किरंदुल, दंतेवाड़ा। पिछले 15 दिनों से बस्तर में पानी नहीं कहर बरस रहा है। लगातार होने वाली इस मूसलाधार बारिश ने बस्तर समेत छत्तीसगढ़ के कई हिस्सों को अपनी चपेट में ले लिया है। नतीजा यह है कि किसानों के न घर सुरक्षित हैं और न ही खेत। आम जन जीवन पूरी तरह से अस्त व्यस्त हो चुका है। बारिश के चलते सारी नदियां और नाले उफान पर हैं। हालात यहां तक पहुंच चुके हैं कि बस्तर संभाग के कई गांवों का अपने-अपने ज़िला मुख्यालयों से संपर्क टूट गया है।
लेकिन इनमें दंतेवाड़ा के लौह नगरी के तौर पर मशहूर किरंदुल में यह बारिश आफत बनकर आयी है। 21 जुलाई को इसने जो तांडव मचाया उसको यादकर लोगों की रूह तक कांप जाती है। बारिश का पानी एनएमडीसी के चेक डैम को तोड़कर लोहे के पत्थरों और उसके डस्ट के साथ सीधे आयरन हिल के नीचे बसे घरों में जा घुसा। ऐसा 11 सी के चेक डैम को तोड़ने के जरिये संभव हुआ।
क्या है एनएमडीसी का 11 सी और चेक डैम?
किरंदुल के पहाड़ में पिछले कई दशकों से एनएमडीसी कंपनी की तरफ़ से लौह अयस्क का उत्खनन किया जाता है। इसी किरंदुल पहाड़ी के ऊपर 11 सी नामक क्षेत्र है और इसके आगे जाने पर 11 B माइनिंग एरिया है। दोनों स्थानों से लोहे अयस्क का उत्खनन किया जाता है।
11C में एनएमडीसी का चेक डैम बना हुआ है। यह चेक डैम एनएमडीसी की तरफ़ से पानी रोकने के लिए बनाया गया था। डैम में पहले से पानी भरा हुआ था और डैम में लोहे का गाद भी काफ़ी दिनों से जाम हो गया था। साथ ही बारिश का पानी और नाले का पानी जमा हो गया था। डैम पानी के भार को संभाल नहीं पाया और टूट गया।
डैम के टूटने से डैम का पूरा पानी और बारिश का पानी तेज रफ्तार से लोहे के पत्थरों और लोहे के डस्ट के साथ माइनिंग एरिया से नाले के सहारे सीधे नीचे बसे बस्ती के घरों में जा घुसा। पानी की रफ़्तार इतनी तेज़ थी कि इसने कई घरों और चार पहिया, दो पहिया वाहनों समेत कई वाहनों को अपने चपेट में ले लिया। बस्ती में रहने वाले बच्चे और कई सारे महिला पुरुष भी तेज़ बहाव में बह गए थे। हालांकि इन सबको स्थानीय लोगों ने रेस्क्यू करके बचा लिया और जान की हानि नहीं हुई। लेकिन वे अपने घर के सामानों, वाहनों को बचाने में नाकाम रहे। जिसका आकलन करना बहुत मुश्किल है।
इसके बाद जिला प्रशासन के अधिकारी जायजा लेने पहुंचे और उन्होंने पीड़ितों को हर संभव मदद देने का आश्वासन दिया और कइयों तक राहत सामग्री भी पहुंचाई गई।
आपदा पीड़ितों से मिलने स्थानीय आदिवासी विधायक चैतराम अट्टामी से लेकर वन मंत्री और दंतेवाड़ा ज़िले के प्रभारी मंत्री केदार कश्यप जो कि खुद भी आदिवासी समुदाय से आते हैं, भी किरंदुल पहुंचे और पीड़ितों को मुआवजा सहित राहत सामग्री दिलाने का आश्वासन दिया।
