ग्राउंड स्टोरी: ‘हर साल इ 2-3 महीना हम गांव वालों के लिए नर्क से बदतर होता है’

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सुपौल। नेपाल ने रविवार को कोसी बराज के सभी 56 गेट को एक साथ खोल दिया। जिसके बाद बिहार में कोसी नदी का जलस्तर बढ़ गया है। और सुपौल, सहरसा और मधेपुरा में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। कोसी बराज के सभी गेट खुलने से रविवार को ही 3 लाख 94 हजार क्यूसेक पानी छोड़ा गया, जिसके बाद कोसी नदी का जलस्तर बढ़ गया है। जानकारी के मुताबिक पिछले 44 सालों में ऐसा पहली बार हुआ है, जब जुलाई के महीने में तकरीबन 4 लाख क्यूसेक पानी कोसी बराज से छोड़ा गया है। उत्तर बिहार और कोसी अंचल के कई जिले इस समय बाढ़ की चपेट में आ गए हैं।

“सब कुछ बर्बाद हो गया। थोड़ा सी भी बारिश होती है तो बाढ़ आ जाता है। घर में मेरे अलावा मेरे बूढ़े ससुर और मेरी दो बेटी हैं। कुछ सामान ही निकाली, तब तक पूरा घर कोसी नदी में डूब गया। प्रशासन के ओर से भी कोई खास सहायता नहीं मिल रही है।” किशनपुर प्रखंड के मौजहा पंचायत की सुनीता देवी अपनी कहानी बता रही है। मौजहा पंचायत के वार्ड नंबर 4 में नदी के कटान के चलते लगभग 30 घर तोड़कर लोग नए स्थान पर चले गए हैं। जो कुछ घर बचा है उस घर को तोड़कर लोग अपने आशियाने को बचाने में जुटे हैं।

भारत-नेपाल सीमा पर स्थित कोसी बराज पर लाल बत्ती जला दी गयी है। सुपौल में कोसी का उग्र रूप देखने को मिल रहा है। तटबंध के भीतर कई गांवों में पानी आ चुका है। सुपौल जिले में बाढ़ का खतरा मंडराने लगा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हवाई दौरा करके बाढ़ देख चुके हैं, लेकिन ग्राउंड पर सरकारी अधिकारी राहत के नाम पर सरकारी वायदा ही दे रहा है। नेपाल से सटे सीमावर्ती जिलों में बाढ़ और कटान से हाहाकार मचा हुआ है। हजारों लोग नदी की तेज धाराओं के बीच से बाल-बच्चे, जरूरी सामान और मवेशी लेकर ऊंचे स्थान पर जाने को मजबूर हैं।

दृश्य हृदय विदारक और भयावह है

सरायगढ़ प्रखंड के ढोली, बनैनिया और लोकहा पंचायत के कई लोग तटबंध के ऊपर पन्नी बांध कर रह रहे हैं। लोकसभा पंचायत के चितरंजन बताते हैं कि, “पूरे गांव में पानी है। ऊपर आने के लिए सरकारी नाव भी नहीं है। गांव के अधिकांश मर्द दिल्ली और पंजाब में रहते हैं। सोचिए उस घर में महिला की कैसी स्थिति होगी?”

उसी गांव के सुरेंद्र महतो बताते हैं कि, “घर-आंगन में जहरीले सांप भी आ गए हैं। जिसके कारण लोग ऊंचे स्थान पर शरण लेने लगे हैं। आदमी किसी तरह बच भी जाए, मवेशी कैसे बचेंगे? चारे कि इतनी दिक्कत हो रही है बोलिए मत। कई गांवों के लोगों को घर से निकलना भी मुश्किल हो रहा है। हर साल इ 2-3 महीना हम गांव वालों के लिए नर्क से बदतर होता है।”

