Thursday, March 23, 2023

असम में मुसलमानों को निशाना बनाकर बेदखली अभियान 

दिनकर कुमार
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असम के कई जिलों में लोगों को बेदखली अभियान का सामना करना पड़ रहा है। असम सरकार गुवाहाटी में सिल्साको बील (झील) के तट पर कथित अतिक्रमणकारियों से लगभग 400 बीघा जमीन को खाली करने को लेकर 27 फरवरी से अभियान चला रही है। इस बीच एक सात वर्षीय बच्चे की दिल को छू लेने वाली अपील सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। 

दरअसल प्रशासन झील के आसपास हुए अतिक्रमण पर बुल्डोजर चला रहा है। बुल्डोजर एक घर को तोड़ने के लिए आगे बढ़ा तो एक लड़का पुलिसवालों से मार्मिक अपील करता है कि बुल्डोजर वालों को कहें कि उसके घर को अभी न तोड़ें उसमें कुछ सामान रखा है वह निकालना है। 19 सेकेंड की इस क्लिप में लड़के को प्लास्टिक की दो टोकरियां ले जाते हुए देखा जा रहा है।

स्थानीय चैनलों ने उसी लड़के को रोते हुए और अपने घर के मलबे पर बैठे हुए दिखाया है। आम लोगों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं, पत्रकारों और विपक्षी सांसदों ने सरकार से इस अभियान को फौरन रोकने की अपील की है। लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा अभियान को जारी रखने पर अड़े हुए हैं। उन्होंने बुधवार को जोर देकर कहा कि प्रदेश के कई जिलों में चल रहा बेदखली अभियान जारी रहेगा और धीरे-धीरे इसका विस्तार किया जाएगा।

असम की सरमा सरकार का बेदखली अभियान, राज्य में अनियमित रूप से चल रहा है, जो स्पष्ट रूप से मुस्लिम समुदाय को लक्षित करता है। दिसंबर 2022 में, असम विधान सभा के शीतकालीन सत्र के दौरान विपक्ष के विधायकों ने विधानसभा में इस मुद्दे को उठाया था। यह सत्र असम के नागांव जिले के बटाद्राबा को खाली कराने के तुरंत बाद हो रहा था। लेकिन मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने साफ तौर पर कहा था कि ये बेदखली अभियान असम में सरकारी और वन भूमि को खाली कराने के लिए है और भाजपा शासन में यह अभियान जारी रहेगा।

15 फरवरी, 2023 को भारी संख्या में सशस्त्र सुरक्षा कर्मियों के साथ, सोनितपुर जिला प्रशासन ने बेदखली अभियान शुरू किया था। उक्त अभियान ब्रह्मपुत्र नदी के दक्षिणी तट पर स्थित बुरहाचापोरी वन्यजीव अभयारण्य में लगभग 1,892 हेक्टेयर जमीन पर चलाया जाना है।

यह बता देना जरूरी है कि बड़ी संख्या में असम पुलिस और सीआरपीएफ के साथ-साथ नागरिक प्रशासन और वन विभाग के कर्मचारी इस अभियान को अंजाम देने में लगे हुए हैं।

फोरम फॉर सोशल हार्मनी के संयोजक, प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और लेखक हरकुमार गोस्वामी ने इस अमानवीय बेदखली अभियान का पुरजोर विरोध किया। उन्होंने कहा कि गरीब किसानों और मजदूरों को सरकारी जमीन से बेदखली के नाम पर निशाना बनाया जा रहा है। बेदखली के ज्यादातर शिकार नदी के कटाव वाले भूमिहीन लोग भी हैं। जमीन और पट्टा देने के बजाय यह सरकार उन्हें एक-एक कर बेदखल करती जा रही है।

उन्होंने आगे कहा, “सरकार ने गरीब किसानों को, खासकर मुसलमानों को बेदखल कर दिया है, जबकि दूसरी ओर उन्होंने पिछले दो वर्षों में बाबा रामदेव और दूसरे व्यापारियों को लाखों बीघा जमीन दी है।”

उन्होंने फिर कहा कि, “लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष लोगों को एक साथ आना चाहिए और इन अमानवीय बेदखली और फासीवादी भाजपा सरकार के खिलाफ एक लोकतांत्रिक आंदोलन शुरू करना चाहिए।”

इस बीच असम बोर्ड की अंतिम परीक्षा देने की तैयारी कर रहे छात्रों ने असम पुलिस बल और उनके कार्यों पर गंभीर आरोप लगाए। एक छात्र को यह कहते हुए सुना गया कि “ये लोग पुलिस वाले हैं या डकैत?”

एक छात्रा ने दावा किया, “पुरुष पुलिस अधिकारियों ने लड़कियों और महिलाओं को धक्का दिया और उन्हें गलत तरीके से छुआ भी।”

एक छात्रा ने दुखी स्वर में कहा, “हमारी परीक्षा नजदीक आ रही है, अब हम कैसे पढ़ेंगे, यह सब चल रहा है? वे हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। उन्होंने हमारे घरों को तोड़ दिया, अब हम कैसे पढ़ेंगे?”

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता रफीकुल इस्लाम ने 19 फरवरी को मीडिया से बात करते हुए कहा, “पहले हम गुप्त हत्याओं के बारे में सुनते थे, लेकिन अब हम बेदखली अभियान और मुठभेड़ के नाम पर खुली हत्याएं देख रहे हैं।

इससे पहले, एआईयूडीएफ नेता करीम उद्दीन बरभुइया ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के निर्देश पर अल्पसंख्यकों के खिलाफ मुठभेड़ अभियान चलाने के लिए असम की राज्य सरकार के साथ-साथ राज्य पुलिस की भी आलोचना की।

“सरकार आरएसएस के निर्देश के तहत मुसलमानों के खिलाफ बेदखली अभियान चला रही है, मुठभेड़ कर रही है। अगर आपको याद हो तो इस साल एक सवाल उठा था कि चालू साल में कितने एनकाउंटर हुए तो सरकार ने जवाब दिया कि एक भी एनकाउंटर नहीं हुआ। इससे पहले वे टीवी पर फ्लैश करते थे कि कैसे अपराधी पुलिस की गिरफ्त से भागे और कैसे एनकाउंटर हुआ। लेकिन अब आपको इस तरह के एक भी मामले नहीं दिखेंगे, “करीम उद्दीन बरभुइया ने कहा।

 ( दिनकर कुमार ‘द सेंटिनेल’ के संपादक रहे हैं। )

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