ग्राउंड रिपोर्ट: यूपी में डीएपी की किल्लत से मचा हाहाकार, दर-दर की ठोकर खा रहे चंदौली के किसान

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चंदौली। उत्तर प्रदेश में खाद (डीएपी व यूरिया) के लिए किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। खासतौर पर डीएपी के लिए किसान दर-दर की ठोकरें खा रहा है। परेशान किसानों की न कहीं सुनवाई हो रही है और न ही उनके समक्ष कोई समाधान प्रस्तुत किया जा रहा है। प्रदेश में धान की कटाई और मड़ाई अंतिम चरण में है। इसके साथ ही रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुआई का काम तीव्र गति से चल रहा है। खेतों की सिंचाई के बाद बुआई के लिए अब किसान गेहूं और बीजों के इंतजाम अपनी नजदीक की समितियों से लेकर जिला स्तरीय कृषि मंडी समिति का भी चक्कर कटाने को विवश हैं। लेकिन, हाल यह है कि जिले की सहकारी समितियों में खाद (डीएपी) नहीं है। ज्यादातर समितियों पर ताला लटका हुआ है।

किसान समितियों पर पहुंचकर वापस हो जा रहे हैं। उर्वरक नहीं मिलने से गेहूं के बुआई का काम प्रभावित और पिछड़ रहा है। इससे चंदौली जनपद समेत प्रदेश के किसानों में आक्रोश व्याप्त है। सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडाइज्‍ड डीएपी की कीमत 1350 रुपये हैं, जबकि बाजार से खरीदने पर किसानों को 1600 से 2100 रुपये तक कीमत चुकानी पड़ रही है। अखिल भारतीय किसान महासभा के जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा का मानना है कि “केंद्र सरकार के किसान विरोधी नीतियों का नकारात्मक पहलू अभी से दिखने लगा है। आखिर केंद्र सर्कार को बहुचर्चित स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट को लागू करने में दिक्कत क्या है?”

देश के कृषि प्रधान राज्य उत्तर प्रदेश के चंदौली, गाजीपुर, मऊ, बलिया, भदोही, मिर्जापुर, बांदा, संभल, वाराणसी, सोनभद्र, आजमगढ़, जौनपुर, प्रयागराज, लखनऊ, सुल्तानपुर समेत कई जिले में डीएपी खाद के लिए मारामारी देखी जा रही है। डीएपी के लिए किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। किसान दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। इतना ही नहीं डीएपी के लिए किसान व उनके परिजन अल सुबह ही समितियों पर पहुंचकर पूरे-पूरे दिन लाईन में खड़े रहते हैं, बावजूद इसके खाद नहीं मिल पा रही है। इससे किसानों को बैरंग लौटना पड़ रहा है।

एक किसान द्वारा सहकारी समिति से खरीदी गई डीएपी और निजी सोसाइटी से यूरिया खाद

चंदौली जनपद में जनचौक की टीम शुक्रवार को खाद (डीएपी) की किल्लत और किसानों की परेशानियों को जानने के लिए तीन सहकारी समितियों का दौरा कर पचास से अधिक किसानों से मिली। इसमें बहुद्देशीय प्राथमिक सहकारी समिति (बी-पैक्स) छतेम-दुधारी, सैयदराजा सहकारी विकास संघ लिमिटेड और बहुद्देशीय प्राथमिक सहकारी समिति (बी-पैक्स)सिधना शामिल हैं।

