Wednesday, April 24, 2024

ग्राउंड रिपोर्ट: उत्तराखंड चारधाम यात्रा शुरू होने में 10 दिन बाकी, ज़मीन पर नहीं दिख रही कोई तैयारी 

उत्तराखंड। चारधाम यात्रा शुरू होने में अब कुछ ही दिन बाकी रह गए हैं। 22 अप्रैल को गंगोत्री और यमुनोत्री के कपाट खुलने के साथ ही चार धाम यात्रा की औपचारिक शुरुआत हो रही है। 25 अप्रैल को केदारनाथ और 27 अप्रैल को बदरीनाथ के कपाट खुलने के साथ ही यात्रा अपने पूरे शबाब पर होगी।

पिछले वर्ष रिकॉर्ड-तोड़ तीर्थयात्रियों के आने से उत्साहित उत्तराखंड सरकार इस बार पिछले साल का रिकॉर्ड टूटने के दावे कर रही है। लेकिन इन रिकॉर्ड-तोड़ यात्रियों के लिए की जाने वाली व्यवस्था के नाम पर धरातल पर अभी तक कुछ होता नजर नहीं आ रहा है।

यात्रा मार्ग पर जाम लगने का सिलसिला ऋषिकेश से ही शुरू हो जाता है। आगे श्रीनगर, कर्णप्रयाग, चमोली, जोशीमठ, रुद्रप्रयाग, गुप्तकाशी  जगहों पर भी इस तरह की दिक्कत आ रही है। लाखों तीर्थयात्रियों के आने के कारण धामों और यात्रा मार्ग में पैदा होने वाले कचरे के लिए कहीं कोई व्यवस्था नजर नहीं आ रही है।

एक नजर पिछले साल चारधाम यात्रा पर आए तीर्थयात्रियों की संख्या पर डालें तो पिछले साल कुल 46 लाख, 27 हजार, 292 तीर्थयात्री उत्तराखंड की चारधाम यात्रा पर आए थे। सबसे ज्यादा 17 लाख 63 हजार 549 तीर्थयात्री बद्रीनाथ पहुंचे थे। केदारनाथ पहुंचने वालों की तादाद 15 लाख, 63 हजार, 275, गंगोत्री पहुंचने वालों की संख्या 6 लाख 24 हजार 516 और यमुनोत्री पहुचने वालों की संख्या 4 लाख 85 हजार 688 थी। इसके अलावा 1 लाख 90 हजार 264 तीर्थयात्री हेमकुंड साहिब आए थे।

तीर्थयात्रियों की यह संख्या अब तक का रिकॉर्ड है। राज्य सरकार इस बार फिर से नया रिकॉर्ड बनाने के दावे कर रही है। अब तक किए गए रजिस्ट्रेशन की संख्या बताती है कि राज्य सरकार का यह दावा सही साबित हो सकता है। राज्य सरकार के आंकड़ों के मुताबिक अब तक चारों धामों के लिए 10 लाख से ज्यादा तीर्थयात्रियों ने उत्तराखंड पर्यटन विभाग की वेबसाइट पर रजिस्ट्रेशन करवाया है। इस सबके बावजूद तीर्थयात्रा मार्ग पर कोई मुकम्मल तैयारियां नज़र नहीं आ रही हैं।

यात्रा मार्ग के हालात का जायजा लेने की शुरुआत हरिद्वार से ही करें तो यात्रा काल शुरू होने से पहले ही हरिद्वार से लेकर ऋषिकेश तक लगातार जाम की स्थिति बनी हुई है। 9 अप्रैल को रविवार के दिन चारधाम यात्रा का प्रवेशद्वार दिनभर जाम रहा। ऋषिकेश में प्रवेश करने से लेकर ऋषिकेश छोड़ने तक करीब 4 किमी का सफर तय करने में वाहनों को 2 से 3 घंटे तक का समय लगा। जाम से ऋषिकेश छोड़ने के बाद भी पीछा नहीं छोड़ा। ऋषिकेश से बद्रीनाथ की तरफ चलते हुए करीब 20 किमी तक कभी हल्का तो कभी भारी जाम लगता है। कुल मिलाकर जो दूरी मुश्किल से कुछ मिनट में तय होती है, उसे तय करने में घंटों लग गये।

खास बात यह है कि चारधाम यात्रा शुरू होने से कई महीने पहले ही टिहरी और देहरादून जिला प्रशासन के अलावा दोनों जिलों की पुलिस और ट्रैफिक पुलिस ऋषिकेश में ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त करने के लिए लगातार प्रयास कर रही है। कई बार ट्रैफिक प्लान बनाने के दावे किए जा चुके हैं। लेकिन अब तक ऐसा कुछ भी जमीन पर नजर नहीं आ रहा है।

