Friday, March 29, 2024

ऑपरेशन टेबल पर आदिवासी महिला को डॉक्टर ने बहू की ट्रेनिंग के लिये किया इस्तेमाल, मरीज की मौत

हाईस्कूल, इंटरमीडिएट के जीवविज्ञान के छात्र लैब में मेढक का डिसेक्शन करते हैं सीखने के लिये और फिर मेढक को फेंक देते हैं। उन्हें मेढक की जिन्दग़ी से कोई लेना-देना नहीं होता। कुछ इसी तर्ज़ पर एक आदिवासी महिला का इस्तेमाल किया गया।

बच्चा न होने की जांच कराने आई दुर्गाबाई जमरे की देह को गाइनकोलॉजिस्ट चन्द्रकांता ने अपनी बहू डॉ सोनल की लेप्रोस्कोपिक सर्जरी की ट्रेनिंग के लिये इस्तेमाल किया और आदिवासी दम्पत्ति से जांच के नाम पर 30 हजार रुपये भी लिये।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट इस बात की गवाही दे रही है कि जिस तरह के कट दुर्गाबाई के पेट की खून की नली में लगे हैं उससे साफ जाहिर हो रहा है कि उसकी लेप्रोस्कोपी किसी नौसिखिया ने अंजाम दिया है। डॉ सोनल राठोड़ लेप्रोस्कोपिक प्रोसेस में अंडर ट्रेनिंग थी और प्रैक्टिस करते हुये भी उन्हें अभी दो साल ही हुये हैं।

मामला मध्यप्रदेश के बड़वानी जिला, पाटी विकासखंड के सांवरियापानी गांव का है। आदिवासी दम्पत्ति दुर्गाबाई और काशीराम जमरे की शादी के आठ साल बीत गये, पर बच्चा नहीं हुआ। कहीं से शहर की बड़ी डॉक्टर चन्द्रकांता गुप्ता के बारे में पता चला तो आदिवासी दम्पत्ति बड़ी उम्मीद लेकर उनके पास गए।

चन्द्रकांता गुप्ता इलाके की बड़ी डॉक्टर हैं और महामृत्युन्जय अस्पताल में भी बैठती हैं। दुर्गाबाई 22 जनवरी को बच्चा न होने की जांच कराने के लिये डॉ चन्द्रकांता गुप्ता के पास गई। बच्चा न होने के लिये दम्पत्ति (स्त्री-पुरुष) दोनों में से किसी में भी कमी हो सकती है लेकिन डॉ गुप्ता ने पुरुष काशीराम की जांच करने की ज़रूरत नहीं समझी। 25 वर्षीय दुर्गाबाई जमरे पूरी तरह से स्वस्थ्य थीं।

दुर्गाबाई की तस्वीर के साथ न्याय की मांग

डॉ गुप्ता ने ऐसे मामलों में सामान्य जांच को न करते हुए, दुर्गाबाई को दूरबीन से जांच– “डायग्नोस्टिक हिस्टेरोस्कोपिक लेप्रोस्कोपी” की सलाह दी। साथ ही दम्पत्ति को अगले दिन 30 हजार रुपये लेकर आने को कहा गया।

पीड़ित काशीराम जनचौक को बताते हैं कि बच्चे की चाहत में वो पिछले एक साल से पैसा जुटा रहे थे अतः 30 हजार रुपये का इंतजाम किया और अगले दिन यानि 23 जनवरी को ऑपरेशन के लिये महामृत्युन्जय अस्पताल पहुंच गये।

पैसा लेकर दुर्गाबाई जमरे को अस्पताल में भर्ती कर लिया गया। 24 जनवरी को दुर्गाबाई का ऑपरेशन हुआ, जिसमे डॉ चन्द्रकांता गुप्ता के साथ उनकी बहू, डॉ सोनल राठोड़ और उनके सहयोगी भास्कर पवार टीम का हिस्सा बने। जांच के समय दुर्गाबाई की खून की नली कट गई और पेट की थैली के पास शरीर के अंदर ही दो जगह खून भरने लग गया था।

ऑपरेशन रिकॉर्ड के अनुसार, 11 बजे दुर्गा बाई को ऑपरेशन थिएटर में ले गए और करीब एक बजे से ही उनकी हालत बिगड़ने लगी। 7 घंटों तक दुर्गाबाई की हालत लगातार बिगड़ने दी गई और 8 बजे उनके परिजनों को दुर्गाबाई की लाश यह कहते हुये थमा दिया गया उसकी हार्ट अटैक से मौत हो गई है।

