Friday, April 19, 2024

“किसान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ” नारे के साथ किसानों का 20 मार्च को दिल्ली कूच

20 मार्च को संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर किसान फिर दिल्ली पहुंच रहे हैं। रामलीला मैदान में उनकी महापंचायत होने जा रही है। वैसे तो दिल्ली बॉर्डर पर साल भर से ऊपर चले उनके ऐतिहासिक आंदोलन के बाद अहंकारी सरकार को अंत में झुकना पड़ा था, पर उस समय भी किसानों को उसने रामलीला मैदान नहीं पहुंचने दिया था।

अब उसी रामलीला मैदान में 20 मार्च को लाखों किसान आंदोलन वापसी के समय किये गए समझौते से मोदी सरकार की वायदा-खिलाफी के विरुद्ध शंखनाद कर अपने आंदोलन के अगले चरण का आगाज़ करने जा रहे हैं। उम्मीद है उनकी ‘किसान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’ लड़ाई 2024 में राजनीतिक सत्ता परिवर्तन के बाद ही रुकेगी।

बेशक नवम्बर 2020 में कोविड के बीच जब किसानों ने पहली बार दिल्ली पर धावा बोला था, तबसे आज का संदर्भ बदला हुआ है। तब 3 कानूनों के माध्यम से कृषि को कॉरपोरेट हाथों में सौंपने के लिए मोदी सरकार ने किसानों पर जो अचानक हमला बोला था, उसके खिलाफ अपना अस्तित्व बचाने के लिए किसान अकल्पनीय साहस और दृढ़ता के साथ प्रत्याक्रमण में उतरे थे और अंत में उसे घुटने टेकने पर मजबूर कर ही वापस लौटे थे।

वहीं आज, किसान मोदी सरकार के चरम विश्वासघात का प्रतिकार करने, उसे चुनौती देने और उसके खिलाफ खुली जंग का ऐलान करने दिल्ली पहुंच रहे हैं।

वैसे तो दिल्ली महापंचायत में पिछले आंदोलन के सभी लंबित मुद्दे-MSP, मुकदमों की वापसी, बिजली बिल की वापसी, गृह राज्यमंत्री अजय टेनी की बर्खास्तगी और किसानों की पूर्ण कर्ज़ मुक्ति और किसान-पेंशन जैसे कुछ अहम नए सवाल भी जोर-शोर से उठेंगे। पर निश्चय ही MSP की कानूनी गारंटी का सवाल उनके चार्टर में सबसे ऊपर रहेगा।

वैसे तो मोदी राज में किसान अनगिनत असाध्य सवालों से घिरे हुए हैं, पर MSP का सवाल उनके लिए अब जीवन मरण का सवाल बन गया है। इस पर मोदी सरकार आंदोलन वापसी के समय किये हुए committment से पहले ही धोखाधड़ी कर चुकी है। इसीलिए उस पर सरकार द्वारा बनाई गई फर्जी कमेटी में शामिल होने से किसानों ने इनकार कर दिया था।

पिछले दिनों पेश सरकार के आखिरी पूर्ण बजट ने भी इस सच पर मुहर लगा दिया कि किसानों को MSP देने का सरकार का कोई इरादा नहीं है।

संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में इस बजट को देश के इतिहास का अबतक का सर्वाधिक किसान-विरोधी बजट करार देते हुए नोट किया था कि, ‘किसानों को MSP सुनिश्चित करने के अब तक मौजूद रहे मामूली प्रावधानों को भी इस बार बजट में हटा दिया गया है।’

