सरकारी पैसे पर सियासी साजिशों की लंबी-लंबी श्रृंखलाओं का निर्माण करने वाले सुशासन बाबू रविवार को एक बार फिर “जल-जीवन-हरियाली” योजना के नाम पर मानव श्रृंखला का निर्माण किए। केंद्र सरकार के विभिन्न निर्णयों एवं एजेंडों के कारण चुनावी वर्ष में तमाम कोशिशों के बावजूद भी सुशासन बाबू के चेहरे से धर्मनिरपेक्षता का आखिरी नकाब उतर चुका है और इस बार उनका साम्प्रदायिक वीभत्स चेहरा आवरणहीन हो चुका है। ऐसे समय में सियासी बिसात के शातिर खिलाड़ी रहे नैतिक बाबू ने जनता की नजर में बने रहने का एक नायाब तरकीब ढूंढ लिया और पुनः एक मानव श्रृंखला को सजाना ही बेहतर समझा।
राजनैतिक महत्वाकांक्षा के महारथी बन चुके माननीय नैतिक बाबू की पूरी ज़िंदगी का निचोड़ यही रहा है कि सत्ता के सिंहासन तक पहुंचना इनकी राजनीति का मूल मंत्र रहा है और बीजेपी से इनकी यारी भी इसी सोच के कारण लम्बी अवधि तक बनी रही। क्योंकि बीजेपी की राजनीति का ककहरा भी कुर्सी पर ही पहुंचना रहा है। नीतीश कुमार के साथ कभी भी बड़ा जनाधार या वोटबैंक नहीं रहा। इसका बड़ा प्रमाण रहा है कि जब भी नैतिक कुमार जी ने अकेले चुनाव लड़ने की ठानी तब-तब जनता ने उन्हें आईना दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
सरकार द्वारा लाई गई ‘जल जीवन हरियाली योजना’ का कुल बजट काफी बड़ा है। तीन वर्षों में इस योजना के नाम पर कुल 24 हजार 524 करोड़ की विशाल रकम खर्च करने की योजना है । इस अभियान पर वर्ष वार खर्च 2019-20 में 5870 करोड़ 2012-21 में 9874 करोड़ तथा 2021-22 में 8780 करोड़
होंगे।
इस अभियान की सफलता के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने करीब एक महीने से सारे सरकारी मशीनरियों की पूरी ताकत लगा दी। सारे सरकारी विभाग अपना-अपना काम धंधा छोड़कर मुख्यमंत्री जी के सियासी चेहरे को चमकाने की इस योजना में जुटे रहे। राज्य के सरकारी विभागों और अफसरों पर इस योजना का दबाव इतना भयंकर था कि 20 जनवरी को आयोजित सिपाही भर्ती परीक्षा को स्थगित कर दिया गया। एक ऐसी परीक्षा जिसका फॉर्म काफी पहले भरा गया, फिर रद्द किया गया और फिर दोबारा से आवेदन फॉर्म भरवाया गया था।
सिपाही के 11 हजार 880 पदों के लिए बहाली की प्रक्रिया चल रही है। 12 और 20 जनवरी को लिखित परीक्षा के लिए तारीख तय की गई थी। 12 जनवरी को परीक्षा हो चुकी है और बचे अभ्यर्थिर्यों की 20 जनवरी को परीक्षा होनी तय थी। 20 जनवरी को भी दो पालियों में परीक्षा होनी थी, जिसमें साढ़े छह लाख से अधिक अभ्यर्थियों को शामिल होना था। लंबे इंतजार के बाद परीक्षा आयोजित की गई थी वो भी केवल इस कारण से रद्द कर दी गयी जिससे मुख्यमंत्री का चेहरा चमकाया जा सके।
