बनारस। झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की दूसरी सिविल सेवा परीक्षा में हुए नियुक्ति घोटाले ने शिक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था को शर्मसार कर दिया। एक संगठित सिंडिकेट ने योजनाबद्ध तरीके से इस घोटाले को अंजाम दिया, जिसमें उत्तर पुस्तिकाओं की जांच में हेरफेर और इंटरव्यू में चहेते उम्मीदवारों के लिए नियुक्ति का रास्ता खोला गया।
खास बात यह है कि इस घोटाले में सबसे अधिक तादाद वाराणसी स्थित महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के शिक्षकों की रही। इन शिक्षकों ने उत्तर पुस्तिकाओं में अंकों की हेराफेरी और साक्षात्कार प्रक्रिया में पक्षपात कर अयोग्य उम्मीदवारों को उच्च पदों पर नियुक्त करने में मदद की।
सीबीआई ने झारखंड उच्च न्यायालय के 2012 के आदेश के तहत इस मामले की जांच शुरू की थी, जो 12 साल तक चली। जांच के दौरान 60 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया गया, जिसमें 28 परीक्षार्थी, 6 तत्कालीन पदाधिकारी, और 25 परीक्षक शामिल थे।
यह खुलासा हुआ कि चयनित उम्मीदवारों में राजनेताओं, नौकरशाहों और विधायकों के रिश्तेदार शामिल थे। फोरेंसिक विश्लेषण से यह भी स्पष्ट हुआ कि कई उम्मीदवार बिना लिखित उत्तर पुस्तिकाओं के ही अफसर बन गए, जिससे परीक्षा प्रक्रिया की पारदर्शिता पूरी तरह ध्वस्त हो गई।
सीबीआई ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की दूसरी सिविल सेवा परीक्षा में हुए नियुक्ति घोटाले की जांच पूरी कर 60 लोगों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया है। इस मामले में 28 परीक्षार्थी, आयोग के 6 तत्कालीन पदाधिकारी, 25 परीक्षक और मेसर्स एनसीसीएफ के एक प्रतिनिधि को आरोपी बनाया गया है।
आरोप पत्र में शामिल परीक्षार्थियों में आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्य, विधायक, पूर्व मंत्री और वकीलों के रिश्तेदारों के नाम भी दर्ज हैं। यह आरोपपत्र झारखंड उच्च न्यायालय के 2012 के आदेश के तहत दर्ज मामले की 12 साल लंबी जांच के बाद दाखिल किया गया है।
2012 में हुआ था नियुक्ति घोटाला
झारखंड के अलग राज्य बनने के बाद जेपीएससी की पहली और दूसरी सिविल सेवा परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधली का आरोप लगा था। जांच में यह बात सामने आई कि कई उम्मीदवार बिना उत्तर पुस्तिकाओं में लिखे ही अफसर बन गए।
शुरू में इस मामले की जांच भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा की जा रही थी, लेकिन 2012 में झारखंड हाईकोर्ट ने जांच का जिम्मा सीबीआई को सौंप दिया। इन शिकायतों में आरोप लगाया गया था कि परीक्षा प्रक्रिया में हेरफेर कर अयोग्य उम्मीदवारों को चयनित किया गया। इसके तहत डिप्टी कलेक्टर, पुलिस उपाधीक्षक (डीएसपी), विक्रय कर अधिकारी जैसे उच्च पदों पर नियुक्तियां की गईं।
सीबीआई ने जेपीएससी प्रथम के 62 और द्वितीय के 172 अधिकारियों की नियुक्तियों की जांच शुरू की। यह जांच 12 वर्षों तक चली और इसके दौरान फोरेंसिक विश्लेषण से यह स्पष्ट हुआ कि उत्तर पुस्तिकाओं में अंकों की हेरफेर की गई थी। राजनेताओं और नौकरशाहों के रिश्तेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाने के सबूत भी मिले।
जेपीएससी प्रथम का परिणाम 2004 में और द्वितीय का 2008 में घोषित किया गया था। गड़बड़ी के आरोप सामने आने के बाद राज्य सरकार ने निगरानी विभाग को जांच का जिम्मा सौंपा, लेकिन जल्द ही हाईकोर्ट में इस मामले की सीबीआई जांच की मांग को लेकर जनहित याचिकाएं दायर की गईं।
