कर्नाटक चुनाव: भाजपा ध्रुवीकरण कराने में नाकाम, चुनाव के केंद्र में आए बुनियादी मुद्दे

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नई दिल्ली। कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए आज (20 अप्रैल) नामांकन दाखिल करने का आखिरी दिन है। तीनों प्रमुख पार्टियों भाजपा, कांग्रेस और जेडीएस ने अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतार दिया है। चुनावी बाजी जीतने के लिए तीनों दल एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं। इस तरह चुनावी समर में जुबानी जंग तेज हो गई है। कांग्रेस ने भाजपा पर लिंगायत नेताओं को अपमानित करने का आरोप लगाया तो सीएम बसवराज बोम्मई ने पलटवार किया। सीएम बोम्मई ने कांग्रेस पर साधा निशाना, कहा कि उन्होंने 50 साल में सिर्फ एक ही लिंगायत मुख्यमंत्री दिया।

आरोप-प्रत्यारोप के बीच राज्य चुनाव में उतरी तीनों प्रमुख पार्टियों को टिकट से वंचित नेताओं के विद्रोह का सामना करना पड़ रहा है। भाजपा को पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार और लक्ष्मण सावदी के बाद एमएलसी एएच विश्वनाथ ने तगड़ा झटका दिया है। गुरुवार को वह कांग्रेस में शामिल हो गए। उन्होंने कहा “आज मैं कांग्रेस में शामिल हो रहा हूं। राजनीतिक कारण हैं, जिसके कारण मैं भाजपा छोड़ रहा हूं और कांग्रेस में शामिल हो रहा हूं।”

वहीं चिकपेट निर्वाचन क्षेत्र से कांग्रेस पार्टी द्वारा टिकट से इनकार करने पर, केजीएफ बाबू ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में अपना नामांकन दाखिल करने का फैसला किया है।

नामांकन के बाद कर्नाटक में अब राजनीतिक पार्टियां मुद्दों को उठाना शुरू कर दिया है। भाजपा चुनाव से पहले ही पूरे राज्य में बुर्का, हलाल, टीपू सुल्तान जैसे मुद्दे को उठाकर सांप्रदायिक आधार पर समाज के विभाजन में लगी रही। मुस्लिमों के 4 फीसद आरक्षण को खत्म कर उसे लिंगायत-वोकालिगा में बांटने और दलितों को आरक्षण को तीन वर्गों में बांटकर वह लाभान्वित वर्गों को अपनी तरफ खींचने की कोशिश कर रही थी। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने बुर्का, हलाल जैसे मुद्दे को गैर-जरूरी बताकर सिद्ध कर दिया कि भाजपा का यह मुद्दा फ्लॉप हो चुका है। वहीं कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जातिगत जनगणना की मांग कर मोदी सरकार औऱ बोम्मई सरकार के समक्ष बड़ा मुद्दा उछाल दिया है, जिससे निकल पाना भाजपा के लिए बहुत मुश्किल साबित हो सकता है।

भाजपा हुबली, मैसूर औऱ तटीय क्षेत्रों में सांप्रदायिक कार्ड खेल रही है। लेकिन कांग्रेस के सचेत होने के कारण अभी तक उसे असफलता मिली है। चुनावी अभियान के केंद्र में जनता के बुनियादी मुद्दों के आ जाने का कारण अब चुनाव में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए बहुत कम जगह बची है।

येदियुरप्पा के बयान ने यह स्पष्ट कर दिया कि कर्नाटक में आगामी चुनावों में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण काम नहीं करेगा। उन्होंने जो नहीं कहा वह यह है कि कर्नाटक के लोग हमेशा उत्तर भारत की राजनीतिक-धार्मिक विचारधारा को स्वीकार नहीं करते हैं, हालांकि यह एक सच्चाई है कि उन्होंने 2008 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को सत्ता में लाया था।

बुधवार को वरुणा से सिद्धारमैया, हुबली-धारवाड़ सेंट्रल से जगदीश शेट्टार और शिगगांव से मुख्यमंत्री बोम्मई जैसे दिग्गजों सहित 935 उम्मीदवारों ने अपना पर्चा दाखिल किया। अधिकांश जिलों में नामांकन दाखिल करने की प्रक्रिया भव्य रही और शक्ति प्रदर्शन के लिए उम्मीदवारों के जुलूस ने सड़कों को जाम कर दिया। कई उम्मीदवारों ने रिटर्निंग अधिकारियों के कार्यालय पहुंचने से पहले मठों का दौरा किया और मंदिरों में पूजा-अर्चना की।

10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए सभी पार्टियों ने टिकटों की घोषणा कर दी है। कांग्रेस ने गुरुवार सुबह कर्नाटक विधानसभा चुनाव के लिए अपने पांच उम्मीदवारों की छठी और अंतिम सूची जारी की। इस तरह कांग्रेस ने 224 सदस्यीय विधानसभा के लिए कुल 223 उम्मीदवार घोषित कर चुकी है और 1 सीट अपने क्षेत्रीय सहयोगी संगठन सर्वोदय कर्नाटक पार्टी के लिए छोड़ा है।