याद कीजिए पिछले कुछ महीने पहले बिहार की राजधानी पटना समेत कई जिलों में भयंकर बाढ़ आई थी, इस बाढ़ की त्रासदी को केवल इस बात से समझा जा सकता है कि उस समय कई मंत्रियों के घरों में पानी घुस गया था, राज्य के उप मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी जी को किसी तरह रेस्क्यू करके निकाला गया था। उस भयंकर त्रासदी में भी राज्य की सरकार काफी जद्दोजहद के बावजूद राहत सामग्री का वितरण करने के लिए बमुश्किल एक-दो हेलीकॉप्टर की व्यवस्था कर पाई थी लेकिन मानव श्रृंखला की वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी के लिए सरकार के 15 उड़नखटोले (हेलीकॉप्टर) आसमान में मंडरा रहे थे जिसमें बॉलीवुड के दक्ष फोटोग्राफर को इस कार्य का जिम्मा दिया गया था। सरकारी पैसे को बिल्कुल पानी की तरह बहाया गया ताकि सुशासन बाबू के चेहरा चमकाओ स्कीम को सफल बनाया जा सके।
इस योजना के अंतर्गत राज्य में कुल 24 करोड़ पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया गया है। सरकार के अनुसार इसमें से 19 करोड़ पौधे लगाए जा चुके हैं। किधर लगाए हैं और कितनी हरियाली आएगी ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा लेकिन फिलहाल इस योजना के नाम पर सुशासन बाबू एंड कम्पनी अपनी जेब गरम जरूर कर रहे हैं।
इससे पहले भी वर्ष 2017 में 21 जनवरी को शराब बंदी के पक्ष में चार करोड़ लोगों के साथ, जबकि 21 जनवरी, 2018 को बाल विवाह और दहेज प्रथा के खिलाफ 14 हजार किलोमीटर लंबी मानव श्रृंखला बनाई गई थी, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। बिहार में आए दिनों शराब की बोतलों से लदे वाहन पकड़े जाते हैं। पुलिस तंत्र शराबबन्दी के नाम पर शराब माफियाओं से मोटी रकम प्राप्त करता है और शराब की होम डिलीवरी करवा रहा है जो जगजाहिर है। दहेज पर कितना अंकुश बना है ये भी किसी से छिपा नहीं है। ऐसे में ये सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकारी पैसे से पूरे सरकारी तंत्र को उलझा कर ऐसे रिकार्डधारी मानव श्रृंखलाओं के क्या मायने?
सड़कों से लेकर सचिवालय तक थाली पीट कर और खलिहान से लेकर स्कूल-कॉलेजों तक सिग्नेचर अभियान चलाकर “बिहार के विशेष राज्य के दर्जे” के लिये डुगडुगी पीटने वाले छवि कुमार आज भूल से भी इसकी चर्चा नहीं कर रहे हैं। आख़िर कहां अटका है बिहार के विशेष राज्य के दर्जा का मामला ? लेकिन नीतीश कुमार जी इसका जवाब देने के बदले मानव श्रृंखला का ढोंग रच रहे हैं। सरकार हजारों करोड़ रुपये खर्च कर भीषण ठंड में स्कूली बच्चों तक को रोड पर सिर्फ इसलिये खड़े करना इनकी फितरत बन चुकी है ताकि इनका राजनैतिक स्वार्थ पूरा हो सके। बिहार के दरभंगा जिले में मानव श्रृंखला में खड़े एक शिक्षक के दिल का दौरा पड़ने से मौत होने की ख़बर है।
ऐसे में अपने राजनैतिक लाभ के लिए सियासी साजिशों की श्रृंखलाओं के ‘सृजन’कर्ता सुशासन बाबू के पास मृतक शिक्षक के परिवार जनों के लिए क्या है? राज्य के युवाओं के लिये एक अदद प्रतियोगिता परीक्षा को सफलता पूर्वक नहीं आयोजित कर पाने वाली निकम्मी सरकार सरेआम अपनी नीचता का प्रदर्शन कर रही है। एक ओर जहां पूरे देश में CAA, NPR और NRC के मुद्दे पर आंदोलन हो रहे हैं, जनता सड़कों पर संविधान विरोधी साम्प्रदायिक कानून के विरुद्ध संघर्ष कर रही है ऐसे में सुशासन बाबू असल मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने में लगे हैं बेहतर होगा कि सर्दी की धुंध में धुंआ उड़ाने के बदले हक़ीकत को देखिये।
(दयानंद स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)