मुजफ्फरपुर, बिहार। 21वीं सदी के भारत ने कई क्षेत्रों में बदलाव व विकास के नए प्रतिमान स्थापित किये हैं। चाहे वह नए अनुसंधान का क्षेत्र हो, अभियांत्रिकी विकास, प्रौद्योगिकी विकास, बौद्धिक विकास, सामरिक क्षमता या फिर कुशल नेतृत्व की बात हो, कोई ऐसा सेक्टर नहीं है जहां भारतीयों ने अपना परचम न लहराया हो। परंतु इसी भारत का एक दूसरा चेहरा उसका ग्रामीण क्षेत्र है जो आज भी अपनी संकीर्ण मानसिकता, पुरानी विचारधाराओं व परंपराओं से उबर नहीं सका है। विशेषकर जाति, समुदाय और महिलाओं के मामले में ग्रामीण समाज अब भी वैचारिक रूप से पिछड़ा हुआ नज़र आता है।
दलित-महादलित महिलाओं व किशोरियों के प्रति उसका नजरिया यथावत बना हुआ है। किशोरियों को घर से बाहर न निकलने देना, कहीं अपना पक्ष न रखने देना, खेलने-कूदने पर मनाही, पढ़ाई-लिखाई में रोक-टोक और जल्द शादी आदि चीजें इस समाज की महिलाओं और किशोरियों के विकास में रोड़ा बनी हुई है। जिससे वह संस्कृति और परंपरा के नाम पर ज़िंदा रखना चाहता है। वहीं उसी क्षेत्र के संभ्रांत परिवार की महिलाओं व किशोरियों को पूरी आजादी मिलती है।
दरअसल ग्रामीण क्षेत्र का पितृसत्तात्मक समाज अपनी पकड़ बनाये रखने के लिए किशोरियों व महिलाओं को सामाजिक वर्जनाओं में जकड़े रखना चाहता है। इसके लिए वह ‘समाज क्या कहेगा’ यह भय दिखाकर महिलाओं व किशोरियों के अधिकारों को दबा कर रखता है। इस तरह अपने ही घर में महिलाओं और किशोरियों के शोषण का सिलसिला शुरू हो जाता है।
इस दौरान यदि किसी किशोरी ने हिम्मत दिखाई तो उसे न जाने कितने ताने, फब्तियां और जलालत सहनी पड़ती है। जबकि ग्राम पंचायत व शिक्षक बहाली में महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण भी दिया जा रहा है। इसके बावजूद पिछड़े व दलित परिवार की किशोरियों को अपने सपनों को पूरा करने में अनेकों कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
बिहार के मुजफ्फरपुर जिला मुख्यालय से करीब 55 किमी दूर साहेबगंज प्रखंड के शाहपुर गांव की रहने वाली महादलित समुदाय की 22 वर्षीय संजना कुमारी इसका उदाहरण है। जो हाल ही में विकास मित्र के पद पर चयनित हुई हैं। संजना बताती है कि “हमारी दो बहनें और एक भाई है। जब मैं मैट्रिक करने वाली थी तभी पिता का देहांत हो गया। उनके गुजरने के बाद घर की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय हो गई। घर चलाने के लिए दोनों बहनों को आगे आना पड़ा। बड़ी बहन बच्चों को ट्यूशन और कोचिंग पढ़ाने लगी वहीं मैं सिलाई करके अपने घर को चलाने में मदद करने लगी।”
संजना की मां सरिता देवी कहती हैं कि “खेती करके अपने बच्चों का भरण-पोषण व पढ़ाई-लिखाई पूरी कराई। पति के गुजरने के बाद गांव-समाज एवं रिश्तेदारों ने यह कह कर बेटियों की शादी के लिए दबाव डालना शुरू कर दिया कि पढ़ाई में लगने वाले खर्चों से उनकी शादी हो जाएगी, लेकिन मैंने शादी की बात छोड़ बेटियों को आगे पढ़ाने की ठानी, इसके लिए मुझे गांव-समाज से भी लड़ाई लड़नी पड़ी।”
आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई। संजना का साहेबगंज ब्लॉक में विकास मित्र के पद पर बहाली हो गई, वहीं बड़ी बहन शिक्षक भर्ती की तैयारी में लगी है, जबकि उसका छोटा भाई आठवीं कक्षा में पढ़ रहा है।