कांग्रेस की अंतिम सूची में रायचूर से मोहम्मद शालेम, सिडलघट्टा से बीवी राजीव गौड़ा, सी वी रमन नगर (एससी) से एस आनंद कुमार, अर्कालगुड से एचपी श्रीधर गौड़ा और मैंगलोर सिटी नॉर्थ से इनायत अली को मैदान में उतारा गया था। पार्टी ने बुधवार को मोहम्मद यूसुफ सवानूर को कर्नाटक के शिगगांव निर्वाचन क्षेत्र से अपना उम्मीदवार बनाया था, जहां का प्रतिनिधित्व मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई करते हैं। कांग्रेस ने अब वहां से यासिर अहमद खान पठान को मैदान में उतारा है।

कर्नाटक विधानसभा का चुनाव लड़ने वाले 91 वर्षीय शमनूर शिवशंकरप्पा कांग्रेस के सबसे उम्रदराज प्रत्याशी हैं। वह दावणगेरे दक्षिण से चुनावी मैदान में हैं। कांग्रेस के दिग्गज शिवशंकरप्पा पांच बार विधायक और लोकसभा सदस्य भी रहे हैं। पार्टी से उन्होंने एक और पारी देने की मांग की थी। जिसे पार्टी ने स्वीकार कर लिया। शिवशंकरप्पा ने खुद को चुनावी मैदान का “सरपट दौड़ने वाला घोड़ा” बताते हुए कहा “मेरे पास लोगों का समर्थन और भगवान का आशीर्वाद है। और क्या चाहिए?”

कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मैसूर जिले के वरुणा सीट से नामांकन किया। बुधवार को अपना नामांकन दाखिल करने से पहले वह मंदिर में जाकर पूजा-अर्चना की। नामांकन के बाद सिद्धारमैया ने कहा कि यह चुनाव उनके लिए आखिरी चुनाव है। इसके बाद चुनाव में नहीं उतरेंगे लेकिन राजनीति में बने रहेंगे। सिद्धारमैया ने कहा कि भाजपा और जद (एस) के बीच राज्यभर में अंदरखाने समझौता हुआ है। दोनों पार्टियां वरुणा में उन्हें हराने के लिए साजिश में लगी हैं, जिसे विफल करने के लिए उन्होंने मतदाताओं का समर्थन मांगा।

उन्होंने कहा, “बीजेपी ने यहां पैदा हुए और यहां पले-बढ़े उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा है, इसने बेंगलुरु निवासी वी सोमन्ना को लाकर यहां खड़ा किया है। भाजपा और जद (एस) ने एक आंतरिक समझौता किया है, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने (जद-एस) ने दलित वोटों को विभाजित करने के लिए नरसीपुरा (पूर्व निर्वाचन क्षेत्र) के पूर्व (भाजपा) विधायक भारती शंकर को मैदान में उतारा है।”

सिद्दारमैया ने कहा कि “वे बहुत सारा पैसा वितरित कर सकते हैं। मुझे बताया गया है कि बीजेपी और जेडी (एस) मुझे हराने के लिए काफी पैसा खर्च करेंगे। चाहे वे कितने भी करोड़ रुपये खर्च करने का प्रबंधन करें, या वे जो भी हथकंडा आजमाएं, हमारे क्षेत्र के लोग मुझे आशीर्वाद देंगे।”

पूर्व सीएम ने कहा, “भाजपा डरी हुई है। राज्य की पूरी जनता सिद्धारमैया के पक्ष में है। इसलिए वे मुझे किसी भी कीमत पर हराना चाहते हैं।”

10 मई को कर्नाटक में होने वाला विधानसभा चुनाव और उसके परिणाम कांग्रेस और भाजपा के लिए निर्णायक महत्व रखते हैं। यदि कांग्रेस कर्नाटक में बहुमत की सरकार बनाने में सफल हो जाती है, तो विपक्ष में उसकी साख बढ़ जाएगी और विपक्षी दलों को नेतृत्व प्रदान करने का उसका दावा मजबूत हो जाएगा। इसके साथ ही इसको राहुल गांधी के भारत जोड़ो-यात्रा, सामाजिक न्याय को कर्नाटक चुनाव में एक प्रमुख मुद्दा बनाने और मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष बनाने के कदमों की विजय के रूप में देखा जाएगा। इसके साथ कांग्रेस में राहुल गांधी के नेतृत्व की स्वीकृति और बढ़ जाएगी और सबसे बड़ी बात यह कि 2024 के लोकसभा चुनावों तैयारी के लिए कांग्रेस के भीतर काफी आत्मविश्वास पैदा होगा।

दूसरी तरफ यदि भाजपा यह चुनाव हार जाती है, उसके कमजोर पड़ने की प्रक्रिया तेज होगी। पार्टी के भीतर नरेंद्र मोदी के करिश्माई व्यक्तित्व पर भरोसा कम होगा। उनके अपराजय होने का मिथक टूटेगा और उसके लिए 2024 की राह और कठिन हो जाएगी।

कर्नाटक में मुकाबला करीब सीधा-सीधा कांग्रेस और भाजपा के बीच है। जेडीएस काफी कमजोर हो चुकी है। इस चुनाव को कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधे मुकाबले के रूप में देखा जा रहा है। फिलहाल विश्लेषकों को कांग्रेस बढ़त की स्थिति में दिख रही है। भाजपा ने भी अपनी सारी ताकत झोंक दी है।

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प्रदीप सिंह https://www.janchowk.com

दो दशक से पत्रकारिता में सक्रिय और जनचौक के राजनीतिक संपादक हैं।

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