चंदौली। बच्चे देश के भविष्य होते हैं। इनसे अभिभावकों और राज्य\देश की कई उम्मीदें जुड़ी होती हैं। लेकिन, जब बच्चे शिक्षा जैसे मौलिक अधिकार व सुविधाओं से वंचित रह जाए तो उनका भविष्य क्या होगा? यह कल्पना करना कोई मुश्किल काम नहीं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी से लगभग 130 किमी व चंदौली जिला मुख्यालय से 85 किमी की दूरी पर विंध्य जंगलों और दुर्गम पहाड़ियों में बसा नौगढ़ तहसील क्षेत्र का केल्हड़िया गांव। केल्हड़िया गांव चारों ओर हरे घने जंगल और पहाड़ों से घिरा है। लेकिन शिक्षा को लेकर यहां के बच्चों का भविष्य हाशिए पड़ा है।
केल्हड़िया गांव अपनी जनसमस्याओं के लेकर अक्सर चर्चा में रहता है। जैसे पेयजल की किल्लत से चुआड़ का पानी यहां के लोग रोजाना पीते है, खेती की दिक्कत, स्कूल न होने से बच्चों की शिक्षा प्रभावित हो रही है, बच्चों को कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है, रास्ता जंगली और पथरीला व कच्चा है। और यहां सभी प्रकार की राज्य व केंद्र की सरकारी योजनाएं दम तोड़ती नजर आती हैं।
जिला प्रशासन व जनप्रतिनिधियों से भी यह समस्या से भलीभांति वाकिफ हैं। यहां की समस्याएं हमेशा अखबारों, देश के चर्चित न्यूज वेबसाइट में प्रमुखता से प्रकाशित होती हैं और सुर्खियां बटोरती हैं। बल्कि इस पर जनप्रतिनिधिक व प्रशासनिक स्तर पर कई बार चर्चा हुई है, लेकिन वही ढाक के तीन पात।
जनचौक की टीम ने शनिवार को नौगढ़ तहसील के केल्हड़िया गांव का पहुंचकर यहां के हालात और चुनौतियों को समझने की कोशिश की। यहां बच्चे एक पीपल के पेड़ के नीचे लकड़ी के बैट से क्रिकेट खेलते मिले। इनकी टीम में लड़कियां भी फील्डिंग और बॉलिंग कर रही थीं।
समीप में भोला कोल अपने छप्पर में खाना खा रहे थे और उनके घर के बच्चे एक किमी दूर चुआड़ से पानी लेने गए थे। पास के खेतों से धान की फसल काट ली गई है और खलिहान में इकठ्ठा कर दी गई है।
इस वर्ष अधिकांश धान की फसल मारी चली गई है। गांव में बिजली तो है, लेकिन इसका इस्तेमाल सिर्फ प्रकाश करने में ही हो रहा था। यहां बिजली का अन्य कोई इस्तेमाल नहीं है। एक हैंडपंप में समरसेबल लगा भी है तो वह विगत कई महीनों से ख़राब पड़ा है। इससे ग्रामीणों को स्वयं और मवेशियों को पीने के लिए पानी चुआड़ से लाना पड़ता है।
केल्हड़िया गांव के पास में ही कर्मनाशा नदी खाइयों और पहाड़ियों के बीच बिहार की सीमा बनाती है, वहीं पंडी गांव से केल्हड़िया तक लगभग 4 किलोमीटर का पहुंच मार्ग सुनसान जंगलों से घिरा हुआ, कच्चे रास्ते पर बड़े-बड़े पत्थर बोल्डर बिखरे हुए हैं।
रास्ता कहीं तीव्र ढलान व सीधी चढ़ाई होने चलते पैदल व साइकिल से आवागमन बड़ी मुश्किल में हो पाता है। केल्हड़िया में एक बड़ी समस्या पेयजल की भी है। यहां तकरीबन 140 नागरिक निवास करते हैं, जो 300 से अधिक की तादात में भैंस, गाय, बैल, बकरी और मुर्गी का पालन करते हैं।
गांव में 14-17 लड़के-लड़कियां क्रिकेट खेलते हुए मिले। जानकारी करने पर बच्चों ने बताया कि गांव में कोई स्कूल ही नहीं है। और न ही आंगनबाड़ी केंद्र है। इनके गांव से चार किमी दूर पंडी गांव है। यहां एक प्राथमिक विद्यालय है, लेकिन यहां बच्चे-बच्चियां शिक्षा लेने पहुंच नहीं पाते हैं।