सीन-1

सैयदराजा सहकारी विकास संघ लिमिटेड कार्यालय और गोदाम के दरवाजे पर निर्धारित समय के बाद भी ताला लटकता मिला। सुबह के लगभग 11 बजे भी ताला लटक रहा था। आसपास के दुकानदारों ने बताया कि हमलोग किसानों को बता-बताकर थक गए हैं। सुबह से लगभग सैकड़ों की तादात में किसान यहाँ आकर ताला लटकता देख, पूछताछ कर वापस लौट गए हैं। हमलोग दुकानदार हैं आपको क्या बताये? जबकि, समिति के दीवार पर स्पष्ट अक्षरों में लिखा गया है कि समिति शुक्रवार को सेवा देगी, जबकि ताला लटकता मिला। ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि आखिर अन्नदाताओं की फ़िक्र किसे है? रबी सीजन की बुआई पीक पर है। जिले में खाद का स्टॉक समाप्त हो गया है। डीएपी के लिए बेचारे किसान मारे-मारे फिर रहे हैं, ताकि सरकारी रेट पर खरीदी कर गेहूं की बुआई कर ली जाए। अफसोस ग्राउंड पर ऐसा कुछ दिख नहीं रहा है।

सैयदराजा सहकारी समिति में लटकता ताला

सीन-2

गुरुवार को तकरीबन एक बजे ही बहुद्देशीय प्राथमिक सहकारी समिति (बी-पैक्स) सिधना बंद हो गई। इसके शाम को चार बजे तक आसपास के गांव मानिकपुर सानी, सिधना, भुजना, बेलवनिया, जुट्टीपुर, नेवादा और सोबंथा के सैकड़ों किसानों को बिना खाद के ही लौटना पड़ा। समिति के चौकीदार रामबली प्रजापति ने बताया कि खाद तो है, लेकिन खाद वितरित करने वाले सचिव को दो और समितियों की जिम्मेदारी है। शुक्रवार को यह सिधना सहकारी समिति बंद रहेगी।

सहकारी समिति सिधना में खाली पड़ी टेबल-कुर्सी, सचिव नदारत

शुक्रवार के दिन जेवरियाबाद सहकारी समिति से खाद वितरित किया जाएगा। समिति के खुलने और बंद होने का समय सुबह 10 बजे से शाम को 4 बजे तक निर्धारित है। गुरुवार को समिति एक बजे ही बंद कर दी गई के सवाल पर चौकीदार कोई जवाब नहीं दे सका। समिति परिसर शाम तक किसान अपना काम छोड़कर खाद के आते रहे, लेकिन उन्हें चौकीदार बैरंग लौटा दे रहा था। और शनिवार को आने के लिए कह रहा था। जबकि, प्रतिकिलो पांच रुपए अधिक की दर से दस-पांच किलो खाद फुटकर बेचता हुआ मिला।

सीन-3

बहुद्देशीय प्राथमिक सहकारी समिति (बी-पैक्स) छतेम-दुधारी से डीएपी का स्टॉप दो दिन पहले यानी बुधवार को ही समाप्त हो गया था। यहां से दो खेप अर्थात 1200 बोरी डीएपी किसानों में वितरित कर दी गई है, ऐसा समिति के सचिव का कहना है। इसके बाद शुक्रवार को डीएपी के लिए आने वाले किसानों को समिति का सचिव स्टॉक नहीं होने से दो दिन बाद बुला रहा था।

डीएपी न मिलने व समिति सचिव की मनमानी से परेशान दुधारी के किसान सरबिन्द चौहान

दुधारी गांव निवासी स्थानीय सरबिन्द चौहान सहकारी समिति (बी-पैक्स) छतेम-दुधारी में एक बोरी डीएपी लेने के लिए आये हैं, उन्हें भी खाद नहीं मिली। सरबिन्द ने “जनचौक” को बताया कि “मैं सुबह से ही समिति के आसपास चक्कर काट रहा हूं। यहां कुछ मात्रा में खाद है। जो रुपए के लालच सचिव फोन के माध्यम से सेटिंग कर डिलीवरी दे रहा है। जब समिति परिसर में किसान नहीं होते हैं तो फोन से सेटिंग के बाद लोग ट्रैक्टर लेकर आते हैं। समिति का मेन गेट बंद कर उसके बाद उसे आनन-फानन में खाद लोड किया जाता है और तिरपाल से ढककर खाद बहार भेज दी जाती है।”

