ग्राउंड रिपोर्ट: भेदभाव सहती व बुनियादी सुविधाओं से दूर तेजोपुर की मुसहर बस्ती

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चंदौली। देश में आजादी का अमृत महोत्सव चल रहा है और दुनिया ग्लोबल बन चुकी है। चीन, रूस, अमेरिका, भारत जैसे देश चांद व मंगल ग्रह पर जीवन तलाश रहे हैं। लेकिन, पृथ्वी ग्रह पर भारत देश में आज भी लाखों लोग बुनियादी सुविधाओं से मरहूम जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

साफ पानी, मकान, साफ़-सफाई, भोजन-अनाज की व्यवस्था, शौचालय, स्कूल-शिक्षा, नियमित रोजगार, पोषण व सुरक्षा से दूर और जाति की वजह से भेदभाव सह रहे हैं। यह तेजोपुर के मुसहर समुदाय का सच है।

उत्तर प्रदेश में मुसहर समुदाय के लोग चंदौली, वाराणसी, गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर, देवरिया, गाजीपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, आजमगढ़, बलिया, मऊ और भदोही सहित अन्य समस्त जनपदों निवास करते हैं।

मुसहर बस्ती को मुंह चिढ़ाता समीप के सचिवालय की दीवार पर बने सरकारी विज्ञापन

आज आप पढ़ रहे हैं उत्तर प्रदेश के चंदौली जनपद स्थित बरहनी विकासखंड के तेजोपुर गांव के मुसहर समुदाय के चुनौतियों और पीड़ा को। यह मुसहर समुदाय एक-एक इंच जीवन को आगे बढ़ाने के जी-तोड़ परिश्रम कर रही है। राज्य\केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाओं की पहुंच आधी-अधूरी है, लिहाजा, मुसहर समाज कई चुनौतियों से घिरा हुआ है।

पानी और पेयजल के लिए बस्ती में लगे तीन हैंडपंप में से दो करीब छह महीने से खराब पड़े हैं, जिसकी कोई सुध लेने वाला नहीं है।

लगभग 380 लोगों की आबादी एक हैंडपंप से काम चला रही है। ईंट-पन्नी के दड़बे सरीखे इनके आवास, जिसमें ढंग से आदमी खड़ा भी न हो पाए (बहुत कम ऊंचाई के कारण)।

नौकरशाही की लापरवाही और जनप्रतिनिधियों के अवसर परस्ती को मुसहर बस्ती की फटेहाल जिंदगी से देखा जा सकता है सबको आवास की सुविधा और साफ-सफाई के अभाव में पीएम मोदी के हर जरूरतमंद को पक्का आवास और स्वच्छता अभियान हकीकत में अभी दूर की कौड़ी बना हुआ है।

इस हैंडपंप के पानी से बुझती है मुसहर बस्ती के अस्सी परिवारों की प्यास

भोजन और पोषण के स्तर के सवाल इनके लिए महज शब्द भर हैं। मानक के लाभ के बारे में मुसहर समाज की बच्चे, लड़के-लड़कियां शायद सपने में भी सोच नहीं सकते हैं।

सरकारी राशन मिलता है, जिसके दम पर मुसहर की बस्ती भुखमरी से लड़ रही है। अन्यथा, मुसहर समाज की महिलाएं सुबह के भोजन पकाने व खाने के बाद झरंगा का काम करने निकल जाती हैं।

झरंगा यानी एक प्रकार का सूप होता है, जिससे ताल-पोखर, नहर व धान के खेतों के पास जल जमाव में उगे एक विशेष प्रकार की धान को जुटाते हैं। यह प्रक्रिया बेहद श्रमशील और जोखिम भरा होता है। अक्सर यह काम मुसहर समुदाय ने जवान लोग करते हैं।

अधेड़ या वृद्ध महिलाएं झाड़ू और सूप लेकर आसपास के गांवों में खलिहान, जिनसे किसान अपनी फसल कटाई-मड़ाई के बाद हटा चुका होता है। इन खलिहानों की धूल से अनाज को इकठ्ठा करती और कई घंटों के परिश्रम के बाद उसे फटकती और ओसाती है। इससे इनको चार-पांच किलोग्राम धान मिला जाता है, लेकिन यह रोज नहीं मिल पाता।

