ग्राउंड रिपोर्ट: मिर्ज़ापुर कछवां कांशीराम कालोनी की बोली महिलाएं- भला योगी जी को हमसे क्या ख़तरा हो सकता था? 

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मिर्ज़ापुर, उत्तर प्रदेश। “मुख्यमंत्री जी हमारी कालोनी के सामने मैदान में आने वाले थे, घर की बहूं-बेटियां खुश थीं कि हम सभी भीड़-भाड़ से बचते हुए यहीं खिड़कियों से उन्हें देख सुन सकेंगे। सभी जल्दी से जल्दी खा-बनाकर तैयार हो रहीं थी कि तभी पुलिस के एक फ़रमान ने उनके अरमां पर पानी फेर दिया।” 

यह कहते हुए सुनीता, अफसाना (बदला हुआ नाम) उदास सा चेहरा लिए बोलती हैं, “क्या हमें मुख्यमंत्री को देखने-सुनने का हक नहीं है? आखिरकार हमसे और हमारी कालोनी से मुख्यमंत्री को क्या ख़तरा हो सकता था, जो हमारी कालोनी के दरो-दीवार और खिड़कियों को ढंक दिया गया था?”

उत्तर प्रदेश के नौ विधानसभा क्षेत्रों में उप चुनाव का दौर चल रहा। इसमें मिर्ज़ापुर का मझवां विधानसभा क्षेत्र भी शामिल है। कभी वी-वीआईपी सीटों में शुमार रहे मझवां का सीधा जुड़ाव लखनऊ से हुआ करता था, सो यह सीट सत्ता दल के लिए काफी अहम है।

यहां से चुनाव लड़ रही भाजपा उम्मीदवार शुचिस्मिता मौर्य मैदान में हैं। जिनके पक्ष में जनसभा करने के लिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ रविवार, 10 नवंबर 2024 को खुद आए यहां हुए थे। मझवां विधानसभा क्षेत्र के कछवां बाजार स्थित श्री गांधी इंटर कॉलेज के मैदान में उनकी सभा आयोजित कि गई थी।

सभा स्थल मैदान से सटा हुआ कांशीराम आवासीय कालोनी है, जो कभी सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का ड्रीम प्रोजेक्ट हुआ करता था। वर्तमान में उसकी दशा क्या है यह किसी से छुपी हुई नहीं है। 

मुख्यमंत्री के आगमन और उनकी जनसभा को सफल बनाने तथा सुरक्षा व्यवस्था को लेकर एक दिन पहले से जहां सभी आवश्यक तैयारियां कर ली गई थीं, वहीं भारी भरकम फोर्स के साथ ही जनसभा प्रारंभ होने से काफी पहले कछवां मार्केट-मिर्ज़ापुर मार्ग को बाधित कर दिया गया था, मुख्यमंत्री की सुरक्षा का हवाला देकर।

दूसरी ओर कांशीराम आवासीय कालोनी के मैदान वाले हिस्से की पूरी दरो-दीवार को पर्दे से ढ़क दिया गया था। कालोनी की छतों पर असलहाधारी जवानों को मुस्तैद कर दिया गया था। ऐसे में कालोनी के लोगों का कहना रहा कि आखिरकार भला उनसे और उनकी कालोनी से मुख्यमंत्री को क्या ख़तरा हो सकता था? क्या वे मतदाता नहीं हैं?

कांशीराम आवासीय कालोनी में सर्वाधिक दलित पिछड़े, मुस्लिम और गरीब भूमिहीन लोग रहते हैं। ज्यादातर मेहनतकश लोग हैं। इन्हें राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है, बावजूद इसके मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लेकर इनमें उत्साह था। उत्साह इस बात था कि मुख्यमंत्री आज उनकी कालोनी के समीप आ रहे हैं, जिन्हें वह अपने घर की खिड़कियों से निहार लेने के साथ उनको सुन सकेंगे।

लोगों को उम्मीद थी कि मुख्यमंत्री की नजरें कांशीराम आवासीय कालोनी की दीन-हीन दशा की ओर भी इनायत हो जाएं और कुछ व घोषणा कर जाएं। लेकिन यहां उनके इन अरमानों पर पानी फेरते हुए होता ठीक उल्टा है।