सरबिन्द ने कुल 22 विस्वा खेत में गेहूं की छींटई बुआई की है। पिछले बरस सात विस्वा में सरबिन्द ने 16 मन गेहूं की उपज प्राप्त की थी। यानि प्रति विस्वा 1.5 मन। (धान लगे होने पर ही गेहूं के बीज खेतों में छिड़क दिया जाता है। जैसे ही धान की फसल को खेत से काटकर हटाया जाता है, तुरंत खाद और कीटनाशक डाला जाता है। किसानों के अनुसार इसमें देरी या पिछड़ने पर पैदावार गिर जाता है।)

छींटई विधि से बुआई की गई गेहूं में डीएपी डालने के इंतजार में तेन्दुहान गांव के किसान

सरबिन्द ने बताय कि “समय से खाद नहीं मिला तो मेरी फसल प्रभावित हो जाएगी। मैं दो दिन से समिति पर खाद के लिए चक्कर काट रहा हूँ। मुझे खाद नहीं मिल रही है। जबकि मेरे सामने से आज सुबह से चार बोरी डीएपी सचिव ने एक लोग को दिया है। मैं भी बोरी पर दो-चार सौ ज्यादा दूंगा तो मुझे भी खाद मिल जाएगी, लेकिन मेरे पास रिश्वत देने के पैसे नहीं है और न ही मैं दूंगा।”

शुक्रवार की सुबह से डीएपी के लिए दो समितियों का चक्कर काटकर दुधारी समिति पर खाद लेने आये मनराजपुर के किसान रमेश यादव को यहां भी निराशा हाथ लगी। रमेश के खाद नहीं है तो कब आएगी? आदि सवालों पर सचिव द्वारा बेरुखी से जवाब देने पर वह सचिव पर मनमाना और कमीशन के लालच में बिना नियम के बिक्री का आरोप लगाकर बिफर पड़े। किसानों के बीच-बचाव में जाकर मामला शांत हुआ।

डीएपी के लिए कई दिनों से समितियों की भागदौड़ करने वाले मनराजपुर के किसान रमेश यादव

किसान रमेश “जनचौक” से कहते हैं कि “सरकार का दावा है कि वह किसानों को समृद्ध बनाने के लिए कई तरह के प्रयास कर रही है। कई प्रकार के योजनाओं का क्रियान्वयन भी किया जा रहा है। लेकिन, इसके बाद भी हर सीजन में किसानों को खाद (डीएपी व यूरिया) की किल्लत, सिंचाई की समस्या और बाढ़ की समस्या से दो-चार होना पड़ता है।”

“चालू रबी सीजन में समय से डीएपी नहीं मिलने से उत्पादन पर नकारात्मक असर पड़ता है। स्थानीय जागरूक किसान कई बार खाद व बीज की उपलब्धता के लिए अधिकारियों को अवगत कराया था। फिर भी समस्या का समाधान नहीं हो पा रहा है। जिला प्रशासन की नाकामी की वजह से किसानों में आक्रोश है।”

चंदौली जनपद में डीएपी की किल्लत पर एआर श्रीप्रकाश उपाध्याय के अनुसार “46 सौ मीट्रिक टन खाद की खपत है। इस समय दो हजार मीट्रिक टन खाद वितरित कर दी गई है। प्राइवेट एक हजार मीट्रिक टन का पैसा जमा करने के लिए बोला गया है। दिसम्बर के प्रथम सप्ताह तक पूरा कर लिया जाएगा।”

झांसी में डीएपी के लिए हाथापाई

झांसी जनपद में किसान इनदिनों खेतों पर कम दिखाई दे रहे। ज्यादातर किसान डीएपी के लिए समितियों की ख़ाक छान रहे हैं। इसके बाबजूद भी उसे खाद लेने में बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते तो कई बार किसान लाइन में लगे लगे आपस में ही भि‍ड़ जाते हैं। ऐसा ही मामला झांसी के मऊरानीपुर में देखने को मिला, जहां नई मंडी में बने पीसीएफ गोदाम पर खाद के लिए लाइन में लगे किसान आपस में भिड़ गए। सुरक्षा में लगे पुलिस जवानों ने हस्तक्षेप कर मामले को शांत कराया।