‘पीएम अन्नदाता आय संरक्षण अभियान’ (AASHA) जैसी प्रमुख योजनाओं में आवंटन में लगातार गिरावट हुई है। 2 साल पहले के 1500 करोड़ रू. से घटकर यह 1 करोड़ रू. रह गया है। 15 करोड़ किसान परिवारों की सुरक्षा के लिए महज़ 1 करोड़। इसी तरह, ‘मूल्य समर्थन योजना’ (PSS) और ‘बाजार हस्तक्षेप योजना’ (MIS) के लिए आवंटन 3000 करोड़ रुपये से घटकर 2022 में 1500 करोड़ रुपये कर दिया गया था और इस साल यह अकल्पनीय 10 लाख रूपया रह गया है।”

जाहिर है सरकार ने किसानों की MSP गारंटी की सारी उम्मीद को खत्म कर दिया है। अभी सरकार मात्र 23 फसलों के लिये MSP घोषित करती है। उसमें भी MSP पर खरीद असल में मात्र गेहूं और धान की होती है, वह भी पंजाब, हरियाणा और कुछ दूसरे क्षेत्रों में।

इसे सरसों के ताजा मामले से समझा जा सकता है जिसका केंद्र सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 5450 रुपये कुंतल घोषित कर दिया है लेकिन बाजार में सरसों 4000 – 4500 रुपये प्रति कुंतल बिक रहा है, सरसों की फसल कटाई के समय विदेशों से पॉम आयल के आयात के चलते बाजार में खाद्य तेलों और सरसों के दामों में भारी कमी आ गयी है।

ठीक यही हाल आलू का है। उत्तर प्रदेश सरकार ने आलू का समर्थन मूल्य 650 रूपये कुंतल घोषित किया है, जबकि आलू की लागत ही 1100 रूपये प्रति कुंतल आ रही है। जाहिर है, यह सरकारी कीमत बेहद कम है और आलू किसानों को नुकसान पहुंचाने वाली है।

किसान इस बात को अच्छी तरह समझ गए हैं कि MSP की कानूनी गारंटी होने पर ही किसानी खेती (peasant-agriculture) sustainable बन सकती है और कारपोरेट नियंत्रण में जाने की नियति से बच सकती है। वे कानूनी गारंटी इसलिए चाहते हैं ताकि सरकार उससे मुकर न सके और MSP फल, सब्जियों समेत सभी कृषि उत्पादों के लिए लागू हो सके।  

वे इसे 2024 का battle cry बनाने पर आमादा हैं क्योंकि यही उनकी मूल मांग है जिसके समाधान पर किसानी-खेती (peasant-agriculture) का पूरा भविष्य निर्भर है। किसान-आंदोलन का यह दूसरा चरण किसी सरकारी कदम की प्रतिक्रिया और विरोध का आंदोलन नहीं बल्कि समग्र कृषि नीति में आमूल बदलाव का pro-active आंदोलन होने जा रहा है जिसको लेकर किसान संगठन पूरे देश के किसानों को लामबंद करेंगे और इसे आम चुनाव का निर्णायक एजेंडा बनाएंगे।

दरअसल, भारत के किसान अपने आंदोलन में दूरगामी विश्व-ऐतिहासिक महत्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। राष्ट्रवाद की शेखी बघारने वाली और अपनी आलोचना पर सबको देशद्रोही करार देने वाली मोदी सरकार कैसे विदेशी साम्राज्यवादी हितों के लिए हमारे राष्ट्रीय हितों और जनता के जीवन को दांव पर लगा रही है, कैसे 3 कृषि कानून न सिर्फ अडानी जैसे कॉरपोरेट घरानों बल्कि साम्राज्यवादी हितों की सेवा के लिए लाये गए थे।

इसका खुलासा करते हुए प्रो. प्रभात पटनायक कहते हैं, ‘किसान आंदोलन की सीधी कार्रवाई, न सिर्फ मोदी की बल्कि साम्राज्यवाद की पराजय है। कुछ लड़ाइयां ऐसी होती हैं जिनका significance तात्कालिक संदर्भ तक सीमित नहीं रहता, उसके पार तक जाता है, जिसके बारे में युद्धरत पक्ष भी पूरी तरह सचेत नहीं होते। मसलन, प्लासी के जंगलों में कभी लड़ी गयी लड़ाई ऐसी ही थी जिसने विश्व इतिहास के एक पूरे नए युग की नींव डाल दी थी।

किसान-आंदोलन और मोदी सरकार के बीच की लड़ाई भी ऐसी ही थी। 3 कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन की सीधी कार्रवाई, न सिर्फ मोदी की, बल्कि साम्राज्यवाद की पराजय है। इस बात पर लोगों का कम ध्यान गया है कि 3 कानूनों पर किसानों की जीत साम्राज्यवाद के लिए एक बहुत बुनियादी अर्थ में setback है।’

‘दरअसल साम्राज्यवाद जिस तरह पूरी दुनिया के खाद्यान्न और कच्चे मालों के स्रोतों पर कब्जा करना चाहता है, उसी तरह वह पूरी दुनिया के land use के पूरे pattern पर नियंत्रण कायम करना चाहता है ताकि अपने जरूरत की सारी चीजें प्राप्त कर सके जो उसके अपने देश की जलवायु में पैदा नहीं हो सकतीं।

एक समय उपनिवेशवाद इसका ideal औजार था, जिसका भारत जैसे देश में निर्ममता और बेशर्मी के साथ इस्तेमाल हुआ।’ ‘मोदी सरकार द्वारा जो अति राष्ट्रवाद की आड़ में दरअसल साम्राज्यवादी हितों को बढ़ावा देती है, लाये गए 3 कृषि कानूनों का भी ठीक यही उद्देश्य था। किसानों ने एक निर्णायक लड़ाई जीत ली है। देश की जमीन (landmass ) को साम्राज्यवाद के नियंत्रण में जाने से उन्होंने बचा लिया।’

जाहिर है अपनी ऐतिहासिक जीत की उपलब्धियों को किसान तभी बरकरार रख सकते हैं जब वे नए-नए रूपों में आने वाली कृषि के कारपोरेटीकरण की साजिशों को अपने धारावाहिक आंदोलनों से लगातार नाकाम करते रहें और सर्वोपरि MSP की कानूनी गारंटी और उस पर अपनी सभी फसलों की खरीद की गारंटी कर सकें, ताकि peasant-agriculture sustainable बने और कॉरपोरेट नियंत्रण में जाने की नियति से बच सके।

किसान आंदोलन की चौतरफा तेज होती हलचलों के बीच महाराष्ट्र में भी शिंदे-भाजपा सरकार को झुकाकर किसानों ने बड़ी जीत हासिल की है। AIKS के लाल झंडों से पटा मुख्यतः गरीब और आदिवासी किसानों का 175 कि.मी. लम्बा नासिक से मुंबई का विजयी लांग मार्च जिसमें अपने बेहद सीमित संसाधनों के बल पर रास्ते में बीमार पड़ते, पैर के छालों के साथ निर्भय आगे बढ़ते 10 से 20 हजार के बीच किसान बताए जा रहे हैं, पूरे देश के किसानों और अन्य संघर्षशील तबकों के लिए प्रेरणास्रोत और मॉडल है।

20 मार्च को किसानों का दिल्ली कूच ऐसे समय में हो रहा है जब हमारा राष्ट्र एक नाजुक मोड़ पर खड़ा है। जहां से एक रास्ता फासीवाद के संस्थाबद्ध होने और राष्ट्रीय विनाश की ओर जाता है और दूसरा लोकतंत्र की पुर्नबहाली और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण की ओर। उम्मीद है अपने ‘किसान बचाओ, लोकतंत्र बचाओ, देश बचाओ’ उद्घोष के साथ पुनरुज्जीवित किसान-आंदोलन एक बार फिर राष्ट्र का सम्बल बनेगा और देश को फासीवाद के शिकंजे से निकालने में अपनी ऐतिहासिक भूमिका निभाएगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं।)

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