वर्ष 2015 का जून महीना था। पूरे देश में गर्मी अपने चरम पर थी। केंद्र में ब्राह्मणीय हिन्दुत्व फासीवादी भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार का एक वर्ष पूरा हो चुका था और झारखंड में केंद्र सरकार के खिलाफ आक्रोश चरम पर था। जनता के आक्रोश ने जनांदोलन का रूप अख्तियार कर लिया था। पूरे झारखंड में प्रतिदिन जुलूस निकल रहे थे। वजह थी, केंद्र सरकार द्वारा दिसंबर 2014 में लाया गया भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक। ठीक इसी समय मैंने एक दिन बगाईचा का रूख किया। मैं इस समय झारखंड में आंदोलन का ताप महसूस करने के लिए जंगल-पहाड़ों की खाक छान रहा था। मैं इससे पहले ना तो कभी बगाईचा गया था और ना ही फादर स्टेन स्वामी से मिला था और ना ही उनसे कोई व्यक्तिगत परिचय ही था। हां, मैं उनके आदिवासी जनता के बीच किये गये कार्यों से जरूर वाकिफ था।
हकीकत में, मैं उस दिन बगाईचा फादर स्टेन स्वामी से मिलने नहीं गया था, बल्कि मेरी वहां जाने की वजह पत्रकार व राजनीतिक कार्यकर्ता प्रशांत राही थे। उन दिनों प्रशांत राही बगाईचा में ही थे और वे मेरे फेसबुक फ्रेंड थे, तो मैंने उनसे मिलने का सोचा। दोपहर 12 बजे के आस-पास मैं पूछते-पूछते बगाईचा पहुंचा। बगाईचा की आबो-हवा ने मुझे बहुत प्रभावित किया। प्रशांत राही ने बातचीत के दौरान ही फादर स्टेन स्वामी से मुलाकात का प्रस्ताव मुझे दिया। यह प्रस्ताव तो मेरे लिए ‘नेकी और पूछ-पूछ’ वाली बात थी, मैंने प्रस्ताव पर तुरंत हामी भरी।
हम दोनों फादर से मिलने उनकी कोठरी में ही चले गये। प्रशांत राही ने फादर से मेरा परिचय कराया। मैं पहली बार फादर से मिल रहा था, लेकिन मुझे बातचीत में कभी इसका एहसास नहीं हुआ। फादर स्टेन स्वामी ने जब जाना कि मैं झारखंड में रहकर ही पत्रकारिता और लेखन करना चाहता हूं, तो वे काफी प्रभावित हुए और उन्होंने मुझे मिलते रहने के लिए बोला। दरअसल, यह वही समय था, जब बगाईचा में पीड़ित बंदी सहयोग समिति (पीपीएससी) के निर्माण की भी तैयारी चल रही थी।
खैर, हमारी पहली मुलाकात काफी बढ़िया रही और उसके बाद भी हम कई बार मिले। कभी औपचारिक बात हुई, तो कभी विस्तृत भी। 2018 के जनवरी में एक कार्यक्रम में हमारी अंतिम मुलाकात हुई। इतने कम समय में भी मैंने उन्हें जितना जाना, वह यही था कि उनमें अपनी विद्वता या अपने काम को लेकर जरा सा भी घमंड नहीं था। वे नये लोगों से भी बहुत ही प्यार से मिलते थे और भरपूर मदद का आश्वासन देते थे। वे आश्वासन को व्यवहार में भी उतारते थे। ‘सादा जीवन, उच्च विचार’ के वे आदर्श पुरुष थे। समानता को वे व्यवहार में उतारते थे। वे ‘रिटायर्ड’ कभी नहीं होना चाहते थे। वे ता-उम्र गरीब व जरूरतमंद जनता के लिए अपनी पूरी ताकत से कार्य करना चाहते थे।
पूरे झारखंड में ‘सत्य और न्याय’ की आवाज के प्रतिनिधि के बतौर अगर कोई एक व्यक्ति थे, तो वो थे फादर स्टेन स्वामी। संथाल परगना से लेकर, उत्तरी छोटानागपुर, दक्षिणी छोटानागपुर, पलामू प्रमंडल तक में समान रूप से फादर स्टेन स्वामी दलित-आदिवासियों में मशहूर थे। संथाल आदिवासी हो या मुंडा या फिर हो या उरांव आदिवासी, सभी के चहेते थे फादर स्टेन स्वामी। झारखंड के हरेक कोने में मुझे सुनने को मिला कि हमारे यहां तो कार्यक्रम में फादर स्टेन स्वामी आए थे।