लेकिन बड़ी हैरान कर देनी वाली बात यह है कि मंत्री-विधायक दंतेवाड़ा ज़िले के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र किरन्दुल में लागातार दौरा करते रहे और मिलते रहे। प्रभावितों को हर संभव मदद पहुंचाने के लिए एनएमडीसी और जिला प्रशासन के अधिकारियों को निर्देशित भी कर रहे हैं। लेकिन न तो नेता और न ही अधिकारी किरंदुल आयरन हिल के नीचे बसे, किसानों के दर्द को साझ़ा करने पहुंचे हैं और ना ही उनका हाल जानने। यूं तो आयरन हिल के आस-पास की 53 पंचायतें लाल पानी से प्रभावित हैं, इस बार किसानों को काला पानी की भी सजा मिली है। 11 बी का डैम टूटने से नगर में लौहयुक्त पानी तो जमा हुआ ही है, लोगों का जीना मुहाल भी हो गया है।
वहीं किसानों को भी इस काला पानी ने नहीं बख्शा है। कड़मपाल और पाढ़ापुर गांव के किसानों का दर्द बड़ा है। बीते 21 जुलाई को एनएमडीसी प्रबंधन की लापरवाही से टूटे चेक डैम के पानी और लोहे के डस्ट से किरंदुल बस्ती के लोगों को ही नुकसान नहीं हुआ है बल्कि आयरन हिल के नीचे बसे गांव कड़मपाल और पाढ़ापुर में भी बहुत नुकसान हुआ है। दोनों गांवों के खेतों में लोहे की डस्ट भरी हुई है। इलाके के सभी खेतों में लोहे की डस्ट काला कीचड़ बनकर जम गयी है, और ऊपर एक परत बन गई है।
गांव के आदिवासी किसान एक स्वर में बताते हैं, एक तो एनएमडीसी की तरफ़ से कोई सुविधा नहीं मिली। और हमारे खेत हमेशा के लिए बर्बाद हो गए। लाल पानी का दंश तो दशकों से हम झेल ही रहे हैं, लेकिन इस बार का आयरन और लौह डस्ट युक्त पानी तो पूरी तरह से फसलों को ही बर्बाद कर रहा है। जिस खेत से होकर गुजर जाएगा वहां दाना भी पैदा नहीं होगा। और अब उन खेतों में आने वाले साल तो क्या कई सालों में फसल नहीं उगेगी। आयरन के इस डस्ट ने आदिवासी किसानों की चिंता बढ़ा दी है।
लोहे के लाल पानी प्रभावित किसानों को कम दर पर मिलता है मुआवजा
ऐसा नहीं है कि किसानों को मुआवजा नहीं मिलता है, मुआवजा तो मिलता है, लेकिन बेहद न्यूनतम दर का। एक हेक्टेयर का मुआवजा महज 1300 रुपए से 1500 रुपए तक है। यह मुआवजा भी दो से पांच वर्ष में मिलता है। किसान कहते हैं कि वो भी किसी किसान को 10 हजार किसी को 20 हजार रुपए दिया जाता है। इतना कम मुआवजा है कि घर परिवार का भरण-पोषण तक नहीं हो सकता है। यदि एक एकड़ की औसत पैदावार धान की निकाली जाए तो 8 से 10 क्विंटल की पैदावार होगी। सरकारें मुआवजा देती हैं सिर्फ दिखावे के लिए और किसान शिकार होता है छलावे का।
जीव-जन्तु भी नहीं बच रहे इस पानी में
बुजुर्ग किसान और पाढ़ापुर गांव के भूतपूर्व सरपंच भूसाराम कुंजाम दबे स्वर से आवाज़ निकालकर बताते हैं नाला प्रतिवर्ष बड़ा नुकसान पहुंचाता है।
जहां से नाला बह रहा है और लोहा पत्थर के टुकड़ों ने पूरे पांच एकड़ जमीन को बर्बाद कर दिया है। अब इस जमीन में किसी भी फसल की पैदावार नहीं ली जा सकती है। मेरी उम्र अब करीब 75 वर्ष की हो चुकी है। जब एनएमडीसी प्रोजेक्ट नहीं लगा था, तब इन नालों में पानी साफ और स्वच्छ बहता था। इसी पानी को हम और हमारे समुदाय के लोग पीते थे। लोहे के खनन से अब यह पानी पूरी तरह से दूषित हो चुका है। अब यह पानी न तो इंसानों के लिए बचा है और न ही जानवरों के लिए सुरक्षित है।