झरंगा धान सूखाती वनवासी महिला मनीषा

तेजोपुर के पूर्व प्रधान सत्यनारायण वनवासी (मुसहर समुदाय) ने “जनचौक” को बताया कि “गांव के कुछ लोग हमलोगों की बस्ती को ‘मुसटोला’ कहते हैं। आप ही बताइये, हमलोग मूस-चूहा हैं क्या ? हमलोग मुसहर-वनवासी है। भारतीय संविधान में अन्य जातियों की तरह हमारा भी मान-सम्मान और स्वाभिमान है।

पांच-सात दशक पहले गांव के ठाकुरों ने मुसहर समुदाय के साथ छल करते हुए खलिहान की महज एक-दो बीघे भूमि पर बसा दिया। जिसमें आज करीब 380 से अधिक लोगों (मुसहर) की आबादी बहुत विपरीत परिस्थितियों में निवास करती है।

जबकि, करीब 200 बीघे की आबादी-बंजर जमीन को गांव के ही भूमिहार और ठाकुर के कुछ लोग मिलकर कब्ज़ा किये हुए हैं। इस 200 बीघे में जोगरा ताल, रतनी ताल और जगेसरा ताल शामिल है। इस जमीन पर ये दोनों जाति के लोग खेती करते, मिट्टी निकाल रहे और ईंट भट्ठा चला रहे हैं।”

“इतना ही नहीं तेजोपुर गांव के उत्तर में और नेशनल हाइवे के दक्षिण में लगभग 700 बीघे रेलवे की जमीन हैं, जिसपर पुन: तेजोपुर-बरठी कमरौर के ठाकुर-भूमिहारों का कब्ज़ा है।

ये लोग गांव के पिछड़ी और दलित जातियों के लोगों को 3000 हजार रुपए बीघे की दर से रुपए लेकर एक वर्ष के लिए खेती करने को देते हैं। जबकि, कानूनन, आबादी और रेलवे जमीन पर बसने का अधिकार मुसहरों या अन्य हासिए पर पड़ी दलित जातियों का (अनुसूचित जाति) है।”

सत्यनारायण आगे कहते हैं “गांव के ही दबंगों द्वारा आबादी की जमीन पर पक्की दीवार बनवाई जा रही थी। जिसका हम मुसहरों ने कड़ा विरोध किया। (आबादी की इस जमीन पर आज दीवार से पक्की घेराबंदी कर ईंट भट्ठा चलाया जा रहा है।) इनलोगों ने आसपास के गांवों से मुसहर बस्ती को उजाड़ने और बस्ती के लोगों मारने-पीटने को आमादा थे।

ठाकुर पक्ष की भीड़ से एक-दो गुंडे आये और राइफल की नोंक से हमलोगों की छाती को धकियाते हुए जमीन पर निढाल कर दिए। गाली देते हुए गोली मारने और बस्ती उजाड़ने\भगाने की धमकी दे रहे थे। होना क्या था ? इन्हीं लोगों के डीएम, एसपी, दरोगा, विधायक-सांसद हैं।”

“गांव के एक-दो लोग बीच बचाव में उतरे जरूर, लेकिन पचासों की तादात में आई पुलिस तमाशा देख रही थी। विवाद के दौरान पुलिस उल्टे मुसहर बस्ती के 5-6 लोगों को उठाकर थाने ले गई। हमारे भाइयों की पुलिस थाने में बेरहमी से पिटाई की गई।”

इस ज्यादती-उत्पीड़न से एक घायल छांगुर वनवासी अपनी पीठ दिखाते हुए कहते हैं “बिना किसी अपराध के रिश्वतखोर पुलिस ने हमें इतना मारा कि आज भी कंधा और पीठ दुखता है। जब पुरवा हवा चलती है, तो दर्द से तबियत बेचैन हो जाती है।”