ऐसे में यात्रा काल शुरू होने के बाद ऋषिकेश में क्या स्थिति होगी, इसका सहज अनुमान लगाया जा सकता है। देश के दूसरे राज्यों से आने वाले तीर्थयात्री आमतौर पर अपने समय और बजट तय करके आते हैं। लेकिन, ऋषिकेश का जाम यात्रा की शुरुआत में ही उनका बजट और शेड्यूड बिगाड़ देगा, इसकी पूरी आशंका है।

ऐसा नहीं है यात्रा मार्ग में जाम की स्थिति सिर्फ ऋषिकेश में ही होगी। आगे भी कई जगह हमें ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ेगा। ऋषिकेश से कौडियाला तक बड़ी संख्या में लोग राफ्टिंग करने के लिए आते हैं। यहां कई ऐसे स्पॉट हैं जहां ऋषिकेश से ट्रैकर वाहनों की छत पर लाई गई राफ्ट गंगा में उतारी जाती हैं। इन सभी स्पॉट पर भी लगातार जाम की स्थिति नजर आई।

प्रशासन ने इन स्पॉट पर भी ट्रैफिक व्यवस्था दुरुस्त रखने के लिए कोई कदम फिलहाल नहीं उठाए हैं। आगे चलकर तीनधारा, देवप्रयाग, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, चमोली और जोशीमठ में भी जाम जैसी स्थिति यात्रा शुरू होने से पहले ही बन रही है। पिछले कई वर्षों से तीर्थयात्रा मार्ग के पार्किंग स्थल बनाने की बात लगातार की जा रही है। लेकिन, यात्रा शुरू होने से 10 दिन पहले तक ऋषिकेश से जोशीमठ तक कहीं भी कोई पार्किंग स्थल नजर नहीं आया। सभी जगहों पर गाड़ियां सड़कों के किनारे ही पार्क की जा रही हैं, जो यात्रा में बड़ी बाधा पैदा करेंगे।

जाम के अलावा तीर्थयात्रा मार्ग में एक दूसरी बड़ी चुनौती कचरे से निपटने की है। ऋषिकेश से लेकर चारों धामों तक कहीं भी कचरा प्रबंधन और खासकर प्लास्टिक कचरे के प्रबंधन की कोई व्यवस्था नजर नहीं आती। ज्यादातर कस्बों में नगरों और कस्बों का कचरा उठाकर नदी के हवाले कर दिया जा रहा है। जोशीमठ पहुंचने से पहले सड़क और अलकनन्दा नदी के बीच के ढलान को डंपिंग ग्राउंड बनाया गया है।

यहां अक्सर कचरे में आग लगी देखी जा सकती है। यही हालात देवप्रयाग, कर्णप्रयाग और अन्य नगरों और कस्बों की भी है। यात्रा मार्ग के एक प्रमुख नगर ‘गौचर’ का एक वीडियो कुछ समय पहले सोशल मीडिया पर जमकर वायरल हुआ। इस वीडियो को लेकर इतना हंगामा हुआ कि चमोली के डीएम को ट्वीट कर बताना पड़ा की जांच में यह वीडियो सही पाया गया है। और दोषियों के विरुद्ध कार्रवाई की जा रही है। इस सबके बावजूद नगरों और कस्बों के आसपास नदी के किनारे कचरे के ढेर नजर आ रहे हैं।

इस बार बद्रीनाथ यात्रा मार्ग के मुख्य पड़ाव जोशीमठ में हो रहे भूधंसाव को लेकर चारों धामों की ‘कैरिंग कैपेसिटी’ का मुद्दा भी जोर-शोर से उठा। यात्रा मार्गों की स्थिति और उच्च हिमालयी क्षेत्र में स्थित चार धामों की पारिस्थितिकी के साथ ही वहां तीर्थयात्रियों के लिए उपलब्ध व्यवस्थाओं को देखते हुए सीमित संख्या में तीर्थयात्रियों को चार धामों तक जाने की अनुमति देने की मांग उठी थी। लेकिन, सरकार ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया।

