झारखंड चुनाव : पारदर्शिता और सुरक्षा के नाम पर KYC का सरकारी जाल, आदिवासी मजदूरों को किया बेहाल

Estimated read time 3 min read

झारखंड। लोहरदगा जिला के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत कान्द्रा पंचायत के बुटी गांव निवासी भोला उरांव के बैंक खाता केवाईसी (Know your customer) के लिए फ्रीज है। यानी उनका बैंक से लेनदेन पूरी तरह बंद है। बैंक से बात करने पर बैंक वालों ने कहा कि केवाईसी करवाना होगा जिसके लिए आधार कार्ड लाना होगा।

आधार कार्ड लेकर भोला उरांव जब बैंक गए, तब बैंक वालों ने बताया कि आपका केवाईसी नहीं हो सकता है क्योंकि आपका आधार कार्ड और बैंक खाता के नाम के स्पेलिंग में फर्क है।

दरअसल भोला उरांव के बैंक खाता के नाम के स्पेलिंग Bhola Oraon अंकित है, जबकि उनके आधार कार्ड में Bhoula Oraon लिखा हुआ है। बैंक वालों ने कहा कि आधार कार्ड में नाम का स्पेलिंग सुधरवा लीजिए। जब भोला उरांव आधार कार्ड सुधरवाने आधार केन्द्र गए तो वहां कहा गया कि आधार कार्ड को सुधारने के लिए कोई अन्य डॉक्यूमेंट चाहिए।

जब भोला ने पासबुक दिखाया तो केन्द्र वाले ने कहा कि पासबुक में लिखा हुआ नाम वगैरह साफ नहीं दिख रहा है, पास
बुक नया प्रिंट करवा के लाइये।

जब इसे लेकर भोला उरांव बैंक गए और नया पासबुक की मांग की और कहा कि इसमें साफ नहीं दिख रहा है, आधार सुधारने वाले ने कहा है कि इसके लिए साफ-साफ लिखा होना जरूरी है। तब बैंक वालों ने कहा कि जब तक केवाईसी नहीं होता है तब तक नया पासबुक इशू नहीं होगा।

KYC के चक्कर में फंसे भोल उरांव

इस तरह भोला उरांव इस नई ट्रांसपेरेंसी तकनीक सिस्टम में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। इतना ही नहीं इनका वोटर कार्ड आईडी में भी गड़बड़ है। वोटर कार्ड में भोला उरांव को मौला उरांव कर दिया गया है।

चौंकाने वाली बात यह है कि इसके बावजूद वे वर्षों से लगातार वोट देते आ रहे हैं। इसे लेकर आज तक किसी ने कोई सवाल नहीं उठाया न टोका-टाकी की। इसकी वजह साफ है कि वोट देने के लिए नाम की किसी शुद्धता की शायद जरूरत नहीं है।

यह जरूरत केवल जनता को मिलने वाली सुविधाओं पर लागू होती है, नेताओं को मिलने वाले वोट पर नहीं। यह एक विराट प्रश्न है, जिसका जवाब कहां गुम है पता नहीं!

कहना ना होगा कि इस तरह की पारदर्शिता और सुरक्षा के बहाने जो तकनीकी सिस्टम लागू किए गए हैं उसके  शिकार अकेले न तो भोला उरांव हैं और न ही अकेला राज्य झारखंड है। कमोबेश देश के लगभग राज्य और वहां के गरीब, आदिवासी, दलित और मजदूर वर्ग के लोग इस सिस्टम के शिकार हैं।

उल्लेखनीय है कि पारदर्शिता और सुरक्षा के नाम पर देश में कई नयी तकनीकी व्यवस्थाएं बनी हैं, जिसके तहत बैंक खातों को केवाईसी की अनिवार्यता पर बैंक फोकस कर रहा है। झारखंड भी इससे वंचित नहीं है और इसके मकड़जाल में झारखंड के गरीब आदिवासी ऐसे फंसे हैं कि उनको उनके ही पैसों से वंचित कर दिया गया है।

माना जा रहा है कि राज्य में 60 फीसद से अधिक बैंक एकाउंट फ्रीज हैं। जिसके कारण राज्य सरकार द्वारा लाई गयी कई जनाकांक्षी योजनाओं के लाभ से यहां की आम जनता वंचित होने के कगार पर है।