हाईकोर्ट के तत्कालीन जस्टिस एन. तिवारी ने 2012 में प्रथम बैच के 20 अधिकारियों के वेतन और पदों पर रोक लगा दी थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए अधिकारियों को बहाल कर दिया था।
इसके बाद 2017 में झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की, जिसके बाद मामले की सीबीआई जांच को फिर से शुरू किया गया। जांच में पाया गया कि परीक्षा प्रक्रिया में व्यापक स्तर पर अनियमितताएं की गईं।
उत्तर पुस्तिकाओं में नंबर काटकर बढ़ाए गए, और कुछ उम्मीदवारों को फर्जी दस्तावेजों के आधार पर चयनित किया गया। सीबीआई ने इस मामले में संगीन धाराओं में में आरोप दर्ज किए हैं।
12 साल बाद आरोप-पत्र दाखिल
जेपीएससी-2 का यह मामला न्यायिक विवादों में उलझा रहा, जिससे जांच में काफी देरी हुई। सीबीआई ने 12 वर्षों की लंबी जांच के बाद आरोप पत्र दाखिल किया। इसमें भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 420 (धोखाधड़ी), 120बी (आपराधिक साजिश) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(2) सहपठित धारा 13(1)(डी) के तहत कार्रवाई की सिफारिश की गई है।
जांच में यह स्पष्ट हुआ कि तत्कालीन जेपीएससी अधिकारियों, परीक्षकों और परीक्षार्थियों ने सुनियोजित साजिश के तहत अयोग्य उम्मीदवारों को सफल घोषित किया। सीबीआई ने इस मामले में वैज्ञानिक तरीकों का उपयोग करते हुए जांच को अंजाम दिया।
परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिकाओं की फोरेंसिक जांच कराई गई, जिसमें पाया गया कि अयोग्य उम्मीदवारों की उत्तर पुस्तिकाओं में दिए गए अंकों को काटकर बढ़ाया गया था। फोरेंसिक रिपोर्ट में यह भी खुलासा हुआ कि परीक्षकों ने साक्षात्कार और लिखित परीक्षा में अयोग्य परीक्षार्थियों को अधिक अंक देने की साजिश की थी।
चौंकाने वाली बात यह है कि आरोपितों में शामिल कुछ लोग अब महत्वपूर्ण पदों पर आसीन हैं। तत्कालीन परीक्षार्थियों में से कई आज एडीएम (अपर जिला मजिस्ट्रेट) के रूप में कार्यरत हैं, तो कुछ डीएसपी (पुलिस उपाधीक्षक) से एसपी (पुलिस अधीक्षक) पद तक प्रोन्नत हो चुके हैं। सीबीआई ने झारखंड सरकार से इन 31 सरकारी अधिकारियों के खिलाफ अभियोजन स्वीकृति की मांग की है।
सत्ताधारी लोगों के करीबी भी आरोपी
जांच के दौरान, आरोपित परीक्षार्थियों को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया गया। उन्हें समन भेजकर बुलाया गया और उनकी उत्तर पुस्तिकाओं में की गई ओवरराइटिंग और काट-छांट पर उनका पक्ष सुना गया। फोरेंसिक जांच और परीक्षकों के बयानों के आधार पर 28 परीक्षार्थियों और 25 परीक्षकों के खिलाफ आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता के आरोप लगाए गए।
जांच में यह भी पता चला कि आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्य और नेताओं के करीबी रिश्तेदारों को जालसाजी के माध्यम से सफल घोषित किया गया और उन्हें महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करने की अनुशंसा की गई।
परीक्षा के दौरान कंप्यूटर से जुड़े कार्यों का जिम्मा मेसर्स एनसीसीएफ को दिया गया था। जांच में पाया गया कि एनसीसीएफ के प्रतिनिधि धीरज कुमार ने इस जालसाजी में सक्रिय भूमिका निभाई और अपने रिश्तेदार संजीव सिंह को अवैध तरीके से सफल घोषित कराया।
झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की दूसरी सिविल सेवा परीक्षा में हुए नियुक्ति घोटाले में प्रभावशाली व्यक्तियों के अयोग्य रिश्तेदारों को महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त किया गया। सीबीआई की जांच में यह खुलासा हुआ कि कैसे प्रभावशाली व्यक्तियों ने अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करते हुए नियमों को ताक पर रखकर अपने रिश्तेदारों को सरकारी पदों पर नियुक्त कराया।
प्रभावशाली लोगों के अयोग्य रिश्तेदार
जेपीएससी भर्ती घोटाले की जांच में यह सामने आया कि कई प्रभावशाली व्यक्तियों ने अपने पद और शक्ति का दुरुपयोग करते हुए अपने अयोग्य रिश्तेदारों को उच्च पदों पर नियुक्त करवाया। इनमें तत्कालीन जेपीएससी अध्यक्ष गोपाल प्रसाद सिंह ने अपने पुत्र रजनीश कुमार और कुंदन कुमार सिंह को नियुक्त करवाया। जेपीएससी की तत्कालीन सदस्य शांति देवी ने अपने भाई विनोद राम को फायदा पहुंचाया। इसी तरह, तत्कालीन सदस्य राधा गोविंद नागेश ने अपनी पुत्री मौसमी नागेश को चयनित करवाने में भूमिका निभाई।
झारखंड के पूर्व मंत्री सुदेश महतो ने अपने भाई मुकेश कुमार महतो को नियुक्त करवाया, जबकि विधायक राधा कृष्ण किशोर ने अपने भाई राधा प्रेम किशोर को इस साजिश का लाभ पहुंचाया। इसी प्रकार, अधिवक्ता अनिल सिन्हा ने अपने भतीजे रोहित सिन्हा को परीक्षा में सफल घोषित करवाया। अन्नपूर्णा देवी ने अपने बड़ी बहन के देवर रामकृष्ण कुमार को फायदा पहुंचाया। इसके अलावा, मेसर्स एनसीसीएफ के प्रतिनिधि ने अपने भाई संजीव कुमार सिंह को भी इस घोटाले के माध्यम से नियुक्त करवाया।
झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षाओं में हुए व्यापक भ्रष्टाचार और गड़बड़ी के मामले में शिक्षकों और परीक्षकों की भूमिका ने शिक्षा जगत को झकझोर कर रख दिया। इन परीक्षाओं में उत्तर पुस्तिकाओं के अंकों की हेरफेर, साक्षात्कार में पक्षपात और अयोग्य उम्मीदवारों को चयनित करने में शामिल शिक्षकों की सूची में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ (वाराणसी) के कई वरिष्ठ शिक्षकों और रिटायर्ड प्रोफेसरों का नाम सामने आया है।
खास बात यह है कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के जिन शिक्षकों को सीबीआई ने अभियुक्त बनाया है उनमें अधिकांश को सत्तारूढ़ दल बीजेपी का अलंबरदार माना जाता रहा है। सत्तारूढ़ दल के प्रभाव के चलते ही सीबीआई को इस मामले में आरोप-पत्र दाखिल करने में 12 साल लग गए। बनारस के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ की गिनती उन विश्वविद्यालयों में होती है जहां आजादी के आंदोलन के समय महात्मा गांधी और आजादी के दूसरे रणबांकुरे ठहरा करते थे। आजादी के कई दशक बाद इस विश्वविद्यालय में ऐसे तमाम शिक्षकों की अवैध तरीके से नियुक्तियां कर दी गई, जिनका पढ़ाई-लिखाई और विद्यवता से दूर-दूर तक का सरोकार नहीं था। जिन्हें हिन्दी का व्याकरण तक नहीं आता था वो यहां प्रोफेसर और नेता बन गए।
काशी विद्यापीठ के आरोपित शिक्षक
प्रोफेसर नंदलाल: राजनीति शास्त्र विभाग के पूर्व अध्यक्ष और इंटरव्यू एक्सपर्ट।
डॉ. योगेंद्र सिंह: इतिहास विभाग के प्रोफेसर और बलिया स्थित चंद्रशेखर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे, अब रिटायर हो चुके हैं।
डॉ. मुनींद्र कुमार तिवारी: हिंदी विभाग के रीडर, अब रिटायर्ड।
डॉ. शिव बहादुर सिंह: यूपी कॉलेज, वाराणसी के शिक्षक।
