दुनिया में चौतरफा लोकतंत्र के गले में तानाशाही का फंदा, थाईलैंड में आपातकाल लागू

दुनिया भर में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों पर खतरे के जो घने बादल छाये हुए थे अब बरसने लगे हैं। थाईलैंड में बुधवार को हुए विशाल जन-प्रदर्शनों के बाद थाईलैंड सरकार ने गुरुवार तड़के देश में आपातकाल लागू कर दिया। टेलीविजन पर पुलिस अधिकारियों ने एक लाइव प्रसारण में कहा कि ये कदम “शांति और व्यवस्था” बनाए रखने के लिए उठाया गया है। इसके तहत प्रदर्शनों पर रोक लगा दी गई है। आंदोलन के प्रमुख नेताओं सहित बहुत से कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया है। ये आंदोलन पिछली फरवरी से चल रहा है। गुजरे अगस्त में आंदोलनकारियों ने प्रधानमंत्री के इस्तीफे और राजशाही पर नियंत्रण लगाने की मांग की थी।

गौरतलब है कि कुछ दिन पहले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी कहा था कि यदि आने वाले चुनाव में उनकी हार होती है तो वे आसानी से गद्दी नहीं छोड़ेंगे। 

दरअसल आज लगभग पूरी दुनिया में लोकतंत्र और नागरिक अधिकारों को कुचलने की कोशिश में बहुत तेजी आज चुकी है और जनांदोलनों को सत्ताधारी ताकतों द्वारा रौंदा जा रहा है। 

दुनिया के इतिहास में जिस रुसी क्रांति को जनांदोलन के लिए प्रेरणा के रूप में देखा जाता रहा है उसी रूस में वर्तमान राष्ट्रपति पुतिन ने लम्बे समय तक सत्ता पर काबिज रहने के लिए संविधान में बदलाव कर खुद को साल 2036 तक राष्ट्रपति घोषित कर दिया है। पड़ोसी चीन में लोकतंत्र नहीं है किन्तु वहां भी हाल कुछ ऐसा ही है। गौरतलब है कि हांगकांग में पिछले साल जून से ही विरोध-प्रदर्शनों का सिलसिला चल रहा है। पिछले साल जून में चीन द्वारा लाए गए प्रत्यर्पण विधेयक के विरोध में हांगकांग में बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हुए थे जो बाद में हिंसक भी हो गए थे। 

इन सभी घटनाओं ने विश्व राजनीति को बहुत अधिक प्रभावित किया है। भारत में भी वर्ष 2014 में सत्ता परिवर्तन के बाद से नागरिक आंदोलनों को कुचलने का सिलसिला तेज हुआ है। यहां सत्ताधारी मोदी सरकार ने तमाम जन विरोधों को कुचलने में जमकर बल प्रयोग किया है। पुलिस और सुरक्षा बलों का दुरुपयोग किया है। वहीं बीजेपी शासित प्रांतीय मुख्यमंत्रियों ने भी वही रुख अपनाया और जन विरोधों को कुचला है। 

सत्ता के खिलाफ उठने वाली हर आवाज़ को यहां दबाया गया है? जो नहीं दबे उन्हें जेलों में कैद किया गया है। झूठे मुकदमे दर्ज किये गये हैं। गौरी लंकेश, कलबुर्गी जैसे लेखकों की हत्या पर सोशल मीडिया पर जश्न मनाया गया। अख़लाक़ के कातिल के शव को तिरंगे में लपेटा गया और लिंचिंग के दोषियों को जमानत मिलने पर केन्द्रीय मंत्री द्वारा माला पहनाकर स्वागत किया गया है। 

सत्ताधारी बीजेपी नेताओं ने राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी के कातिल नाथूराम गोडसे का जयकारा लगाया संसद में वहीं किसी ने गाँधी के पुतले को गोली मार कर गोडसे को सम्मानित किया इसी देश में। गिनाने को हजारों घटनाएँ हैं। याद रखना होगा कि यह सब यूँ ही नहीं हुआ या हो रहा है। इन सभी के पीछे सत्ता का समर्थन हासिल है। 

यहां तक कि कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के दौरान जब दुनिया मानव सभ्यता को बचाने के लिए जंग लड़ रही थी तब यहां सत्ता आपदा में अवसर बनाये जा रहे थे। करोड़ों मजदूरों को सड़कों पर छोड़ दिया गया। इलाज और जांच के दाम ऊँचे कर दिए गये। 

जिस देश में लाखों किसानों ने आत्महत्या की हो उस देश में किसानों की सहमति के बिना संसद में विरोध के बाद भी कृषि विधेयक पारित करना यह साबित करता है कि वर्तमान सत्ता को लोकतंत्र में कोई भरोसा नहीं है और यह एक जनविरोधी और लोकतंत्र विरोधी सत्ता है। 

संसद से प्रश्नकाल क्यों समाप्त किया इस सरकार ने? महीनों तक कश्मीर में इन्टरनेट और तमाम संचार के माध्यमों पर पाबंदी, विपक्षी नेताओं की यात्रा पर रोक और गिरफ़्तारी से क्या सन्देश मिला? 

नागरिकता संशोधन कानून और एनआरसी के खिलाफ़ विरोधों को जिस तरह से कुचला गया है क्या उसे भुलाया जा सकता है? आज कितने मानवाधिकार कार्यकर्ता जेलों में बंद हैं? किस पैमाने पर राजद्रोह कानून का दुरुपयोग हुआ, किस तरह से अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचला गया याद रखा जाना चाहिए। 

आज देश को धार्मिक और जातीय ध्रुवीकरण के सहारे लोगों के बीच में जो खाई बनाई गयी है उसे भरने में कई दशक लग जाएंगे।

(नित्यानंद गायेन कवि और पत्रकार हैं। आजकल आप दिल्ली में रहते हैं।) 

नित्यानंद गायेन
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