संभल में भगदड़, कई घायल

उत्तर प्रदेश के संभल में भी डीएपी की किल्लत से किसानों में आक्रोश व्याप्त है। खाद की कमी के चलते सरकारी समिति पर किसानों में भगदड़ मच गई। इस दौरान कई किसानों को हल्की चोटें आई हैं। इस मामले में संभल के डीएम राजेंद्र पेंसिया को सफाई देना पड़ा और उन्होंने कहा कि सरकारी समिति पर अन्य जगहों से किसान आए जिस वजह से भीड़ अधिक बढ़ गई। दूसरी ओर चोटिल किसानों ने कहा कि सरकारी समिति पर खाद नहीं मिल रही है, जिससे किसानों में अफरा-तफरी मच गई। डीएम ने बताया कि इस घटना में महिला किसानों को भी हल्की चोटें आई हैं।

समितियों के चक्कर लगाकर थक गया हूं

बरहनी विकासखंड स्थित तेंदुहान गांव के किसान रामाश्रय को आठ बीघे खेत में गेहूं की बुआई करनी है। उन्हें तत्काल पांच बोरी डीएपी की दरकार है, जो उन्हें नहीं मिल रही है। इसके लिए वह दो दिन से मारे-मारे सहकारी समितियों का चक्कर काट रहे हैं। रामश्रय ने बताया कि “इस समय रबी की बुवाई का समय चल रहा है और किसानों को खेतों में खाद का छिड़काव करना है। मैं खुद दो दिन से सुबह और शाम समितियों के चक्कर लगाकर था गया हूं। दो दिन बाद भी मुझे खाद नहीं मिल सकी है। मेरे खेत की नमी उठ रही है। दो-तीन दिन और बिलम्ब हुआ तो मुझे अपने रकबे की पुन: सिंचाई कर गेहूं की बुआई करनी पड़ेगी। तब तक 10-15 दिन निकल जाएंगे और मेरी बुआई पिछड़ जाएगी। जिला प्रशासन किसानों को खाद उपलब्ध कराने में नाकाम साबित हो रहा है।”

कई दिनों से डीएपी के लिए मारे-मारे फिर रहे तेन्दुहान के किसान रामाश्रय व अन्य किसान

बांदा में खाद नहीं मिलने पर किसानों ने किया हाइवे जाम

दूसरी ओर यूपी के ही बांदा जिले में डीएपी के लिए मारामारी देखी जा रही है। खाद के लिए किसानों में हाहाकार मचा हुआ है। किसान दर दर की ठोकरें खा रहे हैं। उनकी कोई सुनने वाला नहीं है। बुधवार को खाद न मिलने और बुवाई लेट होने से परेशान किसानों ने नेशनल हाइवे जाम करके जमकर हंगामा किया। इसमें महिला किसान भी शामिल रहीं। जिला कृषि अधिकारी मनोज गौतम ने बताया कि ट्रेन की जो रैक आई थी, वो खत्म हो गई है, जिसकी वजह से खाद नहीं बंट पा रही है।

परेशान हैं सुल्तानपुर के किसान

प्रदेश के सुल्तानपुर जिले में भी डीएपी की किल्लत से किसान परेशान हैं और दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं। यहां कई खाद की दुकानें बंद पड़ी हैं। किसान प्राइवेट दुकानों से महंगे रेट पर खाद खरीदने के लिए मजबूर हैं। जिला कृषि अधिकारी बताते हैं कि कालाबाजारी की जानकारी मिलते ही उनके खिलाफ एफआईआर और सीलिंग की कार्रवाई की जा रही है।

