ग्राउंड रिपोर्ट: सेमरा गांव के विकास में ‘भ्रष्टाचार की दरार’

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मिर्ज़ापुर। “चालीस साल से चेहला (कीचड़) में रह जीवन गुजर बसर हो रहल हौ, सुविधाएं मिली ही नहीं….! हम लोगन ‘च…’ (जाति को संबोधित करते हुए) हई, केहुं के यहां सुनवाई नहीं हो पा रहल बा।” यह बताते-बताते अपनी झोपड़ी की ओर इशारा करते हुए दलित महिला अपने रहन-सहन को दिखाते हुए उदास हो जाती है, उसकी बात अभी पूरी भी नहीं हो पायी थी कि तभी तपाक से दूसरी महिला सेमरा बरजी तारा की रहने वाली पूजा बोल पड़ती हैं, “कच्चा मकान है, आवास, गल्ला (सरकारी सस्ते गल्ले की दुकान से मिलने वाला राशन) की सुविधा मिलत नाहीं (मिलता नहीं) है। हम गरीब हैं तीन बच्चों को मेहनत मजदूरी कर पेट पालती हूं, कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है।”

पूजा, सेमरा गांव की निवासी

क्या आपने अपने गांव के प्रधान से अपनी यह समस्या सुनाई, अपनी बात कही, के सवाल पर वह (पूजा) तपाक से बोलती हैं, हां कहा न एक नहीं कई बार, लेकिन प्रधान (ग्राम प्रधान चन्द्रशेखर का नाम लेते हुए) सुनते ही नहीं तो किससे कहने जाऊं?

पूजा, तारा से लगाए उन तमाम दलित महिलाओं की कमोवेश यही पीड़ा और परेशानी रही हैं जिनका समाधान पिछले चार वर्ष से ज्यादा समय बीत जाने के बाद भी नहीं हो पाया है। कुछ महीने और बचें हैं जिसके बाद गांवों में पुनः सरपंच/प्रधान चुनाव की शोर मचने वाले होंगे। एक बार फिर से लोक-लुभावन घोषणाओं, के कोरे सपने दिखाए जाएंगे। ताकि प्रधान पद पर काबिज हो कर गांव के विकास के नाम पर स्वयं का विकास किया जा सके।

स्वास्थ्य, शिक्षा, सड़क, जल निकासी, स्वच्छता के मामले में सेमरा गांव सरकार की उन योजनाओं को भी ठेंगा दिखाता हुआ नज़र आ रहा है जिस पर सरकार लाखों करोड़ों रुपए पानी की तरह बहा रही है। गांवों के चहुंमुखी विकास की बातें करती हैं, ग्रामीणों के चेहरे पर मुस्कान लाने की बात करती है, लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि न गांव बदलें हैं ना ही गांव के वाशिंदों की बदहाली बदली है, यदि कुछ बदली है या बदलते रहते हैं तो ग्राम प्रधानों की आर्थिक स्थिति जिसे देख यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि गांवों के विकास पर आने वाली भारी भरकम रकम का शत-प्रतिशत खर्च कहां और किस प्रकार से किया जाता है।

विकास से कहीं ज्यादा परेशानियां बनी हैं सेमरा की पहचान

मिर्ज़ापुर जिला मुख्यालय से तकरीबन 25 किमी दूर भदोही जनपद की सीमा से सटा हुआ गांव सेमरा मिर्ज़ापुर के कोन ब्लाक मुख्यालय से तकरीबन 12 किमी दूर स्थित है। यह जिले का अंतिम गांव है इसके बाद भदोही जिले की सीमा शुरू हो जाती है बगल में भदोही का बरजी गांव लगा हुआ है। यह गांव जिला मुख्यालय से पश्चिम दिशा में स्थित है।

दो जनपदों की सीमा रेखा कहे जाने वाले सेमरा गांव में विकास के नाम पर पूरी तरह से यहां सरकारी योजनाओं का माखौल उड़ाते हुए सरकार की मंशा पर साफ तौर से पानी फेरने का काम किया गया है, बातें चाहें सड़क, बिजली-पानी आवास, पेंशन योजना की करें या ग्रामीण स्वास्थ्य सेवा, जल निकासी, पंचायत भवन, तालाबों के सौंदर्यीकरण से लेकर अन्य बुनियादी जरुरतों, सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाएं या तो भ्रष्टाचार कमीशनखोरी की भेंट चढ़ गई हैं या उसे कागजों में दुरूस्त दिखाकर सरकार को ही ठेंगा दिखाने का काम किया गया है।