कई जगहों पर तीर्थ पुरोहितों ने भी ऐसी किसी व्यवस्था का विरोध किया। उत्तराखंड के मुद्दों पर लगातार काम करने वाली देहरादून स्थिति संस्था ‘एसडीसी फाउंडेशन’ भी उन संस्थाओं में शामिल है, जिन्होंने चार धामों में ‘कैरिंग कैपेसिटी’ का मुद्दा जोर-शोर से उठाया था। फाउंडेशन के अनूप नौटियाल कहते हैं कि सरकार का एक मात्र टारगेट रिकॉर्ड बनाना है। लेकिन, रिकॉर्डतोड़ तीर्थयात्रियों की व्यवस्था करना और एक साथ इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने के कारण होने वाली अव्यवस्था से निपटने की तैयारी सरकार की प्राथमिकता में नहीं है।

चार धामों की ‘कैरिंग कैपेसिटी’ के सवाल पर अनूप नौटियाल कहते हैं कि प्रशासन की ओर से धामों की ‘कैरिंग कैपेसिटी’ तय की जाती है, वह वहां उपलब्ध होटल और धर्मशालाओं के कमरे गिनकर की जाती है। लेकिन, मामला सिर्फ इतना ही नहीं है। ‘कैरिंग कैपेसिटी’ का आकलन करते समय इस उच्च हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता पर ध्यान देने की जरूरत है।

नौटियाल आगे कहते हैं कि ‘कैरिंग कैपेसिटी’ का आकलन करने की जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों के बजाय एक विशेषज्ञ समिति को दी जानी चाहिए, जिसमें पर्यावरणविद्, ग्लेशियर विशेषज्ञ और भूवैज्ञानिक शामिल हों। यह कमेटी तय करे कि पर्यावरण और पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए धामों में प्रति दिन और प्रति सीजन कुछ कितने तीर्थयात्रियों को जाने की अनुमति दी जानी चाहिए। वे कहते हैं कि चारधामों में तीर्थयात्रियों की संख्या के रिकॉर्ड की धारणा हिमालय के लिए खतरनाक है।

भूवैज्ञानिक डॉ. एसपी सती में विभिन्न मंचों से चार धामों की ‘कैरिंग कैपेसिटी’ का मामला उठाते रहे हैं। वे कहते हैं कि हिमालयी क्षेत्र की भू-संरचना इतना बोझ उठाने लायक नहीं है, जितना बोझ इस बार डाला जा रहा है। सबसे पहले ‘ऑलवेदर रोड’ के नाम पर पहाड़ों को भारी नुकसान पहुंचाया जा चुका है।

चारधामों की सड़कें चौड़ी करने के लिए अवैज्ञानिक तरीके से पहाड़ों का कटान हुआ है। इस कटान में हजारों की संख्या में पेड़ कटे हैं और पहाड़ों का मलबा बेतरतीब तरीके से नदियों के हवाले किया गया है। दूसरा खतरा ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेलवे लाइन की सुरंग है। इस सुरंग के लिए भारी मात्रा में विस्फोटक इस्तेमाल किये जा रहे हैं। जिन-जिन गांवों और नगरों से यह सुरंग गुजर रही है, वहां लगातार जमीन हिल रही है और दरारें आ रही हैं।

प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रो. रवि चोपड़ा कहते हैं कि जब भी इन तरह के निर्माणों को लेकर कहीं कोई बात कही जाती है कि इसे विकास से जोड़ दिया जाता है और सवाल उठाने वालों को विकास विरोधी करार दिया जाता है। लेकिन, स्थिति ऐसी नहीं है। वे कहते हैं कि विकास कार्य जरूरी हैं। चौड़ी सड़क भी जरूर होनी चाहिए। चार धाम को मास्टर प्लान के अनुसार विकसित किया जाना चाहिए। रेलवे की टनल भी बननी ही चाहिए और जल विद्युत परियोजनाओं की भी सख्त जरूरत है। लेकिन, इन सभी तरह की योजनाओं को शुरू करने से पहले कई तरह की वैज्ञानिक जांचों की जरूरत है।

इसमें भूगर्भीय जांच, मिट्टी की जांच, पहाड़ियों बनावट आदि की जांच जरूरी है। इस तरह की जांचों में समय और धन ज्यादा लगता है। सरकार को कम से कम रकम खर्च करके जल्दी से जल्दी नतीजा चाहिए होता है। दरअसल उद्देश्य विकास से ज्यादा वोट होता है। अगले चुनाव में विकास के नाम पर वोट लेने होते हैं, इसलिए किसी भी योजना की वैज्ञानिक पहलुओं को आकलन करने के बजाय, जमीन पर ज्यादा से ज्यादा विकास दिखाने के प्रयास में ऐसा किया जाता है।

(त्रिलोचन भट्ट वरिष्ठ पत्रकार हैं और उत्तराखंड में रहते हैं।)

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