गोंडा में भी डीएपी संकट

गोंडा जनपद स्थित तरबगंज के दुर्जनपुर घाट क्षेत्र के दर्जनों गांवों में किसानों को डीएपी व अन्य फाॅस्फेटिक खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है। सहकारी समितियों व सरकारी विक्रय केंद्रों पर डीएपी उपलब्ध नहीं है। रबी की बोआई का मौसम शुरू होने के महीनों पूर्व से डीएपी की किल्लत है। किसान रबी की अन्य फसलों की अपेक्षा गेहूं की समय से बोआई के लिए ज्यादा परेशान है।

मिलावटी उर्वरक देकर मालामाल हो रहे निजी उर्वरक विक्रेता

खाद नहीं मिलने से परेशान मुकेश मौर्य का कहना है कि “प्रशासनिक लापरवाही और अदूरदर्शिता लाखों-करोड़ों किसानों पर भारी पड़ रही है। समिति पर स्टॉक समाप्त हो गया है। जिनके खेत तैयार हैं, वो एक-दो दिन से अधिक इंतजार नहीं करेगा। निजी खाद विक्रेता से खाद खरीदकर हमलोग बुआई करवाएंगे। डीएपी की जगह अन्य खाद डालने के लिए किसानों को मिलावटी उर्वरक देकर मालामाल हो रहे हैं। किसानों को मजबूरन दबे मन से अन्य खाद लेना पड़ रहा है। बाजार में कहीं यदि डीएपी उपलब्ध भी है तो वह 1500 से 1600 रुपये तक प्रति बोरी बिक रही है, वो भी मिलावटी।”

सीएम योगी ने ली बैठक

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में प्रदेश में डीएपी खाद की उपलब्धता को लेकर उच्च स्तरीय बैठक की। इस बैठक में मुख्य सचिव, कृषि विभाग के प्रमुख सचिव, सहकारिता विभाग के प्रमुख सचिव और अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में किसानों को पर्याप्त मात्रा में उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए हर संभव कदम उठाए जाएं।

बतौर कृषि मंत्री शाही, भारत सरकार द्वारा माह अक्टूबर, 2024 में 150 रैक फास्फेटिक उर्वरक डिस्पैच की गई थी, जिनकी कुल मात्रा 363132 मेट्रिक टन मिली थी। वर्तमान 20 नवंबर को 160 फास्फेटिक उर्वरक रैक डिस्पैच की गई है, जिनकी कुल मात्रा 369824 मेट्रिक टन प्रदेश को मिलेगी।

शाही के मुताबिक शुक्रवार को 8 रैक बाराबंकी, हरदोई, कानपुर नगर, देवरिया, मिर्जापुर, अलीगढ़, मैनपुरी, प्रयागराज एवं फतेहपुर जनपदों को आज प्राप्त होगी। जनपद गोरखपुर, संत कबीरनगर, जौनपुर एवं बाराबंकी में लग जाएगी। भारत सरकार द्वारा रोजाना 12 फास्फेटिक उर्वरक रैक डिस्पैच की जा रही है, जो 3 से 4 दिनों में जनपदों में पहुंच रही है।

प्रदेश में डीएपी की किल्लत पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने एक्स पर लिखा “ये 8 साल पहले लगी नोटबंदी की लाइन नहीं है कल की तस्वीरें हैं जहाँ किसान और उनके परिवारवाले खाद पाने की उम्मीद में लाइनें लगाकर बैठे हैं। भाजपा, पहले तो केवल बोरी में चोरी करती थी अब तो बोरी ही चोरी हो गयी है।”