सूर्य प्रकाश तिवारी एडवोकेट कहते हैं कि “सेमरा गांव में कोई भी कार्य मानक के अनुरूप नहीं कराया गया है। हर कार्य की दशा को मौके पर देखा जा सकता है, किस तरह से काम कराया गया है, इसकी ज़मीनी हक़ीक़त को मौके पर देखा जा सकता है। नाली का आधा अधूरा कार्य कराया गया है, जिससे लोगों के घरों का गंदा पानी खेतों में बहता है। वह बताते हैं कि गांव में हुए विकास कार्यों के संदर्भ में मुख्यमंत्री पोर्टल पर शिकायत की गई है, गांव में जितने भी लोगों को आवास, शौचालय दिया गया व जो भी कार्य प्रधान व ग्राम पंचायत सचिव द्वारा कराए गए हैं वह सभी गलत तरीके से धांधली करते हुए कराएं गए हैं जिसकी जांच करा कर सही ढंग से काम कराने की मांग की गई थी। इसी प्रकार कार्य की स्थिति क्या है, किस हालात में है, की भी जानकारी मांगी गई थी। जिसे देने में टालमटोल किया जाता रहा है।”

सूर्य प्रकाश तिवारी, एडवोकेट

वह बताते हैं कि “सात बार उन्होंने आईजीआरएस पर शिकायत दर्ज कराई है। जिस पर थक-हारकर प्रधान व सचिव द्वारा कार्य योजना में शामिल करने का झूठा आश्वासन देकर शासन-प्रशासन और शिकायतकर्ता को भी गुमराह किया जाता रहा है। गांव निवासी सूर्य प्रकाश तिवारी एडवोकेट कहते हैं कि ग्राम प्रधान उन ग्रामीणों की आवाज को भी अनसुना करते हुए आए हैं जिन्होंने उन्हें चुना है, वह प्रधान से आवास से लेकर अन्य योजनाओं का लाभ पाने की गुहार लगाते हुए आए हैं जिनके वह पात्र और जरूरतमंद हैं, बावजूद इसके उनको दरकिनार कर आवास से लेकर अन्य योजनाओं में मनमानी की गई है।”

ग्रामीणों की माने तो सेमरा गांव पूरी तरह से बदहाल बना हुआ है। बदहाली भी ऐसी की देख कर रोना आता है। ग्राम सभा सेमरा की कुल आबादी तीन हजार बताई जाती है। ढ़ाई हजार मतदाताओं वाले इस गांव में सर्वाधिक क्षत्रिय, ब्राह्मण, हरिजन, यादव बिरादरी के वाशिंदे बताएं जाते हैं। ग्राम प्रधान दलित होने के बाद भी दलितों की उपेक्षा और सरकारी योजनाओं से वंचित होना गांव के हर किसी को खटकता है।

भारी भरकम बजट पर जुमलों का तड़का

गौरतलब हो कि क्षेत्र पंचायत प्रमुख की अध्यक्षता में पूर्व के महीने में कोन ब्लाॅक सभागार में क्षेत्र पंचायत की बैठक में क्षेत्र के विकास के लिए 34 करोड़ रुपये का बजट पास किया गया था। विकास कार्यों के लिए ब्लाॅक प्रमुख मीनाक्षी सिंह ने सदस्यों से प्रस्ताव भी मांगा। इसके बाद ध्वनि मत से 34 करोड़ रुपये का बजट पारित किया गया। तब बैठक का संचालन करते हुए खंड विकास अधिकारी संजय कुमार श्रीवास्तव ने बताया था कि वित्तीय वर्ष 2024-25 में मनरेगा के तहत लेबर बजट 33 करोड़ 83 लाख रुपये का बजट प्रस्तावित है। इसमें दो लाख 62 हजार 898 मानव दिवस सृजन किए जाने का लक्ष्य है।

बीडीओ ने बताया कि पंचम केंद्रीय वित्त आयोग के तहत वित्तीय वर्ष 2023-24 में क्षेत्र पंचायत में विकास कार्यों के लिए 75.55 लाख रुपये अनुमोदित किया गया है। इसके अलावा वित्तीय 2024-25 के लिए 260.85 लाख रुपये से विकास कार्य कराने का प्रस्ताव किया गया है। बैठक के दौरान जिला पंचायत सदस्य अजय यादव ने गरीबों को मिलने वाले पेंशन में आ रही रुकावट का मुद्दा उठाया था। जिसपर एडीओ समाज कल्याण रंजीत ने बताया था कि “विकास खंड कोन में 5574 वृद्धा पेंशन, 2149 निराश्रित महिला पेंशन तथा 892 दिव्यांग पेंशन दिए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि बैंक खाता एनपीसीआई व आधार कार्ड प्रमाणीकरण नहीं होने के कारण कुछ लोगों को पेंशन नहीं मिल पा रही है।

इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुए जिला पंचायत सदस्य ने गांवों में शिविर लगाकर पेंशन धारकों की एनपीसीआई व आधार कार्ड प्रमाणीकरण कराने की मांग की थी। जबकि ब्लाॅक प्रमुख मीनाक्षी सिंह ने सदन को आश्वस्त किया कि क्षेत्र के विकास के लिए कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी जाएगी। इसपर पलटवार करते हुए ग्रामीण कहते हैं कि “ग्राम प्रधान सुनते ही नहीं है भला ब्लाक प्रमुख और ब्लाक के अधिकारी कहां सुनने वाले हैं।”

सफाई कर्मीयों को देखने को तरसे ग्रामीणों के नयन

उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मायावती सरकार ने तब एक लाख आठ हजार राजस्व ग्रामों में सफाई कर्मियों की तैनाती किए जाने का रास्ता साफ करते हुए पंचायती राज विभाग को आदेश दिए थे। इसके लिए हर गांव सफाई कर्मी के पद सृजित करने के आदेश के साथ उसी गांव के लोगों को ही वरियता देने की भी निर्देश दिए थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने यह निर्णय प्रदेश के अलग-अलग हिस्सों में भ्रमण के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में साफ-सफाई की बदहाली और गंदगी के अंबार को देखते हुए लिया था।

उन्होंने कहा था कि साफ-सफाई व्यवस्था का सीधा संबंध लोगों के स्वास्थ्य से भी जुड़ा हुआ होता है। स्वच्छता न होने से विभिन्न बीमारियों को बढ़ावा मिलता है तो वहीं लोगों के स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। जिसके बाद सफाई कर्मियों की होड़ लग गई थी। कैसे व किन-किन लोगों ने इसमें बाजी मारी है तथा गांवों सफाई की व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए सफाईकर्मी भर्ती की मंशा कितनी मूर्तरूप में है यह भी बताने की आवश्यकता नहीं है।

इस अवधारणा से सेमरा गांव भी तनिक अछूता नहीं है। गांव में सफाई कर्मी नदारद रहते हैं। जिसका असर यह है कि गांव की सड़कों से लेकर गलियों में गंदगी कचरे के ढेर, गलियों गांव के मार्गों पर उगे घांस-फूस सफाई व्यवस्था की पोल खोलते हैं। ग्रामीणों की सुने तो जब से प्रधानी का चुनाव हुआ है तब से सफाई कर्मी गांव में नजर ही नहीं आएं हैं। कभी भूले भटके हुए आएं भी होंगे तो ग्राम प्रधान की चौखट पर हाजिरी लगाकर चलते बने हैं। साफ-सफाई के साथ गांव में संक्रामक कीटाणुओं से निपटने के लिए कभी भी दवा का छिड़काव भी नहीं किया गया। कुछ जगहों पर बनीं नाली खुली हुई है घांस-फूस उगे हुए हैं सफाई नहीं होती, संक्रामक बीमारियों से निपटने के लिए दवा छिड़काव ही नहीं हुआ है। यहां तक की संचारी रोग नियंत्रण अभियान का शोर भी गांव में दूर दूर तक सुनाई नहीं दिया है। जबकि संबंधित विभाग द्वारा बड़े ही जोर शोर से संचारी रोग नियंत्रण अभियान चलाया गया था।

तालाब सौन्दर्यीकरण का ढोल, हकीकत में खोल रहा पोल

गांव में जहां एक ओर जल निकासी व्यवस्था का घोर अभाव बना हुआ है तो वहीं नाली खड़ंजे के अभाव में गांव की बदसूरती दूर से ही दिखाई दे जाती है। हद तो यह है कि तालाब सौन्दर्यीकरण के नाम पर सरकार ढोल पीट रही है, लेकिन गांव में स्थित तालाब जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। जहां उगे हुए जंगली घास फूंस तालाब का अस्तित्व ही ख़त्म करने को आतुर हैं। गांव के बड़े पानी टंकी के पास तालाब की दशा देख कह पाना मुश्किल होता है कि तालाब है या घांस-फूस के ढेर।

और तो और पंचम वित्त/केन्द्रीय वित्त आयोग योजनान्तर्गत वर्ष 2022-23 में सेमरा के तारा पर हरिजन बस्ती के पास अमृत सरोवर निर्माण कार्य का लोकार्पण किया गया है। अमृत सरोवर की दशा देखते ही बनती है। इसे देख विकास के ढ़ोल की पोल खुल जाती है। जलीय घास फूंस से पटा हुआ तालाब प्रधान की कार्यकुशलता और सरकार की अमृत सरोवर योजना की मंशा पर पानी फेरते हुए भ्रष्टाचार की पटकथा लिख चुका है। टूटे हुए सीमेंट के बैठने वाले चेयर मुंह चिढ़ा रहे हैं।

खंडहर में तब्दील हो चुका है गांव का अस्पताल

गांव में स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराने के उद्देश्य से खोला गया अस्पताल खुद अपनी उपयोगिता खो चुका है। हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर सेमरा के खिड़की दरवाजे भी गायब है। भवन के कुछ हिस्सों में लकड़ी भूसा भरा हुआ है, तो कहीं चूल्हा-चौका दिखाई दे जाता है। एक कोने में शराब, बीयर की बोतलें भी अपने यहां होने की उपस्थिति दर्ज कराती हैं।

अस्पताल भवन पूरी तरह से जीर्ण शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है। डॉक्टर आते ही नहीं है, कभी कभार तो आते ही होंगे? के सवाल पर ग्रामीण मुंह बिदका लेते हैं। पूरे परिसर में घांस-फूस उगे हुए हैं। विशालकाय पीपल का पेड़ अपनी जड़ें मजबूत कर अस्पताल की उपयोगिता को बताए जा रहा है। खुद यहां की बदहाली बताती हैं कि अस्पताल चल रहा है या सांसें गिन रहा है।

गांव निवासी विजय कुमार सिंह अपने को गांव के स्वास्थ्य समिति का अध्यक्ष बताते हुए मौके की हक़ीक़त दिखलाते हुए कहते हैं, “यह हमारे गांव की हालत है आप लोग खुद देख सकते हैं। अस्पताल में पेड़ पौधे उग आएं हैं। दस साल हो गए अस्पताल को बने हुए जो पूरी तरह से बदहाल बन खंडहर हो चुका है। यहां न तो डॉक्टर आते हैं ना ही दवाई मिलती है।”

विजय कुमार सिंह

वह आगे भी बोलते हैं कि ग्राम प्रधान का इनसे कोई लेना-देना ही नहीं है जिससे यह अस्पताल पूरी तरह से औचित्य विहीन होकर अपना वजूद खो चुका है। ग्राम प्रधान का नाम लेकर कहते हैं गांव में कोई काम विकास का नहीं हुआ है। अस्पताल को लेकर कई बार शिकायत किया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है। और तो और प्रधान फोन ही नहीं उठाते हैं, जनता से उन्हें कोई मतलब नहीं रहा है।”

ग्रामीणों की शिकायत का सच जानने और गांव में समस्याओं, शिकायतों की उलझी हुई डोर के बावत जब ग्राम प्रधान चन्द्रशेखर से सम्पर्क साध उनका पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उनका मोबाइल फोन रिसीव नहीं हुआ, न ही उन्होंने (ग्राम प्रधान) पलटकर काल का जवाब देना उचित समझा।

हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर सेमरा से लगा हुआ सामुदायिक शौचालय 2020-21 में गरीब कल्याण रोजगार अभियान योजनान्तर्गत ग्राम पंचायत निधि व मनरेगा अंश की तरह से निर्मित कराया गया है, लेकिन सार्वजनिक शौचालय पर ताला जड़ दिया गया है। यह भी अपने जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़ा हुआ है।

क्या कहते हैं गांव के ग्रामीण

गांव निवासी रमाशंकर शुक्ला जिनकी पत्नी शन्नू आंख से दिव्यांग हैं, कि परेशानी और परिवार की बदहाली पर फोकस करते हुए बताते हैं कि “उनका व उनकी पत्नी का आधार कार्ड नहीं बना है इस वजह से कोई लाभ नहीं मिल पा रहा है। आयुष्मान कार्ड भी नहीं बना है। वह (रमाशंकर) खुद बीमार रहते हैं। आयुष्मान कार्ड न होने से दवा इलाज ठीक ढंग से नहीं हो पा रहा है। बच्चे छोटे हैं, दो बेटी एक बेटा है मेहनत-मजदूरी कर किसी तरह से सभी का पेट पालते आ रहें हैं।”

