Thursday, March 28, 2024

भाजपा शासित कर्नाटक में हनुमान मंदिर में घुसने पर दलित परिवार पर 23 हजार का जुर्माना

हनुमान मंदिर में प्रवेश करने पर कर्नाटक के कोप्पल जिले के हनुमासागर के पास मियापुरा गांव में एक दलित परिवार पर 23,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है। 

दरअसल एक दलित पिता अपने दो साल के बच्चे को लेकर 4 सितंबर को हनुमान मंदिर गया था क्योंकि उस दिन उसके बेटे का जन्मदिन था। चूंकि दलितों को उक्त मंदिर के अंदर जाने की अनुमति नहीं है तो इस समुदाय के लोग हमेशा बाहर से मंदिर के सामने खड़े होकर प्रार्थना कर लेते थे। उस दिन भी दलित समुदाय का पिता अपने बेटे को जब मंदिर लेकर गया तो उसका इरादा मंदिर के बाहर से भगवान से प्रार्थना करने का ही था, और पिता हाथ जोड़कर मंदिर के बाहर प्रार्थना कर रहा था तभी उसका बच्चा भागकर मंदिर के अंदर चला गया। घटना 4 सितंबर की है।

इस घटना के बाद कथित ऊंची जाति के ग्रामीणों ने 11 सितंबर को एक बैठक की और मंदिर में घुसकर उसे अपवित्र करने का आरोप लगाते हुये उस दलित माता-पिता से 23,000 रुपये का जुर्माना भरने को कहा। उनसे कहा गया कि ये राशि मंदिर के शुद्धीकरण में खर्च की जायेगी। 

कोप्पल जिला प्रशासन को घटना की जानकारी होने पर पुलिस, राजस्व और समाज कल्याण विभाग के अधिकारियों को गांव भेजकर सभी ग्रामीणों के लिए भेदभाव के संबंध में जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया है। कोप्पल के पुलिस अधीक्षक टी. श्रीधर ने मीडिया वक्तव्य में बताया है कि उन्होंने घटनास्थल का दौरा किया है। दोषियों ने लड़के के पिता से माफी मांगी है। हालांकि पुलिस ने पीड़ित को शिकायत दर्ज़ कराने के लिए मनाने के लिए उसके घर गई, लेकिन समुदाय के बुर्जुगों ने ऐसा नहीं करने का फैसला किया, क्योंकि इससे दुश्मनी पैदा होगी। उन्होंने आगे बताया कि, “ऊंची जाति के लोगों ने स्वयं अपने समुदाय के सदस्यों की कार्रवाई का विरोध किया और दलित लड़के के परिवार से माफी मांगी है”। 

पुलिस प्रशासन ने कथित ऊंची जाति के सदस्यों को चेतावनी दी है कि अगर वे ऐसा दोहराते हैं तो कानूनी कार्रवाई शुरू की जाएगी।

वैसे तो देश में संविधान का शासन है। और संविधान देश के हर नागरिक को बराबरी का अधिकार देता है। और संविधान के राज में किसी भी व्यक्ति के साथ उसके जन्म के आधार पर छुआ- छूत, या ऊंच- नीच का भेद करने वालों पर क़ानूनी कार्रवाई करने का आदेश देता है। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में दलितों पर अत्याचार के नये नये प्रतिमान बन रहे हैं। 

हनुमान दलित हैं- योगी आदित्यनाथ 

अब अगर बात हनुमान देवता के संदर्भ में करें तो 27 अक्टूबर 2018 को राजस्थान में अलवर जिले के मालाखेड़ा में एक चुनावी सभा के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हनुमान को दलित, वनवासी, गिरिवासी और वंचित समाज का बताया था। 

जब खुद भाजपा के मुख्यमंत्री हनुमान को दलित देवता बता रहे हैं तो कथित ऊंची जाति के लोग दलित देवता के मंदिर में दलितों को जाने से कैसे रोक सकते हैं। 

वास्तविकता यह है कि आदिवासी कबीले से संबंध रखने वाले हनुमान को राम की सत्ता स्वीकार करने के चलते आर्य संस्कृति ने स्वीकार तो कर लिया, पर बहुत ही हिंसक तरीके से विरूपित करके। आदिवासी हनुमान का रंग-रूप आर्य-नस्ल से इतना अधिक भिन्न था कि आर्यों ने अपने हिंसक नस्लीय बोध के कारण आदिवासी समुदाय के हनुमान को बंदर कहा। सुग्रीव व जामवंत जैसे दूसरे आदिवासी समुदायों के लिए भी आर्यों ने रीछ, भालू जैसे अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया; जो कालान्तर में ब्राह्मणों द्वारा लिखित रूप से भी दर्ज कर दिया गया।

सत्ता के प्रति सेवा व समर्पण का सबसे हिंसक रूपक हैं- हनुमान। जिन्हें सेवा व स्वामिभक्ति के बदले सत्ता की ओर से पूंछ (दुम) लगा दी जाती है। हनुमान में हनुमान का अपना कुछ नहीं है। हनुमान में जिस बल की बात की जाती है, वो भी ‘राम-नाम’ (सत्ता) का बल है। ब्राह्मणों ने कथाओं के माध्यम से दर्शाया कि अपने पत्नी-बच्चों एवं कपि क्षेत्र (जहां के राजा हनुमान के पिता केसरी थे) के प्रति उत्तरदायित्व से विमुख हनुमान राम का दासत्व प्राप्त करके धन्य हो गए। बहुत ही खतरनाक साजिश के तहत हनुमान के इस दासत्व-बोध को कालांतर में इतना अधिक ग्लोरिफाई किया गया कि दलित, आदिवासी समुदाय के लोग शोषण के विरुद्ध प्रतिरोध के बजाय दासत्व को सहर्ष स्वीकार करके सत्ता की सेवा में न्योछावर हो जाने में ही अपने कुल की मुक्ति ढूंढने लगे।

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)

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