प्रो. रघुवीर सिंह तोमर: राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर, अब रिटायर्ड।
प्रो. सुधीर कुमार शुक्ला: कॉमर्स विभाग के प्रोफेसर, मौजूदा समय में इसी विभाग के डीन रहे हैं।
प्रो. अमरनाथ सिंह: समाज कार्य विभाग के पूर्व अध्यक्ष और डीन, अब रिटायर्ड।
डॉ. दीनानाथ सिंह: राजनीति शास्त्र के रीडर, रिटायर्ड।
डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह: अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, अब रिटायर्ड।
डॉ. रवि प्रकाश पांडेय: समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, अब रिटायर।
डॉ. बंशीधर पांडेय: वर्धा केंद्रीय विश्वविद्यालय में सोशल वर्क विभाग के प्रोफेसर और हेड। वह पहले काशी विद्यापीठ में प्रोफेसर और परीक्षा नियंत्रक थे।
प्रो. दिवाकर लाल श्रीवास्तव: इतिहास विभाग के प्रोफेसर, रिटायर्ड।
प्रो. प्रदीप कुमार पांडेय: अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष, अब रिटायर।
डॉ. मधुसूदन मिश्रा: अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर (अब निधन हो चुका)।
डॉ. सभाजीत सिंह यादव: दर्शन शास्त्र विभाग के प्रोफेसर, अब रिटायर्ड।
डॉ. शशि देवी सिंह: दर्शन शास्त्र विभाग की पूर्व हेड और डीन, अब रिटायर्ड।
प्रो. महेंद्र मोहन वर्मा: समाज कार्य विभाग के मौजूदा अध्यक्ष और डीन।
अन्य आरोपित शिक्षक
डॉ.ओम प्रकाश सिंह: परीक्षक
प्रो. ओंकारनाथ सिंह: बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर और इतिहास विभाग के प्रोफेसर।
प्रो. सोहन राम: बीएचयू में समाजशास्त्र विभाग के प्रोफेसर।
प्रो. तुलसी नारायण मुंडा: इंटरव्यू बोर्ड के सदस्य।
अलबर्ट टोप्पो: इंटरव्यू पैनल एक्सपर्ट।
पूर्व निदेशक प्रो. ओम प्रकाश सिंह पर झूठे आरोप: दी कानूनी चेतावनी
वाराणसी के महामना मदन मोहन मालवीय पत्रकारिता संस्थान, काशी विद्यापीठ के पूर्व निदेशक और प्रोफेसर (सेवानिवृत्त) ओम प्रकाश सिंह ने झारखंड पीसीएस घोटाले से अपना नाम जोड़ने पर कड़ी आपत्ति जताई है। उन्होंने इसे उनकी छवि को खराब करने का एक सुनियोजित प्रयास बताया है।
प्रो. सिंह ने स्पष्ट किया कि उनका झारखंड पीसीएस से कोई संबंध नहीं है। उन्होंने कहा, “मैं कभी भी झारखंड पीसीएस में परीक्षक नहीं रहा हूं और न ही मुझे इस संबंध में सिगरा थाने या सीबीआई से कोई नोटिस प्राप्त हुई है।”
उन्होंने आगे कहा कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान तमाम भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच कराई और उन्हें दंडित कराया। उन्होंने कहा, “यही कारण है कि मेरी छवि को खराब करने के लिए मेरा नाम झूठे घोटाले में घसीटा जा रहा है।”
प्रो. सिंह ने सोशल मीडिया और अन्य माध्यमों पर झूठी अफवाहें फैलाने वालों के खिलाफ सख्त कानूनी कार्रवाई की चेतावनी दी है। उन्होंने कहा कि जो कोई इस प्रकार की झूठी सूचना का प्रचार-प्रसार करता है, वह मानहानि और साजिश रचने का दोषी होगा।
प्रो. सिंह ने कहा कि यदि किसी ने झूठी खबर प्रकाशित या प्रसारित की है, तो उसे तुरंत खंडन करना और सामग्री को हटाना अनिवार्य है। ऐसा न करने पर दोषी व्यक्ति के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। उन्होंने लोगों से अपील की है कि वे इन झूठी अफवाहों पर ध्यान न दें और सत्य की जांच करें।
आरोपित परीक्षार्थियों की सूची
जेपीएससी परीक्षाओं में अयोग्य पाए गए और धांधली के जरिए चयनित किए गए परीक्षार्थियों की सूची भी जांच के दौरान सामने आई। इन उम्मीदवारों में प्रभावशाली व्यक्तियों और अधिकारियों के करीबी शामिल हैं:
