उच्चतम न्यायालय और कॉलेजियम प्रणाली द्वारा विकसित बुनियादी संरचना सिद्धांत के बारे में सार्वजनिक रूप से उनकी टिप्पणी के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दाखिल की गई है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस पर सरकार को नोटिस जारी करके जवाब तलब करता है तो यह अभूतपूर्व होगा और इससे मोदी सरकार की भारी किरकिरी होगी।
बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन ने न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए उच्चतम न्यायालय और कॉलेजियम प्रणाली द्वारा विकसित बुनियादी संरचना सिद्धांत के बारे में सार्वजनिक रूप से उनकी टिप्पणी के लिए उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री किरेन रिजिजू के खिलाफ जनहित याचिका खारिज करने के हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है।
विशेष अनुमति याचिका में कहा गया है कि दो सरकारी पदाधिकारियों ने संविधान में “विश्वास की कमी” दिखाते हुए, इसकी संस्था, यानी सुप्रीम कोर्ट पर हमला करके और इसके द्वारा निर्धारित कानून के लिए कम सम्मान दिखाते हुए खुद को संवैधानिक पद धारण करने के लिए अयोग्य किया है।
हाईकोर्ट के समक्ष एएसजी अनिल सिंह ने प्रस्तुत किया था कि वीपी जगदीप धनखड़ और कानून मंत्री के बयानों ने कभी भी “न्यायपालिका के अधिकार को कम नहीं किया है और इसकी स्वतंत्रता हमेशा अछूती और प्रचारित रहेगी और वे संविधान के आदर्शों का सम्मान करते हैं। एसोसिएशन का दावा है कि दोनों ने कानून के अनुसार यथास्थिति को बदलने के लिए संवैधानिक योजना के तहत उपलब्ध किसी भी सहारा के बिना, सबसे अपमानजनक भाषा में शीर्ष न्यायिक संस्थान पर हमला किया।
एसोसिएशन का दावा है कि संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों द्वारा इस तरह का अशोभनीय व्यवहार बड़े पैमाने पर जनता की नज़र में सुप्रीम कोर्ट की महिमा को कम कर रहा है और असंतोष को उत्तेजित कर रहा है, उन्होंने कहा कि उन्होंने “आपराधिक अवमानना” की है।
याचिका में कहा गया कि प्रतिवादी संख्या 1 और 2 ने उस शपथ का उल्लंघन किया है जो उन्होंने अपने संबंधित कार्यालयों को संभालने के समय ली थी और इसलिए, उन्होंने इस माननीय न्यायालय और भारत के संविधान का अनादर करके उस कार्यालय में बने रहने के अपने अधिकार को खो दिया है।
बॉम्बे हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा था कि भारत के सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता “आसमान पर” है और इसे व्यक्तियों के बयानों से कम या कम नहीं किया जा सकता। इसने यह भी कहा था कि “निष्पक्ष आलोचना” की अनुमति है और एसोसिएशन द्वारा सुझाए गए तरीके से वीपी और कानून मंत्री को हटाया नहीं जा सकता।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बॉम्बे लॉयर्स एसोसिएशन के वकील अहमद आब्दी ने दावा किया कि टिप्पणी न केवल संविधान के लिए अपमानजनक थी बल्कि बड़े पैमाने पर जनता को प्रभावित करती थी। इन बयानों से अराजकता फैल सकती थी। उन्होंने कहा कि दो वरिष्ठ नेताओं ने अपने पद की शपथ का उल्लंघन किया है। अगर सरकार गंभीर है तो उसे संसद में संबंधित विधेयक लाना चाहिए या सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना चाहिए।
दरअसल, किरेन रिजिजू कई बार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम सिस्टम पर सवाल उठा चुके हैं। उन्होंने सीजेआई को लेटर लिखकर कॉलेजियम में सरकार का प्रतिनिधि शामिल करने की मांग की थी। उन्होंने कहा कि सिस्टम में पारदर्शिता आएगी और जनता के प्रति जवाबदेही भी तय होगी। किरण रिजिजू ने पिछले साल नवंबर मे कहा था कि कॉलेजियम सिस्टम में पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी है। उन्होंने कहा था कि हाईकोर्ट में भी जजों की नियुक्ति प्रक्रिया में संबंधित राज्य सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल किया जाए।
वहीं, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने हाल ही में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1973 के ऐतिहासिक फैसले पर सवाल उठाए थे। इसके साथ ही दिसंबर 2022 में धनखड़ ने एनजेएसी अधिनियम रद्द होने पर उसे लोगों के जनादेश की अवहेलना कहा था। फैसले में कोर्ट की टिप्पणी पर धनखड़ ने कहा था कि “क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं” इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा।
(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट)