ग्राउंड रिपोर्ट: अपनी ही जमीन पर कदम नहीं रख पा रहे पुरानाडीह गांव के मुसहर

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चंदौली। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में पड़ोसी जनपद मिर्जापुर में कहा था कि ” पहले खनन, पशु, संगठित अपराध, भूमाफिया हावी थे। जब उनका काफिला निकलता था तो सामान्य जनप्रतिनिधि सहम जाते थे, प्रशासन सैल्यूट करता था।

कोई माफिया पर हाथ डालने की हिम्मत नहीं करता था, लेकिन आज माफिया गिड़गिड़ा रहे हैं कि जान बख्श दो, ठेली लगाकर पेट भर लेंगे, लेकिन किसी को छेड़ेंगे नहीं।” मुख्यमंत्री ने दावा किया था, ”अब बेटी-व्यापारी की सुरक्षा से खिलवाड़, किसान की जमीन पर कब्जा, गरीब की झोपड़ी को उजाड़ने का दुस्साहस कोई नहीं कर सकता।”

जमीन के कब्ज़ामुक्त के इंतजार में पुरानाडीह गांव के मुसहर

वहीं, चकिया तहसील के पुरानाडीह गांव के मुसहर समाज दबंगों-भूमाफिया के डर से अपनी ही जमीन पर कदम नहीं रख पा रहे हैं। मुसहरों की लगभग 200 बीघे जमीन पर दबंग-भूमाफिया 60 से अधिक सालों से अवैध कब्ज़ा कर जोत रहे हैं।

दलित महिलाएं, बच्चे, बुजुर्गों और युवकों को अपने खेत पर जाने पर दबंग गाली-गलौच करते हुए लाठी-डंडे लेकर दौड़ा लेते हैं। पीड़ितों ने भूमि को दबंगों से कब्जा मुक्त कराने के लिए तहसील और राजस्व विभाग में कई दशकों से गुहार लगा रहे हैं।

सीएम योगी के दावों पर पुरानाडीह गांव के गरीबों की लाचारी एक बानगी भर है। पीड़ितों का कहना है कि दबंग धनबल-बाहुबल से न्याय मिलने में बाधा पहुंचा रहे हैं और प्रक्रिया को प्रभावित कर रहे हैं।

चकिया तहसील के पुरानाडीह गांव में लगा अतिथि स्वागत बोर्ड

चंदौली के चकिया तहसील स्थित पुरानाडीह गांव के अति दलित मुसहर समाज की कृषि की जमीन पर स्थानीय गांव के दबंगों ने कब्ज़ा किया हुआ है। यह कब्ज़ा अवैध तरीके से कई दशकों से जारी है। पीड़ितों का कहना है कि उनके नाम पर उक्त भूमि के खसरा, खतौनी और भूअभिलेख भी है।

बावजूद इसके धनबल और बाहुबल के चलते मुसहर समाज को अपनी भूमि पर खेती नहीं करनी दी जा रही है। इससे न सिर्फ यूपी के सत्ताधारी दल के दावों की हकीकत उजागर हो रही है, बल्कि अपनी ही जमीन पर खेती नहीं करने से सैकड़ों की तादात में गरीब-दलित पेट भरने के लिए दूसरों के खेतों में मजदूरी को विवश हैं।

कैलाश मुसहर के पास एक बीघा जमीन है। जिसपर दबंगों ने कब्ज़ा कर लिया है। वह “जनचौक” से कहते हैं “पुश्तैनी हमारे बाप-दादा की, जो एक बीघा जमीन है, उसपर भी दबंगों ने कई दशकों से कब्ज़ा किया हुआ है। मैं मजदूरी करता हूं। इतने रुपए नहीं होते की कोर्ट-कचहरी करूं।

इसी का फायदा भूमाफिया और दबंग उठा रहे है। और हमारी जमीन पर वे खेती करते आ रहे हैं। योगी-मोदी से बड़ी उम्मीदें थी, लेकिन जमीन मुक्त नहीं हो पाई है। परिवार का पेट पालने में ही हमलोग मरे-खपे जा रहे हैं। मुझे चिंता इस बात की है कि आखिर अपनी पुश्तैनी जमीन कब मिलेगी ?”