खेतों में घुसे आयरन डस्ट की चिंता से ग्रसित भूसा रास बताते हैं कि नालों में और खेतों में बहता यह पानी इतना जहरीला है कि अब नालों में जीव जन्तु तक नहीं बचे हैं। पहले नाले में मछलियां भी हुआ करती थीं अब लाल पानी से विलुप्त हो गई हैं।
इस बार तो यह पानी लाल नहीं, काला हो चुका है। इस पानी में एक मछली भी नहीं बची है। किसानों के खेतों को तो बर्बाद कर ही रहा है जीव जन्तु तक नहीं बच रहे हैं।
खेतों में सिर्फ लौह अयस्क युक्त काला पानी है
पाढ़ापुर पंचायत की महिला सरपंच शांति कुंजाम बताती हैं कि सैकड़ों एकड़ जमीन किसानों की बर्बाद हो चुकी है। एनएमडीसी का तटबंध टूटने से नगरवासी तो बुरी तरह से परेशान हैं। शहरवासियों के साथ अच्छा ये है कि इन लोगों की सुध लेने के लिए नेता और अधिकारी दोनों पहुंच रहे हैं। उन तक शासन-प्रशासन की तरफ़ से हर संभव मदद पहुंचाई जा रही है। यदि उपेक्षित हैं तो हम किसान वर्ग ही।
इस घटना को आठ से दस दिन बीत चुके हैं, लेकिन कोई नेता और ना ही कोई अधिकारी झांकने आया है। लाल पानी से पंचायत तो पहले से ही प्रभावित है, लेकिन इस बार तो जमीन ही बंजर हो रही है। मुआवजा तो नाम के लिए दिया जाता है। सच तो ये है कि यहां पंचायत में रहने वाले लोगों के लिए पीने का शुद्ध पानी तक मुहैया नहीं करवा सका है एनएमडीसी प्रबंधन।
पाढ़ापुर गांव के रहने वाले पांडू कुंजाम जो सरपंच पति हैं, बताते हैं कि एनएमडीसी क्षेत्र के आस-पास जितने भी गांव हैं जो लाल पानी से और लोहे के डस्ट से प्रभावित हैं उन सभी गांवों को एनएमडीसी ने गोद लिया है। इन सभी गांवों की जिम्मेदारी पूरी एनएमडीसी प्रबंधन की है, लेकिन एनएमडीसी प्रबंधन कुछ ध्यान ही नहीं देता है। प्रति वर्ष बरसात के समय ऊपर की पहाड़ी से लोहे की डस्ट और पत्थर नाले के पानी के साथ बहकर हमारे खेतों में घुसता है।
लाल पानी ने तो हमारे खेतों को बर्बाद कर ही दिया है, साथ में लोहे के छोटे-छोटे पत्थर और डस्ट के जम जाने से खेतों में खेती नहीं हो पाती है। खेतों के अंदर कई फीट तक यह पत्थर जम गया है। इतना ही नहीं गांव के जितने भी हैंडपम्प हैं, सब मे लाल पानी निकलता है। कई बार हमने एनएमडीसी प्रबंधन से पीने के शुद्ध पानी की भी मांग की लेकिन कुछ निष्कर्ष नहीं निकला। मजबूरन हम आज भी लाल पानी ही पी रहे हैं। जिससे हमारे स्वास्थ्य पर गंभीर असर हो रहा है औऱ लोग बीमारी से ग्रसित होते जा रहे हैं।
विधायक बोले कलेक्टर को सर्वे के लिए कहा गया है
विधायक चैतराम अटामी ने कहा कि बाढ़ पीड़ित किसान हो या नगर का कोई भी व्यक्ति सरकार भेदभाव नहीं करेगी। पाढ़ापुर, कड़मपाल और कोड़ेनार पंचायत के किसान इस पानी में प्रभावित हुए हैं। कलेक्टर को निर्देशित किया है। जल्द से जल्द इन गांवों का सर्वे करवाया जाएगा। मुआवजे की दरों में भी बढ़ोत्तरी के लिए चर्चा की जाएगी। किसान के साथ कोई छल नहीं हो सकता है। देखना है कि किसानों को इस मुसीबत से कब तक छुटकारा मिल पाएगा।
(दंतेवाड़ा से रिकेश्वर राणा की ग्राउंड रिपोर्ट।)