राधा प्रेम किशोर, विनोद राम, हरिशंकर बड़ाइक, हरिहर सिंह मुंडा, रवि कुमार कुजूर, मुकेश कुमार महतो, कुंदन कुमार सिंह, मौसमी नागेश, राधा गोविंद नागेश, कानू रान नाग, प्रकाश कुमार, संगीता कुमारी, रजनीश कुमार, शिवेंद्र, संतोष कुमार चौधरी, रोहित सिन्हा, शैलेंद्र कुमार श्रीवास्तव, अमित कुमार, राहुल जी आनंद जी, इंद्रजीत सिंह, शिशिर कुमार सिंह, राजीव कुमार सिंह, रामकृष्ण कुमार, प्रमोद राम, अरविंद कुमार सिंह, विकास कुमार पांडेय, मनोज कुमार, सुदामा कुमार, और कुमुद कुमार। सूत्र बताते हैं कि सीबीआई के चार्जशीट दाखिल करने के बाद अवैध रूप से भर्ती किए गए अभ्यर्थियों को बर्खास्त कर दिया गया है। उल्लेखनीय यह भी है कि सीबीआई जांच से पहले इसकी गहन पड़ताल झारखंड की विजिलेंस विभाग ने भी किया था और इन सभी को कसूरवार ठहराया था।
जांच में वैज्ञानिक विधियों का सहारा लिया गया। उत्तर पुस्तिकाओं की फोरेंसिक जांच में नंबरों की ओवरराइटिंग और कटिंग की पुष्टि हुई। साक्षात्कार और उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में धांधली करने वाले परीक्षकों और बोर्ड के सदस्यों के खिलाफ भी साक्ष्य मिले।
वाराणसी के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के इतिहास विभाग के प्रोफेसर रहे परमानंद सिंह ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की दूसरी सिविल सेवा परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाएं जांचने का जिम्मा लिया था। इस विश्वविद्यालय के शिक्षकों का कहना है कि साजिश में उनकी कोई भूमिका नहीं थी। उनका गुनाह सिर्फ इतना था कि वे कापी जांचने चले गए थे। उन्हें तो पता ही नहीं था कि हेराफेरी किसने और क्यों की? और इधर सूत्रों का कहना है कि हॉल में कॉपी जांचते वक्त चाय कॉफी नाश्ता भी चल रहा था और किसी प्रकार की गोपनीयता नहीं रखी गई थी। परीक्षा कॉपी जांच की सुचिता भी नहीं रखी गई थी।
काशी विद्यापीठ में समाज कार्य विभाग के मौजूदा अध्यक्ष और डीन प्रो. महेंद्र मोहन वर्मा को सीबीआई ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) भ्रष्टाचार के मामले में मुल्जिम बनाए गए हैं। इनकी गिनती योग्य और ईमानदार शिक्षकों में होती है। ‘जनचौक’ से बातचीत में उन्होंने साफ-साफ कहा, “प्रोफेसर परमानंद सिंह ने ही हमें कापी जांचने के लिए बुलवाया था। उनके कहने पर हमने सिर्फ 95 कापियां जांची थी, जिसके एवज में कुल 960 रुपये मिले थे। हम बेकुसूर होकर भी मुल्जिम बन गए हैं। सीबीआई जांच ने हमारी मुश्किलें बढ़ा दी हैं। प्रो.परमनंद सिंह खुद स्वर्गवासी हो गए और हम लोगों को फंसा गए।”
सीबीआई को स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश
झारखंड हाइकोर्ट ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) की प्रथम और द्वितीय संयुक्त सिविल सेवा प्रतियोगिता समेत कुल 12 परीक्षाओं में गड़बड़ी से संबंधित मामलों पर दायर जनहित याचिकाओं की सुनवाई करते हुए सीबीआई को तीन सप्ताह के भीतर स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया है।
जस्टिस रंगन मुखोपाध्याय और जस्टिस अरुण कुमार राय की खंडपीठ ने प्रार्थी पक्षों की दलीलें सुनने के बाद यह आदेश दिया। मामले की अगली सुनवाई के लिए 15 जनवरी 2025 की तारीख निर्धारित की गई है। खंडपीठ ने कहा कि सीबीआई इस मामले में अपनी प्रगति रिपोर्ट जल्द से जल्द कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करे।
