चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा है कि किसी देश में लोकतंत्र बचे रहने के लिए मीडिया को आज़ाद होना चाहिए। उन्होंने कहा कि जब प्रेस को सत्ता से सच बोलने और सत्ता से कड़े सवाल पूछने से रोका जाता है तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि फर्जी खबरें लोकतांत्रिक मूल्यों को खतरे में डाल सकती हैं। फर्जी खबरों से कई बड़ी घटनाएं सामने आ चुकी हैं जो किसी से छुपी नहीं हैं। इसे लेकर सरकार से सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि फर्जी खबरें समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकती हैं और इस तरह लोकतांत्रिक मूल्यों को भी खतरे में डाल सकती हैं।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ पत्रकारिता में उत्कृष्टता के लिए दिए जाने वाले रामनाथ गोयनका पुरस्कार समारोह में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि सुचारू और स्वस्थ लोकतंत्र को पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए। उन्होंने सामाजिक सामंजस्य और राजनीतिक सक्रियता में स्थानीय व समुदाय आधारित पत्रकारिता की भूमिका पर भी जोर दिया।
रामनाथ गोयनका फाउंडेशन के सहयोग से इंडियन एक्सप्रेस द्वारा आयोजित पत्रकारिता पुरस्कारों में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “मीडिया राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है और इस प्रकार, हमारे लोकतंत्र का एक अभिन्न अंग है।”
एक सुचारू और स्वस्थ लोकतंत्र को एक ऐसी संस्था के रूप में पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए जो प्रतिष्ठान से कड़े सवाल पूछ सके या जैसा कि आमतौर पर कहा जाता है, ‘सत्ता से सच बोले’। जब प्रेस को ठीक ऐसा करने से रोका जाता है तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता किया जाता है। यदि किसी देश को लोकतांत्रिक बने रहना है तो प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए और हम कोई अपवाद नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कई निर्णयों में पत्रकारों के अधिकारों पर जोर दिया है। इसने माना है कि भारत की स्वतंत्रता तब तक सुरक्षित रहेगी जब तक कि पत्रकार प्रतिशोध के ख़तरे से डरे बिना सत्ता से सच बोलते रहेंगे।
चीफ जस्टिस ने कहा कि सभी समाज अनिवार्य रूप से सुप्त, सुस्त और उन समस्याओं के प्रति इम्युन हो जाते हैं जिससे वे ग्रसित होते हैं, लेकिन पत्रकारिता ने समाज को उसकी सामूहिक जड़ता से बाहर निकाला।
उन्होंने ‘मी टू’ अभियान का हवाला दिया। उन्होंने राजधानी दिल्ली में निर्भया के जघन्य गैंगरेप और हत्या पर कवरेज का हवाला देते हुए कहा कि मीडिया रिपोर्टों ने व्यापक विरोध और बाद में आपराधिक कानून में महत्वपूर्ण सुधारों को लाने में अहम योगदान दिया। दिन-प्रतिदिन के आधार पर समाचार संसद और राज्यों की विधानसभाओं में प्रश्नों और चर्चाओं को प्रेरित करते हैं।
उन्होंने कहा कि यह एक समय था, जब इलेक्ट्रॉनिक, प्रिंट और सोशल मीडिया ने आम जनता को प्रासंगिक जानकारी प्रसारित करने में राज्य की सहायता की थी। इतना ही नहीं, मीडिया ने भी प्रशासनिक खामियों और ज्यादतियों को उजागर करने में अहम भूमिका निभाई।
उन्होंने स्थानीय सच्चाई को उजागर करने में समुदाय आधारित पत्रकारिता के महत्व के बारे में भी बताया। उन्होंने कहा कि इस तरह की पत्रकारिता न केवल शिक्षित नागरिकों को बल्कि स्थानीय मुद्दों और चिंताओं को भी उठाती है और नीति निर्माण के स्तर पर उन मुद्दों पर बहस के लिए एजेंडा तय करती है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि भारत के पास समाचार पत्रों की एक महान विरासत है जिसने सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में काम किया है। स्वतंत्रता से पहले समाज सुधारक और राजनीतिक कार्यकर्ता जागरूकता बढ़ाने के लिए अखबार चलाते थे। उन्होंने डॉ.बीआर आंबेडकर के मूक नायक, बहिष्कृत भारत, जनता और प्रबुद्ध भारत का हवाला दिया।