इस नयी तकनीकी व्यवस्था के कारण झारखंड की हेमंत सरकार द्वारा महिलाओं के लिए लाई गई नई योजना “मैया सम्मान योजना” सहित कई जनाकांक्षी योजनाएं भी प्रभावित हैं।

मैया सम्मान योजना, झारखंड सरकार की एक ऐसी योजना है, जिसके तहत राज्य की महिलाओं को खास तौर पर मांओं की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए हर महीने 1,000 रुपये का भुगतान किया जाता है। जो सीधे महिलाओं के बैंक खातों में भेज दिया जाता है।

वहीं आदिम जनजाति पेंशन योजना के तहत आदिम जनजातीय महिलाओं, जिनकी उम्र 18 साल से ऊपर है और जिनकी शादी हो चुकी है, को हर माह 1,000 रूपए मिलते हैं। वे पैसे भी सीधे लाभार्थी के बैंक एकाउंट में जाते हैं।
छात्रों की छात्रवृति का भुगतान भी उनके बैंक एकाउंट में जाते हैं।

मनरेगा योजना में काम करने वाले मनरेगा मजदूरों को भी उनकी मजदूरी के पैसे सीधे बैंक खाते में जाते हैं। बुजुर्गों के लिए वृद्धा पेंशन योजना की स्थिति भी वही है। अन्य कई जनाकांक्षी योजनाएं हैं, जिसके लाभार्थी को नकद भुगतान उनके बैंक एकाउंट में जाते हैं।

ऐसे में जब राज्य में लोगों के एकाउंट केवाईसी के नाम पर फ्रीज कर दिए गए हैं, तो वे लोग अपने बैंक खातों से पैसे नहीं निकाल पा रहे हैं, जिससे उनके दैनिक जीवन काफी कष्टमय हो गया है। यह स्थिति तब तक बनी रहेगी जब तक वे केवाईसी पूरी कर लेने की औपचारिकताएं पूरी नहीं कर लेते है।

इस स्थिति के एक सर्वे से जो मामले उभरकर सामने आए हैं, वे काफी चिन्ताजनक हैं। सर्वे में सामने आया है कि कई लोगों के बैंक खाता और आधार कार्ड में अंकित नाम में काफी गड़बड़ियां हैं। जिसके कारण उनके बैंक एकाउंट का केवाईसी नहीं हो पा रहा है।

बैंक वाले उन्हें आधार कार्ड सुधारवाने की हिदायत दे रहे हैं, वहीं आधार कार्ड सुधारने के आधार केन्द्र वाले कई डॉक्यूमेंट की मांग कर रहे हैं। दूसरी तरफ जिनका सब कुछ ठीक है, उन्हें बैंक वालों की यातना झेलनी पड़ रहा है। जैसे- लंबी लाइन में लगने बाद जब उनका नंबर आता है, तो बैंक बंद होने का समय हो जाता है।

वहीं खाताधारकों की यह भी शिकायत है कि कहीं-कहीं बैंक कर्मी अपना काम ईमानदारी से नहीं कर रहे हैं। वे मोबाइल पर किसी से बात करने में लगे रहते हैं और काफी धीमी गति से अपना काम करते हैं। ऐसे में बैंक का समय भी खत्म हो जाता है और खाताधारकों को बैरंग वापस लौटना पड़ता है।

लगातार ऐसा होने के बाद खाताधारक पुनः बैंक जाने से गुरेज कर रहे हैं और अपनी कठिनाई को नियति मानकर उस परेशानी को गले लगाने को मजबूर हैं।

कहना ना होगा कि इतने बड़े पैमाने पर बैंक खातों को फ्रीज कर देने की वजह से बुजुर्ग पेंशनभोगी जो केवल पेंशन पर ही निर्भर हैं, छात्रवृत्ति पाने वाले बच्चे और झारखंड की नई योजना मैया सम्मान योजना के तहत 1,000 रुपये प्रति माह पाने वाली महिलाओं की स्थिति काफी दयनीय हो गई है।

केवाईसी (अपने ग्राहक को जानें) बैंकिंग प्रणाली में पहचान को सत्यापित करता है। वहीं गरीबों और सुदूर क्षेत्रों में बसे आदिवासी समुदाय के लिए इन औपचारिकताओं को पूरा करना आसान नहीं है। उन्हें प्रज्ञा केंद्र पर आधार नंबर का बायोमेट्रिक सत्यापन करवाना पड़ता है।

