Friday, April 19, 2024

जस्टिस काटजू का सनसनीखेज खुलासा, जस्टिस कुरैशी पर कोलेजियम और सरकार आमने-सामने

ऐसा लगता है कि त्रिपुरा हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस अकिल कुरैशी के चक्कर में सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में कुछ गहमागहमी का माहौल है। जस्टिस अकिल कुरैशी वही हैं, जिन्होंने सन 2010 में अमित शाह को जेल की सजा दी थी। गहमागहमी के इस माहौल के बारे में इसी हफ्ते जस्टिस काटजू ने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखकर इशारा किया था, मगर बाद में उन्होंने वह पोस्ट अपने फेसबुक पेज से डिलीट कर दी थी। हालांकि उनके पोस्ट डिलीट करने से पहले ही कुछ एक वेबसाइटों ने उनकी पोस्ट कॉपी कर ली थी और अपने यहां पब्लिश कर दी थी। इस पोस्ट में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस मार्कण्डेय काटजू कहते हैं कि उन्हें उनके एक बेहद भरोसेमंद आदमी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के एक सीनियर जज जो कि कोलेजियम के पांच सदस्यों वाली समिति के सीनियर मेंबर हैं, ने कहा है कि वो तब तक सुप्रीम कोर्ट में जजों की किसी भी सिफारिश का विरोध करेंगे, जब तक कि जस्टिस अकिल कुरैशी की सिफारिश नहीं की जाती है।

जस्टिस कुरैशी के बारे में जस्टिस काटजू बताते हैं कि जस्टिस कुरैशी गुजरात हाईकोर्ट के मोस्ट सीनियर जज थे, जिनका ट्रांसफर बॉम्बे हाईकोर्ट हुआ था। दूसरे, जस्टिस कुरैशी न्यायिक क्षेत्रों में सबसे काबिल और सबसे बेहतरीन जज माने जाते हैं और कोलेजियम ने उनकी इस काबिलियत को माना भी था और उनको मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस पद के लिए भी रिकमेंड किया था। लेकिन यहीं से बीजेपी का खुला खेल फर्रुखाबादी शुरू हो गया। एक ऐसा शख्स, जिसका धर्म मुसलमान है- माने संघ और बीजेपी की नजर में अपराध नंबर एक। अब भले ही वे बयान देते रहें कि बीजेपी की नजर में मुसलमान होना अपराध नहीं है, मगर 2014 से हम सभी देख रहे हैं कि भारत की सरकार से लेकर न्यायपालिका तक इस अल्पसंख्यक तबके के साथ किस तरह का दोयम व्यवहार कर रही है।

अब अपराध नंबर दो की तरफ चलते हैं, जो कि सबसे सनसनीखेज है। जस्टिस अकिल कुरैशी ने ही अमित शाह को जेल की सजा सुनायी थी। तब अमित शाह गुजरात के गृहमंत्री थे और उन पर सोहराबुद्दीन का फर्जी एनकाउंटर कराने का आरोप लगा था। यह वही केस था, जिसमें जज लोया ने बाद में सुनवाई की थी और जज लोया के बारे में हुए अब तक के खुलासों की मानें, तो इसी केस में जज लोया की हत्या भी की गई थी। बहरहाल, बीजेपी की नजर में ये दोनों चीजें परम अपराध का दर्जा रखती हैं, भले ही वे मानें या ना मानें। कहा जा रहा है कि इसी के चलते बीजेपी की मोदी सरकार अड़ गई कि जस्टिस अकिल कुरैशी को किसी भी कीमत पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का जज नहीं बनने देना है।