जंगलों से घिरा रास्ता व जंगली जानवरों का भय। रास्ता भी कच्चा व जगह-जगह पत्थर-बोल्डर बिखरे पड़े हैं। यह दूर पैदल तय करने में एक से डेढ़ घंटे लग जाते हैं। ऐसे में केल्हड़िया गांव का कोई बच्चा पंडी के सरकारी स्कूल में पढ़ने नहीं जाता है। जबकि, दो बच्चों का नाम पंडी के सरकारी स्कूल के रजिस्टर में लिखा हुआ है। क्रिकेट खेल रहे एक बच्चे यह बात बताई।
शिक्षा सभी बच्चों का संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार है। 6 से 14 साल की उम्र के हरेक बच्चे को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार है। कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहे इसको लेकर सरकार ‘सर्व शिक्षा अभियान’ चलाकर सभी समुदायों एवं वर्गों को सन्तोषप्रद गुणवत्तापूर्ण, उपयोगी एवं प्रासंगिक शिक्षा उपलब्ध कराने का अभियान चला रही है।
जिससे कि 6 से 14 वर्ष तक का कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। लेकिन चन्दौली जिले का एक ऐसा आदिवासी गांव जहां बच्चों के पढ़ाई के लिए स्कूल न होने से आज भी शिक्षा से वंचित हैं। उन्हें एक स्वयं सेवी संस्था की ओर से नियुक्त एकमात्र अध्यापक विरेन्द्र खरवार सभी विषय पढ़ाते हैं। जो 12वीं तक पढ़े हैं और आगे पढ़ने में रूचि रखते हैं।
चंदौली जनपद के नौगढ़ तहसील स्थित देवरी ग्राम पंचायत के अंतर्गत केल्हड़िया गांव विकास से कोसों दूर है। यहां के लोगों के आवागमन के लिए न सुगम मार्ग है, न ही बच्चों के पढ़ाई के लिए स्कूल ही है।
सरकारी शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा यहां के लोग जानते ही नहीं। सरकार की हर आपातकालीन सेवा यहां फेल है। केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित कल्याणकारी योजनाएं यहां दम तोड़ रही हैं। यहां कुल 25 लड़के-लड़कियां हैं, जो शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ रहे हैं।
सबसे गंभीर विषय तो यहां के बच्चों के पढ़ाई के लिए स्कूल न होने से लोग निरक्षरता के अंधकार में डूबे हैं। इतना ही नहीं सरकारी स्कूलों में मिलने वाली सुविधाएं जैसे छात्रवृति, मिड-डे-मील, स्कूल ड्रेस, जूते, निःशुल्क किताबें, साफ़ पेयजल, शौचालय, शांत व पक्के क्लासरूम, सुरक्षा और सभी बच्चों के साथ पढ़ने का समरसता वाला माहौल आदि नहीं है।
इन बच्चों को उक्त सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। इससे ये बच्चे मुख्यधारा से कोसों दूर पड़े हैं।
स्थानीय निवासी भोला कोल ने “जनचौक” को बताया कि “बच्चों को सरकारी स्कूल न जाने से इनका और अभिभावकों का बहुत नुकसान हो रहा है। इन्हें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिल पा रही है। कोई प्रतिस्पर्धा का माहौल नहीं है। एक एनजीओ के अध्यापक आते हैं।
मेहनत कर वे बच्चों को शिक्षित जरूर कर रहे हैं, लेकिन गांव में पठन-पाठन का माहौल नहीं होने से उन्हें भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। यहां अधिकतर लोग एक फसली खेती व मवेशीपालन कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि केल्हड़िया गांव से पंडी गांव में स्थित सरकारी स्कूल की दूरी तकरीबन 4 से 5 किलोमीटर है। यह रास्ता घने जंगलों से घिरा है। इस रास्ते पर भालू, लकड़बग्घा, जंगली सूअर और नीलगायों के हमले की आशंका बनी रहती है। इससे नन्हें-मुन्ने बच्चे स्कूल जाने में असमर्थ हैं।
अब सवाल यह है कि, क्या जिला प्रशासन नन्हे-मुन्ने बच्चों को शिक्षा दिला पाएगा या फिर वही ढाक के तीन पात बनकर रह जाएगा?