चीफ जस्टिस ने कहा कि हम उस दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकते हैं जो एक पत्रकार ने अपनाया है या जिस निष्कर्ष पर वे पहुंचे हैं। मैं खुद को कई पत्रकारों से असहमत पाता हूं क्योंकि आखिर हममें से कौन अन्य सभी लोगों से सहमत है?’ उन्होंने कहा कि लेकिन यह असहमति नफरत में नहीं बदलनी चाहिए और न ही हिंसा में।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने जिम्मेदार पत्रकारिता को देश का इंजन बताया जो लोकतंत्र को बेहतर भविष्य की ओर ले जाता है। उन्होंने कहा कि जिम्मेदार पत्रकारिता वह इंजन है जो लोकतंत्र को बेहतर कल की ओर ले जाती है। डिजिटल युग में पत्रकारों के लिए अपनी रिपोर्टिंग में सटीक, निष्पक्ष, जिम्मेदार और निडर होना पहले से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण है।
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने आपातकाल के दौर का जिक्र भी किया। उन्होंने कहा कि आपातकाल के समय इंडियन एक्सप्रेस ने ‘ओप-एड’ के कोरे पन्ने छापे। साथ ही कहा कि यह एक अनुस्मारक है कि मौन कितना शक्तिशाली है। उन्होंने कहा कि जब प्रेस को सत्ता के सामने सच बोलने से रोका जाता है तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता हो जाता है।
उन्होंने कहा कि देश को लोकतांत्रिक बने रहने के लिए प्रेस को स्वतंत्र रहना चाहिए। समाचार पत्रों ने ऐतिहासिक रूप से सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन के उत्प्रेरक के रूप में काम किया है। उन्होंने कहा कि एक व्यापक तथ्यों की जांच का तंत्र होना चाहिए क्योंकि नकली समाचार मार्गदर्शन में गुमराह कर सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने फिर जाहिर की नाराजगी,
सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच खींचतान जारी है। उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए भेजे गये नामों को केंद्र की ओर से रोककर रखने पर चिंता जताई है। उसने कहा है कि इससे उम्मीदवारों की वरिष्ठता पर असर पड़ता है। कॉलेजियम ने सरकार से कहा कि जिन नामों की पहले सिफारिश की जा चुकी है, उन्हें पदोन्नत करने के लिए आवश्यक कार्रवाई की जाए।
चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाले कॉलेजियम ने कहा कि जिन नामों की पहले सिफारिश की गयी है, उनकी पदोन्नति के लिए अधिसूचना जल्द से जल्द जारी की जानी चाहिए। कॉलेजियम ने 21 मार्च के एक प्रस्ताव में यह चिंता जताई, जिसमें उसने मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के लिए जिला अदालतों के चार न्यायाधीशों के नाम की सिफारिश की है। कॉलेजियम में न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति के.एम.जोसफ भी शामिल हैं।
कॉलेजियम ने आर शक्तिवेल, पी धनबल, चिन्नासामी कुमारप्पन और के.राजशेखर के नाम की सिफारिश की। प्रस्ताव के अनुसार, ‘17 जनवरी 2023 के अपने प्रस्ताव द्वारा उच्चतम न्यायालय के कॉलेजियम ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष अधिवक्ता के रूप में प्रैक्टिस कर रहे रामास्वामी नीलकंदन की उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की सिफारिश की थी और 31 मार्च, 2023 तक की स्थिति के अनुसार रामास्वामी नीलकंदन की आयु 48.07 वर्ष थी, जबकि उस समय के. राजशेखर की आयु 47.09 वर्ष थी।’
कॉलेजियम ने कहा कि बार के सदस्य नीलकंदन के नाम की सिफारिश पहले की जा चुकी है और राजशेखर की नियुक्ति से पहले उन्हें नियुक्त किया जाना चाहिए था अन्यथा नीलकंदन से कनिष्ठ एवं न्यायिक अधिकारी राजशेखर वरिष्ठता क्रम में उनसे ऊपर हो जाएंगे। वरिष्ठता में इस तरह का विचलन अनुचित और स्थापित परिपाटी के विरुद्ध है।’
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार एवं कानून के जानकार हैं।)
आपके वरिष्ठ पत्रकार की बातों से सहमत नही। केजरीवाल और हेमंत या अन्य विपक्षियों की न्यायालय के जजमेंट पर टिप्पणी इस बात को दर्शाता है की ये खुद ही ऐसी बातों को कहता रहता है।और डर है कि इन्हे भी इस बात का सामना करना पड़ेगा। विरोध नीतियों की होनी चाहिए, व्यक्ति विशेष की या समुदाय पर नहीं।
ये पत्रकार महोदय कांग्रेस की मानसिकता से पीड़ित है। किसी को भी किसी समुदाय पर गलत बात कहने का कोई अधिकार नहीं है।ये पत्रकार महोदय राहुल के गलत बयानी को जस्टिफाई कर रहे हैं
भारत नेहरू खानदान का कोई जागीर नहीं है।
जो गलत करेगा वो भुगतेगा ही।