फादर स्टेन ता-उम्र आदिवासियों को मिले संवैधानिक अधिकारों को जमीनी धरातल पर लागू कराने के लिए तत्पर रहे। वे वन अधिकार कानून, पेसा एक्ट, सीएनटी-एसपीटी एक्ट, 5वीं अनुसूची क्षेत्र को दिये गये विशेष अधिकारों आदि को सख्ती से लागू कराना चाहते थे। वे केंद्र की संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की सरकार के द्वारा आदिवासी क्षेत्र में 2009 से चलाए जा रहे ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट’ के सख्त विरोधी थे। वे हमेशा आदिवासियों पर सुरक्षा बलों द्वारा ढाये जा रहे जोर-जुल्म की खिलाफत करते थे। जहां कहीं भी फर्जी मुठभेड़ में आदिवासियों की हत्या सुरक्षा बलों द्वारा कर दी जाती थी, तो वे तुरंत फैक्ट फाइंडिग टीम बनाने के लिए सक्रिय हो जाते थे। झारखंड में 2010 में जब ‘ऑपरेशन ग्रीन हंट विरोधी नागरिक मंच’ का गठन हुआ, तब इसमें भी फादर अग्रिम पंक्ति में रहे।
फादर स्टेन आदिवासियों की जमीन की लूट के खिलाफ बोलने वालों में अग्रिम पंक्ति के व्यक्ति थे। विस्थापन की समस्या उन्हें बड़ा ही व्यथित करती थी, इसलिए 2005 में जब ’झारखंड विस्थापन विरोधी समन्वय समिति’ और 2007 में राष्ट्रीय स्तर पर ‘विस्थापन विरोधी जनविकास आंदोलन’ का निर्माण हुआ, तो वे इसकी अगली कतार में शामिल रहे।
वर्ष 2017 में जब झारखंड में ‘महान नक्सलबाड़ी सशस्त्र किसान विद्रोह की अर्द्धशताब्दी समारोह समिति’ का गठन हुआ, तो वे उसके भी संयोजकमंडल के सदस्य बने। उस समय झारखंड की तत्कालीन भाजपाई रघुवर दास सरकार ने हर-संभव कोशिश किया कि एक भी कार्यक्रम ना हो पाए, फिर भी कई जगहों पर कार्यक्रम सफलतापूर्वक संपन्न किया गया।
2017 में ही ‘महान बोल्शेविक क्रांति की शताब्दी समारोह समिति’ के भी संयोजकमंडल में वे शामिल हुए और इस समिति के बैनर तले झारखंड में 16 जगहों पर शानदार कार्यक्रम का आयोजन किया गया। रांची में आयोजित समापन कार्यक्रम में प्रसिद्ध क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हुए। 22 दिसंबर 2017 को जब झारखंड सरकार ने पंजीकृत ट्रेड यूनियन ‘मजदूर संगठन समिति’ को प्रतिबंधित कर दिया और कई मजदूर नेताओं व विस्थापन विरोधी आंदोलन के कार्यकर्ताओं पर काला कानून यूएपीए के तहत मुकदमा दर्ज कर दिया गया, तब झारखंड में ‘लोकतंत्र बचाओ मंच’ के गठन में इनकी बड़ी भूमिका रही।
‘मैं मूकदर्शक नहीं रहूंगा और भारत के सत्ताधारियों से असहमति व्यक्त करने और उन पर प्रश्न उठाने की जो भी कीमत मुझे अदा करनी पड़ेगी, उसे अदा करने के लिए मैं तत्पर हूं।’ फादर स्टेन स्वामी ने अपनी गिरफ्तारी के दो दिन पूर्व यह बयान दिया था, जिसे उन्होंने ता-उम्र निभाया। दरअसल, वे अपनी पूरी उम्र प्रश्न उठाते रहे और इसकी कोई भी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार रहे।
फादर स्टेन ने हमेशा ‘जल-जंगल-जमीन’ को बचाने के लिए लड़ रहे आदिवासियों का समर्थन किया। वे कभी नेता बनना नहीं चाहे, लेकिन उनका साथ लड़ाकुओं को हमेशा संबल देते रहा। वे ना चाहते हुए भी आदिवासियों के अघोषित नेता बन गये थे।
आज जब फादर स्टेन स्वामी की हत्या इस देश की फासीवादी सरकार ने कर दी है, तो झारखंड के आंदोलनकारियों ने अपना संरक्षक खो दिया है। फादर की हत्या में पूरी व्यवस्था शामिल रही है, इस व्यवस्था का कोई भी अंग इनकी हत्या की जिम्मेवारी से नहीं बच सकता।
फादर के हत्यारों की पहचान जनता कर चुकी है, इसीलिए वे लूट व झूठ पर टिकी इस लूटेरी व हत्यारी व्यवस्था को मिटाकर एक समानता पर आधारित समाज बनाने के लिए संकल्पबद्ध हैं। आइए, हम भी अपनी पूरी ताकत के साथ इस व्यवस्था परिवर्तन की लड़ाई में अपना योगदान देकर अमर शहीद फादर स्टेन स्वामी को इंकलाबी श्रद्धांजलि अर्पित करें।
(रूपेश कुमार सिंह स्वतंत्र पत्रकार हैं और आजकल झारखंड में रहते हैं।)
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