सुनवाई के दौरान सीबीआई ने मौखिक रूप से जानकारी दी कि प्रथम और द्वितीय जेपीएससी सिविल सेवा परीक्षाओं में गड़बड़ी से संबंधित मामलों में आरसी-5/2012 और आरसी-6/2012 के तहत आरोप पत्र दाखिल कर दिया गया है।
इस मामले में प्रार्थी बुद्धदेव उरांव और पवन कुमार चौधरी ने अलग-अलग जनहित याचिकाएं दायर की हैं। याचिकाओं में जेपीएससी द्वारा आयोजित सिविल सेवा प्रतियोगिता परीक्षाओं में व्यापक स्तर पर धांधली और गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए सीबीआई जांच की मांग की गई थी।
इस सुनवाई में जेपीएससी की ओर से अधिवक्ता संजय पिपरावाल और अधिवक्ता प्रिंस कुमार ने अदालत में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। उन्होंने अदालत को बताया कि आयोग ने इस मामले में पूर्ण पारदर्शिता के साथ सभी आवश्यक जानकारी सीबीआई को उपलब्ध कराई है।
जेपीएससी की प्रथम और द्वितीय सिविल सेवा परीक्षाएं लंबे समय से विवादों में रही हैं। याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि इन परीक्षाओं में बड़े पैमाने पर धांधली और अयोग्य व्यक्तियों को सफल घोषित किया गया। इसके कारण योग्य उम्मीदवारों के भविष्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। हाइकोर्ट के आदेश के बाद सीबीआई ने इस मामले की जांच शुरू की थी, और अब तक कई महत्वपूर्ण खुलासे हुए हैं।
सीबीआई ने जिन दो प्राथमिकियों (आरसी-5/2012 और आरसी-6/2012) के तहत आरोप पत्र दायर किए हैं, उनमें परीक्षा प्रक्रिया में धांधली, अंकों में हेरफेर, और अयोग्य उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाने की बात कही गई है। अब हाइकोर्ट में स्टेटस रिपोर्ट दाखिल होने के बाद यह तय होगा कि मामले में आगे की कार्रवाई कैसे होगी।
घटनाक्रम का विवरण
2004:
जेपीएससी प्रथम सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इसके बाद बड़े पैमाने पर गड़बड़ी के आरोप सामने आए।
2008:
जेपीएससी द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा का परिणाम घोषित किया गया। इस परीक्षा में भी धांधली के आरोप लगे।
2012:
झारखंड हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो द्वारा की गई जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए इस मामले की जांच सीबीआई को सौंपने का आदेश दिया।
2014:
हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ एक उम्मीदवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश पर रोक लगाते हुए उम्मीदवार को बहाल रखने का निर्देश दिया।
2017:
झारखंड सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर की। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सीबीआई जांच को हरी झंडी दे दी।
2024:
12 साल की लंबी जांच के बाद सीबीआई ने 39 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की।
जांच के मुख्य निष्कर्ष
सीबीआई की जांच में यह तथ्य सामने आया कि परीक्षा प्रक्रिया में राजनेताओं और नौकरशाहों के रिश्तेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
उत्तर पुस्तिकाओं का फोरेंसिक विश्लेषण:
उत्तर पुस्तिकाओं में अंकों की छेड़छाड़ और हेरफेर की पुष्टि हुई।
अधिकारियों की भूमिका:
जेपीएससी के तत्कालीन अध्यक्ष, सदस्य और अन्य अधिकारियों ने जालसाजी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
भ्रष्टाचार के सबूत:
