Friday, April 19, 2024

सरकार के लिए ‘गुड़ भरी हंसिया’ बनी किसानों की ट्रैक्टर रैली, देश के कई हिस्सों से शामिल होंगे किसान

26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड में अब सिर्फ़ चार दिन बचे हैं। ट्रैक्टर रैली पर रोक लगाने के सरकार और दिल्ली पुलिस की याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाथ खड़े करने के बाद से मोदी सरकार के हाथ-पांव फूल रहे हैं। सरकार को उम्मीद थी कि सुप्रीम कोर्ट गणतंत्र दिवस पर किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली के संदर्भ में कोई फैसला करेगा, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने हस्तक्षेप से इनकार करते हुए मामले पर फैसला लेने की जिम्मेदारी दिल्ली पुलिस पर डाल दी।

दरअसल मोदी सरकार को मिले फीडबैक के बाद सरकार नहीं चाहती कि कृषि कानूनों के सवाल पर देश की राजधानी में गणतंत्र दिवस के दिन किसानों और प्रशासन के बीच टकराव पैदा हो। टकराव की स्थिति में सरकार को इस आंदोलन के व्यापक होने की आशंका है। यही कारण है कि सरकार किसान यूनियनों के साथ एक सप्ताह के भीतर तीन बैठकें करने को बाध्य हुई है। 20 जनवरी की बैठक में सरकार ने तीनों कृषि कानूनों पर एक से डेढ़ साल तक अस्थायी रोक लगाने और साझा कमेटी के गठन का प्रस्ताव दिया। जाहिर है ऐसा किसानों के ट्रैक्टर रैली पर सुप्रीम कोर्ट के रुख और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर पंजाब, हरियाणा के इतर दूसरे राज्यों में बहस शुरू होने के कारण हुआ। अनुमान जताया जा रहा है कि आज की प्रस्तावित बैठक में सरकार कोई बड़ा फैसला ले सकती है, जिसमें मई 2024 के लोकसभा चुनाव तक इन कृषि क़ानूनों को होल्ड पर रखा जा सकता है।

बता दें कि 20 जनवरी की बैठक में सरकार ने किसान नेताओं को कृषि क़ानून एक डेढ़ साल के लिए होल्ड पर रखने के प्रस्ताव पर कल गुरुवार को किसान नेताओं ने दिन भर आपस में बैठकें करने के बाद देर रात प्रेस कान्फ्रेंस में कहा कि उन्हें सरकार का प्रपोजल मंजूर नहीं है। किसान संगठनों ने कहा है कि कृषि कानून रद्द होने चाहिए, और MSP की गारंटी मिलनी चाहिए।

आंदोलन को लंबा खींच कर कमजोर करने की मोदी सरकार की रणनीति हुई फेल
दरअसल केंद्र की मोदी सरकार ये मानकर चल रही थी कि किसान आंदोलन लंबा खिंचने के साथ धीरे-धीरे कमजोर पड़ जाएगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। बल्कि इसके उलट सरकार को मिले फीडबैक में बताया गया कि भले ही आंदोलन का दायरा करीब दो महीने बाद भी हरियाणा, पंजाब और पश्चिम यूपी तक सीमित है, मगर आंदोलन और खासतौर से एमएसपी की देश के दूसरे राज्यों के किसानों में भी चर्चा हो रही है। ऐसे में सरकार को भविष्य में आंदोलन का दायरा और व्यापक होने की आशंका है।

सरकार की चिंता का एक बड़ा कारण किसानों की प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली है। ट्रैक्टर परेड के लिए फीडबैक लेने में लगाए गए एक केंद्रीय मंत्री के मुताबिक इस मुद्दे पर दो स्थितियां सामने आ सकती हैं। इज़ाज़त नहीं मिलने पर गणतंत्र दिवस के दिन किसानों और पुलिस में टकराव हो सकता है। इज़ाज़त मिलने पर हजारों ट्रैक्टर के साथ किसान राजधानी की सड़कों पर जम जाते हैं, तो इससे एक अराजक स्थिति पैदा हो सकती है। दोनों ही स्थिति में फजीहत सरकार की होनी है। क़ानून वापस लेने को सरकार अपनी हार समझकर चल रही है। जाहिर है सरकार कानून वापस न लेकर इसे होल्ड पर रखने का प्रस्ताव सुप्रीम कोर्ट द्वारा इन कृषि क़ानूनों पर स्टे लगाने के बाद आई है।

