Friday, March 29, 2024

सिवान के आकाश में चमकते माले के तीन सितारे

पटना। बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण का 3 नवंबर को मतदान होगा। बिहार के पश्चिमी छोर पर स्थित अंतिम जिला सिवान चुनाव में भाकपा माले के लिए महत्वपूर्ण केंद्र बन गया है। यहां 3 सीटों से माले के उम्मीदवार एनडीए को मजबूत टक्कर दे रहे हैं। सामाजिक न्याय और क्रांतिकारी बदलाव के आंदोलनों की उपज ये तीनों चेहरे जिले की राजनीति में एक विशेष पहचान रखते हैं। हम यहां बात कर रहे हैं जीरादेई से पार्टी उम्मीदवार अमरजीत कुशवाहा, दरौंदा से अमरनाथ यादव और दरौली से प्रत्याशी सत्यदेव राम की।

पार्टी कतारों और आम जनता के बीच उनके चुनाव चिन्ह लाल झंडे में तीन तारा की तरह इन्हें भी चमकता हुआ सितारा माना जाता है। कहा जाता है कि तीनों नेताओं ने समाजिक न्याय के आंदोलन को नयी दिशा और गति दी। आज इस लेख के माध्यम से हम इनके सामाजिक व राजनीतिक सफर की यहां चर्चा कर रहे हैं। जिसकी बदौलत इन लोगों ने न केवल माले को मजबूत पहचान दिलाई बल्कि उसे एक ऐसे मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है जिसमें वह गरीब जनता की दावेदारी को संसद तक ले जाने में सफल हो रही है।

अमरजीत कुशवाहा 

विधानसभा क्षेत्र जीरादेई से पार्टी के उम्मीदवार हैं। उन्होंने वामपंथी छात्र संगठन आइसा से अपने राजनीतिक कैरियर की शुरुआत की। 90 के दशक की शुरुआत में जब देश में एक ओर भगवा उभार था, उसी वक्त वामपंथी छात्र संगठन के रूप में आइसा ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय और कुमाऊं विश्वविद्यालय जैसे देश के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों के छात्र संघों में अपना परचम लहराया। इस उभार के दौर से प्रभावित होकर अमरजीत भी संगठन से जुड़ गए। उत्तर प्रदेश के देवरिया व गोरखपुर जिले के परिसरों में अपनी मजबूत हिस्सेदारी जताई। बाद में 1997 में वह भाकपा माले के अपने गृह जनपद सिवान के संगठन से जुड़ गए। नेतृत्व ने उनकी कार्य क्षमता को देखते हुए उन्हें युवा संगठन इंकलाबी नौजवान सभा की जिम्मेदारी सौंपी।

चंद वर्षों में ही युवाओं के बीच उन्होंने अपनी मजबूत पकड़ बना ली और उनकी क्षमता और काबिलियत का ही नतीजा था कि वे बहुत जल्द ही इंकलाबी नौजवान सभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन गए। गरीबों और सामंती ताकतों की लड़ाई में भी वह बढ़-चढ़ कर अपनी भूमिका निभाते रहे। और उनका पक्ष हमेशा गरीबों का होता था। इन लड़ाइयों में उन्होंने कभी भी अपनी पीठ नहीं दिखायी। उसी का नतीजा था कि राजनीतिक वर्चस्व के संघर्ष में जिले के बहुचर्चित चिलमरवा कांड में उनका नाम आ गया। और उनके खिलाफ कई संगीन धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज कर दिए गए। उन्हीं में से एक 302 के तहत भी दर्ज हुआ था। इसी मामले में वह पिछले 5 वर्षों से सिवान के मंडल कारागार में बंद हैं। पार्टी का कहना है कि उस घटना के दौरान अमरजीत छात्रों-नौजवानों के सवालों को लेकर जिलाधिकारी कार्यालय पर धरना दे रहे थे। लेकिन राजनीतिक विरोधियों ने साजिश के तहत फर्जी मुकदमे में फंसा कर इन्हें कमजोर करने की कोशिश की। 

अमरजीत 2010 में विधानसभा की जीरादेई सीट से पहली बार चुनाव लड़े और दूसरे स्थान पर रहे थे। फिर एक बार 2015 के विधानसभा चुनाव में जीरादेई से 34 हजार से अधिक मत पाने के बाद भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा। अमरजीत एक बार फिर इस सीट से महागठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार हैं। जहां से पार्टी नेतृत्व इस बार अपनी जीत तय मान रहा है।

