चंदौली। केंद्र की मोदी सरकार ने जिस उज्जवला योजना से गरीब, वंचित और निम्न मध्यम वर्ग को धुएं से मुक्त रसोई बनाने की मुहीम चलाई थी। वह वंचित तबके के लिए आज भी दूर की कौड़ी बनी हुई है। ये वंचित तबका अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में दो वक्त का भोजन बनाने के लिए रास्ते, बगीचे, जंगल और खेत से ईंधन के लिए लकड़ी व खर-पतवार चुनने को विवश है। इतना ही नहीं मवेशियों को पालकर गोबर से बने उपले (गोइंठा) से निकलने वाली जहरीले धुएं-धुंध में लाखों गृहणियों को सांस लेने में तकलीफ और दम घुटन जैसी विपरित परिस्थितियों से रोजाना दो-चार होना पड़ता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ घरेलू वायु प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल तक़रीबन पांच लाख लोगों के मौत की आशंका जताई थी। मसलन, घरेलू वायु प्रदूषण और मौत के आंकड़े को कम करने के लिए केंद्र सरकार की फ्लैगशिप प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के रूप में सामने आई। गरीबों के घरों में भी एलपीजी जैसे सुरक्षित ईंधन से खाना पके, इसके लिए प्रधानमंत्री उज्जवला योजना की शुरुआत वर्ष 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बलिया जनपद से की थी। इसके अंतर्गत, उत्तर प्रदेश में अब तक लगभग 1.75 करोड़ पात्र परिवारों को निःशुल्क गैस कनेक्शन दिया गया है। लेकिन, प्रदेश में अब भी दूर-दराज के जनपदों कई गांवों में उज्जवला योजना की लाभार्थी महिलाओं के जीवन में कोई ठोस बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है।
यह ऐसा तबका जो, बेहद निर्धन और अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए जीतोड़ संघर्ष कर रहा है। उसकी आमदनी बेहद सिमित और रोजगार के मौके भी पर्याप्त नहीं है। लिहाजा, उज्ज्वला योजना का सिलिंडर मिलने के बाद भी वह दैनिक रूप से इस्तेमाल नहीं कर पा रहा है। इसकी तस्वीर को चंदौली जनपद के बरहनी, चकिया, नौगढ़, नियामताबाद और सकलडीहा विकासखंड क्षेत्रों में देखी जा सकती है। जिला पूर्ति विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना 1.97 लाख 521 लाभार्थी है।
बरहनी विकासखंड के तेजोपुर गांव में उज्ज्वला योजना की कई लाभार्थी महिलाएं चूल्हा फूंकने को विवश हैं। यहां की महिलाओं या समाज की स्थिति ऐसी है कि, इनको खाना पकाने के लिए ईंधन की कुछ लकड़ियां और उपले भी बहुत परिश्रम के बाद मिल पाते हैं। इनकी पेट की आग के आगे जहरीले धुएं से होने वाले नुकसान कुछ नहीं है।
उज्ज्वला योजना की लाभार्थी मीना देवी “जनचौक” से कहती हैं “उज्ज्वला योजना में सिलिंडर मिला बहुत अच्छी बात है। लेकिन हमलोग खाना लकड़ी और उपले पर ही बनाने को विवश है। इस ईंधन की व्यवस्था भी हमलोग बड़ी मुश्किल से कर पाते हैं। परिवार के सभी सभी सदस्यों की मेहनत-मजदूरी के बाद भी परिवार का भरण-पोषण बड़ी मुश्किल से हो पाता है। योजना का लाभ मिले 6-7 साल का दिन हो गया। बड़ी मुश्किल से गैस पर होली-दीवाली पर 15-20 बार खाना बनाए हैं। वो भी किसी पड़ोसी से चूल्हा मांगकर, क्योंकि डेढ़-दो हजार रुपए के चूल्हे को खरीदने का सामर्थ्य नहीं है। इस वजह से लकड़ी-उपले पर खाना बनाने को विवश हैं। मेरे छोटे से घर में खाना बनाने के दौरान धुआं भर जाता है। सांस लेने में तकलीफ होती है। कई बार तो खांसते-खांसते जान पर बन आती है, लेकिन कोई और विकल्प नहीं है।”