सत्यापन प्रमाणपत्र को फिर बैंक में ले जाकर देना होता है, वहां एक फॉर्म भरकर आवश्यक दस्तावेजों के साथ दोनों को जमा करना होता है। उसके बाद, ग्राहक खाते को फिर से सक्रिय करने के लिए बैंक की दया पर निर्भर होना होता है। अगर सबकुछ ठीक रहा तब भी इस प्रक्रिया में महीनों लग सकते हैं।

ग्रामीण बैंकों की भीड़-भाड़ से हालात और स्थानीय बैंकों में लंबी कतारें बताती हैं कि आम आदमी इस प्रक्रिया से कितने परेशान हैं।

लोहरदगा जिला के सेन्हा प्रखंड अंतर्गत कान्द्रा पंचायत के बुटी गांव निवासी केवाईसी की मकड़जाल में फंसे भोला उरांव की तरह ही इसी गांव के निवासी हैं- बसंत उरांव, जिनके बैंक खाते में अंग्रेजी स्पेलिंग Basant Oraon अंकित है, जबकि आधार कार्ड में Basnt Oraon लिखा हुआ है।

बसंत उरांव के नाम में एक अक्षर का अंतर है

यानी s के बाद a नहीं है। इनका भी खाता केवाईसी के लिए फ्रीज है। केवाईसी करवाने के लिए बैंक की शर्त भोला उरांव की तरह ही है। यही वजह है कि इनका भी केवाईसी नहीं हो पा रहा है।

इसी गांव की हैं सरिता उरांव, जिनका बैंक एकाउंट सरिता उरांव के नाम से है, लेकिन इनके आधार कार्ड में अर्चना उरांव अंकित है। सरिता ने बताया कि वे पिछले तीन साल से केवाईसी नहीं करवा पा रही हैं और उनका खाता फ्रीज है।

संगीता उरांव

उन्हें कहा गया कि पहले आधार कार्ड सुधारवाओ, लेकिन अभी तक उनका आधार नहीं सुधर पाया है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा?

उर्मिला उरांव भी इसी गांव की निवासी हैं। उनके परिवार में 7 सदस्य हैं, जिनमें से 6 लोगों का बैंक में एकाउंट है और सभी का खाता केवाईसी के कारण बंद पड़ा है। वे बताती हैं कि हाल ही में उन्होंने बैंक के काउंटर पर लगी लंबी लाइन में पूरे दो दिन खड़ी रहीं लेकिन उन सबका केवाईसी नहीं हुआ, क्योंकि उनका नंबर आते ही काउंटर बंद हो गया था।

उर्मिला उरांव काट रही हैं बैंक के चक्कर

बैंक कर्मी की कितनी भी चिरौरी की, लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा, वह बार-बार यही कहता रहा कि बैंक बंद होने का समय हो गया है, कल आना। वह बार-बार जाती रहीं लेकिन कभी लिंक का प्राब्लम तो कभी समय समाप्त। वे भी परेशान हैं कि इस समस्या का समाधान कैसे होगा?

लोहरदगा के ही सेन्हा प्रखंड की गोटीडुमर की रहने वाली शांति उरांव की समस्या काफी उलझी हुई है।
वे हिन्दी नहीं बोल पाती हैं। वे स्थानीय भाषा में बताती हैं कि उसका मनरेगा के काम का पैसा और तेन्दु पत्ता (बीड़ी बनाने का पत्ता) का पैसा नहीं मिल रहा है।

क्योंकि वह पैसा बैंक में जाता है। एक बिचौलिया जिसे वे मुंशी कहती हैं, के बारे में बताती हैं कि उसका पैसा बैंक में नहीं जा रहा है। उसे पता करने वे अंबिकापुर स्थित बैंक का कई बार चक्कर लगा चुकी हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ।

अंबिकापुर बैंक झारखंड और छत्तीसगढ़ की सीमा पर स्थित है जो छत्तीसगढ़ के अंतर्गत आता है। शायद किसी दलाल ने शांति का बैंक एकाउंट अंबिकापुर में खुलवा दिया होगा।

लोहरदगा जिले के ही धनमुंजी की रहने वाली सोरा उरांव के परिवार में 5 सदस्य हैं। जिनमें से 3 लोगों का बैंक एकाउंट है, जो केवाईसी की वजह से फ्रीज है। सोरा ने जब हाल ही में केवाईसी के लिए बैंक जाकर अप्लाई किया तब उन्हें एक टोकन दिया गया कि आप 27 दिसम्बर को आइयेगा।