1-चयन प्रक्रिया में जालसाजी और फर्जी दस्तावेजों का उपयोग हुआ।
2-सीबीआई ने साठ लोगों को दोषी पाया और आरोपितों के खिलाफ संगीन धाराएं लगाईं।
3-सीबीआई ने भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए हैं। इनमें शामिल हैं:
4-धारा 420: धोखाधड़ी
5-धारा 467: जालसाजी
6-धारा 468: धोखाधड़ी के लिए जालसाजी
7-धारा 471: जाली दस्तावेजों का उपयोग
8-भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 13(2) और 13(1)(डी): सरकारी पद का दुरुपयोग
आयोग पर लगे मुख्य आरोप:
1-प्रारंभिक और मुख्य परीक्षाओं के अंकों में हेराफेरी।
2-उत्तर पुस्तिकाओं में नंबर काटकर बढ़ाने और जालसाजी करने के सबूत।
3-चयनित उम्मीदवारों में आयोग के अधिकारियों, राजनेताओं, वरिष्ठ आईएएस और विधि अधिकारियों के रिश्तेदारों को अनुचित लाभ पहुंचाना।
गड़बड़ी का तरीका
1-सीबीआई जांच के अनुसार, इस घोटाले में व्यापक स्तर पर अनियमितताएं की गईं।
2-उत्तर पुस्तिकाओं की फोरेंसिक जांच में अंकों को काटकर बढ़ाए जाने और ओवरराइटिंग के सबूत मिले।
3-साक्षात्कार के अंकों में हेरफेर कर उम्मीदवारों को अनुचित लाभ दिया गया।
4-जांच के दौरान यह भी पाया गया कि चयनित उम्मीदवारों में कई अयोग्य थे, जिनकी उत्तर पुस्तिकाएं खाली थीं या उत्तर गलत थे।
समाज और प्रशासन पर प्रभाव
रांची से प्रकाशित होने वाले सुभम संदेश के सुरजीत कहते हैं, “यह घोटाला न केवल प्रशासनिक नैतिकता को झकझोरने वाला है, बल्कि इससे यह भी स्पष्ट होता है कि कैसे भ्रष्टाचार और साजिश के माध्यम से ऊंची पहुंच के लोग अयोग्य उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाते हैं। इससे प्रशासनिक पदों पर काबिज होने वाले अधिकारियों की कार्यक्षमता और पारदर्शिता पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं। सीबीआई द्वारा दायर यह आरोप पत्र न केवल न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, बल्कि यह संकेत भी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में देरी हो सकती है, पर न्याय सुनिश्चित किया जा सकता है। अब यह देखना होगा कि अदालत इस मामले में क्या फैसला सुनाती है और दोषियों को क्या सजा मिलती है।”
“जेपीएससी-2 नियुक्ति घोटाले ने न केवल झारखंड के प्रशासनिक तंत्र को कलंकित किया, बल्कि यह भी दिखाया कि किस प्रकार भ्रष्टाचार और सत्ताधारी वर्ग के प्रभाव से योग्य उम्मीदवारों का हक छीना गया। इस मामले में सीबीआई द्वारा की गई कार्रवाई भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में एक चेतावनी है। अब यह देखना होगा कि अदालत इन आरोपितों के खिलाफ क्या निर्णय लेती है। यह मामला झारखंड की प्रशासनिक पारदर्शिता और निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े करता है। न्यायालय के इस आदेश से यह उम्मीद जगी है कि गड़बड़ी के दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रभावी कदम उठाए जाएंगे।”
सुरजीत यह भी कहते हैं, “सीबीआई ने इस मामले में जो जांच-पड़ताल की है, उसमें कम गड़बड़ियां पकड़ी गई हैं, जबकि गोलमाल इससे भी कई गुना ज्यादा हुआ है। इस प्रकरण में चीजें जहां गई, वहीं से खेल शुरू हो गया। सीबीआई की चार्जशीट दाखिल होने के बाद यह उम्मीद जगी है कि दोषियों को न्यायिक प्रक्रिया के तहत सजा मिलेगी और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाएंगे। सीबीआई की यह कार्रवाई राज्य में निष्पक्ष प्रशासनिक प्रक्रिया बहाल करने की दिशा में एक अहम कदम मानी जा रही है। यह मामला झारखंड के प्रशासनिक ढांचे में भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर करता है।”