मुख्यमंत्री के आने से पहले ही जनसभा स्थल वाले भाग की पूरी कालोनी को सफेद लिबास से ढ़क दिया जाता है, ठीक उसी प्रकार जैसे किसी वीआईपी के आगमन पर कूड़े-कचरे वाले स्थल और मलीन बस्तियों को ढक कर छुपा दिया जाता है।

कालोनी की दरों-दीवार को ढक दिए जाने और छतों पर पुलिस के असलहाधारियों की फ़ौज बिठा देने से सभी असहज स्थिति में अपने-अपने कमरों में कैद होकर रह गए। 

क्या हमें मुख्यमंत्री को देखने का अधिकार नहीं था

कछवां कांशीराम आवासीय कालोनी की महिलाओं का कहना रहा कि, क्या मुख्यमंत्री को देखने सुनने का हमें अधिकार नहीं था, वह हमारे मुख्यमंत्री नहीं हैं? ऐसा क्या ख़तरा था कि दरों-दीवार को ढक दिया गया। फिर छतों पर जब पुलिस फोर्स की तैनाती की गई थी तो उनके खिड़कियों दरों-दीवार को ढक कर क्या संदेश देना चाहते थे?

महिलाएं कहती हैं मुख्यमंत्री की सुरक्षा निःसंदेह जरूरी था, इसके लिए भारी फोर्स अधिकारियों का चप्पा-चप्पा भ्रमण और कालोनी की छत पर असलहाधारी जवानों की मुस्तैदी बनी हुई थी। बावजूद इसके दरो-दीवार को पर्दे से ढक दिया जाना यह न्यायसंगत नहीं रहा है। इस बात को लेकर कालोनी के लोगों में आक्रोश के साथ मुख्यमंत्री को देख सुन न पाने का मलाल भी रहा है।

मुख्यमंत्री से मिलने की आस हुई निराश

मझवां विधानसभा का उप चुनाव पूरे शबाब पर है। पक्ष और विपक्ष दोनों दलों के लोग अपने-अपने दलीलें कर रहे हैं। खासकर भाजपा उम्मीदवार ने अपने कार्यकाल और अपनी सरकार की उपलब्धियों को गिनाते हुए सरकार के बलबूते चुनाव फतह करने की हसरत को पाल रखा है।

तो वहीं सपा उम्मीदवार डॉ ज्योति बिंद अपने पिता पूर्व विधायक, पूर्व सांसद रमेशचंद्र बिंद के बलबूते चुनाव जीतने के लिए चुनाव मैदान में उतरीं हैं। अहम यह है कि इन उम्मीदवारों के विकास रुपी लालीपाप को तो खूब उछाला जा रहा है, लेकिन इस क्षेत्र की बेशुमार समस्याएं जो लोगों से जुड़ी हुई हैं वह मुंह बाए हुए है।

जिन दलितों-पिछड़ों गरीबों के उत्थान विकास की बातें हो रही हैं, उसे आईना दिखाते हुए मुख्यमंत्री के जनसभा स्थल पर उमड़ी भीड़ कलई खोलने के लिए काफी रही हैं।  “जनचौक” संवाददाता ने मौके पर इन्हीं भीड़ में से कुछ लोगों को सुनने का प्रयास किया तो समस्याओं को सुनाने और अपना दुखड़ा बताने की मानो होड़ सी लग गई।

मझवां विधानसभा क्षेत्र के बड़की बरैनी हरिजन बस्ती से आई महिलाओं की टोली में से शकुंतला, अर्चना देवी, गीता देवी एक स्वर में आवास नहीं होने की समस्या बताते हुए कहती हैं “सभी से कहते कहते हम थक चुकी हैं, कहीं कोई हमारी सुनता ही नहीं है।”

क्या आपने अपने जनप्रतिनिधियों मसलन ग्राम प्रधान सांसद विधायक जी से बोला, के सवाल पर सभी तपाक से बोलती हैं, “कोई हमारे यहां झांकने आता ही नहीं, आश्चर्य तो यह कि यह सांसद विधायक को जानती तक नहीं हैं।