संजना कहती है कि “पढ़ाई से लेकर नौकरी तक का सफर बहुत कठिन था। समाज ने तो पूरी कोशिश की थी कि किसी तरह से मेरी पढ़ाई छूट जाए और मैं आगे न बढ़ सकूं। लेकिन मां किसी दबाव के आगे न झुकते हुए हर स्तर पर हम दोनों बहनों का साथ दिया। मैं बस इतना कहना चाहती हूं कि लड़कियां किसी से कम नहीं होती हैं। उसे पढ़ाओ और इस लायक बनाओ कि उसे किसी के सामने झुकना ना पड़े।”
संजना की हिम्मत ने न केवल उसके जीवन को बदला है बल्कि समाज में भी बदलाव की बयार शुरू हो गई है। अब इस समुदाय की अन्य लड़कियों ने भी पढ़ाई के लिए आवाज उठानी शुरू कर दी है। वह अपनी शिक्षा का हक मांगने लगी हैं।
इस संबंध में 17 वर्षीय बबीता कहती है कि “संजना दीदी की वजह से हमें भी पढ़ने का मौका मिलने लगा है। उनकी सफलता को देखकर अब हमारे माता-पिता भी उच्च शिक्षा के लिए मान गए हैं। बहुत ही गर्व की बात है कि संजना दीदी ने गांव और समाज में मिसाल कायम की है।”
संजना के विकास मित्र पद पर बहाली में गांव के मुखिया अमलेश राय का बहुत बड़ा योगदान है। इस संबंध में वह कहते हैं कि “संजना महादलित समुदाय की है। जहां लड़कियों को उच्च शिक्षा दिलाने में बहुत उत्साह नहीं दिखाया जाता है। इस समुदाय में लड़की के 12वीं के बाद ही शादी कर देना आम बात है। लेकिन उसकी सफलता से आसपास के गरीब व झुग्गी बस्तियों में रहने वाली महादलित समुदाय की लड़कियों में भी पढ़-लिख कर आत्मनिर्भर बनने की चाह जगने लगी है।”
आज संजना घर की आर्थिक जरूरतों को पूरी करके छोटे भाई की पढ़ाई के साथ-साथ पंचयात में महिला सशक्तीकरण व स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता भी फैला रही है।
याद रहे कि बिहार में सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं व कार्यों को दलित-महादलित परिवार तक पहुंचाने के लिए विकास मित्र की बहाली की जाती है। यह बहाली पंचायत स्तर पर की जाती है। बिहार महादलित मिशन के तहत अलग-अलग जिले के पंचायतों में विकास मित्र की बहाली होती है। इन्हें सरकार की ओर से लगभग 15,481 रु प्रतिमाह मानदेय मिलता है।
विकास मित्र को अपने ही पंचायत के महादलित परिवार की आधारभूत संरचना का सर्वे करना, सामाजिक सुरक्षा से संबंधित योजना की जानकारी देना, वृद्धापेंशन, बचत खाता, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सशक्तीकरण आदि से संबंधित योजनाओं की पड़ताल व क्रियान्वयन कराने की जवाबदेही होती है।
बहरहाल, दलित व महादलित परिवार में अधिकांश लड़कियां पढ़ाई-लिखाई की उम्र में शादी कर दी जाती हैं। इन बस्तियों में सरकारी की सारी योजनाएं सही क्रियान्वयन व जागरूकता के अभाव में दम तोड़ देती हैं। परिणामतः कम उम्र में ही किशोरियां मां बनकर मानसिक व शारीरिक रूप से अक्षम, बीमार व कमजोर हो जाती हैं।
ऐसे में केवल सरकार के ऊपर ठीकरा फोड़ने की बजाय ग्राम पंचायत प्रतिनिधियों व पढ़े-लिखे लोगों की ज़िम्मेदारी है कि वह इन बस्तियों में जाकर इनके जीवन में शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व जीवन के विविध आयामों से अवगत कराएं। स्वस्थ समाज का निर्माण तब संभव है जब हम उपेक्षित, अछूत, अशिक्षित और गरीब समुदाय विशेषकर उन समुदायों की महिलाओं और किशोरियों को शिक्षित और सशक्त बनाने का प्रयास करें।
(बिहार के मुजफ्फरपुर से सिमरन सहनी की रिपोर्ट।)