किसान-मजदूरों के मुद्दों पर संघर्ष करने वाले अखिल भारतीय किसान महासभा के चंदौली जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा “जनचौक” से कहते हैं कि “सभी तरह के फास्फेटी उर्वरक का आयात चीन व अन्य विदेशी मुल्कों से केंद्र सरकार करती है। सत्तारूढ़ सत्ताधारी दल एक तरफ किसानों को समृद्ध और इनकी आय दुगनी करने की बात करते हैं। आलम ये है कि ये सरकार, प्रदेशभर के किसानों के लिए रबी सीजन की मुख्य फसल गेहूं की बुआई के लिए पर्याप्त मात्रा डीएपी की उपलब्धता भी सुनिश्चित नहीं कर सकी है। डीएपी के लिए प्रदेश के दर्जनों जनपदों में हाहाकार मचा हुआ है। झाँसी, गोंडा, चंदौली, सुल्तानपुर, संभल, बांदा और मिर्जापुर में किसान डीएपी के लिए कई-कई रोज चक्कर काट रहे हैं। इसके बाद भी उन्हें डीएपी नहीं मिल रही है। मिल रहा है तो सिर्फ आश्वासन – कल मिलेगा-परसो मिलेगा। इधर बुआई पिछड़ रही है। इसकी चिंता न तो सरकार को है और ना ही लालफीतशाह नौकरशाहों को है। बुआई की पीक में सहकारी समितियों पर ताला लटक रहा है। जिला प्रशासन की लापरवाही का खामियाजा किसान भुगत रहा है।”

कुशवाहा आगे कहते हैं कि “ दूसरी बात केंद्र सरकार डीएपी व अन्य फास्फेटी उर्वरक का आयत विदेशों से करती है, जो महंगी होती है और सब्सिडाइज्ड होती है। अब उर्वरक के क्षेत्र को भी पूंजीपति और अडानी के हवाले कर दिया गया है। सरकार भी चाहती है कि देशभर के किसानों की निर्भरता सब्सिडाइज्ड डीएपी से हटाना चाहती है। ऐसे में देश के किसानों की निर्भरता महंगे, मिलावटी और बिना भरोसे के जरूरी उर्वरक सीधे बाजार से खरीदे। यानी कारपोरेट घराने की उर्वरक की कंपनियों से किसानों को उर्वरक खरीदना पड़ेगा। किसानों को अपने हाल-पैर पर छोड़ दिया गया है। आने वाले समय में किसानों को डीएपी मिलने वाली नहीं है।”

अखिल भारतीय किसान महासभा के जिलाध्यक्ष श्रवण कुशवाहा (लाल कुर्ते में)

श्रवण कुशवाहा का मानना है कि खेती और किसानी को बाजार के हवाले कर दिया है। वह जोड़ते हैं “हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार और पंजाब आदि राज्यों में डीएपी की कमी-किल्लत को लापरवाही नहीं है। यह किसान विरोधी नीतियों का परिणाम है। यह पॉलिसी लेवल का मामला है। अब नकारात्मक प्रभाव भी दिखने लगा है। भारत के किसानों को बाजार के हवाले कर दिया गया है। अमेरिका अपने यहां किसानों को सौ फीसदी सब्सिडी देता है। भारत अपनी सब्सिडी बंद करा है। सब्सिडी से हाथ खींच रहा है। मसलन, बगैर सब्सिडी के खाद, कीटनाशक, खरपतवारनाशी और अन्य खेती से जुड़े वस्तुओं को बाजार से खरीदना पड़ेगा, वर्तमान भी खरीदना पड़ रहा है। लिहाजा, उपज\उत्पादन का खर्च भी अधिक होगा। इससे किसान बाजार से प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकेगा। बैंक का किसान क्रेडिट कर्ज, बेटे-बेटियों की पढ़ाई का खर्च, इलाज-बीमारी और शादी-विवाह का खर्च आदि किसान किस तरह से वहां कर पाएगा ? वह बाजार के दबाव में घिर जाएगा और हासिए पर आ खड़ा होगा।”

इसका निदान यह कि “सरकार किसानों को सब्सिडी दे। सरकार स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार किसानों की फसल को लाभकारी मूल्य पर खरीदी और न्यूनतम समर्थन मूल्य का कानून बनाए और लागू करे, जिसमें परिवार के सदस्यों के श्रम का मेहनताना भी शामिल हो। इसकी गारंटी घोषित की जाए।”

(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। यूपी के चंदौली से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट।)

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