संडवा गांव से आए हुए कृष्ण कुमार सिंचाई की समस्या उठाते हुए कहते हैं, “नहरों का जाल बिछाया गया है लेकिन लघु डाल नहर प्रखंड के लोग ध्यान ही नहीं देते। दशकों से कई नहरों की सफाई ही नहीं हुई है, सिर्फ कागजों पर सफाई दिखाकर सरकार को चूना लगाया जाता रहा है। जिसपर कोई जनप्रतिनिधि भी देखना झांकना गंवारा नहीं करता “

जोगीपुर गांव की कलावती आवास की समस्या लेकर आई थी सोचा था कि सांसद और विधायक जी को अपनी दुखड़ा सुनाएंगी तो कुछ समाधान निकलकर आएगा, लेकिन दुखड़ा सुनाएं तो कैसे सांसद, विधायक की वह एक झलक तक नहीं पा सकीं।”

महिला रसोइयां की बढ़े पगार तब तो चले घर-परिवार  

श्याम कुमारी जोगीपुर गांव की निवासिनी हैं। उनकी नियुक्ति प्राथमिक विद्यालय कछवां प्रथम में रसोइया के पद पर हुई है। दलित बिरादरी से हैं, उन्हें चार बेटियां हैं। पगार के तौर पर उन्हें दो हजार मिलते हैं, वह भी नियमित नहीं फ़िर भी वह इस आस में डेढ़ दशक से लगी हुई हैं कि सरकार जरुर उनकी भी सुधी लेगी।

‘जनचौक’ को वह बताती हैं कि “मुख्यमंत्री को सुनने आईं थीं, सोचा था साहब कुछ उन (रसोइया) लोगों के बारे में भी बोलेंगे। “सोरह साल स्कूल में काम करते हो गया है,  दो हजार के पगार में कैसे जिंदगी कटेंगी, कैसे घर परिवार चलेगा, कैसे चार बेटियों को पार कर पाउंगी” एक ही सांस में पूरी बात कहते हुए वह उदास भाव से सवाल करती हैं, “आप ही बताएं इतने में क्या होने वाला है”?

जोगीपुर गांव से आई बुजुर्ग महिला कलावती देवी सांसद विधायक के नाम से उग्र हो उठती हैं, कहती हैं आवास के लिए वह डूडा आफिस से लेकर कहां-कहां नहीं गई, लेकिन कोई उनकी सुनता ही नहीं है।

उनका आरोप रहा कि पिछले महीने जिले की सांसद अनुप्रिया पटेल आई थीं, उनके सामने जाकर खड़ी हुई तो वह (अनुप्रिया) बोली सबको आवास ही मिलेगा।” वह कहती हैं वोट लेवें सब आवत हैं, फिर कोई झांकने तक नहीं आता है।”

कनकसराय से आएं 26 वर्षीय मुलायम पुत्र कल्लू हरिजन गूंगे है। वह इशारों में अपनी बात कह पाते हैं। उन्हें पेंशन की दरकार है पर पेंशन मिलता नहीं है। साथ में आए हुए उनके चचेरे भाई सुनील कुमार उनकी परेशानियां बताते हुए कहते हैं, “दिव्यांग पेंशन योजना का लाभ दिलाने के लिए वह हर किसी का दरवाजा खटखटा चुके हैं, लेकिन किसी ने भी उनकी गुहार नहीं सुनी है।”

दिव्यांग चचेरे भाई को मुख्यमंत्री की जनसभा के दौरान आए हुए जनप्रतिनिधियों से मिलकर पेंशन योजना का लाभ दिलाने की उम्मीद के साथ आए सुनील कुमार की उम्मीदों पर पानी फिर जाता है, जब जनप्रतिनिधियों से मिलना तो दूर उनके पास उनका फटक पाना भी मुश्किल होता है। वह बुझे-बुझे कदमों से अपने गांव की ओर लौटने को विवश होते हैं।

कुछ ऐसी ही आशा उम्मीद और लालसा के साथ आए हुए अन्य ग्रामीणों के भी यही आरोप रहे हैं कि उनकी कोई सुनवाई नहीं हो पाती है। खासकर गरीबों की बस्तियों में तो जल्दी कोई झांकने नहीं आना चाहता है। 

(मझवां, मिर्ज़ापुर से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)

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