Wednesday, April 24, 2024

अलविदा! ‘नेहरूज हीरो’

दिग्गज अभिनेता दिलीप ने अपनी आत्मकथा ‘द सब्सटेंस एंड द शैडो : एन ऑटोबायोग्राफ़ी’ में लिखा है कि अपनी ज़िंदगी में वे दो लोगों से सर्वाधिक प्रभावित हुए। एक तो उनके पिता (जिन्हें वे बड़े सम्मान से ‘आग़ा जी’ कहते थे) और दूसरे जवाहरलाल नेहरू। नेहरू को दिलीप कुमार अपना नायक और आदर्श मानते थे। यह भी सच है कि नेहरू के स्वप्नों, आदर्शों और मूल्यों को जितनी शिद्दत के साथ दिलीप कुमार ने रूपहले पर्दे पर जिया, उतना शायद ही किसी दूसरे अभिनेता ने। अकारण नहीं कि मेघनाद देसाई ने जब दिलीप कुमार की फ़िल्मों पर एक किताब लिखी, तो उन्होंने दिलीप कुमार को ‘नेहरुज हीरो’ कहा।

अपनी आत्मकथा में दिलीप कुमार ने ‘पैग़ाम’ फ़िल्म की शूटिंग के दौरान नेहरू से मुलाक़ात का एक दिलचस्प विवरण दिया है। जब नेहरू मद्रास के जैमिनी स्टूडियो में निर्माणाधीन ‘पैग़ाम’ के सेट पर पहुँचे। जैमिनी स्टूडियो के संस्थापक एसएस वासन चाहते थे कि दिलीप कुमार ही दूसरे कलाकारों के साथ सेट पर नेहरू का स्वागत करें। लेकिन दिलीप कुमार ने सुझाव दिया कि नेहरू के स्वागत की ज़िम्मेदारी वैजयंती माला को मिलनी चाहिए। ख़ुद दिलीप कुमार सबसे पीछे खड़े हो गए। दिलीप साहब याद करते हैं कि नेहरू आए और भीड़ में किसी को खोजती हुई उनकी निगाह दिलीप कुमार पर आकर थम गई। नेहरू तेज़ी से दिलीप कुमार की ओर आगे बढ़े और उनके पीछे एसएस वासन, वैजयंती माला और कलाकारों का समूह। नेहरू ने दिलीप कुमार के कंधे पर अपना हाथ रखा और मुस्कराते हुए कहा ‘यूसुफ़ मैंने सुना तुम यहाँ हो, इसलिए मैंने सोचा तुमसे मिलता चलूँ।’

उसके बाद नेहरू कुछ समय तक जैमिनी स्टूडियो में रुके और उन्होंने एस॰एस॰ वासन, दिलीप कुमार और दूसरे कलाकारों से रूबरू होकर सिनेमा के बारे में, समाज सुधार और राष्ट्र-निर्माण में फ़िल्मों की भूमिका के बारे में गुफ़्तगू की। नेहरू चाहते थे कि सिनेमा ऐसा सशक्त माध्यम बने कि वह समाज के दक़ियानूसी रवैये से लड़ने और समाज की जागृति का औज़ार बन सके। 

उल्लेखनीय है कि फरवरी 1955 में जवाहरलाल नेहरू ने नई दिल्ली में सिनेमा पर आयोजित एक सेमिनार का उद्घाटन किया था, जिसमें दिलीप कुमार भी शरीक हुए थे। इस सेमिनार में दिलीप कुमार के साथ-साथ भारतीय सिनेमा की दिग्गज हस्तियों जैसे, वी. शांताराम, मोहन भवनानी, बी.एन. सरकार, एस.एस. वासन, किशोर साहू, नरेंद्र शर्मा, उदय शंकर, ख्वाज़ा अहमद अब्बास, दुर्गा खोटे, देविका रानी, नरगिस, राज कपूर, बिमल रॉय ने भी हिस्सा लिया था।

जब सेंसर बोर्ड ने दिलीप कुमार की फ़िल्म ‘गंगा जमना’ को सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया और सूचना व प्रसारण मंत्री बी॰वी॰ केसकर ने दिलीप कुमार और निर्देशकों की अपील को अनसुना कर दिया। तब दिलीप कुमार 1960 के आख़िर में नेहरू से मिले और सेंसर बोर्ड के मनमाने रवैये पर अपनी बात रखी। दिलीप कुमार से सहमत होकर नेहरू ने सेंसर बोर्ड को ‘गंगा जमना’ और दूसरी फ़िल्मों के रिव्यू का आदेश दिया, जिसके बाद ये फ़िल्में रिलीज़ हो सकीं।   

दिलीप कुमार ने ही रजनी पटेल के साथ मिलकर वर्ष 1972 में बम्बई में नेहरू की स्मृति में एक सांस्कृतिक केंद्र के रूप में ‘नेहरू सेंटर’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। दिलीप साहब और रजनी पटेल की मेहनत रंग लाई और नवम्बर 1972 में इंदिरा गांधी वर्ली में ‘नेहरू सेंटर’ की आधारशिला रखी।

(यह लेख शुभनीति कौशिक के फेसबुक वाल से साभार लिया गया है।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

Related Articles