हाइड्रा की तरह उभरने वाले मुकदमे पूजा स्थल अधिनियम के बिल्कुल खिलाफ: पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज नरीमन

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नई दिल्ली। हाल के दिनों में मस्जिदों और दरगाहों के सर्वे से संबंधित अदालतों में डाली जाने वाली याचिकाओं पर चिंता जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने कहा है कि मन में सोचने पर ऐसा लगता है जैसे सैकड़ों हाइड्रा के सिर देश के ऊपर मड़रा रहे हैं। सभी जगहों पर मुकदमे के बाद मुकदमा डाले जा रहे हैं….अब मस्जिदें ही नहीं बल्कि दरगाहें भी निशाने पर आ गयी हैं।

उन्होंने यह बात जस्टिस एएम अहमदी की याद में ‘सेकुलरिज्म एंड द इंडियन कांस्टीट्यूशन’ विषय पर आयोजित एक लेक्चर में कही। उन्होंने कहा कि यह सब कुछ सांप्रदायिक तनाव और अविश्वास को जन्म देगा। जो कि न केवल हमारे संविधान बल्कि पूजा स्थल अधिनियम दोनों के खिलाफ है। इस मौके पर एएम अहमदी की पोती इन्सियाह वाहनवती की किताब ‘जस्टिस एएम अहमदी: द फीयरलेस जज’ का विमोचन किया गया। 

जस्टिस नरीमन ने कहा कि पांच सदस्यों की संविधान पीठ जिसने 2019 के अयोध्या केस का फैसला दिया था, ने पूजा स्थल अधिनियम के उद्देश्य तक खुद को विस्तारित किया था। उन्होंने कहा कि इस संविधान पीठ ने इस पर अपने पांच पेज खर्च किए थे और कहती है कि सेकुलरिज्म जो बुनियादी ढांचे का हिस्सा है, में आप पीछे नहीं देख सकते हैं, आपको आगे देखना होगा….हर पूजा का धार्मिक स्थल 15 अगस्त, 1947 को फ्रीज हो गया है। अब कोई अगर इसे बदलने का प्रयास करता है तो वह मुकदमा गिर जाएगा।

इसको और विस्तारित करते हुए उन्होंने कहा कि हम लोगों ने इस फ्रीज की स्थिति को 15 अगस्त, 1947 के लिए तय किया है इसलिए अयोध्या को छोड़कर, जिसे पूजा स्थल अधिनियम के तहत स्पेशल केस के तौर पर रखा गया था, दूसरी जगहें कम से कम सुरक्षित होंगी।

पूजा स्थल अधिनियम, 1991 कारगर तरीके से किसी धर्म के पूजा स्थल के चरित्र को बिल्कुल उसी तरह से फ्रीज रखता है जैसा कि वह 15 अगस्त, 1947 को था। जस्टिस नरीमन के मुताबिक इस कानून का उद्देश्य यह कहना था कि आप पीछे नहीं देखेंगे। कानून के शासन को तोड़कर या फिर कोर्ट से उसे ठीक करने के लिए कह कर आप इतिहास की गलतियों का मुकाबला करने की कोशिश नहीं करेंगे। 

इसलिए इस तरह से हाइड्रा के सिरों की तरह उठने वाले मुकदमों, जिसमें दूसरे के पूजा स्थलों में मंदिर के मौजूद होने के आरोप शामिल हैं, को डील करने का केवल एक ही रास्ता है, इन पांच पेजों को यहां लागू करना। और इसे हर जिला कोर्ट के सामने पढ़े जाने की जरूरत है। क्योंकि ये पांच पेज सुप्रीम कोर्ट की ओर से की गयी घोषणा है जिसे उनमें से हर कोई मानने के लिए बाध्य है।

अयोध्या फैसले पर उन्होंने कहा कि कोर्ट के फैसले में मस्जिद के नीचे एक मंदिर होने की बात, उसके ही शब्दों में- शायद एक मंदिर है एएसआई के सर्वे को ध्यान में रखते हुए यह सवालों के घेरे में है, क्योंकि उसे साइट पर एक बौद्ध और जैन धर्मों के भी अवशेष मिले हैं। वह इस बात से भी असहमत थे कि अंदरूनी गर्भस्थल एक विवादित साइट था। अब यह विवादित जरूर हो गया था क्योंकि कानून के शासन के विरोध में जाकर उसे वहां से हटाने के कितने प्रयास किए गए।

(इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के आधार पर।)

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