कैलाश मुसहर

मुसहर समुदाय के लोगों को सरकार द्वारा आवंटित यह जमीन उनके सामाजिक और आर्थिक उत्थान के लिए दी गई थी। लेकिन दबंगों की कब्जाधारी प्रवृत्ति ने न केवल उनके अधिकारों का हनन किया है, बल्कि उनके विकास की राह में भी बाधा उत्पन्न की है।

लेखपाल द्वारा मापी और चिन्हांकन के बाद भी मुसहर समुदाय अपनी जमीन पर खेती करने से वंचित है। यह स्थिति न केवल प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल खड़े करती है, बल्कि ग्रामीण विकास और सामाजिक न्याय के दावों को भी कठघरे में खड़ा करती है।

छोटू की पत्नी मीरा दबंगों की ज्यादती और गुंडई से परेशान हैं। वह बताती हैं “जब बस्ती की दो-चार महिलाएं अपने खेतों की ओर चल पड़ते हैं तो दूर से ही देखकर दबंग लाठी-डंडा लिए दौड़ते आते है और बहुत ही अपमानजनक व्यवहार करते है।

इतना ही नहीं जातिसूचक गाली देकर मारने-पीटने पर आमादा हो जाते हैं। फिर हमलोग अपने खेत पर नहीं जा पाते हैं और बैरंग वापस लौट आते हैं।”

मीरा आगे जोड़ती हैं “मेरे ससुर नाम पर कुल 2.5 बीघा जमीन है। जिसपर दबंगों ने कब्ज़ा किया हुआ है। पुलिस-प्रशासन के आने पर दबंग रुपए-पैसे देकर कागज़ को दबवा देते हैं। हम गरीबों के पास पैसा कहां है, जो कोर्ट-मुक़दमा करें? खेत होने पर भी हमलोग अपने खेत में धान-गेहूं की बुआई नहीं कर पाते हैं।

गांव के अन्य किसानों के खेत-मकान पर काम कर गुजारा होता है। इससे भी पेट नहीं भरता है तो लकड़ी और गोइंठा बेचकर जीवन जी रहे हैं।”

मीरा

“जीवन-यापन का यह जमीन ही एकमात्र सहारा है। जमीन पर खेती करके ही वे अपने परिवार का पेट पालते हैं। लेकिन दबंगों के डर और धमकियों की वजह से वे अपनी जमीन पर कदम भी नहीं रख पा रहे हैं।

प्रशासन ने हमारी जमीन चिन्हित तो कर दी, लेकिन हमें उस पर काम करने का अधिकार नहीं दिया। दबंग हमें धमकाते हैं और हमारी जमीन पर खेती करने से रोकते हैं।” यह बातें रामवृक्ष मुसहर ने बताई।

निर्मला कहती हैं “मेरे ससुर के नाम पर कुल चार बीघे जमीन है, इसमें से दो बीघे मेरे हिस्से आई है। जो कई दशकों से दबंगों के कब्जे में हैं। जिसे छुड़ाने के लिए मेरे बेटे तहसील-कोर्ट में दरखास दिए हैं। सुनवाई और निराकरण हो पा रहा है, जबकि खतौनी में हमलोगों का नाम है और पुराना पट्टाधारी है”।

“तहसील दौड़ने के लिए हमेशा पैसे भी नहीं रहते हैं। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि भी नहीं मिलती हैं। ईंधन-गोइंठा पाथकर और उसे बेचकर परिवार की आजीविका चलती है। आप ही बताइये मेहनत-मजूरी से परिवार चलाएं की दबंगों से लड़ाई लड़े। सरकार किसलिए है, वह क्या कर रही है ?”

निर्मला

गांव के पीड़ित मुसहर परिवारों में गोविंद, विश्वनाथ, निर्मला, मोती, हीरावती, रामवृक्ष, बुद्धू, कैलाश, मुकुड़ी समेत कई अन्य ने पहले भी प्रशासन से लिखित शिकायत की थी। शिकायत के बाद उपजिलाधिकारी (एसडीएम) चकिया ने मामले को गंभीरता से लेते हुए क्षेत्रीय लेखपाल होरीलाल पासवान को जांच और कार्रवाई के निर्देश दिए।

लेखपाल होरीलाल ने मौके पर पहुंचकर जमीन की मापी कराई और आवंटित व्यक्तियों को उनकी जमीन चिन्हित कराई। इसके बावजूद, स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ। दबंग कब्जाधारी अपनी मनमानी करते हुए जमीन पर अवैध कब्जा बरकरार रखे हुए हैं।