जस्टिस काटजू ने इसी हफ्ते लिखी अपनी उस पोस्ट में कहा भी था, जिसे उन्होंने बाद में डिलीट कर दिया था, कि ऐसा लगता है कि चूंकि वे यानी जस्टिस अकिल कुरैशी एक मुसलमान थे, और इसलिए भी, क्योंकि उन्होंने अमित शाह के खिलाफ आदेश पारित किए थे और इसी वजह से उनका ट्रांसफर गुजरात से बॉम्बे हाई कोर्ट किया गया, जब उनकी मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनने की बारी आई तो मोदी सरकार ने इसका कड़ा विरोध किया, जिसके चलते उन्हें त्रिपुरा जैसे बेहद छोटे राज्य के हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बना दिया गया। आपको याद दिला दें, कि जब यह सब हो रहा था, तब सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस थे रंजन गोगोई। ये रंजन गोगोई का ही कार्यकाल था, जिसमें जस्टिस अकिल कुरैशी को केंद्र की मोदी और अमित शाह, यानी हम दो, हमारे दो की सरकार ने जमकर परेशान किया, उन्हें उनकी काबिलियत के हिसाब से काम नहीं करने दिया और केंद्र की इन सारी मंशाओं, सारी इच्छाओं और सारे फरमानों को पूरा करने का काम किया तब के चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने।

जस्टिस काटजू ने हालांकि रंजन गोगोई का नाम तो नहीं लिया, मगर उन्होंने यह जरूर कहा कि सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम ने सरकार के दबाव के आगे घुटने टेक दिए, और जस्टिस अकिल कुरैशी को एमपी हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाए जाने की अपनी सिफारिश वापस ले ली, और जस्टिस अकिल कुरैशी को त्रिपुरा हाईकोर्ट का चीफ जस्टिस बनाए जाने की सिफारिश की, जो कि एक बहुत छोटा हाईकोर्ट है। मगर अब जस्टिस कुरैशी को लेकर एक पेंच फंस चुका है। जैसा कि हमने शुरुआत में बताया कि कोलेजियम में मौजूद एक सीनियर जज जो कि कोलेजियम के सीनियर मेंबर भी हैं, तक ने हर एक जज की नियुक्ति का विरोध करने का मन बना लिया है, जब तक कि जस्टिस अकिल कुरैशी को उनकी काबिलियत के हिसाब से नियुक्ति नहीं मिलती। तो अब सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्त ऐसे वक्त में फंस चुकी है, जब इसी साल तकरीबन आधा दर्जन जज सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हो रहे हैं।

अब सुप्रीम कोर्ट क्या करेगा और सरकार क्या करेगी, जस्टिस काटजू ने वह भी बताया है, मगर पहले जरा जजों के रिटायरमेंट का हाल चाल ले लें। कानूनी मामलों के वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह बताते हैं कि देश की सबसे बड़ी अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में आने वाले समय में गंभीर संकट खड़ा हो सकता है। फिलवक्त सुप्रीम कोर्ट में जजों के चार पद खाली हैं और इन्हें भरने के लिए सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने अभी तक कोई सिफारिश केंद्र को नहीं भेजी है। अगले छह महीने में यानी अगस्त तक चीफ जस्टिस सहित सुप्रीम कोर्ट के छह जज रिटायर हो रहे हैं। इस बीच नए जजों की नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की अभी तक बैठक हुई है या नहीं इस पर विवाद है।

एक न्यूज़ वेबसाइट का कहना है कि आखिरी बार कोलेजियम की बैठक सितंबर 2020 में हुई थी, जबकि राजधानी दिल्ली के एक अंग्रेजी दैनिक का दावा है कि पिछले एक महीने में कोलेजियम की कम से कम तीन बैठकें हो चुकी हैं, लेकिन त्रिपुरा हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस अकील ए कुरैशी के नाम पर एक राय न हो पाने की वजह से केंद्र सरकार को कोई नाम नहीं भेजा गया। सुप्रीम कोर्ट में इस वक्त तय संख्या से कम जज हैं। 2009 में सुप्रीम कोर्ट में 26 जजों की संख्या बढ़ाकर 31 कर दी गई थी। 2019 में जजों की संख्या 31 से बढ़ाकर 34 की गई थी, इसमें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया भी शामिल हैं। इस वक्त सुप्रीम कोर्ट में तीस जज हैं, लेकिन आने वाले छह महीने में सुप्रीम कोर्ट से पांच जज रिटायर होने वाले हैं।