ताकि आवाज नहीं उठा सके

छांगुर कहते हैं “तेजोपुर, बगही, प्रीतमपुर, भुजना, परेवा, चारी, मरुई और सैयदराजा आदि गांवों-क्षेत्रों में 8 से 10 हजार की आबादी में मुसहर रहते हैं। तेजोपुर गांव में एक ठाकुर के यहां नाच-बारात में कुछ महीने पहले मुसहर समाज के 2-3 बच्चों को बुरी तरह से मारपीट कर घायल कर दिया गया। जिसकी कोई सुनवाई और कार्रवाई नहीं है।”

उत्पीड़न और अन्याय की दास्तान सुनाने के दौरान रो पड़े छांगुर वनवासी

“एक बार जब मैं गांव में हरिकीर्तन कर रात में लौट रहा था तो ठाकुरों के लड़कों ने घेरकर मुझपर हमला बोल दिया। जब भी मुसहर बस्ती का कोई नौजवान तेज-तर्रार होता है, थोड़ा हक़-अधिकार की बात करता है तो उसे ठाकुर-भूमिहार किसी षडयंत्र के तहत मरना-पीटना शुरू कर देते हैं।

उसका उपहास करते हैं, ताकि उसका आत्मविश्वास ख़त्म हो जाए और कोई ठाकुर, भूमिहारों की गुंडई के खिलाफ आवाज न उठा सके। मैं मोदी जी से पूछता हूं कि तेजोपुर की मुसहर बस्ती के अच्छे दिन कब आएंगे ? “

जातीय भेदभाव से नहीं मिलता काम

तेजोपुर के मुसहर समुदाय के लोगों को रोजगार\दिहाड़ी के लिए कई दशकों से संघर्ष करना पड़ रहा है। रोजमर्रा के जीवन के अलावे दिहाड़ी आदि के अवसर में जाति की वजह से किनारे कर दिया जाता है। पीड़ित मुसहर समाज के लोगों का कहना था कि गांव का पिछड़े-अगड़ी जातियों के लोग उन्हें नागरिक होने का सम्मान नहीं देते हैं।

वनवासियों के मवेशी

पिछड़े-अगड़ी जातियों के छोटे बच्चे भी हमलोगों का सम्मान नहीं करते हैं। जब कभी किसी वजह से मिलने या खोजने आते हैं तो इतनी दूर से बतियाते हैं, मानो हमलोग इंसान नहीं मवेशी से भी गए-गुजरे हैं।

गांवों में पर्याप्त दिहाड़ी नहीं मिलने से मुसहर समाज ईंट भट्टों पर ईंट पाथते हुए हुए किसी तरह से कुछ पैसे कमाने की जुगत में जुटे रहते हैं। ताकि, जरूरत पर काम आये और भुखमरी से परिवार सुरक्षित रहे।

विकलांग पेंशन भी बंद

धर्मेंद्र वनवासी और उसकी पत्नी मिन्ता देवी दोनों दिव्यांग है। बस्ती के पास ईंट भट्ठे में ईंट पाथ रहा धर्मेंद्र “जनचौक” को बताता है कि “कई सालों तक विकलांग पेंशन मिलता रहा है। इधर एक साल से पेंशन बंद हो गया है। इसको शुरू कराने के लिए मैंने काफी भागदौड़ की, लेकिन कुछ नहीं हुआ।

उल्टे मेरे एक हजार से अधिक रुपए खर्च हो गए और कई दिनों तक मेहनत-मजदूरी नहीं कर पाया। मेरी तीन बेटियां हैं। हमलोग मजूरी करेंगे नहीं तो खाएंगे क्या ? पत्नी भी विकलांग है।

कोई सहायता या सुविधा नहीं मिल रही है। आगे मैं क्या कह सकता हूं। ईंट पाथते हैं, एक दिन के हिसाब से 150-200 रुपए मिल जाते हैं। कई बार अधिक श्रम होने पर तबियत भी ख़राब हो जाती है।”

ईंट भट्ठे पर ईंट पाथने वाले दिव्यांग धर्मेंद्र वनवासी

देखा जाए तो शिक्षा और जागरूकता की कमी ने मुसहर समुदाय के जीवन को और कठिन बना दिया है।

स्कूल दूर है, रास्ते में बच्चों को कुत्ता काट लेता है

जीवन के मूलभूत अधिकारों में अनिवार्य रूप से शिक्षा शामिल है। लेकिन तेजोपुर का मुसहर समाज के बच्चे शिक्षा से दूर होते दिखाई दे रहे थे। बच्चे बस्ती की गलियों, रेत-मिट्टी के ढेर पर खेल रहे थे।