काशीराम जमरे आठ भाई हैं। आठ भाईयों के बीच नाम- मात्र की ज़मीन है। काशीराम खेती और मज़दूरी का काम करते हैं। आर्थिक, समाजिक और राजनीतिक रूप से काशीराम जमरे हाशिये के व्यक्ति हैं।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट

गांववालों और परिजनों के लगातार मांग के बाद ही अगले दिन 4 डॉक्टरों द्वारा पोस्टमार्टम किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दुर्गाबाई के पेट में खून की नली (इन्फीरियर एपिगेस्ट्रिक वेसेल्स) ऑपरेशन में कट गयी थी। पेट दो जगह फट गया था। (रेट्रोपेरिटोनियल और इंट्रापेरिटोनियल टीयर) जिसके कारण 3.5 से 4 लीटर खून अंदर ही बह गया था और रक्तस्राव के कारण से ही उनकी मौत हुई थी।

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट

डॉक्टर ने तुरंत अपनी लापरवाही सुधारने की बजाय उनको उसी हालत में छोड़ दिया। ऑपरेशन कर खून बहाव रोकना चाहिए था जोकि नहीं किया गया। पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार दुर्गाबाई पूरी तरह स्वस्थ थीं और उसे किसी भी तरह की बीमारी नहीं थी।

जागृत आदिवासी दलित संगठन सदस्य माधुरी बेन आरोप लगाती हैं कि डॉक्टर चन्द्रकांता गुप्ता द्वारा मात्र इसलिए कटी हुई नली नहीं जोड़ी गई, ताकि उनसे हुई गलती न दिखे और उन पर उंगली न उठे। इस कारण 4-5 घंटों तक अधिक रक्तस्राव होने और डॉक्टरों की निष्क्रियता और घोर लापरवाही की वजह से दुर्गाबाई जमरे की मौत हुई।

माधुरी बेन कहती हैं कि अगर उनकी बहू सोनल राठौड़ ने कोई नस काट भी दी थी तो डॉ चन्द्रकांता को मालूम होना चाहिये था और उसे सुधारना था। जोकि इन्होंने नहीं किया। ये क्रूरता है और ये जानबूझकर किया गया ताकि किसी को ये न पता चले कि कैसे मर गई और ये आसानी से एनीस्थीसिया के कारण या हर्ट अटैक बताकर निकल जायें।

माधुरी बेन कहती हैं कि इन्होंने जानबूझकर उसे मरने के लिये छोड़ दिया ताकि इनकी गलती छुप सके। जबकि अपनी गलती के बाद इन्हें ओपेन सर्जरी करके उसकी जान बचानी चाहिये थी। 

विशेषज्ञों के अनुसार, ऑपरेशन में इस प्रकार नली कट जाने पर तुरंत ऑपरेशन से नली में रक्त स्राव बंद करने के लिये आपातकालीन सर्जरी आवश्यक है। दुर्गाबाई की हालत बिगड़ने पर डॉक्टरों ने रक्त स्राव रोकने के लिए आवश्यक कदम नहीं उठाए ताकि किसी को न मालूम पड़े की सर्जरी के दौरान उनकी खून की नली कटी थी।

न्याय के लिए आंदोलनरत लोग

डॉ निधि मिश्रा कहती हैं कि लेप्रोस्कोपिक सर्जरी जैसे तमाम सर्जरी जो आज मिनिमल रिस्क के लिये जानी जाती हैं वो सब डॉक्टर की विशेषज्ञता से आती हैं। वो कहती हैं कि हर छोटी से छोटी सर्जरी में भी एक प्रतिशत का रिस्क होता है। जैसा कि दुर्गाबाई जमरे केस में हुआ।

मान लीजिये आप किसी बड़े सेटअप में काम कर रहे हैं, ब्लड बैंक आपके अपने अस्पताल में है। फटाफट ब्लड का इंतजाम हो गया और आपके पास वैस्कुलर सर्जन हैं जो आर्टरी, वेसेल इंजर्ड हुई हो तुरंत के तुरंत रिपेयर हो सकता है और जान बचाई जा सकती है।

लेकिन यदि आप छोटे सेटअप में हैं जहां ये सब मौजूद नहीं हैं तो आपको बड़े सेटअप वाले अस्पताल में रिफर करना चाहिये हालांकि इसमें समय ज्यादा लगने से दिक्कत बढ़ सकती है।    

