Thursday, March 28, 2024

तो धांधली से जीता गया था गुजरात विधानसभा चुनाव!

चुनावों में अभी तक धांधली के आरोप लगते थे पर गुजरात के एक कद्दावर मंत्री ने किस तरह एक रिटर्निंग अफसर की मिलीभगत से विधानसभा चुनाव जीता इसका पर्दाफाश गुजरात हाईकोर्ट ने कर दिया है। दरअसल गुजरात में विधानसभा चुनावों में बड़े पैमाने पर प्रशासनिक मिलीभगत से धांधली की गयी थी और अभी ऐसी 19 चुनाव याचिकाएं गुजरात हाई कोर्ट में लम्बित हैं, जिनमें जीत-हार का अंतर 3000 से कम का है। वैसे तो हमेशा से चुनावों में चुनाव आयोग, जिला निर्वाचन अधिकारी, रिटर्निंग अफसर और चुनाव पर्यवेक्षकों पर सत्ताधारी दल के पक्ष में काम करने के आरोप लगते रहे हैं, पर पहली बार कोई रिटर्निंग अफसर रंगे हाथ सप्रमाण पकड़ा गया है।

गुजरात हाई कोर्ट ने मंगलवार को 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में धोलका निर्वाचन क्षेत्र से चुड़ास्मा की चुनावी जीत को अवैध करार दिया है। गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस परेश उपाध्याय की एकल पीठ ने 12 मई को एक असाधारण फैसला सुनाते हुए 2017 विधानसभा चुनाव में राज्य मंत्री भूपेन्द्र सिंह चुडास्मा की जीत को अवैध घोषित कर दिया और चुनाव में चुनाव आयोग के रिटर्निंग अफसर की सत्ता पक्ष के साथ दुरभिसन्धि से घपला, भ्रष्ट आचरण और मतगणना में धांधली को उघाड़ कर रख दिया। इस निर्णय से चुनाव आयोग की चूलें भी हिल गयी हैं और निर्णय की विवेचना करने के लिए केंद्रीय चुनाव आयोग ने तीन सदस्यीय समिति का गठन किया है।

एकल पीठ की तल्ख़ टिप्पणी थी कि रिटर्निंग ऑफिसर कोर्ट में सुनवाई शुरू होने से पहले भी प्रतिवादी संख्या 2 चुडास्मा के फायदे के लिए हर मुमकिन प्रयास कर रहे थे। ये रिटर्निंग ऑफिसर और चुडास्मा के बीच अपवित्र साठ-गांठ से कम नहीं है, जिससे भ्रष्टाचार को लेकर कोर्ट का फैसला और मजबूत होता है। परिस्थिति से जुड़े साक्ष्यों के आधार पर, कोर्ट इस नतीजे पर पहुंचा कि चुडास्मा ने चुनाव में अपनी जीत ‘सुनिश्चित’ करने के लिए रिटर्निंग ऑफिसर की सहायता ली, और इस तरह से भ्रष्टाचार को अंजाम दिया।

जस्टिस उपाध्याय ने चुडास्मा के चुनाव को जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 के कई प्रावधानों के तहत शून्य घोषित किया है। इस संबंध में, उनके आदेश में कहा गया है कि:
 – चुनाव का परिणाम, अब तक 14 दिसंबर, 2017 को हुए गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए धोकला निर्वाचन क्षेत्र से चुडासमा की चिंता है, 429 वोटों के “अवैध अस्वीकृति” से भौतिक रूप से प्रभावित हुए हैं।
-2017 में आयोजित गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए चुडास्मा का चुनाव, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 (1) (डी) (iii) के तहत शून्य है।
 -चुनाव में मतगणना के लिए अपनाई गई प्रक्रिया भारत निर्वाचन आयोग के आदेशों के विरुद्ध थी और अवैध थी। उक्त अवैधताओं के कारण, अब तक के चुनाव के परिणाम के रूप में यह चिंता का विषय है कि चुडास्मा भौतिक रूप से प्रभावित हुआ है।

-जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 123 (7) के तहत परिभाषित एक ‘भ्रष्ट आचरण’ चुनाव के दौरान अपनाया गया था।
-चुडास्मा और उनके “चुनाव एजेंट” ने विचाराधीन चुनाव में चुडास्मा की संभावनाओं को आगे बढ़ाने के लिए संबंधित रिटर्निंग अधिकारी से सहायता प्राप्त नहीं की है, बल्कि सफलतापूर्वक प्राप्त की है और खरीदी है।

-चुडास्मा और संबंधित रिटर्निंग ऑफिस, धवल जानी सवाल में चुनाव में हाथ मिला रहे थे।
 – 2017 में आयोजित गुजरात विधानसभा चुनाव के लिए चुडास्मा का चुनाव, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 100 (1) (बी) के तहत शून्य है।

एकल पीठ ने मंगलवार को राज्य के कानून एवं शिक्षा मंत्री एवं भाजपा नेता भूपेंद्र सिंह चुडास्मा के 2017 के निर्वाचन को कदाचार और हेर-फेर के आधार पर खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति परेश उपाध्याय ने कांग्रेस नेता की याचिका पर सुनवाई करते हुए चुडास्मा के चुनाव को खारिज कर दिया। कांग्रेस उम्मीदवार अश्विन राठौड़ ने धोलका विधानसभा सीट पर भाजपा नेता की जीत को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। साल 2017 के गुजरात विधानसभा चुनाव में चुडास्मा ने 327 वोट के मामूली अंतर से जीत हासिल की थी।

चुनाव याचिका में राठौड़ ने आरोप लगाया था कि चुडास्मा ने ‘‘चुनाव की प्रक्रिया के विभिन्न चरणों में, विशेष रूप से वोटों की गिनती के समय भ्रष्ट आचरण अपनाया और नियमों का उल्लंघन किया।’’राज्य में विजय रूपानी की सरकार में चुडास्मा अभी शिक्षा, कानून एवं न्याय, विधायिका और संसदीय मामलों आदि विभागों के प्रभारी हैं।

निर्वाचन अधिकारी धवल जानी ने इससे पहले 429 पोस्टल बैलेट को खारिज कर इन्हें मतगणना में शामिल नहीं किया था। अश्विन राठौड़ ने इसके बाद अदालत का दरवाजा खटखटाया था। उनका कहना था कि अगर पोस्टल बैलट की भी गिनती हुई होती तो परिणाम उनके पक्ष में जा सकता था।

गौरतलब है कि इस मामले की सुनवाई के दौरान मतगणना के सीसीटीवी फुटेज में चुडास्मा के निजी सचिव को मतगणना केंद्र के अंदर मोबाइल फोन पर बात करते हुए देखा गया था। निर्वाचन अधिकारी जानी को भी उनके बर्ताव के लिए अदालत ने फटकार लगायी थी। इस मामले को उच्चतम न्यायालय में पहले ही चुनौती देने का प्रयास करने वाले चुडास्मा को सितंबर में अदालत के समक्ष पेश होना पड़ा था और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जाने के अपने निर्णय के लिए अदालत में खेद भी जताया था। इस दौरान एक चौंकाने वाली घटना ये हुई कि कोर्ट में जब रिटर्निंग ऑफिसर से काउंटिंग हॉल की पूरी वीडियो रिकॉर्डिंग दिखाने को कहा गया तो उसने ‘काट-छांट की गई अधूरी’ रिकॉर्डिंग दिखा दी, जिसमें पोस्टल बैलेट को रिसीव किए जाने वाला हिस्सा गायब था। सीसीटीवी फुटेज को देखने पर कोर्ट ने पाया कि चुडास्मा के अतिरिक्त निजी सचिव को अवैध तरीके से काउंटिंग हॉल में घुसने की इजाजत दिए जाने का जो आरोप राठौड़ ने लगाया था वो पूरी तरह सही था।

एकल पीठ ने अपने निष्कर्ष से पहले कई तरह के साक्ष्यों पर गौर किया, जिसमें कि राठौड़ और चुडास्मा के अलावा रिटर्निंग ऑफिसर, पर्यवेक्षक और चुनाव आयोग के बयान भी शामिल थे। पर्यवेक्षक ने कोर्ट को बताया कि रिटर्निंग ऑफिसर ने शुरुआत में 927 पोस्टल वोट होने की बात कही थी, जिनमें से किसी को भी खारिज नहीं किया गया था। चुनाव परिणाम के ऐलान के लिए उसने इस जानकारी पर दस्तख़त भी कर दिए थे। यही जानकारी चुनाव क्षेत्र में सभी उम्मीदवारों को दी भी गई थी।नतीजा ये हुआ कि खारिज किए गए 429 पोस्टल वोट का जिक्र करने में नाकाम रहने को कोर्ट ने चुनाव रिकॉर्ड से छेड़छाड़ का मामला माना।