लोगों ने बताया कि बस्ती से दूर सरकारी प्राथमिक विद्यालय तेजोपुर के बीच गांव में मुहम्मदपुर से सटा हुआ है और दूसरा सरकारी प्राथमिक स्कूल खेदाई-नारायणपुर में हैं।

दिव्यांग धर्मेंद्र वनवासी का तंग घर और आसमान के नीचे पड़े गृहस्थी के समान

बस्ती से विद्यालय दूर होने की वजह से बच्चे स्कूल नहीं जा पाते, रास्ते में खेलने-कूदने लगते हैं। अक्सर बच्चों को कुत्ते दौड़ा लेते है, आपस में लड़ाई-वैगरह कर लेते हैं। मुसहर बस्ती के एक-दो बच्चे पढ़ते भी हैं, तो चार-पांच दर्जे की पढ़ाई के बाद वो भी पढ़ाई छोड़कर मेहनत-मजदूर में जुट जाते हैं।

मसलन, मुसहर बस्ती को आगे बढ़ने के लिए इंच-इंच के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। अशिक्षित होने की वजह से मुसहर समाज के लोग अपने हक़ और अधिकार की लड़ाई नहीं लड़ पाते, लिहाजा, दबंग जातियों द्वारा इनके उत्पीड़न की खबरें देखने मिलती हैं।

साफ़ पेयजल की दिक्कत

तेजोपुर के मुसहर बस्ती में निवास करने वाले सैकड़ों लोगों को इन दिनों स्वच्छ पेयजल की किल्लत से जूझना पड़ रहा है। कहीं खराब हैंडपंप की समस्या है तो कहीं हैंडपंप से गंदे पानी निकलने की शिकायतें हैं। जिसके चलते मुसहर बस्तियों के लोगों को स्वच्छ पेयजल के लिए परेशानी उठानी पड़ रही है।

मुसहर बस्ती से लगे तालाब में कपड़े धोती महिला

बीते चार-पांच महीने से बस्ती में लगे तीन में से दो हैंडपंप ख़राब पड़े हैं। इनकी मरम्मत की नहीं उठा रहा है। बस्ती के लगभग अस्सी परिवार के लोगों के लिए सिर्फ एक हैंडपंप सहारा बना हुआ है।

अधिक भीड़ लगने पर बच्चों-महिलाओं को तालाब के गंदे पानी में नहाना, बर्तन, धोना और कपड़े साफ़ करना पड़ता है। मवेशी को भी तालाब का गंदा पानी मुसहर लोग पिलाने को विवश हैं।

चिकित्सकों के अनुसार दूषित पानी के सेवन से डायरिया, टायफाइड, पीलिया, दस्त समेत पेट से संबंधित रोग हो जाते हैं। यदि समय रहते उपचार नहीं किया गया तो धीरे-धीरे यह रोग गंभीर हो जाते हैं। बरसात के दिनों में उबला हुआ पानी ही पीना चाहिए। इसके अलावा नलों के आसपास सफाई रखना चाहिए।

आंकड़ों की बाजीगरी

15 जनवरी 2024 को आई एक रिपोर्ट के अनुसार योगी सरकार ने दावा किया है कि उत्तर प्रदेश में वर्ष 2013-14 में जहां 42.59 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे थे, वहीं 9 वर्ष बाद 2022-23 में यह आंकड़ा घटकर 17.40 प्रतिशत पर आ गया। इसके अनुसार इन 9 वर्षों में करीब 5.94 करोड़ लोग गरीबी रेखा से बाहर आए हैं।

विश्व जनसंख्या रिव्यू के अनुसार वर्ष 2024 में उत्तर प्रदेश की जनसंख्या 25,70,54,568 करोड़ है, जिसमें वर्ष 2023 में गरीबी रेखा से नीचे का आंकड़ा 17.40 प्रतिशत पर आकर रुक गया। अर्थात अभी भी 4 करोड़ 25 लाख लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं।

(यूपी के चंदौली से पवन कुमार मौर्य की ग्राउंड रिपोर्ट)

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