एक लाख ट्रैक्टर शामिल होंगे 26 जनवरी की परेड में
किसान नेता योगेंद्र यादव ने कहा है कि परेड में एक लाख से ज्यादा ट्रैक्टर तिरंगों के साथ शामिल होंगे। वहीं किसान नेताओं की आज दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश की पुलिस के साथ लगातार चौथे दिन मीटिंग होगी। इससे पहले तीन बैठकों में किसानों को मनाने की पुलिस की कोशिशें नाकाम रहीं। गुरुवार को किसानों ने कहा कि वे दिल्ली में आउटर रिंग रोड पर ही ट्रैक्टर रैली निकालेंगे। पुलिस ने इसकी मंजूरी देने से मना कर दिया। पुलिस ने कुंडली-मानेसर-पलवल (KMP) एक्सप्रेस-वे पर परेड निकालने की अपील की, लेकिन किसान नहीं माने।

किसान संगठनों की ट्रैक्टर रैली को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसान तैयारी में जुटे हैं। गुरुवार को पंजाब के फिरोजपुर, मोगा, फजिल्का, जालंधर, मानसा और बठिंडा से करीब 1,830 ट्रैक्टरों से 13 हजार 950 से ज्यादा किसान दिल्ली रवाना हुए हैं। 26 जनवरी को परेड में शामिल होने के एलान के बाद शाहजहांपुर-खेड़ा हरियाणा बॉर्डर के आसपास के गांवों के किसानों में चर्चा है कि वे 26 जनवरी को दिल्ली कूच करेंगे। बॉर्डर के नेता भी दूर-दराज के गांवों के किसानों के संपर्क में हैं। वे भी गुपचुप यही बता रहे हैं कि अब आंदोलन में किसान खुद आगे आने शुरू हो गए हैं, जिसका नजारा 26 जनवरी को देखने को मिलेगा।

दरअसल किसान आंदोलन से जुड़े नेताओं का गांवों में यही मैसेज है कि किसान सीधे अपने ट्रैक्टरों से या दूसरे साधनों से दिल्ली कूच करें, ताकि गणतंत्र दिवस की परेड में अधिक से अधिक किसान शामिल हो सकें। इसके पीछे रणनीति है कि जितने भी किसान अलग-अलग गांवों से निकलेंगे तो सरकार पर दबाव बनेगा। इसकी तैयारी में किसान नेता गांवों की चौपाल पर जा रहे हैं। वहीं हरियाणा के चौधरीवास, मय्यड़, लांधड़ी और बाड्‌डो पट्‌टी टोल नाकों पर किसानों के टोल फ्री धरने 27वें दिन भी जारी रहे। हर जगह किसानों ने 26 जनवरी की ट्रैक्टर परेड की तैयारियों को लेकर रणनीतियां बनाईं। गांव-गांव कमेटियां आंदोलन को लेकर एकजुट होने का आह्वान करने पहुंच रहीं हैं।

चौधरीवास टोल पर बुधवार को धरने की अध्यक्षता वयोवृद्ध किसान नेता उमेद सिंह पिलानिया ने की। धरने पर युवा किसान नेता सोमबीर पिलानिया और राजकुमार झिझरिया ने कहा कि 26 जनवरी को दिल्ली में शामिल होने के लिए चौधरीवास टोल प्लाजा के आसपास के 42 गांवों के किसानों, युवाओं और मजदूरों ने पूरी तैयारियां कर ली हैं। 26 जनवरी की परेड में शामिल होने इलाके से महिलाओं के जत्थे भी जाएंगे।

वहीं अग्रोहा में कृषि कानूनों के खिलाफ लांधड़ी टोल पर धरना 29वें दिन भी बड़े जोश के साथ जारी रहा। धरने का नेतृत्व बुधवार को किसान नेता सुल्तान काजला, किसान नेता दर्शना सिवाच, पूर्व पार्षद अंगूरी देवी नंगथला ने किया। 26 जनवरी को दिल्ली परेड में शामिल होने के लिए महिलाओं ने 24 जनवरी को कूच करने का एलान किया है। धरने का नेतृत्व करते हुए किसान नेता दर्शन सिवाच ने कहा कि हिसार, फतेहाबाद, सिरसा जिलों की महिलाएं 24 जनवरी को लांधड़ी टोल से परेड में ट्रैक्टरों के साथ कूच करेंगी।

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