवासी विश्वास में ढालने का काम भी किया जा रहा है। इस आक्रामक अभियान में आदिवासियों के आदि धर्म और उनके प्राकृतिक देवों से जुड़ी मान्यताओं, विश्वासों और मिथकों पर खुलकर हमला किया जा रहा है और जनगणना में आदिवासियों को हिंदू दर्ज करवाने का अभियान चलाया जा रहा है।

(जनचौक संवाददाता तामेश्वर सिन्हा की रिपोर्ट।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles