Thursday, March 28, 2024

आसमान में उड़ते सभी फरमान, धरातल पर हैं तंग किसान

किसान बिल के माध्यम से बहुत से लोग इन दिनों किसानों के बेहतर दिनों की बात कर रहे हैं, लेकिन धरातल की जो स्थिति है, उसकी चर्चा तक नहीं कर रहे। अभी के समय में किसान अपने मक्का को लेकर परेशान है। देश में मक्के का समर्थन मूल्य 1850 रुपए है, लेकिन यूपी में किसान 900 से 1000 रुपए में मक्का बेचने को मजबूर हैं। समर्थन मूल्य पर किसान अपना मक्का कहां बेचें, यह सरकार भी नहीं बता रही है, कहीं कोई क्रय केंद्र भी नहीं है। हवा में फरमान जारी है और किसान किसी तरह अपनी पूंजी निकालने के लिए सस्ते रेट में मक्का बेच रहे हैं।

किसानों का जीवन संवारने की बात कहने वाली सरकार को यह भी नहीं पता कि इस साल भयंकर बारिश के चलते किसानों का कितना नुकसान हुआ है। हम राष्ट्रीय किसान मोर्चा के अध्यक्ष और यूपी बलिया के सांसद वीरेंद्र सिंह मस्त के जिले बलिया की बात करें तो यहां हजारों किसान इस साल प्रकृति की मार से ही कंगाल हो चले हैं। 

असंख्य किसानों का मक्का पकने के बाद खेत में ही डूब गए। जिन किसानों का मक्का घर आया, उसके खरीदार नहीं मिल रहे। मजबूरी में किसान अपना मक्का 900 से 1000 रुपये कुंतल के हिसाब से बाजारों में ले जाकर बेच रहे हैं। उसे खरीद कौन रहा है तो वह हैं पशुपालक। अपने पशुओं को खिलाने के लिए वे इस मक्का को खरीद रहे हैं। किसान कह रहे…सरकार किसानों के संबंध में जितनी बातें कहती है, उस पर 50 फीसद भी अमल करती तो किसानों की किस्मत ज़रूर बदल जाती।

खेती से नहीं चला पा रहे, घर-परिवार

पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के गृह जनपद बलिया के किसान खेती से अपना घर-परिवार नहीं चला पा रहे हैं। यहां दो लाख 19 हजार 599 हेक्टेयर भू-भाग पर किसान खेती करते हैं। उनकी आय दोगुनी करने की पड़ताल करने पर किसान बच्चा लाल सिंह बताते हैं कि जब गेहूं की खेती होती है तब के समय में किसान सिंचाई के लिए परेशान रहते हैं। उनके खेतों की सिंचाई ठीक तरीके से हो जाए, इसके लिए सरकार की ओर से कोई व्यवस्था नहीं है। किसान प्राइवेट तौर पर बोरिंग से पटवन करते हैं। इससे उनकी लागत इतनी बढ़ जाती है कि जब फसल कटती है तो सब जोड़ने पर  उनका लागत मूल्य भी नहीं आ पाता। 

सब कुछ ठीक रहा तो कभी बिजली के जर्जर तार सैकड़ों बीघा पके फसल को स्वाहा कर देते हैं तो कभी छुट्टा पशु किसानों की उम्मीदों पर पानी फेर देते हैं। किसान महंथ यादव कहते हैं कि इस साल मक्का की हजारों एकड़ फसल परसोत और बारिश के पानी के कारण खराब हो गयी। सरकार यदि हमदर्द है तो इसका आकलन कराकर उसे किसानों का उचित मुआवजा देना चाहिए, लेकिन सरकारी तंत्र की ओर से कोई पड़ताल नहीं की जा रही है कि किस क्षेत्र के किसानों का कितना नुकसान हुआ। अब हालात तो ये हो चले हैं कि इस खेती से किसान अपना घर तक नहीं चला पा रहे हैं। फिर सरकार जो बोल रही है, उसे सुनना तो पड़ेगा ही।

अपने खेतों को देख रो रहे किसान

यूपी में नेता प्रतिपक्ष व बलिया के बांसडीह विधान सभा के विधायक राम गोविंद चौधरी कहते हैं यूपी में अपने खेतों को देख किसान रो रहे हैं। यह सरकार पूंजीपतियों का गुलाम हो गई है। देश की यह पहली सरकार है जो किसी और की नहीं सुनती। उसके मन में जो भी आता है, वही करती है। यूपी में पुलिस की तानाशाही तो इतनी बढ़ गई है कि वह किसी को भी बेइज्जत कर दे रही है। छात्रों पर, किसानों पर पुलिस लाठियां बरसा रही है। समझ में नहीं आ रहा यह सरकार जनता को सुख देने के लिए है या सजा देने के लिए। उन्होंने इमरजेंसी की बात को दोहराते हुए कहा कि देश में अभी का माहौल इमरजेंसी से कम नहीं है।

(यूपी के बलिया से स्वतंत्र पत्रकार लवकुश की रिपोर्ट।)

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