सुगवती का भी उज्जवला योजना का सिलिंडर धूल फांक रहा है। हैरानी की बात यह है कि जहां सरकार नौ करोड़ से अधिक एलपीजी कनेक्शन बांटने की बात कर रही है, वहीं दूसरी तरफ तेजोपुर में केंद्र सरकार की फ्लैगशिप उज्ज्वला योजना की लाभार्थियों को मिले गैस सिलिंडर हाथी के दांत प्रतीत हो रहे हैं। सैकड़ों उज्ज्वला लाभार्थी महिलाएं रोजाना उपले, भूसी और लकड़ी से मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकने को विवश हैं। उज्ज्वला सुविधा का नियमित लाभ उठाने से महरूम कई महिलाओं को धुआं, धुंध, राख और ताप से अनेक बीमारी भी लग रही है।
नौगढ़ विकासखंड के गुपुत कोल को उज्ज्वला योजना के तहत तकरीबन छह साल पहले रसोई गैस सिलेंडर और चूल्हा मिला था। वह “जनचौक” को बताते हैं कि “मनरेगा और वन विभाग के गड्ढे खोदने के बाद भी इतनी आमदनी भी नहीं होती है, जिससे कि परिवार का गुजारा आसानी से हो सके। सात-आठ लोगों के परिवार में भोजन में दाल और सब्जी खाए हफ़्तों बीत जाता है। पूड़ी-पकवान तो त्योहारों पर ही होता है। ऐसे में जब सिलिंडर मिला था, तो खाना बना। गैस ख़त्म हो गई तो भरवाने का आर्थिक सामर्थ्य ही नहीं हो पा रहा है। सालों से घर के कोने में खाली सिलेंडर और चूल्हा फेंका हुआ है। तब से लेकर अब तक मेरे घर का खाना लकड़ी और गोबर की कंडी पर ही बन रहा है। चूल्हे से निकलने वाले धुएं से बड़ी परेशानी होती है, लेकिन करें भी तो क्या ? गैस रिफिल के दाम सरकार 500-600 रुपए करे, तो हमलोग जैसे-तैसे सिलेंडर रिफिल करा पाएंगे।” मंजू कोल की भी यही समस्या है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि एक गरीब महिला जब लकड़ी, उपले और भूसी से मिट्टी के चूल्हे पर खाना पकाती है, तो एक दिन में उसके शरीर में 400 सिगरेट के बराबर धुआं चला जाता है। आंखों में जलन, सिर में दर्द, दमा, श्वास संबंधी बीमारियां आम होती है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और इंडियन चेस्ट सोसाइटी फाउंडेशन के आंकड़ों के अनुसार, 5 लाख मौतें सालाना लकड़ी, उपले-भूसी ईंधन वाले रसोई से होती थी।
उज्ज्वला योजना की लाभार्थी संतरा को रोजाना उपले-लकड़ी के चूल्हे पर खाना पकाना पड़ता है, जबकि उन्हें गर्म और धुएं से भरे वातावरण में दिक्कत होती है। संतरा ने बताया कि ‘करीब पांच-छह साल पहले उज्ज्वला योजना का लाभ मिला था। तब से मैं सिलिंडर घर में पड़ा हुआ है। हमलोगों की आमदनी इतनी कम है की, मैं राशन व अन्य खर्चों की व्यवस्था करूं कि, सिलेंडर भराने के लिए पैसे की व्यवस्था करूं या खाना-किराने का इंतजाम करूं ? सड़क, खेत-खेत घूमकर ईंधन के लिए लकड़ी व खर-पतवार इकठ्ठा करती हूं।”