रणजीत एनजीओ द्वारा संचालित कक्षाओं में तीसरे दर्जे का छात्र है। वह कहता है कि “हमलोगों को मास्टर साहब बहुत मेहनत से पढ़ाते हैं, लेकिन गांव में स्कूल की कमी महसूस होती है। हमलोग गरीब हैं। हमें कोई सरकारी सुविधा नहीं मिलती है, जैसे मिड-डे-मील, स्कॉलरशिप और किताबें-नोटबुक और स्कूली ड्रेस आदि।
चुआड़ का पानी पीते हैं, कई घंटों क्रिकेट खेलते हैं और गांव में पड़े रहते हैं। हमलोग के गांव में बहुत दिक्कत है सर। आपको क्या-क्या बताएं ? जिलाधिकारी और स्थानीय प्रशासन से हमलोगों की मांग है कि गांव में एक स्कूल, आंगनबाड़ी, पक्का रास्ता और बारहों महीने पेयजल की व्यवस्था की जाए।”
अंजलि, रामनिहोर, कविता, पंकज, अखलेश जैसे कई छात्र-छात्राओं ने अपनी समस्याओं पर जिलाधिकारी का ध्यान आकृष्ट कराया है और निराकरण की गुहार लगाई है।
सरकार की जन कल्याणकारी योजनाएं तोड़ रहीं दम
नौगढ़ का केल्हड़िया गांव सरकारी सिस्टम और सियासत की अनदेखी का जीता जागता उदाहरण है। मौजूदा समय में इस गांव में 20 आदिवासी परिवार निवासरत हैं। लेकिन, सम्पर्क मार्ग न होने के कारण न तो इनके पास शिक्षा व्यवस्था पहुंच सकी और न ही स्वास्थ्य सुविधाएं और न ही अन्य किसी तरह की मूलभूत सुविधाएं ही।
सैकड़ों कोल आदिवासी समाज के लोग शिक्षा से दूर है। आजादी के बाद से यहां के लोग अशिक्षा का दंश झेल रहे हैं। क्योंकि गांव में स्कूल ना होने से बच्चे शिक्षा से वंचित हैं। पेयजल के लिए चुआड़ के पानी पर निर्भर हैं। कुल मिलाकर सरकार की कल्याणकारी योजनाओं यहां दम तोड़ती दिख रही हैं।
आवागमन के लिए नहीं है सुगम रास्ता
पहाड़ों के बीच में बसे केल्हड़िया के ग्रामीणों के आवागमन के लिए पक्का रास्ता न होने से लोगों को कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है। लोगों को जंगल के पथरीले ऊबड़-खाबड़ रास्ता तय कर बड़ी कठिनाइयों से गुजरना होता है। ग्रामीणों की मांग है कि गांव में ही आगनबाड़ी और एक स्कूल खोला जाए, ताकि बच्चों को शिक्षा के लिए भटकना नहीं पड़े।
यहां पांच किमी का जंगली रास्ता है। जिस रास्ते से आने-जाने में जंगली जानवरों का हमेशा भय बना रहता है। इससे कोई भी अभिभावक अपने छोटे-छोटे बच्चों को स्कूल नहीं भेजते हैं। आजादी के बाद से अब तक चौथी पीढ़ी स्कूल नहीं गई। ऐसे में “सर्व शिक्षा अभियान” का सपना कैसे पूरा होगा ? यह सबसे बड़ा प्रश्न है।
अध्यापक विरेन्द्र खरवार “जनचौक” से कहते हैं कि “केल्हड़िया गांव को बारहमासी पेयजल की व्यवस्था, पक्का रास्ता, एक स्कूल और एक जच्चा-बच्चा केंद्र की अति आवश्यकता है। उक्त सुविधाओं के नहीं होने से ग्रामीणों का जीवन बहुत चुनौतीपूर्ण है।
बेकारी, लाचारी और प्रशासनिक निगरानी के अभाव में पिछड़ेपन का शिकार होता आ रहा है। यह कैसी विडम्बना है कि एक ओर केंद्र व राज्य सरकार नागरिकों के जीवन को गरीबी से बाहर निकालने का दावा करती है। वहीं, पूरे नौगढ़ तहसील के अधिकांश गांवों की समस्याओं का निराकरण नहीं किया जा रहा है।
इसका खामियाजा नौगढ़वासी व इनकी नई पीढ़ी भुगत रही है। यह अन्याय है। अनदेखी की इस परिपाटी को तत्काल सुधारा जाए।”
साल 2011 की जनगणना के अनुसार चंदौली ज़िले की आबादी 19,52,756 थी।I इसमें 10,17,905 पुरुष और 9,34,851 महिलाएं शामिल थीं। 2001 में चंदौली ज़िले की जनसंख्या 16 लाख से अधिक थी। चंदौली में शहरी आबादी सिर्फ़ 12.42 फ़ीसदी है। 2541 वर्ग किलोमीटर में फैले चंदौली ज़िले में अनुसूचित वर्ग की आबादी 22.88 फ़ीसदी और जनजाति आबादी 2.14 फ़ीसदी है।
चंदौली और सोनभद्र के जंगलों में आदिवासियों की आठ जातियां रहती हैं। इनमें मुख्यरूप से कोल, खरवार, भुइया, गोंड, ओरांव या धांगर, पनिका, धरकार, घसिया और बैगा हैं।
साल 1996 में वाराणसी से टूटकर चंदौली जनपद बना। इस दौरान कोल, खरवार, पनिका, गोंड, भुइया, धांगर, धरकार, घसिया, बैगा आदि अनुसूचित जनजातियों को अनुसूचित जाति में सूचीबद्ध कर दिया गया।
इस सम्बन्ध में नौगढ़ उप-जिलाधिकारी कुंदन राज कपूर ने बताया कि “केल्हड़िया गांव की समस्याओं यथा-पेयजल संकट, शिक्षा और कच्चा रास्ता आदि के निराकरण के लिए मुख्य विकास अधिकारी व शासन को अवगत करा दिया गया है। जल्द ही सकारात्मक बदलाव देखने को मिल सकता है।”
(पवन कुमार मौर्य पत्रकार हैं। यूपी के चंदौली से उनकी ग्राउंड रिपोर्ट)
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