“जेपीएससी भर्ती घोटाला न केवल शिक्षा और प्रशासनिक प्रणाली में भ्रष्टाचार की गंभीरता को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे एक सुव्यवस्थित साजिश के तहत योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन किया गया। महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ और अन्य प्रतिष्ठित संस्थानों के शिक्षकों की संलिप्तता ने यह सवाल खड़ा किया है कि शैक्षिक संस्थानों में नैतिकता और पारदर्शिता को कैसे सुनिश्चित किया जाए? “
झारखंड के वरिष्ठ पत्रकार आनंद सिंह कहते हैं, “जेपीएससी परीक्षा घोटाला झारखंड के प्रशासनिक इतिहास पर एक काले धब्बे की तरह है। यह मामला न केवल प्रशासनिक प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि कैसे भ्रष्टाचार और सत्ताधारी वर्ग के प्रभाव ने योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन किया। सीबीआई का यह कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ एक महत्वपूर्ण संदेश है और राज्य में निष्पक्ष प्रशासनिक प्रक्रिया को बहाल करने की दिशा में एक ठोस प्रयास के रूप में देखा जा रहा है। इस मामले की जांच और दोषियों को सजा देने की प्रक्रिया शिक्षा और प्रशासनिक सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकती है।”
परीक्षा की विश्वसनीयता पर सवाल
वरिष्ठ पत्रकार राजीव सिंह कहतें हैं, “काशी विद्यापीठ के जिन शिक्षकों को सीबीआई ने अपने शिकंजे में लिया है वो जरूर कसूरवार रहे होंगे। जांच की रफ्तार बेहद धीमी रही। जाहिर है कि सत्तारूढ़ दल का दबाव रहा होगा। जिन शिक्षकों सीबीआई ने दोषी माना है उनकी गिरफ्तारी की तलवार लटक रही है। सीबीआई की चार्जशीट दाखिल होने के बाद अब यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि न्यायालय इस पर क्या निर्णय लेता है और दोषियों के खिलाफ क्या कार्रवाई की जाती है।”
“सीबीआई का यह कदम झारखंड में निष्पक्ष और पारदर्शी प्रशासनिक प्रक्रियाओं को स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। यह घोटाला एक सबक है कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कठोर कदम उठाए जाने चाहिए। इस मामले ने झारखंड में प्रशासनिक पारदर्शिता और चयन प्रक्रिया की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।”
पत्रकार राजीव यह भी कहते हैं, “यह घोटाला झारखंड की प्रशासनिक व्यवस्था में व्याप्त भ्रष्टाचार की गंभीरता को दर्शाता है। इस साजिश में प्रभावशाली व्यक्तियों ने अपने निजी संबंधों का उपयोग कर प्रशासनिक चयन प्रक्रिया को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया और योग्य उम्मीदवारों के अधिकारों का हनन किया। यह मामला न केवल भ्रष्टाचार बल्कि नैतिकता और पारदर्शिता के गंभीर उल्लंघन का उदाहरण है।”
“योग्य उम्मीदवारों को वंचित कर अयोग्य व्यक्तियों को उच्च पदों पर नियुक्त करने से न केवल प्रशासनिक कार्यकुशलता प्रभावित हुई बल्कि जनता के विश्वास को भी गहरी चोट पहुंची। अब यह देखना होगा कि न्यायिक प्रक्रिया के तहत दोषियों को क्या सजा मिलती है और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या कदम उठाए जाते हैं? “
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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