Tuesday, April 23, 2024

अहमदाबाद अस्पताल में छापा मारेगा गुजरात हाई कोर्ट

नई दिल्ली। गुजरात के अहमदाबाद में जो सिविल अस्पताल है, वहां की हालत इतनी खराब हो चुकी है कि अब गुजरात हाई कोर्ट वहां पर छापा मारेगा। गुजरात हाई कोर्ट की टीम अस्पताल में छापा मारकर चेक करेगी कि मरीजों का इलाज ठीक से हो रहा है, या सरकार सिविल अस्पताल में इलाज कराने वाले गरीबों की तीमारदारी में कमी बरत रही है। सोमवार 25 मई को गुजरात हाई कोर्ट ने साफ-साफ कहा कि आप लोग जो चाहें तैयारी कर लें, हम कभी भी छापा मार देंगे। चार-चार दिन में वहां मरीजों की मौत हो जा रही है। सरकारी अस्पताल में आने वाले मरीज गरीब हैं तो क्या उनकी देखभाल नहीं की जाएगी? इतना ही नहीं, गुजरात हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि हम इस अस्पताल को अभी कोई अंतिम प्रमाण पत्र नहीं देंगे, क्योंकि अभी ऐसा करना बहुत ही जल्दबाजी होगी। 

वहीं गुजरात की बीजेपी सरकार ने कोर्ट में यह दलील दी कि जज साहब ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि अस्पताल के एक डॉक्टर ने उनको गुमनाम चिट्ठी भेजी है, जिसमें कहीं न कहीं दुर्भावना छुपी हुई है। आपको बता दें कि गुजरात सहित भारत भर में जो वेंटिलेटर घोटाला हुआ है, जिसमें सत्ता पक्ष के नेताओं से जुड़ी एक खास कंपनी ने वेंटिलेटर की जगह गुब्बारे भरकर सप्लाई कर दी थी, वे अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में भी लगाए गए थे। हाई कोर्ट में सामने आई बातों से अब पता चल रहा है कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में मरीजों का मरना तेजी से जारी है। कांग्रेस पार्टी ने मांग की है कि अगर यह वेंटिलेटर घोटाले की वजह से हो रहा है, तो यह कड़ी और बड़ी जांच का विषय है और अगर यह सोची समझी लापरवाही है तो यह कड़ी और बड़ी से भी बड़ी जांच और सजा का भी सब्जेक्ट है। ऐसा जो लोग भी कर रहे हैं, तुरंत उन्हें जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाने की जरूरत है, भले वह कोई सीएमओ हो या कोई पीएमओ।

जहां नरेंद्र मोदी 13 साल तक मुख्यमंत्री रहे, जिस शहर में उनका दफ्तर था, उसी अहमदाबाद के सिविल अस्पताल की यह हालत है कि गुजरात हाईकोर्ट में उसकी ‘दयनीय स्थिति’ को लेकर गुमनाम चिट्ठियां पहुंचीं, क्योंकि कोई अपना नाम नहीं उजागर करना चाहता था। सफाई कर्मचारी संघर्ष समिति के एक पदाधिकारी ने कहा कि अहमदाबाद में हो रही जानलेवा परेशानियों के बावजूद अगर कोई नाम नहीं उजागर करना चाहता था, तो यह समझने वाली बात है कि अभी तक 2002 का खौफ कायम है। बहरहाल, अहमदाबाद सिविल अस्पताल की दयनीय स्थिति पर गुजरात हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया और 26 मई को कहा कि, ‘अस्पताल के संबंध में सरकार को अंतिम प्रमाण पत्र देना अभी भी जल्दबाजी होगी।’ जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की खंडपीठ ने सोमवार को ऐसे मामले पर सुनवाई की, जिसमें राज्य की बीजेपी सरकार ने यह एप्लीकेशन दिया था कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल के खिलाफ अदालत ने जो महत्वपूर्ण कमेंट्स किए हैं, उन्हें वापस ले लिया जाए।