अमरनाथ यादव

सिवान जिले में भाकपा माले के प्रमुख चेहरों में अमरनाथ यादव का भी नाम आता है। जिले के हसनपुरा अंतर्गत काबिलपुरवा के रहने वाले अमरनाथ के राजनीतिक संघर्षों की कहानी साढ़े तीन दशकों से अधिक की है। उन्होंने राजस्थान के झुंझुनू में ट्रेड यूनियन के आंदोलन से अपने संघर्ष की शुरुआत की। बाद में 1984 में तकरीबन 24 वर्ष की उम्र में वे सीवान जिले में आईपीएफ (परिवर्तित नाम सीपीआई एमएल) के संगठन से जुड़ गए। इसके बाद पार्टी संगठन के विस्तार के दौरान उन्होंने कई बड़े आंदोलनों की अगुवाई की। 1985 में भ्रष्टाचार के खिलाफ पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व के आह्वान पर एक आंदोलन के दौरान जनता की लड़ाई लड़ते हुए उन्हें पुलिस की गोली भी लगी।

गुठनी में हुआ यह कांड अभी भी लोगों की जुबान पर रहता है। और उसमें अमर यादव के करिश्माई नेतृत्व के लिए उन्हें लोग आज भी याद करते हैं। घटना के बाद उन्हें पटना मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया। जहां से इलाज के दौरान ही हालत में सुधार होने पर वह पुलिस कस्टडी से फरार हो गए। इसके छह माह बाद पुनः हाजिर हुए और उन्हें न्यायालय से जमानत मिली। 

इस आंदोलन के बाद से ही एक व्यापक सामाजिक फलक पर इनकी पहचान बन गई। वे पहली बार 1990 में विधानसभा दरौली से चुनाव लड़े लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद फिर 1995 में इस सीट से जीत दर्ज कराई। उसके बाद एक बार फिर वह 2000 के विधानसभा चुनाव में हार गए। लेकिन 2005 के चुनाव में लोगों ने एक बार फिर विजय श्री दिलाई। इसके बाद परिसीमन में दरौली सीट सुरक्षित हो जाने पर पार्टी ने 2010 में रघुनाथपुर से उम्मीदवार बनाया।

जहां से लगातार दो बार चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा है। उधर संसदीय चुनाव में भी अमरनाथ पार्टी के उम्मीदवार रहे। सिवान सीट से 1999, 2004 ,2009 ,2014 व 2019 में चुनाव लड़ चुके हैं। 1999 के पहले चुनाव में दो लाख 54 हजार से अधिक मत प्राप्त हुए थे। इसके बाद के चुनाव में वोटों का आकड़ा 75 हजार के आसपास ही रहा। इस बार अमरनाथ दरौंदा विधानसभा क्षेत्र से महागठबंधन के संयुक्त उमीदवार हैं। जहां बीजेपी के उम्मीदवार को मजबूत टक्कर दे रहे हैं। 

सत्यदेव राम

भाकपा माले के दरौली के विधायक सत्यदेव राम क्षेत्र के किशुनपाली के रहने वाले हैं। इस सीट से वह एक बार फिर पार्टी के  उम्मीदवार हैं। वह अब तक चार बार पार्टी के टिकट से विधायक रह चुके हैं। पहली बार 1995 में मैरवा से विधायक बने। इसके बाद 2000 व 2005 फरवरी के चुनाव में भी विजयी हुए। लेकिन 2005 के नवंबर में एक बार फिर हुए चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा।

इसके बाद परसीमन में 2010 में दरौली से चुनाव लड़े। जहां उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। लेकिन 2015 में एक बार फिर जीत मिली। 1992 के किसुनपाली कांड के बाद से ही ये पार्टी की कतार में विशेषकर चर्चा में आए थे। भाकपा माले के बिहार की राजनीति में आरा के रामनरेश राम के बाद यही एक ऐसा चेहरा है जसने अब तक सबसे अधिक जीत दर्ज कराई है। एक बार फिर दरौली सीट से महागठबंधन के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में अपनी सबसे अधिक मजबूत दावेदारी पेश कर रहे हैं।

(पटना से स्वतंत्र पत्रकार जितेंद्र उपाध्याय की रिपोर्ट।)

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