Thursday, March 28, 2024

मशहूर अर्थशास्त्री शैबाल गुप्ता के निधन पर चौतरफा शोक

बिहार के जाने-माने अर्थशास्त्री व जनपक्षीय बुद्धिजीवी शैबाल गुप्ता के निधन पर भाकपा-माले ने गहरा शोक जताया है। माले राज्य सचिव कुणाल ने अपने शोक संदेश में कहा है कि शैबाल गुप्ता के निधन से हमने जनता की चिंताओं के प्रति लगातार सजग रहने वाले एक प्रखर मस्तष्कि को आज खो दिया है।
शैबाल गुप्ता बिहार के जनपक्षीय विकास के एजेंडे के प्रति लगातार चिंतित रहे। वे मानते थे कि भूमि सुधार ही वह एजेंडा है जिसके जरिए ही बिहार को जनपक्षीय विकास का मॉडल मिल सकता है। कई शोधपरक कार्यों में भी उनकी महती भूमिका रही।

वहीं, खेग्रामस के महासचिव व आइसा के संस्थापक महासचिव धीरेन्द्र झा ने कहा कि छात्र आंदोलन, ग्रामीण गरीबों व किसानों के आंदोलन से उनका गहरा जुड़ाव था। उनके निधन से बिहार को अपूरणीय क्षति हुई है।

जबकि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने प्रसिद्ध अर्थशास्त्री, सेंटर फार इकोनोमिक पालिसी एंड पब्लिक फाइनेंस के निदेशक और आद्री के सदस्य सचिव डॉ. शैबाल गुप्ता के निधन पर गहरी शोक संवेदना प्रकट की है। सीएम ने अपने शोक संदेश में कहा कि शैबाल गुप्ता ने बिहार ही नहीं, देश और दुनिया के महत्वपूर्ण आर्थिक संस्थानों में प्रमुख भूमिका निभायी थी। उन्होंने बिहार में वित्त आयोग के सदस्य के साथ ही कई संस्थाओं को अपने अनुभवों से लाभ पहुंचाया। बिहार के कई आर्थिक सुधारों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। वे आर्थिक और राजनीतिक मामलों के विशेषज्ञ के तौर पर भी जाने जाते थे। उनके निधन से आर्थिक, सामाजिक एवं राजनीतिक क्षेत्र को अपूर्णीय क्षति हुई है।

बता दें कि  67 वर्षीय डॉ. शैबाल गुप्ता का कल 28 जनवरी गुरुवार की शाम पटना के पारस अस्पताल में निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से गंभीर रूप से बीमार थे, उन्हें दो जनवरी को पारस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। पिछले तीन-चार दिनों से उनकी हालत नाजुक बनी हुई थी। कल सुबह से ही उनके सभी अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। शाम करीब सात बज कर पांच मिनट पर डाक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर मनमोहन सिंह की तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा गठित इंटर मिनिस्ट्रियल ग्रुप के सदस्य रहे शैबाल गुप्ता का पिछले तीन दशकों से भी अधिक समय तक बिहार के आर्थिक और सामाजिक क्षेत्र में अहम योगदान रहा है। वो अपने पीछे पत्नी, बेटी-दामाद और नतिनि छोड़ गये हैं। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को गुलबी घाट पर किया जायेगा। उनके निधन की खबर मिलते ही सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गयी। डॉ. गुप्ता लंबे समय तक आंध्र बैंक के गवर्निंग बॉडी के सदस्य रहे।

पटना में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और इंटरनेशनल ग्रोथ सेंटर खोले जाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है।  डॉ गुप्ता कुछ दिनों से पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित थे। एक प्रख्यात समाज विज्ञानी होने के अलावा वे बड़े पैमाने पर इंस्टीट्यूशन बिल्डर के रूप में जाने-जाते थे। आद्री की स्थापना उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि है। सामान्य तौर पर विकास मूलक अर्थशास्त्र और खासतौर पर बिहार के विकास की चुनौतियों पर उनके योगदान ने राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर लोगों का ध्यान खींचा।