रमाशंकर शुक्ला

हरिजन बस्ती की 60 वर्षीया कलुई देवी वृद्धा पेंशन नहीं मिलता है की पीड़ा सुनाते हुए कहती हैं “दो बार पेंशन मिला था, इसके बाद मिला ही नहीं है। दौड़-दौड़ कर थक चुकी हैं। बच्चों से अलग रहती हैं पति की चार बरस पहले मौत हो चुकी है। ऐसे में उनकी आजीविका को किसी प्रकार चलाने का एक मात्र विकल्प वृद्धा पेंशन ही बना था, लेकिन वह भी बंद हो गया है।”

शीला देवी आवास के आभाव में पंचायत भवन को ठौर ठिकाना बना कर रह तो जरूर रही हैं लेकिन इस बात की आशंका सताए जाती है कि अब-तक और कब यह भी ढह जाए कहा नहीं जा सकता है। आठ सालों से पंचायत भवन रहती आई शीला और उनके पति की चिंता लाज़मी भी है। परिवार के साथ चार लोगों का उनका अपना एक छोटा सा कुनबा है, लेकिन आवास जैसी बुनियादी जरुरतों से वंचित होने के कारण उन्हें गंदगी से पटे और जर्जर पंचायत भवन में मजबूरन पनाह लेनी पड़ी है। पंचायत भवन भी जर्जर हो चुका है कब ढ़ह जाए भरोसा नहीं, प्रधान से आवास की गुहार लगा लगा कर थक चुकी हैं।

शीला देवी

सेमरा गांव निवासी जयहिंद सिंह ‘हर घर नल जल योजना’ की व्यथा बताते हुए बिना टोटी के शो-पीस खड़े पाइप की ओर इशारा करते हुए इसकी दास्तां सुनाने हैं। वह कहते हैं “हर घर नल जल योजना का बुरा हाल है टोटी विहीन खड़ा पाइप बच्चों के लिए खिलौना साबित हो रहा है।”

सेमरा बरजी तारा की पूजा कहती हैं, “कच्चा मकान है, आवास, गल्ला की सुविधा से महरूम हैं। गरीब है तीन बच्चों को मेहनत मजदूरी कर पेट पालती हैं, प्लास्टिक के मड़हे में रह रही हैं पति बीमार रहते हैं किसी प्रकार पेट पालती आ रही हैं। आवास से महरूम हैं। कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है। सेमरा बरजी के ही रहने वाले अन्य लोगों ने भी अपनी व्यथा-कथा सुनाते हुए किसी ने कहा कोई लाभ नहीं मिलता आवास तो किसी ने कहा राशन गल्ला भी नहीं मिलता है, आधार कार्ड भी नहीं मिला है कोई सुनवाई नहीं हो पा रही है। ऐसी सूरत में वह अपनी पीड़ा और परेशानी बताएं तो किसको बताएं?”

इसी मजरे की मड़हे में रहने वाली बुजुर्ग महिला मोनी कहती “आवास, शौचालय नहीं मिला है, प्रधान हम लोगों की बात ही नहीं सुनते हैं।”

मुख्यमंत्री का शिलापट्ट भी बदहाली का हुआ शिकार

जिला पंचायत द्वारा गांव सेमरा से नरउर (भदोही) बार्डर तक सम्पर्क मार्ग लेपन/मरम्मत कार्य का शिलान्यास मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा किए जाने का लगा हुआ शिलापट्ट भी बदहाली को दर्शाते हुए जमीन में धंस कूड़े-कचरे के ढ़ेर से छुप गया है। यूं समझें कि विकास कार्य का शिलापट्ट ज़मीन में धंस चुका है, इंटर लाकिंक सड़क में दरार, मरम्मत और रख-रखाव व्यवस्था को भी दिखाती हैं कि गांव के विकास और विकास कार्यों के देख-रेख के जिम्मेदार मुलाजिम कितने सजग सचेत और जवाबदेह हैं।

मरम्मत कार्य का शिलान्यास

गांव के हरिजन बस्ती में गिट्टी डालकर छोड़ दिया गया है सड़क नहीं बनी है, जिसपर पैदल चलना भी दुरूह हो उठा है। ग्रामीण बोलते हैं गांव का भले विकास नहीं हुआ है, लेकिन प्रधान ने जरूर अपना भरपूर विकास कर लिया है।

(मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

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