वे बताती हैं कि जब भी बैंक गयीं, तो बैंक में काम करने वाले लोग फोन पर बात करने में लगे रहते हैं, जल्दी कोई नहीं सुनता। उनका कहना है कि इसी क्रम में लंबा समय निकल जाता है और बैंक बंद होने का टाइम हो जाता है।

उन्होंने बताया एक दिन बैंक से एक टोकन देकर 27 दिसम्बर को आने को कहा गया है। सोरा का कहना है कि बैंक के लोग हमारे वक़्त की न कीमत समझते हैं न ही इज्ज़त करते हैं।

वहीं राज्य के लातेहार जिले का मनिका प्रखण्ड अंतर्गत लंका गांव के उचवाबल टोला के अशोक परहिया के तीन बच्चों की छात्रवृत्ति मिलनी इसलिए बंद हो गई है, क्योंकि उनके बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए हैं। बंद एकाउंट के बारे में जानने के लिए जब अशोक परहिया बैंक गए तो बताया गया कि केवाईसी करवाना होगा।

अशोक परहिया

अशोक ने सीएससी संचालक से मदद ली और केवाईसी करवाने के लिए प्रति बच्चे 150 रुपये का भुगतान किया, लेकिन कुछ नहीं हुआ। उन्होंने बच्चों के आधार और पासबुक की प्रतियां संचालक को दे दी हैं, लेकिन वे अंतहीन इंतजार कर रहे हैं। उन्हें हमेशा बैंक से जांच करने के लिए कहा जाता है। फिलहाल, अशोक ने हार मान ली है।

लातेहार के मनिका प्रखण्ड के ही कुटमु गांव की संगीता देवी हर महीने मुश्किल से गुज़ारा कर पा रही हैं। उनके पति दृष्टि बाधित हैं और उनके दो बच्चे हैं। उनका बैंक खाता केवाईसी संबंधी समस्याओं के कारण फ्रीज कर दिया गया है। केवाईसी करवाने के क्रम में आधार कार्ड में कोई गलती बताया गया।

आधार कार्ड में उस गलती को सुधारने के लिए सीएससी संचालक ने एक हजार रूपए लिये। वहीं एक बच्चे का आधार कार्ड बनवाने का भी एक हजार रूपए लिये। पैसे न होने के कारण दूसरे बच्चे का आधार कार्ड बनवाना मुश्किल हो गया है। वह बताती है कि उसके पति देख नहीं पाते हैं, उनसे कोई काम नहीं होता है। घर की पूरी जिम्मेवारी उसी के कंधे पर है।

लातेहार के मनिका प्रखण्ड साधवाडीह गांव की सोमवती देवी केवाईसी संबंधी समस्याओं के समाधान में आने वाली कठिनाइयों के बारे में बताते हुए वह कहती हैं कि जब भी वह बैंक जाती थीं, तो वहां इतनी भीड़ होती थी कि अक्सर हम लोग वापस लौट जाते थे।

उन्हें अपना केवाईसी करवाने में 15 दिन लग गए। हालांकि, उनके पति निर्मल सफल नहीं हुए और उन्होंने लातेहार के पंजाब नेशनल बैंक में नया खाता खुलवा लिया है। ऐसे में पुराना खाते में फ्रीज पैसा नहीं मिलेगा।

यह संकट भारतीय रिजर्व बैंक के दबाव में समय-समय पर केवाईसी पर बैंकों के बढ़ते उबाऊपन स्थिति को दर्शाता है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक स्थानीय बैंक मैनेजर ने बताया कि हमारे बैंक में पास 2,000 से अधिक केवाईसी आवेदनों का बैकलॉग है। जबकि प्रतिदिन केवल 30 केवाईसी की हमारी प्रोसेसिंग क्षमता है।

गरीब लोगों के पास आम तौर पर आधार से जुड़ा एक खाता होता है, जिसमें अधिकतम बैलेंस 1 लाख रुपये होता है। हर कुछ सालों में इतनी सख्त केवाईसी की क्या जरूरत है? इस पूरी प्रक्रिया की तत्काल समीक्षा की जरूरत है।

(झारखंड से विशद कुमार की ग्राउंड रिपोर्ट।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author