वाराणसी (उप्र): इल्म की रौशनी छीन लिए जाने से व्यथित दृष्टिहीन छात्रों का सड़क पर धरना जारी है। जारी है शिक्षा के अधिकार के लिए लड़ाई। बनारस के इतिहास में पहली बार शिक्षा के अधिकार को लेकर दृष्टिहीन सड़क पर हैं और शासन-प्रशासन मौन।
पूर्वांचल का पहले और अंतिम हनुमान प्रसाद पोद्दार अंध विद्यालय को बंद किए जाने को लेकर यहां के छात्र पिछले एक महीने से सड़क पर हैं पहले 25 दिन जनजागरण के और पिछले 8 दिन सड़क पर बीत गए हैं, लेकिन इस तरफ न शासन की नजर गई और न ही प्रशासन की। हां… आधी रात दस्तक देने के लिए मशहूर पुलिस एक दिन आधी रात को पहुँची जरुर थी। ये समझाने के लिए कि रास्ता खाली कर दें क्योंकि सड़क पर बैठना, यातयात बाधित करना गैरकानूनी है। लेकिन किसी की जिंदगी बाधित करना, जिंदगी की अंतिम बची उम्मीद इल्म की रौशनी छीन लेना क्या कानूनी है ?
कड़ी धूप और बारिश की बौछारों के बीच सड़क पर जमे दृष्टिहीन छात्रों की बस एक मांग है कि उन्हें उनका स्कूल वापस दे दिया जाए। आजादी के 74 साल बाद भी दृष्टिहीन छात्रों से स्कूल और शिक्षा छीन लेना क्या आजादी छीन लेना नहीं है, क्योंकि इल्म ही वो रौशनी है जिससे ये छात्र अपने मुस्तकबिल को रौशन करेंगे नहीं तो इनके जीवन में सिवाय अंधेरा बचेगा क्या ?
जिस शहर का प्रतिनिधित्व प्रधानमंत्री स्वयं करते हों और जिनके दिल में दिव्यांगों के लिए इतनी संवेदनशीलता हो वहां दिव्यांगों के साथ इतनी असंवेदनशीलता क्यों बरती जा रही है ? प्रधानमंत्री को बनारस की फ़िक्र है तो इन दृष्टिहीन छात्रों की क्यों नहीं ? शहर बनारस से तीन मंत्री प्रदेश सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन इनमें से किसी को वक्त नहीं कि धरना स्थल पर जाकर छात्रों के दर्द को समझे उन्हें उनका स्कूल दिलाए अफसोस धरने वाले किसी जाति विशेष के नहीं, न ही वोट बैंक हैं, नहीं तो अब तक न जाने कितनी बार लाल बत्ती लगी हूटर वाली गाड़ियां इस सड़क को नाप चुकी होती।
इस सड़क पर अपने हक के लिए लड़ रहा वो हिंदुस्तान बैठा है जिससे शिक्षा छीन ली गई है, जिससे आत्मनिर्भर बनने का जरिया छीन लिया गया है जो अपनी बात कह रहा है। कह रहा है “भिक्षा नहीं शिक्षा” पर निर्भरता नहीं आत्मनिर्भरता इनकी मांगें जायज हैं और संवैधानिक भी। शासन को इस सड़क पर होना चाहिए, इस सड़क से दूर नहीं। क्या ये बेहतर नहीं होगा स्कूल का गेट खुले और बंद कक्षाओं के दरवाजे भी क्योंकि इन दृष्टिहीन छात्रों के भविष्य का रास्ता यहीं से खुलेगा।
(वाराणसी से पत्रकार भास्कर गुहा नियोगी की रिपोर्ट।)