विकास की मां के नाम पर मिला उज्ज्वला योजना का सिलिंडर कई महीनों से धूल फांक रहा है। वह इनके छोटे से घर में जगह घेरने के चलते परेशानी का सबब बना हुआ है। विकास बताते हैं “गरीबी के चलते मेरा परिवार इस गैस सिलिंडर का खाना बनाने में इस्तेमाल नहीं कर पाता है। जब से मिला है तब से रखा हुआ है। होली-दीवाली के त्योहार पर रिश्तेदारी से एक-दो दिन के लिए चूल्हा मांग कर लता हूँ तो खाना बनाता है। फिर वापस कर देता हूं। इसके बाद साल भर धुंए वाली रसोई में मेरे घर की औरतें परेशान होती हैं। पहले कोरोना फिर रसोई गैस सिलिंडर की आसमान छूती कीमतों ने हम गरीबों के हौसले पस्त कर दिए थे। अब कुछ दाम घटे भी हैं तो, हम मजदूरों की आमदनी से इतनी भी बचत नहीं हो पाती की चूल्हा खरीद लें।”
1 मई साल 2016 को पीएम नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया जिले से उज्ज्वला योजना की शुरुआत की थी। तब मार्च 2020 तक इस योजना के तहत आठ करोड़ कनेक्शन देने का टारगेट सेट किया गया था। अब उज्ज्वला योजना का दूसरा चरण भी पूरा हो चुका है। सरकार ने प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तीसरे चरण को मंजूरी दे दी है।
आंकड़ों के अनुसार अभी तक देश भर में उज्ज्वला योजना के तहत 9 करोड़ से ज्यादा एलपीजी कनेक्शन दिए जा चुके हैं। दूसरे चरण में एक करोड़ और लाभार्थियों को जोड़ने का टारगेट है। मसलन, बेहतर होता कि सरकार अति गरीब और समाज के अंतिम तबके तक पहुंची योजना के सतत इस्तेमाल के बारे में भी नए सिरे से विचार करे, ताकि योजना का लाभ देकर सिर्फ आंकड़ें न दर्ज किए जाए बल्कि जमीन पर लाभार्थियों का निरंतर लाभ व इस्तेमाल भी होता रहे।
कांग्रेस के प्रवक्ता वैभव कुमार त्रिपाठी “जनचौक”से कहते हैं कि ‘गरीब महिलाओं की आंखों में धुआं न जाए, ये सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी द्वारा कही जाने वाली बात थी। इस बात से उन्होंने अपने कॉर्पोरेट एजेंडे को सेट किया और सबको कनेक्शन दिलवा दिया। फिर पीछे से एलपीजी गैस के दाम धीरे-धीरे लगातार बढ़ने लगे और देखते-देखते दो गुना हो गए। जब योजना का आगाज हुआ था तब एलपीजी सिलेंडर के दाम लगभग पांच से छह सौ रुपए था, आज की तारीख में सिलेंडर का दाम लगभग एक हजार रुपए हैं।”
वैभव आगे कहते हैं “ये दिखाते कुछ हैं और देते कुछ और हैं। ‘कांग्रेस की सरकार में एक रसोईं गैस सिलेंडर 350-400 रुपए में मिलता था। आज भाजपा सरकार में सिलेंडर के दाम तकरीबन एक हजार रुपए हो गए है। यह सरकार सिर्फ आम पब्लिक का दोहन करना जानती है। देश के गांव -शहर में बढ़ती महंगाई के लिए पूर्ण रूप से एक तरफा केंद्र सरकार जिम्मेदार है। “
“निदान यही है कि सरकार को जीएसटी के दायरे में पेट्रोलियम को लाना चाहिए। साथ ही तत्काल प्रभाव से एलपीजी गैस के सब्सिडी को भी जारी कर देना चाहिए। फौरी तौर पर रसोईं गैस और पेट्रोलियम को जीएसटी के दायरे में लाकर कीमतों को कम किया जाए, ताकि गरीबों की दुश्वारियां कुछ कम हो सके।”
(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। यूपी के चंदौली से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
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