आदिवासी संगठनों ने किया आंदोलन

दुर्गाबाई जमरे की नस काटने और ज़रूरी इलाज न करने वाले डॉ चन्द्रकांता गुप्ता, डॉ सोनल राठोड और भास्कर पवार की गिरफ्तारी की मांग लेकर जागृत आदिवासी-दलित संगठन के नेतृत्व में आदिवासियों ने 11 फरवरी को थाने का घेराव किया।

बड़वानी के हजारों आदिवासियों ने डॉ चंद्रकांता गुप्ता, डॉ सोनल राठोड और सहयोगी भास्कर पवार पर अत्याचार अधिनियम और IPC 304 के तहत गिरफ्तारी की मांग उठाई।

आदिवासी-दलित संगठन द्वारा थाने का घेराव

आक्रोशित आदिवासियों ने डॉ की गिरफ्तारी की मांग को लेकर दिन भर बड़वानी थाना में आंदोलन जारी रखा और लगातार मध्य प्रदेश सरकार को ललकारते हुए दोषी डॉक्टरों को संरक्षण देना आदिवासी विरोधी एवं महिला विरोधी बताया।

मरहूम दुर्गाबाई जमरे के चचिया ससुर हरसिंग जमरे बताते हैं कि दुर्गाबाई जमरे की मौत के संबंध में 10 दिनों से आदिवासियों का लगातार आंदोलन जारी है, जिसके बाद ही पुलिस द्वारा 304-क एवं अत्याचार अधिनियम के अंतर्गत केस दर्ज किया गया था, लेकिन डॉ सोनल राठोड और भास्कर पवार का नाम नहीं जोड़ा गया। आदिवासियों के लगातार आंदोलन के बाद प्रशासन ने डॉ सोनल राठौड़ और भास्कर पवार के नाम भी एफआईआर में जोड़ दिया।

पीड़ित काशीराम जमरे के चाचा हरसिंग जमरे बताते हैं कि आक्रोशित आदिवासियों ने अगले दिन ही डॉ चन्द्रकांता गुप्ता के खिलाफ़ शिक़ायत की, जिसके बाद पुलिस ने दुर्गाबाई का पोस्ट्मॉर्टेम करवाया। 2 फरवरी को पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आते ही स्पष्ट हो गया कि डॉक्टर की निगरानी में ही आदिवासी महिला को तड़पते तड़पते मरने दिया गया, जिसके बाद आदिवासी थाने पर धरने पर बैठे गए।

हरसिंग जमरे आगे बताते हैं कि आदिवासी संगठनों ने सोमवार को शहर में विशाल प्रदर्शन किया। इस दौरान कोतवाली परिसर में एकत्रित होकर हजारों आदिवासी जन रैली के रुप में डॉक्टर गुप्ता के क्लिनिक पर पहुंचे और जमकर नारेबाजी की। इसके बाद दोपहर 1 बजे से अंजड़ रोड पर महामृत्युंजय हॉस्पिटल पर धरने पर बैठ गए।

संगठन के एक अन्य सदस्य वालसिंग सस्ते बताते हैं कि 6 फरवरी को महामृत्युंजय अस्पताल में आक्रोशित एवं तीखा प्रदर्शन के बाद भी अस्पताल पर धरना चलता रहा। आदिवासियों के आंदोलन के बाद ही पुलिस द्वारा 304-क, (लापरवाही से हुई मौत) की धारा लगाई है लेकिन आदिवासियों के अनुसार यह हत्या है।

न्याय के लिए आंदोलन

इसलिए 304 (गैर इरादतन हत्या) में गिरफ्तारी होनी चाहिए क्योंकि, अपनी गलती को छिपाने के लिए जानबूझकर कटी नस को सुधारने और रक्त स्राव को रोकने का ऑपरेशन नहीं किया गया और दुर्गा बाई को 7 घंटे के लिए तड़प तड़प कर मरने दिया गया।

आदिवासी संगठनों की मांग

इस मामले में आदिवासी संगठनों ने एसडीएम को ज्ञापन सौंपा है। ज्ञापन में बताया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट भी एक सप्ताह बाद ही प्राप्त हो सकी। चार दिन तक पुलिस थाने के सामने धरना देने के बाद सोमवार को महामृत्युंजय अस्पताल के सामने धरना शुरू कर दिया है। इस दौरान एसपी-कलेक्टर के नाम का ज्ञापन एसडीएम घनश्याम धनगर को सौंपा।