सामाजिक कार्यकर्ता प्रेम कुमार मणि की श्रद्धांजलि

यह स्वीकार करना कि शैबाल नहीं रहे, मेरे लिए कितना दुखद है, कैसे कहूँ। दशकों से हम मित्र रहे। इतनी यादें और संस्मरण हैं, जिन्हें लिखना मुश्किल होगा। लम्बी बहसें, साथ-साथ वर्षों घूमना। जाने कितनी योजनाएं। सब कुछ याद करना सहज नहीं होगा।

कुल मिला कर वह अर्थशास्त्री थे। इसी रूप में उन्हें देखा जाता था। लेकिन साहित्य, संस्कृति, राजनीति से लेकर पिछड़े बिहार के चतुर्दिक विकास की विभिन्न योजनाओं पर एक अहर्निश विमर्श का सिलसिला उनके साथ बना रहता था। जब भी कुछ लिखते या सोचते तुरत शेयर करते। हिंदी क्षेत्र के नवजागरण के विभिन्न पहलुओं पर एक किताब लिखने की उनकी योजना कुछ वर्ष पूर्व बनी। एक या दो लेख भी इस विषय पर उन्होंने लिखे। हमने मिल -जुल कर कुछ किताबें इकट्ठी की। मेरे घर से कुछ किताबें ले गए। इस विषय पर उनसे खूब लम्बी बातें होती। वे तमाम बातें और वह किताब उनके दिमाग में ही रह गई। पिछले कई वर्षों से स्वास्थ्य उनका साथ नहीं दे रहा था। ऐसा नहीं था कि वह दुनिया से रंज थे। वह काम करना चाहते थे। बीमारी से लड़ते हुए भी इसीलिए सक्रिय रहे।

ख़राब स्वास्थ्य के बीच ही उन्होंने कार्ल मार्क्स के जन्म की दो सौंवी वर्षगाँठ पर एक अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया। पटना में अब तक वैसा समारोह नहीं हुआ। बिहार और पटना को एक ज्ञानकेन्द्रित समाज में तब्दील करने की उनकी आकांक्षा हमेशा रही। पटना में आद्री (ADRI – एशियन डेवलपमेन्ट रीसर्च इंस्टीट्यूट) का गठन और उसका सुचारु रूप से संचालन उनके ही वश की बात थी। उनका परिवार बंगला रेनेसां का एक हिस्सा रहा था। वह और उनके पिता पीयूष गुप्ता ने बिहारी नागरिक समाज को उससे नत्थी करने की भरसक कोशिश की थी ।

जब भी उनके घर गया एक आत्मीयता अनुभव किया। विभिन्न पेशों और प्रवृत्तियों के लोग उनके परिमंडल में थे। अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन से लेकर फिल्म निर्माता प्रकाश झा और विभिन्न दलों के राजनेता-कार्यकर्त्ता उनके घर आते रहते थे। वह दृश्य याद करता हूँ जब उनके घर की सबसे ऊपरी मंजिल पर अमर्त्य सेन के साथ बैठ कर बिहार के पिछड़ेपन और उससे मुक्ति के उपायों पर हम लोग किस तरह बात कर रहे थे। बिहार में समान स्कूल शिक्षा प्रणाली आयोग और भूमि सुधार आयोग बनाने में हम लोगों ने साथ-साथ प्रयास किया था। अब इन चीजों के लिए किसे और क्यों फुर्सत होगी।

नहीं जानता शैबाल गुप्ता को बिहार का नागरिक समाज कैसे याद करेगा। लेकिन यह जरूर कहना चाहूंगा कि इस व्यक्ति ने रोम-रोम से बिहार की जनता को प्यार किया। उससे जितना संभव हो सका उसके वर्तमान और भविष्य को संवारने के लिए काम किया।

अपने मित्र के लिए श्रद्धांजलि लिखते वक्त मन भीग रहा है। लेकिन इसके सिवा अब लिख भी क्या सकता हूँ।

(वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)

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