Tuesday, April 23, 2024

कोरोना ने उतार दिया हम सबका भी नक़ाब

कोरोनो ने पूरी दुनिया को तो संकट में डाला ही है भारत को कुछ विशेष संकट में डाल दिया है। भारत में कोरोनो 31 जनवरी को ही आ चुका था लेकिन उसके बाद न तो सरकार, न मीडिया और न ही देशवासियों ने इसे गम्भीरता से लिया। इस देशवासी में  सभी कौमों के लोग शामिल हैं। लेकिन जैसे-जैसे कोरोना देश की धरती पर अपने पांव  पसारने लगा उसने धीरे-धीरे सबके नकाब भी उतारने शुरू कर दिए और खबरें आने लगीं कि देश मे कितने वेंटिलेटर हैं कितने बेड हैं और कितने जांच लैब हैं। कोरोना ने पहले स्वास्थ्य सेवाओं के चेहरे से नकाब उठाया। तब पता चला कि देश मे जांच किट, मास्क, और बाजार में सेनेटाइजर तक नहीं हैं। और अब तो हाइड्रो क्लोरोक़ीन दवा भी नहीं जो इस रोग में काम आ रही थी। जबकि वह मलेरिया की दवा थी। लेकिन पिछले कुछ दिनों से कोरोना ने अपना नया चेहरा दिखाना शुरू कर दिया।

वह व्यक्ति को तो बाद में मारता पर उस कैरोना की बहसों ने लोगों की जान लेने की कोशिश शुरू कर दी। वह अब सिर्फ विज्ञान की भाषा का विषाणु नहीं रहा बल्कि अब वह हमारी चेतना का भी विषाणु बन गया। विचार और दृष्टिकोण का भी विषाणु बन गया। उसने अब  इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सोशल मीडिया के चेहरे से भी नकाब उठा दिया और अब हमारे आपके चेहरे से भी नकाब उठा दिया। कोरोना अब हिन्दू-मुस्लिम विवाद से होता हुआ  राष्ट्रवाद की बहस में शामिल हो गया। पता नहीं कि इटली, जर्मनी, स्पेन, अमरीका और ब्रिटेन में वह किसी विवाद में फंसा या नहीं लेकिन भारत मे आकर वह राजनीतिक विवाद में भी फंस गया। 

कोरोनो एक राजनीतिक विषाणु में भी तब्दील हो गया। कांग्रेस और भाजपा के एक दूसरे पर किये गए हमले इस बात के सबूत हैं लेकिन सबसे बुरा निजामुद्दीन मरकज़ को लेकर उठा विवाद है। कुछ टीवी चैनलों ने एक तरफा बयान बाजी की जो उनकी पुरानी आदत रही है तो कुछ टीवी चैनलों ने व्यापक परिप्रेक्ष्य में समस्या को रखा और बताया कि खुद राजनेता सोशल डिस्टेंसिंग नहीं मान  रहे थे तो कई मंदिर और कई मस्जिदें भी नहीं मान रही थीं। दोनों कौमों से कुछ गलतियां जाने अनजाने हुई हैं और हो रही हैं। उन्हें अपनी लापरवाही मान लेनी चाहिए थी लेकिन आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला शुरू हो गया और इसको लेकर राजनीति भी शुरू हो गई। जनता कर्फ्यू के दिन जिस तरह वंदे  मातरम, जय श्री राम और भारत माता की जय के नारे लगे थे उससे आशंका हुई थी कि आने वाले दिनों में कोरोना वायरस हिन्दू-मुस्लिम में तब्दील हो जाएगा।

यह टीवी चैनलों तक सीमित रहता तो शुक्र था लेकिन अब यह ज़हर घर मे पहुंच गया और कई लोगों के भीतर उसका हिन्दू मन और मुस्लिम मन  जाग गया। कोरोनो के टीके का आविष्कार तो देर सबेर हो जाएगा लेकिन सबके भीतर छिपे इस कैरोना के इलाज का टीका कब निकलेगा। दिलचस्प बात यह है कि दोनों कोरोना अदृश्य रहते हैं। दोनों आपके शरीर के भीतर रहते हैं और शुरू में आपको पता नहीं चलता और लक्षण भी देर से सामने आते हैं।शुरू में पता नहीं चलता कि कौन व्यक्ति इससे संक्रमित है। बाद में सर्दी, बुखार और सांस लेने में तकलीफ से संकेत मिलता है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और सोशल मीडिया पर पत्रकारों और राजनीतिज्ञों तथा लोगों की टिप्पणियों से और बहसों से भी पता चलता है कि फलां आदमी साम्प्रदायिक और वर्गीय कैरोना से संक्रमित है। शुरू में उसका भी नहीं पता चलता।

सोशल मीडिया पर कई लोग बुरी तरह एक्सपोज हुए हैं विषाणु के रूप में कोरोना फेफड़े को शिकार बनाता है जबकि दृष्टि दोष का कैरोना आपके दिमाग को जकड़ता है और तब आप जहर उगलते हैं। इस जहर का भी कोई टीका वैज्ञानिकों ने नहीं खोज निकाला है। गांधी जी ने इसका टीका अपने जीवन संदेश से निकला पर वे भी उसी सांप्रदायिकता के शिकार हुए जिसके खिलाफ वह लड़ रहे थे। अपने देश मे यह कैरोना पहले से मौजूद था लेकिन अभी चीन से आया कैरोना भी उसी कैरोना से मिल गया या भारत में वर्षों से मौजूद कैरोना ने चीनी कैरोना से हाथ मिला लिया और दोनों एकाकार हो गए। फिलहाल भारत को दो कैरोना से लड़ना है। पुलिस और डॉक्टर दोनों कैरोना से अल- अलग लड़ रहे हैं।

बेहतर यह होता हम एक कैरोना से लड़ते और दूसरे कैरोना को उभरने नहीं देते लेकिन टीवी की टीआरपी और राजनीति का वोट बैंक इस कैरोना का भी अपने पक्ष में  दोहन कर रहा है। सभव है स्थिति सामान्य होने में साल लग जाये। लेकिन यह कैरोना इस बात के लिए याद तो किया जाएगा कि उसने कितने लोगों की जान ली लेकिन यह इस बात के लिए भी याद किया जाएगा कि उसने किन-किन लोगों के चेहरे से नकाब ही उठा दिया और सबको नंगा कर दिया।कैरोना हमारी प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर करता है उसने हमारे विचारों की प्रतिरोधक क्षमता को भी कमजोर कर दिया। तभी तो lockdown से परेशान गरीब सड़कों पर निकलने के लिए मजबूर हुआ तो मध्यवर्ग के लोग उसे ही कोसने लगे थे। वे सौ मील पैदल चलती बुढ़िया और बच्चे का दर्द नहीं महसूस कर पाए थे। आज वही वर्ग  साम्प्रदायिक कैरोना का प्रवक्ता बन गया है जो बहुत खतरनाक है। संकट की इस घड़ी में आपस में एकजुट होने की जरूरत है तभी इस कैरोना से लड़ा  जा सकता है।

(विमल कुमार वरिष्ठ पत्रकार और कवि हैं। आप आजकल दिल्ली में रहते हैं।)

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