Wednesday, April 24, 2024

न्यायिक हस्तक्षेप से किसान आंदोलन खत्म कराने की कवायद

उच्चतम न्यायालय 16 दिसंबर को उस जनहित याचिका पर सुनवाई करेगा, जिसमें अधिकारियों को यह निर्देश देने की मांग की गई है कि वे केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे किसानों को तत्काल हटाएं। याचिका में कहा गया है कि रास्ता बंद होने से यात्रियों को मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और इससे कोरोना के मामलों में भी इजाफा हो सकता है। अब लाख टके का सवाल यह है कि किसानों के जिस आंदोलन को कई दौरों की उच्चस्तरीय वार्ता के बाद मोदी सरकार समाप्त नहीं करा पाई क्या उसे उच्चतम न्यायालय के डंडे का इस्तेमाल करके खत्म कराने की कवायद इस जनहित याचिका के माध्यम से की गई है?

उच्चतम न्यायालय की वेबसाइट के मुताबिक, चीफ जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना तथा जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन की पीठ विधि छात्र ऋषभ शर्मा द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करेगी। आरोप लग रहे हैं कि इस जनहित याचिका का इस्तेमाल भाजपा और उसके समर्थकों द्वारा दिल्ली-एनसीआर की सीमाओं से किसानों को हटाने के लिए किया जा रहा है, क्योंकि सरकार द्वारा उनकी मांगों को मानने से इंकार करने के साथ किसानों ने  अपने आंदोलन को और तेज करने के इरादे स्पष्ट कर दिए हैं।

जनहित याचिका में यह भी तर्क दिया गया है कि अधिकांश प्रदर्शनकारी बुजुर्ग हैं, जो बीमारी की चपेट में आ सकते हैं। इस तरह किसानों के आंदोलन को खत्म करने के लिए एक बार फिर से कोरोना कार्ड खेला गया है। किसानों का बहुत बड़ी संख्या में जमावड़ा है, इसलिए सरकार के सामने किसानों को हटाने में बहुत कठिनाई की स्थिति है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीका न्यायिक हस्तक्षेप और आदेश है।

याचिका में मांग की गई है कि प्रदर्शनकारियों को किसी अन्य स्थान पर स्थानांतरित किया जाए और विरोध के कारण अवरुद्ध हुई दिल्ली की सीमाओं को फिर से खोला जाए। यह भी कहा गया है कि विरोध करने वाले समूहों के बीच सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनने के प्रोटोकॉल को लागू किया जाना चाहिए।

याचिका में दावा किया गया कि दिल्ली पुलिस ने 27 नवंबर को प्रदर्शनकारियों को यहां बुराड़ी में निरंकारी मैदान पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने की इजाजत दी थी, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने राष्ट्रीय राजधानी की सीमाओं को बंद कर दिया। वास्तव में, केंद्र सरकार ने पहले ही दिल्ली के अंदर एक पार्क में अपना विरोध प्रदर्शन करने की पेशकश करके उन्हें फंसाने की कोशिश की थी। हालांकि, किसानों ने यह मानने से इंकार कर दिया था कि सरकार की मंशा बेईमानी है।

अधिवक्ता ओम प्रकाश परिहार के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि दिल्ली की सीमाओं पर जारी प्रदर्शन की वजह से प्रदर्शनकारियों ने रास्ते बंद कर रखे हैं और सीमा बिंदु बंद हैं और गाड़ियों की आवाजाही बाधित है, जिससे यहां प्रतिष्ठित सरकारी और निजी अस्पतालों में इलाज के लिए आने वालों को भी मुश्किलें हो रही हैं।

इस बीच भारतीय किसान यूनियन भानू गुट की तरफ से केंद्र सरकार के तीनों कृषि कानूनों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है। इस याचिका में इन कानूनों को मनमाना और अवैध बताते हुए इन्हें रद्द करने की मांग की गई है। याचिका में तीनों कानूनों को असंवैधानिक करार कर रद्द करने की मांग की गई है।

हालांकि, इससे पहले उच्चतम न्यायालय ने किसान कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था। अब यूनियन ने इसी मामले में सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की है। अर्जी में कहा गया है कि ये अधिनियम अवैध और मनमाने हैं। इनसे कृषि उत्पादन के संघबद्ध होने और व्यावसायीकरण के लिए मार्ग प्रशस्त होगा। याचिकाकर्ता ने कहा है कि किसानों को बहुराष्ट्रीय कंपनियों के कॉरपोरेट लालच की दया पर रखा जा रहा है।

फिलवक्त यह यह स्पष्ट नहीं है कि उच्चतम न्यायालय इस मामले को कैसे निस्तारित करेगा, लेकिन क्या उसे मोदी सरकार से यह नहीं पूछना चाहिए कि उसने संकट को हल करने के लिए अब तक कोई गंभीर प्रयास क्यों नहीं किए हैं? मोदी सरकार ने रणनीति में देरी करने का सहारा क्यों लिया है? क्या मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय के हस्तक्षेप की आशा में इस मामले को अब तक लटकाए रखा? मोदी सरकार किसके हित में काम कर रही है?

यह सर्वविदित है कि लोग आमतौर पर सड़कों पर विरोध के लिए नहीं उतरते हैं। ऐसा सभी अन्य विकल्पों के समाप्त होने के बाद ही होता है, जैसा कि किसानों के मामले में हुआ है। वे पिछले चार महीनों से तीनों कानूनों का विरोध कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ क्योंकि उनकी बात सुनने के लिए मोदी सरकार के कान नहीं थे, जिन्होंने इस आंदोलन को पंजाब केंद्रित बताया है।

सरकारी मशीनरी आंदोलनकारियों पर तरह-तरह के आरोप लगा रही है और भाजपा और उसके समर्थकों ने किसानों को राष्ट्रविरोधी, माओवादी, देशद्रोही करार दिया है। दरअसल मोदी सरकार को असहमति की आवाज बर्दाश्त नहीं होती है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

जनचौक से जुड़े

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments

Latest Updates

Latest

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...

Related Articles

मोदी के भाषण पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं, आयोग से कपिल सिब्बल ने पूछा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'कांग्रेस संपत्ति का पुनर्वितरण करेगी' वाली टिप्पणी पर उन पर निशाना साधते...