तटबंध के ऊपर 25 वर्षीय शादीशुदा लक्ष्मी के पति दिल्ली में कमाते हैं। वह अपने सास ससुर और एक बेटे के साथ रहती हैं। लक्ष्मी बताती है कि, “पिछले दो साल से ऐसे ही स्थिति हो जाती है। राहत शिविर की स्थिति और भी बदतर हैं। सरकार आपको कितना ही अच्छा खाने देगी। पुरुष जात का तो समझ आता है, सोचिए महिला की स्थिति बद से बदतर हो जाती है। हमारी किस्मत ही ऐसी है।”

सुपौल जिला स्थित तटबंध के भीतर कई गांव में नदियों में कटाव की वजह से डर और खौफ का माहौल है। लगातार नदियां अपना रास्ता बदल रही हैं। तेज वेग के कारण इलाके में कटाव है। वहीं, बाढ़ के पानी की वजह से इलाका जलमग्न हो चुका है। कोसी नवनिर्माण मंच लगातार इन गांवों में जाकर काम कर रहा है। उनके संस्थापक महेंद्र यादव सोशल मीडिया पर लिखते हैं कि तटबंध के भीतर लगभग सभी लोगों के घरों में, आंगन में, रास्ते पर बाढ़ का पानी भरा है।

अनेक गांवों के लोगों के घर कट रहे हैं। सैकड़ों लोगों के घर कटने वाले हैं। पक्का घर, कच्चा घर, टीन का घर, फूस का घर, सब नदी में समाने वाला है। नावें नहीं मिल रही हैं कि लोग समान लेकर निकल सके। अधिकांश लोगों के बाहर घर बनाने की जगह नहीं है कहां जायेंगे? यह सवाल और अनिश्चितता सभी के चेहरे पर है। अपने गांव जमीन, खेत पर इज्जत से मालिक बनकर रहने वाले बांध पर या किसी रिश्तेदार के यहां सामान लेकर लाचार बनकर जा रहे हैं।”

आगे वो लिखते हैं कि “कोसी नवनिर्माण मंच कोसी में बाढ़ घोषित कर, राहत बचाव कार्य तेज करने और कटाव पीड़ितों को सरकारी जमीन पर बसाने के लिए डीएम सहित वरिष्ठ लोगों को 15 सूत्रीय ज्ञापन दिए हैं। प्रशासन और सरकार सुनती और पायलिंग हो गया होता तो शायद बचा जा सकता था इसकी मांग भी हम लोग किए थे। पर जिला प्रशासन या सरकार इन लोगों की बात कहां सुनती है।” ग्रामीणों का आरोप है कि बाढ़ पहले आ गई लेकिन सरकार के इंतजाम बहुत पीछे हैं।

बिहार में बाढ़ एक घोटाला है

बिहार का बहुत बड़ा इलाका प्रतिवर्ष बाढ़ का दंश झेलता है। इसमें खासकर कोसी तटबंध के भीतर बस 350 गांव के लोगों को काफी दिक्कत होती है। इस सिलसिले में वर्ष 2008 में जब भारत-नेपाल सीमा के निकट कुसहा बांध टूटा था, तब काफी नुकसान हुआ था। इसे राष्ट्रीय आपदा भी घोषित किया गया था। उस वक्त विश्व बैंक ने कोसी के इलाकों के पुनर्निर्माण के लिए भारत को 14 हज़ार 808 करोड़ रुपये का कर्ज दिया था।

इसके लिए कोसी पुनर्निर्माण एवं पुनर्वास नीति को मंजूरी दी गयी थी। फिर इन परियोजना के नाम पर प्रत्येक साल बेहिसाब पैसा ख़र्च होता है। लेकिन इससे भी बड़ा दुर्भाग्य यह है कि जिन कामों के लिए पैसा ख़र्च किया गया वो आज तक जमीनी स्तर पर नहीं हो पाता है। स्थानीय ग्रामीण खुली आवाज में कहते हैं कि बिहार में बाढ़ एक घोटाला है, जिससे नेता और अधिकारी अपनी जेबें भरते हैं।

(बिहार से राहुल की ग्राउंड रिपोर्ट)

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