Friday, April 19, 2024

कोविड-19 ने पिछले एक साल में 23 करोड़ भारतीयों को किया बेरोज़गार: अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी रिपोर्ट

कोविड-19 महामारी की पहली लहर ने न सिर्फ़ देश की अर्थव्‍यवस्‍था को भारी नुकसान पहुंचाया बल्कि करोड़ों लोगों को गरीबी में जीने पर मजबूर भी कर दिया है। उपरोक्त बातें अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने अपनी एक हालिया रिसर्च में कहा है। रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 संकट के पहले दौर में करीब 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जा चुके हैं। 

अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी ने 2021 के लिए वर्किंग इंडिया की हालत पर जारी एक रिपोर्ट में बताया है कि पिछले साल अप्रैल और मई के दौरान सबसे गरीब श्रेणी में आने वाले परिवारों में से 20 फीसदी के इनकम का जरिया खत्‍म हो गया। ऐसे वर्ग के लोगों की आमदनी तो वैसे ही कम थी और अब उनकी स्थिति और भी ज्‍यादा खराब हो चुकी है। दरसअल, पिछले साल ही आर्थिक रिकवरी के दौरान लेबर मार्केट में कुछ खास उत्साह नहीं देखने को मिला। ऐसे में जीवनयापन के लिए मजदूरी पर निर्भर रहने वाले लोगों की स्थिति और भी खराब होने लगी। जिसके परिणाम स्‍वरूप, तकरीबन 23 करोड़ लोग हर रोजाना 375 रुपये की आमदनी से भी कम कमा रहे हैं। गौरतलब है कि अनूप सतपथी कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में राष्‍ट्रीय न्‍यूनतम मेहनताने के लिए प्रति दिन 375 रुपये की लिमिट करने की सिफारिश की थी। ग्रामीण इलाकों में अब गरीबी दर में 15 फीसदी और शहरी क्षेत्रों में गरीबदी दर में 20 फीसदी का इजाफ़ा हुआ है। 

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि अगर 2020 में हमें महामारी नहीं देखने को मिलती तो 2019 और 2020 के बीच ग्रामीण और शहरी इलाकों में गरीबी दर क्रमश: 5 फीसदी और 1.5 फीसदी तक कम होती। देशभर में करीब 5 करोड़ लोग इस न्‍यूनतम मेहनताने के लिए तय किए गए लिमिट से ऊपर होते। 

अजीम प्रेम जी यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट में कहा गया है कि औसतन, सबसे निचले 10 फीसदी लोगों के इनकम पर 27 फीसदी तक की गिरावट आई है। जबकि निचले 40 से 50 फीसदी लोगों की कमाई 23 फीसदी तक कम हुई है। जबकि आय श्रेणी में सबसे ऊपर रहने वाले 10 फीसदी लोगों की कमाई करीब 22 फीसदी तक कम हुयी है। 

रिपोर्ट में आगे यह भी कहा गया कि पिछले साल जून महीने में लोगों को रोज़गार मिलने और कमाई बढ़ने का दौर तो शुरू हो गया, लेकिन यह अब भी अधूरा ही है। वहीं अब दूसरी लहर की वजह से स्थिति और भी खराब होती दिखाई दे रही है। बता दें कि अप्रैल-मई 2020 लॉकडाउन के दौरान करीब 10 करोड़ लोगों की नौकरी चली गयी थी। यहां तक 2020 के अंत तक करीब 1.5 करोड़ लोग कमाई का नया जरिया ढूंढने में असमर्थ रहे थे। आय में भी गिरावट देखने को मिली है। अक्टूबर 2020 में प्रति व्यक्ति औसत मासिक घरेलू आय (4,979 रुपये) जबकि जनवरी 2020 में अपने स्तर से नीचे (5,989 रुपये) थी।

रिपोर्ट में कहा गया है कि जिन राज्‍यों में कोरोना संक्रमण के सबसे ज्‍़यादा मामले सामने आए, उन राज्‍यों में अधिक लोगों की नौकरी से हाथ धोना पड़ा है। जैसे कि महाराष्ट्र, केरल, तमिलनाडु, उत्तर प्रदेश और दिल्ली में ज़्यादा नौकरियां छूटी। 

घटती आर्थिक गतिविधियां और लॉकडाउन के बाद कहीं भी आवाजाही पर प्रतिबंध की स्थिति में ऐसे लोगों को सबसे परेशान होना पड़ा। 

यूनिवर्सिटी की रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं और युवा कामगारों के लिए स्थिति सबसे ज्‍यादा खराब रही है। साल के अंत तक इन्‍हें दोबारा रोजगार तक शुरू करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ा है। लॉकडाउन के दौरान और उसके बाद के महीनों में 61 फीसदी मर्दों का रोजगार जारी रहा। केवल 7 फीसदी ही ऐसे मर्द रहे जिन्‍होंनें इस दौरान रोजगार खोया और फिर वापस काम पर नहीं लौटे। महिलाओं की बात करें तो केवल 19 फीसदी का रोजगार ही जारी रह सका। तकरीबन 47 फीसदी ऐसी महिलाएं रहीं जो काम पर दोबारा वापस नहीं लौट सकी हैं। 

रिपोर्ट के मुताबिक कोरोना की पहली लहर ने युवा श्रमिकों अधिक प्रभावित किया था। श्रमिकों को अधिक स्थायी प्रकृति की नौकरी के नुकसान से गुज़रना पड़ा। 15-24 आयु वर्ग में लगभग 33 प्रतिशत श्रमिक दिसंबर 2020 तक भी रोज़गार प्राप्त करने में विफल रहे। जबकि 25-44 वर्ष के समूह में यह संख्या केवल 6 प्रतिशत थी।

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