इनमें से 13 मार्च को जस्टिस इंदु मल्होत्रा, 23 अप्रैल को चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बोबडे, 4 जुलाई को जस्टिस अशोक भूषण, 12 अगस्त को जस्टिस आरएफ नरीमन तथा 18 अगस्त 21 को जस्टिस नवीन सिन्हा रिटायर होंगे। जेपी सिंह बताते हैं कि पिछले साल दो सितंबर को जस्टिस अरुण मिश्रा के रिटायर होने के बाद से सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम ने अभी तक सुप्रीम कोर्ट में नियुक्ति के लिए केंद्र सरकार से कोई सिफारिश नहीं की है। इसके पहले 19 जुलाई 2020 को जस्टिस आर भानुमति रिटायर हुई थीं। सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम में इस समय चीफ जस्टिस एएस बोबडे, जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस एएम खानविल्कर हैं। सुप्रीम कोर्ट में किसी जज की आखिरी नियुक्ति करीब 18 महीने पहले 23 सितंबर 2019 को जस्टिस ऋषिकेश रॉय के तौर पर हुई थी। आपको बता दें कि जस्टिस अकिल कुरैशी की नियुक्ति पर जो जज साहब अड़े हैं, द वायर ने उनके नाम का खुलासा किया है।

वे जस्टिस आरएफ नरीमन हैं, जो जस्टिस फली नरीमन के नाम से देश भर में जाने जाते हैं। जस्टिस काटजू इनके बारे में बिना नाम लिए कहते हैं कि दुर्भाग्य से जस्टिस कुरैशी की काबिलियत को सही जगह पहुंचाने की चाहत रखने वाले ये जज साहब भी इस साल के अंत में रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस काटजू कहते हैं कि उन्हें यकीन है कि केंद्र सरकार जस्टिस नरीमन, जिनका कि काटजू साहब ने नाम नहीं लिखा है, के रिटायरमेंट का इस साल के अंत तक इंतजार करेगी और उसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट में जजों की नियुक्तियां हो पाएंगी। जस्टिस कुरैशी की रिटायरमेंट में अभी वक्त है और वो अगले साल, यानी मार्च 2022 तक रिटायर हो रहे हैं। जस्टिस काटजू कहते हैं कि उनको लगता है कि जस्टिस कुरैशी हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के रूप में ही रिटायर होंगे, उन्हें सुप्रीम कोर्ट में ऐलीवेट नहीं किया जाएगा।

अब चलते-चलते जस्टिस काटजू की इस पूरे प्रकरण पर आखिरी पंच भी सुन लिया जाए, जो मारकर उन्होंने डिलीट कर दिया था। जस्टिस काटजू कहते हैं कि साफ दिखता है कि मुसलमान इस सरकार के लिए, यानी मोदी सरकार के लिए परसोना नॉन ग्राटा हैं, यानी दोयम दर्जे के नागरिक हैं। ऐसे ही प्रख्यात वकील गोपाल सुब्रमण्यम भी थे, जिन्होंने भाजपा नेताओं के खिलाफ मुकदमे दायर किए थे, वे पहले सॉलिसिटर जनरल ऑफ इंडिया भी थे, मगर उन्हें कोलेजियम की रिकमेंडेशन के बावजूद जज नहीं बनने दिया गया। जस्टिस काटजू ये नहीं कहते, मगर हम कहते हैं कि बीजेपी सब याद रखती है, सबका बदला लेती है, और ये जजों से ही नहीं, हम सभी से बदला ले रही है। बदला लेने की वजह आखिरकार मोदी जी ने बता ही दी है, और वो यह कि हम सभी आंदोलनजीवी हैं, या उनकी संतानें हैं।

(राइजिंग राहुल का लेख।)

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