एकल पीठ ने ये भी पाया कि ईवीएम वोट के आखिरी दो राउंड की गिनती पोस्टल वोट की गिनती से पहले हुई थी, जो कि चुनाव आयोग के निर्देशों का उल्लंघन है।वोटों की गिनती से जुड़े दूसरे कई नियमों की अनदेखी की गई, जो कि चुनाव को रद्द करने के लिए काफी हैं। कोर्ट ने कहा कि इन त्रुटियों और विसंगतियों की वजह कोई वाजिब भूल नहीं थी, बल्कि ये सरासर भ्रष्टाचार का मामला है। भ्रष्टाचार की व्याख्या लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 123(7) में की गई है, जिसमें चुनाव के दौरान किसी उम्मीदवार का सरकारी अधिकारियों की मदद लेना भी शामिल है। यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि इस मामले में रिटर्निंग ऑफिसर ने पोस्टल बैलेट की गिनती से पहले ईवीएम की काउंटिंग में वोटों के अंतर का पता चलने का इंतजार किया।

चुनाव आयोग के नियमों के मुताबिक पोस्टल बैलेट की गिनती ईवीएम के आखिरी दो राउंड की काउंटिंग से पहले पूरी कर ली जाती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि पोस्टल बैलेट की गिनती के साथ ‘हेरफेर’ कर किसी उम्मीदवार को फायदा पहुंचाने की कोशिश ना हो। 429 खारिज किए गए पोस्टल वोट की जानकारी पर्यवेक्षकों सहित सबसे छिपाई गई क्योंकि उसकी गिनती से चुडास्मा की बढ़त खतरे में पड़ जाती। इसलिए चुनाव पर्यवेक्षक से 18 दिसंबर 2017 को चुनाव परिणाम घोषित किए जाने की इजाजत ‘धोखाधड़ी’ के जरिए हासिल की गई थी। रिटर्निंग ऑफिसर ने इसके बाद अपनी नाकामी को छिपाने के लिए रिकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ की। धवल जानी इन आरोपों का जवाब देने में नाकाम रहे। 

एकलपीठ ने जहां लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम के तीन मापदंडों पर, जिसमें कि ‘भ्रष्टाचार’ भी शामिल था, चुडास्मा का चुनाव अवैध घोषित कर दिया वहीं एकलपीठ ने चुनाव में दूसरे नंबर पर रहे कांग्रेस के उम्मीदवार की उस याचिका को भी खारिज कर दी, जिसमें उन्होंने चुडास्मा की जगह विधायक बनाए जाने की मांग की थी, क्योंकि एकलपीठ की नजर में पूरी चुनाव प्रक्रिया ही भ्रष्ट थी। 

एकल पीठ कितनी तल्ख थी कि उसने प्रतिवादी नंबर 2 भूपेंद्र सिंह चुडास्मा के उस अनुरोध को भी ख़ारिज कर दिया जिसमे निर्णय और आदेश को कुछ समय के लिए रोक दिए जाने की मांग की गयी थी। एकल पीठ ने कहा कि यदि कुछ देर के लिए भ्रष्ट आचरण को अलग रख दिया जाय तो केवल नोट रिटर्निंग ऑफिसर के सबूतों की जांच और संबंधित रिटर्निग ऑफिसर द्वारा रिकॉर्ड पर डाले गए दस्तावेजी सबूतों से यह साबित हुआ है कि (i) 327 वोटों के जीत के अंतर के बावजूद, 429 पोस्टल बैलेट पेपर अवैध रूप से रिटर्निग ऑफिसर द्वारा मतगणना के समय रद्द कर दिए गए थे, जिसने परिणाम को प्रभावित किया है, (ii) उन 429 पोस्टल मतपत्रों को सबके पीठ पीछे रद्द किया गया जिसमें चुनाव आयोग द्वारा नामित पर्यवेक्षक शामिल थे , (iii) इसे  छिपाने के लिए, चुनाव रिकॉर्ड में रिटर्निंग अधिकारी द्वारा हेराफेरी की गयी  और (iv) चुनाव के रिकॉर्ड में हेरफेर करने के लिए और उक्त हेरफेर को छिपाने के लिए, भारत के चुनाव आयोग के प्रासंगिक आदेश / निर्देश, जिसमें मतगणना की प्रक्रिया के बारे में अनिवार्य निर्देश शामिल हैं,परिणाम की घोषणा और अंतिम परिणाम शीट फॉर्म:20 की तैयारी को मतगणना के दिन रिटर्निंग ऑफिसर द्वारा अनदेखा  कर दिया गया था। इस तरह के चुनाव को किसी भी क्षेत्र में आगे जारी रखने  की अनुमति नहीं होनी चाहिए।

इस बीच, भूपेंद्र सिंह चुड़ास्मा ने चुनाव को रद्द करने के फैसले को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे दी है।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

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