हीरावती देवी ने हुए कहा, “हमने कई बार अधिकारियों से गुहार लगाई, लेकिन दबंगों पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं की जा रही है। प्रशासन की निष्क्रियता ने हमारी समस्याओं को और बढ़ा दिया है।”

अपने कुनबे के साथ हीरावती

पीड़ितों ने इस स्थिति को लेकर एक बार फिर उपजिलाधिकारी चकिया को लिखित शिकायत दी है, लेकिन प्रशासन की ओर से अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं की गई है। मुसहर परिवारों ने सवाल उठाते हुए कहा कि जब प्रशासन को पूरे मामले की जानकारी है और मापी भी हो चुकी है, तो उन्हें उनकी जमीन पर कब्जा दिलाने में इतना वक्त क्यों लग रहा है?

गोविंद मुसहर ने “जनचौक” को बताया कि “ मैं अपने बाप-दादा के 1.5 बीघा जमीन के लिए 14 साल से अब तक मुक़दमा (तहसील में आवेदन देकर दौड़भाग) लड़ने में 1.5 लाख रुपए खर्च कर दिया हूं। कुछ दिनों उक्त भूमि की नापी और सीमांकन में मेरी 1.5 बीघा जमीन निकली है।

जिसपर हाल ही में जुताई -बुआई के लिए ट्रैक्टर ले जा रहा था, तो दबंगों ने ट्रैक्टर नहीं जाने दिया और मेरे साथ गाली-गलौच किये। जबकि मेरे खेत तक जाने के लिए सरकारी रास्ता है। दबंगों से जमीन को मुक्त कराने के लिए जाने कितने बार आवेदन दिया गया, लेकिन अभी भी न्याय नहीं हो सका है।

एक लेखपाल आये थे होरीलाल पासवान जो गरीबों की सुन भी रहे थे, लेकिन उनका तबादला करवा दिया गया। वो कहते हैं न बढ़िया आदमी मारल जात है, ख़राब आदमी जिआवल जात है।”

गमछा डाले गोबिंद मुसहर व अन्य

महेन्दर मुसहर के पास आठ बीघे जमीन है। महेन्दर ने बताया कि “प्रशासन और लेखपाल ने मेरे खेत नापी कर दी है, लेकिन इसके बाद भी दबंगों ने कब्ज़ा नहीं हटाया है। पुरानाडीह गांव में लगभग 250 से अधिक मुसहरों की जनसंख्या है।

जमीन पर कब्जा होने से इन सभी का गुजारा बहुत मुश्किल से हो रहा है। हमें अपनी ही जमीन को कब्ज़ा से मुक्त कराने में केतना के बाप-दादा मर-खाप गइलन। लड़का बच्चा अउर जवनका लड़ाई लड़त हउन। आपन जमीन ले के रहल जाई।”

महेन्दर मुसहर

मुसहर समुदाय ने इस बार अपनी समस्या को लेकर जिलाधिकारी से लेकर उच्च प्रशासनिक अधिकारियों तक गुहार लगाने का निर्णय लिया है। उनका कहना है कि यदि उनकी समस्या का जल्द समाधान नहीं हुआ तो वे बड़े स्तर पर विरोध प्रदर्शन करेंगे।

बहरहाल, यह मामला केवल एक गांव का नहीं है, बल्कि इससे यह सवाल भी उठता है कि समाज के कमजोर वर्गों के साथ न्याय कब और कैसे होगा? सरकार द्वारा दिए गए पट्टों पर दबंगई के चलते इन परिवारों का जीवन और अधिक कठिन होता जा रहा है।

अब देखना यह होगा कि प्रशासन मुसहर समुदाय की जमीन पर कब्जा छुड़ाने के लिए कब तक कारगर कदम उठाता है। पीड़ित परिवारों को उम्मीद है कि जिला प्रशासन उनकी समस्याओं को गंभीरता से लेगा और उन्हें उनका अधिकार दिलाएगा। जब तक प्रभावी कार्रवाई नहीं होती, तब तक यह मामला दबंगई और प्रशासनिक निष्क्रियता का एक और उदाहरण बना रहेगा।

(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। यूपी के चंदौली से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट।)

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