झारखंड: आधार कार्ड के लिए दर-दर भटक रहीं मोहरमनी, नहीं मिल पा रही विधवा-वृद्धा पेंशन

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लातेहार। झारखंड में लातेहार जिले के महुआडांड़ प्रखंड के पंचायत ओरसापाठ का एक गांव है ओरसा, जिसका टोला है चिकनीकोना। यहां बसते हैं आदिम जनजाति बिरिजिया समुदाय के लोग। इस गांव से प्रखंड मुख्यालय लगभग 10 किमी की दूरी पर है। वहीं यहां से जिला मुख्यालय लगभग 100 किमी दूर है।

इस टोले के रामनाथ बिरिजिया की 60 वर्षीया विधवा मोहरमनी देवी जो सरकार की लगभग सभी जनाकांक्षी योजनाओं के लाभ से आज तक वंचित है। वह एक हाथ से विकलांग है। वह बोल नहीं पाती है, अगर बोलती भी है तो बोली में इतनी हकलाहट होती है कि उसकी बात कोई समझ नहीं पाता है। वह चलने फिरने में भी असमर्थ है। मोहरमनी को कोई भी पेंशन नहीं मिलती है। न तो विधवा पेंशन, न ही वृद्धा पेंशन और न ही आदिम जनजाति पेंशन योजना का ही लाभ मिलता है।

मोहरमनी देवी का आधार कार्ड नहीं है, जिसकी वजह से उसका बैंक खाता भी नहीं है। इस कारण वह पेंशन योजना के लाभ से वंचित है। वैसे डाकिया खाद्यान्न योजना के तहत राशन मिलता है। इस परिवार का एकमात्र सहारा डाकिया योजना के तहत मिलने वाला 35 किलो चावल है। लेकिन न तो वह नियमित मिलता है न ही समुचित मात्रा में।

मोहरमनी देवी।

सरकार की जनाकांक्षी योजनाओं में उसे 2001 में बुनियादी आवास योजना का लाभ मिला था। वह भी कब का जर्जर हो चुका है, बावजूद इसके मोहरमनी देवी इसी जर्जर मिट्टी के घर में रहती हैं। बिरसा आवास का लाभ भी इन्हें नहीं मिला है। क्योंकि इनका बैंक खाता ही नहीं है। 

आदिम जनजातियों के लिए बिरसा आवास का प्रावधान है। इस योजना के तहत आदिम जनजातियों को घर बनाने के लिये प्रोत्साहन राशि के रूप में 1,31,000 रुपये सीधे लाभुक के खाते में दिए जाते हैं। स्वच्छ भारत मिशन के तहत रेवड़ी की तरह बांटा गया शौचालय का लाभ भी मोहरमनी देवी को नहीं मिला है।

मोहरमनी के तीन लड़के हैं, दो की शादी हो चुकी है और दोनों अलग रहते हैं। दोनों बेटे जलावन की लकड़ी बेचकर एवं मनरेगा में काम करके अपना और अपने परिवार का जीवन यापन करते हैं। छोटा बेटा जो मोहरमनी के साथ रहता है, उसकी मानसिक स्थिति ठीक नहीं है। बड़ा बेटा ही मोहरमनी की देखभाल करता है, जबकि वह खुद ही बहुत गरीब है।

मोहरमनी का वोटर आईडी कार्ड।

‘आदिम जनजाति पेंशन योजना’ का लाभ उसे मिलता है, जो किसी सरकारी, निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में नौकरी नहीं करते हैं और किसी भी तरह की नियमित मासिक आय प्राप्त नहीं करते हैं। इस योजना का लाभुक परिवार की मुख्य महिला ही होती है। वहीं आदिम जनजातियों के लिए ‘आदिम जनजाति डाकिया खाद्यान्न योजना’ को लागू किया गया है। इस योजना में सरकार की ओर से प्रत्येक परिवार को माह में 35 किलो चावल दिया जाता है।

खाद्य एवं आपूर्ति विभाग से जुड़े अधिकारी खासकर आपूर्ति पदाधिकारी अनाज को आदिम जनजाति के घरों तक पहुंचाते हैं। हर माह यह प्रक्रिया चलती है। मोहरमनी देवी का आधार कार्ड नहीं होने को लेकर नरेगा सहायता केंद्र महुआडांड़ की अफसाना ने बताया कि “मैंने 27 जुलाई 2023 को प्रखण्ड विकास पदाधिकारी को लिखित आवेदन देकर मोहरमनी देवी का आधार कार्ड बनवाने का आग्रह किया, तो यह कहते हुए कि- ‘आधार कार्ड बनवाना, बैंक खाता खुलवाना, मेरा काम नहीं है, वह खुद से बनवाये’- बीडीओ ने आवेदन नहीं लिया।”

अफसाना ने आगे बताया कि “लगभग एक महीने बाद उक्त मामले पर स्थानीय अखबार में खबर छपी तो उसके बाद बीडीओ ने हमें बुलाकर कहा कि मोहरमनी देवी को महुआडांड़ पोस्ट ऑफिस भिजवा दें। मैं वहां उसका आधार बनवा दूंगा। लेकिन जब मोहरमनी देवी की बहु कलावती देवी एक ऑटो रिजर्व करके वहां गयी तो तीन घंटा से अधिक समय बीत जाने के बाद भी बीडीओ वहां नहीं आए और न ही अपने किसी मातहत को ही भेजा।”

आधार कार्ड के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी को लिखा गया पत्र।

उसके बाद कलावती देवी ने पोस्ट ऑफिस के कर्मचारियों से मोहरमनी देवी का आधार कार्ड बनाने का आग्रह किया तो वहां के स्टाफ ने बताया कि यहां 18 साल से नीचे की उम्र वालों का ही आधार बनाया जाता है। अंततः दोनों सास बहु वापस लौट आईं। जब मोहरमनी देवी से बात करने की कोशिश की गई तो वह बोल नहीं सकीं। उसकी बहु कलावती देवी ने बताया कि ‘सास का न तो आधार कार्ड है और न ही बैंक में खाता है। सास को कोई भी पेंशन नहीं मिलती है’।

कलावती कहती हैं कि “नरेगा सहायता केन्द्र की दीदी बोलीं कि पोस्ट आफिस जाकर आधार बनवा लें, साहब बनवा देंगे। हम सास को 600 रुपये देकर ऑटो रिक्शा से पोस्ट ऑफिस ले गये, लेकिन काफी देर बैठने के बाद साहब नहीं आए। वहां बोला गया कि यहां आधार कार्ड 18 साल से कम उम्र का बनता है। इसलिए इसे दुबारा लेकर नहीं आना। हम वापस आ गए।” कलावती ने बताया कि ससुर की मौत 20 साल पहले हो गई थी।

(विशद कुमार पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं। )

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