रायपुर। नया रायपुर में जहां एक ओर कांग्रेस का महाधिवेशन चल रहा था, उसके समानांतर छत्तीसगढ़ में आदिवासियों, किसानों, मजदूरों, दलितों, आवासहीनों, महिलाओं और अन्य तबकों के बीच काम कर रहे 25 से ज्यादा जन संगठनों ने मिलकर 25-26 फरवरी को पुराना रायपुर में प्रदेश की आम जनता के सामने उपस्थित चुनौतियों और सवालों पर जन अधिवेशन आयोजित किया।
दो दिनों में छह सत्रों में विभाजित इस अधिवेशन को नंदिनी सुंदर, ज्यां द्रेज, प्रांजोय गुहा ठाकुरता और राम पुनियानी जैसे पत्रकारों और लेखकों ने भी संबोधित किया। इस अधिवेशन में इन संगठनों से जुड़े 300 से ज्यादा कार्यकर्ताओं ने अपनी हिस्सेदारी दर्ज की, जिन्होंने कांग्रेस-भाजपा की जन विरोधी नीतियों पर सवाल खड़े किए हैं और अपनी रोजी-रोटी बचाने की लड़ाई के साथ ही सांप्रदायिकता से भी लोहा लेने की स्पष्ट घोषणा की।
अधिवेशन का उद्घाटन पूर्व केंद्रीय मंत्री अरविंद नेताम ने किया। वे आजकल बस्तर में प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ आदिवासियों के चल रहे संघर्षों में शिद्दत से हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज उदारीकरण के दौर में सबसे बड़ा खतरा आदिवासियों की जमीन को लेकर है और इसे हड़पने के लिए सरकार अपने बनाये कानूनों का ही पालन करने के लिए तैयार नहीं है।
उन्होंने कहा कि कॉरपोरेटों के लिए एक माह में कानून बन जाते हैं, लेकिन 1995-96 में बने पेसा कानून के लिए छत्तीसगढ़ में नियम 25-26 साल बाद बनाये गए हैं और इन नियमों के जरिये गांव-समाज के अधिकारों और कानून की आत्मा को ही खत्म कर दिया गया है।
उन्होंने कहा कि प्राकृतिक संपदा की लूट के खिलाफ बस्तर में आज 16 जगहों पर आंदोलन चल रहे हैं और जहां सरकार प्रायोजित जन संहार हो रहे हैं, लेकिन हमारे प्रदेश के गृह मंत्री को चार साल के राज में बस्तर जाने की फुरसत नहीं मिली है।
बस्तर में आदिवासियों और पुलिस के बीच तीखा अंतर्विरोध है, सारा प्रशासन पुलिस के दम पर चल रहा है। जो विकास के बजाए आदिवासियों के विनाश पर तुली हुई है। इस जन अधिवेशन को महत्वपूर्ण बताते हुए उन्होंने जोर देकर कहा कि केवल जनवादी संगठन ही हैं, जो आज आदिवासियों की आवाज को उठा रहे हैं।
अधिवेशन को संबोधित करने के क्रम में प्रांजोय गुहा ठाकुरता ने अडानी के लघु उद्योगपति से विश्व के नंबर दो धनी व्यक्ति बनने में मोदी के योगदान की कहानी सुनाई। उन्होंने कहा कि हिंडेनबर्ग की रिपोर्ट से साफ है कि यह धन-दौलत किस तरह जालसाजी के जरिये इकट्ठा की गई है और इस रिपोर्ट ने अडानी के आर्थिक साम्राज्य की नींव हिला दी है।
नंदिनी सुंदर ने बस्तर में 1910 के भूमकाल आंदोलन की जड़ में जल, जंगल, जमीन के सवाल को प्रमुख बताया। उन्होंने कहा कि हमारे देश का कानूनी ढांचा गैर-लोकतांत्रिक है, जो आदिवासियों को अपने अधिकारों की लड़ाई में कोई मदद नहीं करता। उन्होंने कहा कि जिस तरह आदिवासी ‘हिंदुत्व की परियोजना’ का शिकार हो रहे हैं, उससे उनका अस्तित्व खतरे में पड़ गया है।
राम पुनियानी ने अपने ऑन-लाइन संबोधन में कहा कि पुराने जमाने में सामंती राजाओं के बीच की लड़ाई धर्म के लिए नहीं, बल्कि सत्ता और धन के लिए थी। आजादी के बाद हमारे देश में पुराने सामंती वर्गों को खत्म नहीं किया गया, जिसके कारण पूंजीवाद पूरी तरह विकसित नहीं हो पाया। सांप्रदायिक राजनीति इसी की अभिव्यक्ति है, जिसके कारण स्वाधीनता आंदोलन के दौरान पनपे मूल्य खतरे में पड़ गए हैं।
इस संघर्ष में यदि सांप्रदायिक राजनीति विजयी होती है, तो एक राष्ट्र के रूप में हमारा भौतिक आधार ही खत्म हो जाएगा और देश की एकता-अखंडता ही खतरे में पड़ जाएगी। श्रीलंका और पाकिस्तान का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जहां भी धर्म के नाम पर राजनीति होती है, वहां आर्थिक विकास रुक जाता है और भारत भी इसका अपवाद नहीं होगा।
ज्यां द्रेज ने रेखांकित किया कि पूंजीवाद में लोकतंत्र भी मुनाफे के लिए होता है। आज ऐसी कंपनियां पैदा हो गई हैं, जो किसी भी देश में चुनाव को प्रभावित करने का ठेका लेती हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुत्व, धर्म का राजनैतिक इस्तेमाल करने की ब्राह्मणवादी परियोजना है और आरएसएस-भाजपा मनुवाद पर आधारित सवर्ण वर्चस्व वाले जातिवादी समाज को गढ़ने की कोशिश कर रही हैं। सामाजिक और आर्थिक समानता स्थापित किये बिना राजनैतिक लोकतंत्र को बचाये रखना मुश्किल होगा।
उक्त सत्रों में चर्चा करते हुए किसान सभा के नेता संजय पराते ने कृषि में बढ़ती लागत, लाभकारी समर्थन मूल्य के अभाव में गिरती आय और इसके कारण ऋणग्रस्तता के चलते किसानों और खेत मजदूरों की बढ़ती आत्महत्या के बारे में अपनी बात रखी।
उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में हर साल एक लाख किसान परिवारों में औसतन 40 आत्महत्याएं हो रही हैं, जो देश में सबसे अधिक है। नई विकास परियोजनाओं के नाम पर भूमि का अधिग्रहण और इस भूमि को निजी कंपनियों को सौंपने के चलते यह संकट और गहरा गया है।
एक अन्य सत्र में उन्होंने मोदी सरकार की सांप्रदायिक नीतियों और कांग्रेस की ‘नरम हिंदुत्व’ की नीति पर तीखा हमला किया। उन्होंने कहा कि कांग्रेस की यह रणनीति संघी गिरोह के लिए खाद-पानी का काम करती है। नरम हिंदुत्व, धर्मनिरपेक्षता के प्रति नागरिकों की वैचारिक दृढ़ता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा तर्क संगतता को कमजोर करती है। इसके कारण संघी गिरोह को धर्मांतरण के नाम पर आदिवासियों को विभाजित करने का मौका मिला है।
भारत जन आंदोलन के विजय भाई ने कहा कि देश में लोकतांत्रिक शासन के ढांचे में असमानता व्याप्त है। आज भाजपा-कांग्रेस दोनों सत्ता के विकेंद्रीकरण के नारे को भूल चुकी है और देश के संघीय ढांचे का उल्लंघन हो रहा है।
बस्तर के अंधाधुंध सैन्यीकरण का वहां के आदिवासियों पर पड़ रहे दुष्प्रभावों के बारे में सामाजिक कार्यकर्ता बेला भाटिया ने विस्तार से बताया। उन्होंने बस्तर में राजनैतिक संवाद के जरिये शांति बनाने की आवश्यकता पर बल दिया।
महाराष्ट्र के सत्य शोधक मंडल के रमेश ने शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में निजीकरण के दुष्प्रभावों को रेखांकित किया, जिसके चलते महाराष्ट्र में आदिवासी क्षेत्र में हजारों स्कूल बंद करके लाखों बच्चों को शिक्षा क्षेत्र से बाहर धकेल दिया गया है।
छत्तीसगढ़ में भी आदिवासी क्षेत्रों में लगभग 3000 स्कूल बंद कर दिए गए हैं। वकील शालिनी गेरा ने बताया कि किस तरह नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को फर्जी मुठभेड़ों का शिकार बनाया जा रहा है और जांच आयोगों की रिपोर्टों को दबाया जा रहा है।
जन अधिवेशन में सुदेश टीकम ने अन्न-निर्भर और वन-निर्भर किसानों की एकता पर बल दिया, तो सरजू टेकाम ने कहा कि जब तक बस्तर में एक भी आदिवासी जिंदा है, भारत हिन्दू राष्ट्र नहीं बन सकता। उन्होंने कहा कि बस्तर में गोली खाने के लिए माओवादी होना जरूरी नहीं है, केवल आदिवासी होना ही पर्याप्त है।
नारायणपुर के लालसू नगोटी, दंतेवाडा के पत्रकार व एक्टिविस्ट मंगल कुंजाम तथा हसदेव अरण्य के उमेश्वर ने बताया कि किस तरह ग्राम सभाओं का फर्जीकरण किया जा रहा है और जिला खनिज फंड से पुलिस कैंपों को स्थापित किया जा रहा है।
कोरबा के प्रशांत झा ने एसईसीएल की भूमि हड़प नीति के खिलाफ विस्थापित ग्रामीणों के रोजगार और पुनर्वास के लिए चल रहे संघर्षों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि इन संघर्षों के कारण एसईसीएल को अपनी रोजगार नीति के नियमों को बदलना पड़ा है। वहां पिछले 500 दिनों से एसईसीएल की रोजगार विरोधी नीतियों के खिलाफ भूविस्थापितों का धरना चल रहा है।
केशव शोरी ने बताया कि नारायणपुर जिले के लौह अयस्क को हड़पने के लिए अर्धसैनिक बलों का दुरुपयोग किया जा रहा है और आदिवासी संस्कृति, पहचान और उनके अधिकारों को कुचला जा रहा है।
राजिम केतवास ने कहा कि महिलाओं के वनाधिकार को माना नहीं जाता। वनाधिकार प्राप्त भूमि पर प्लांटेशन व तारबंदी की जा रही है, जिससे महिलाएं वहां से वनोपज नहीं ला पा रही हैं। अखिलेश एडगर ने छत्तीसगढ़ के नारायणपुर और कोंडागांव जिलों में हाल ही में संघ-भाजपा द्वारा ईसाई आदिवासियों पर हुए हमलों और कांग्रेस सरकार और उसके प्रशासन की निष्क्रियता के बारे में जानकारी दी।
जन अधिवेशन ने एक घोषणा पत्र स्वीकार करके आम जनता की एकजुटता पर बल देते हुए रोजी-रोटी और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने की लड़ाई के साथ ही सांप्रदायिकता के खिलाफ भी संघर्ष तेज करने का संकल्प व्यक्त किया है।
( संजय पराते की रिपोर्ट पर आधारित)