आदिवासी संगठनों की मांग की हैं कि डॉ चन्द्रकांता गुप्ता, डॉक्टर सोनल राठौड़, भास्कर पवार सहित दुर्गाबाई के ऑपरेशन में भाग लेने वाले सभी डॉक्टर, ऑपरेशन के बाद उनकी देखरेख के लिए जिम्मेदार स्टाफ और डॉ. चंद्रकांता गुप्ता एवं अस्पताल पर भारतीय दंड संहिता की धारा 299, 304 और अत्याचार अधिनियम की धारा 3(2)(वी) के अंतर्गत एफआईआर दर्ज़ कर गिरफ्तारी की जाए।

संगठन सदस्य माधुरी बेन ने जनचौक को बताया कि आदवासी महिला की मौत मामले में 11 दिन बाद भी गिरफ्तारी नहीं होना स्पष्ट दर्शाता है कि विकास यात्रा के दावों के बावजूद प्रशासन आदिवासियों के हितों के बारे में बिल्कुल गंभीर नहीं है।

वो कहती हैं कि छोटे से छोटे मामले में पुलिस आदिवासियों को दबोचकर उन्हें खौफ़नाक यातनायें देती है लेकिन आदिवासियों के खिलाफ़ होने वाले अपराधों में वो अपराधियों के साथ खड़ी हो जाती है।

अस्पताल के बाहर धरना

आदिवासी संगठनों ने आन्दोलन के दौरान सरकारी अस्पताल में सभी तरह का इलाज करवाने की व्यवस्था हो प्रशिक्षित डॉक्टर, सभी तरह की दवाइयां और जांच की पूर्ण व्यवस्था की भी मांग आदिवासियों द्वारा उठायी गयी।

धरने के दौरान आदिवासी संगठनों के पदाधिकारियों की वहां मौजूद एसडीएम घनश्याम धनगर, एसडीओपी रुपरेखा यादव, तहसीलदार आशा परमार, टीआई विकास कपीस और अस्पताल के डॉक्टर महेश अग्रवाल से कई बार लंबी चर्चाएं होती रही, लेकिन शाम तक कोई निष्कर्ष नहीं निकला।

आखिर शाम 7 बजे तक आदिवासियों का महामृत्युंजय अस्पताल के सामने धरना जारी रहा। इस दौरान बड़वानी सहित पाटी, सिलावद और लाइन का बल तथा यातायात पुलिस दिनभर तैनात रही।

अस्पताल का पक्ष

अस्पताल के संचालक डॉ महेश अग्रवाल ने जनचौक को फोन पर बताया है कि – गाइनकोलॉजिस्ट चंद्रकांता गुप्ता ने अपने चैम्बर में देखा। उसे बच्चा नहीं हो रहा था निःसंतानता से ग्रस्त थी। तो जांच के लिये उसे 23 तारीख को वो भर्ती किया गया था। 24 को ऑपरेशन किया था। ऑपरेशन का उद्देश्य था कि बच्चा क्यों नहीं हो रहा है उसकी जांच करना।

डायग्नोस्टिक लेप्रोस्कोपिक कहते हैं। वो बताते हैं कि ऑपरेशन के लिये ज़रूरी सारी जांच की गई थी। महिला को आयुष्मान योजना का लाभ क्यों नहीं दिया गया यह पूछने पर संचालक महोदय कहते हैं कि उनके यहां नहीं लागू है। वहीं आरोपी डॉ चन्द्रकांता गुप्ता से जब इस बारे में संपर्क करने की कोशिश की गई तो उन्होंने फोनकॉल रिसीव नहीं किया।

न्याय के लिए आंदोलन

प्रशासन का पक्ष

थाना प्रभारी विकास कपीस का कहना है कि डॉक्टर चन्द्रकांता गुप्ता, डॉ सोनल राठोड और भास्कर पवार के विरुद्ध धारा 304 (अ) और एसटी-एससी के तहत मामला दर्ज़ किया गया है।

पुलिस अधीक्षक दीपक कुमार शुक्ला ने मीडिया को दिये बयान में कहा है कि जिला अभियोजन अधिकारी की राय और पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के आधार पर डॉ चन्द्रकांता गुप्ता के विरुद्ध 304 (अ) व एससी/एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज़ किया गया है।

उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल विवेचना में उक्त कृत्य आपराधिक मानव हत्या (304) के लायक नहीं पाया गया। वहीं ज्ञापन लेने वाले एसडीएम घनश्याम धनगर का कहना है कि ज्ञापन का परीक्षण करवाएंगे और नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी।

(सुशील मानव की ग्राउंड रिपोर्ट)

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