एप्लीकेशन में गुजरात की बीजेपी सरकार ने कहा कि अदालत की तीखी टिप्पणियों ने सिविल अस्पताल पर आम आदमी के विश्वास को हिला दिया है, और ऐसी परिस्थितियों में यदि उसका COVID 19 टेस्ट पॉज़िटिव आता है तो वह सिविल अस्पताल में इलाज के लिए नहीं आना चाहेगा। गुजरात की बीजेपी सरकार ने अदालत में कहा कि यह दावा करते हुए कि अस्पताल में हालात को सुधारने के लिए कदम उठाए गए हैं, सरकार ने अदालत से कुछ कुछ ऐसा करने का आग्रह किया ताकि आम आदमी के मन में विश्वास पैदा हो सके। बीजेपी सरकार के इस एप्लीकेशन के जवाब में जस्टिस जेबी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने कहा कि अगर इस सिविल एप्लिकेशन में गुजरात राज्य द्वारा जो कहा गया है वह सच है और एक वास्तविकता है, तो हम उसकी सराहना करते हैं।

अदालत ने कहा कि रिकॉर्ड में हमें जो चीजें दी गई हैं, पहली नजर में लगता है कि कोरोना के मरीजों का इलाज और देखभाल की जा रही है। लेकिन इसके साथ ही  कोर्ट ने यह भी कहा कि मामला यहीं पर खत्म नहीं होता है और अहमदाबाद में सिविल अस्पताल के बारे में राज्य सरकार को कोई आखिरी सर्टिफिकेट देना इस अदालत के लिए बहुत जल्दबाज़ी होगी। ऐसी कई प्रॉब्लम्स हैं, जिन्हें राज्य सरकार को बारीकी से देखने और जल्दी से जल्दी गुजरात के लोगों की प्रॉब्लम्स सॉल्व करने की कोशिश करने की जरूरत है। अदालत ने यह भी कहा कि इनमें भी खासतौर से, अहमदाबाद शहर के लोगों की प्रॉब्लम्स को सॉल्व करने की कोशिश करने की जरूरत है। अदालत ने उस अपील को भी खारिज कर दिया, जिसमें भाजपा की गुजरात सरकार ने यह आपत्ति लगाई थी कि अदालत ने अस्पताल में तैनात एक रेजिडेंट डॉक्टर की भेजी गए एक गुमनाम चिट्ठी पर संज्ञान लिया था।

अपने ऑब्जर्वेशन में बेंच ने कहा कि कोई भी रेजिडेंट डॉक्टर इस तरह की शिकायतों की प्रिवेंशन के लिए अपनी पहचान का खुलासा करने के लिए आगे आने की हिम्मत नहीं जुटाएगा। ऐसे हालात में, नागरिक या डॉक्टर गुमनाम चिट्ठियां लिखने के लिए मजबूर होते हैं, जो सिविल अस्पताल में होने वाली कठिनाइयों का क्लू देते हैं। जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने कहा कि हमें उम्मीद थी कि राज्य सरकार इस चिट्ठी की सामग्री को बहुत बारीकी से देखेगी ताकि जल्द से जल्द उचित कदम उठाया जा सके, लेकिन ऐसा लगता है कि राज्य सरकार ने इसे बिल्कुल बेकार ही समझा है।

आपको बता दें कि समूचे भारत भर में जहां जहां भाजपा की सरकारें हैं, वहां पर न तो डॉक्टरों और हेल्थ वर्कर्स की सुरक्षा पर ध्यान दिया जा रहा है, और न ही गरीब मरीजों के साथ किसी तरह का मानवीय व्यवहार हो रहा है। बल्कि गुजरात में तो लोग टेस्ट कराने के लिए पहुंच रहे हैं, उन्हें मानसिक रोगी बताया जा रहा है, जिसका आम भाषा में मतलब होता है- पागल। बहरहाल, अदालत ने निर्देश दिया कि गुमनाम पत्र की सामग्री के संबंध में उचित जांच की जानी चाहिए, जिसमें डॉक्टरों के लिए पर्याप्त पीपीई और एन 95 मास्क की कमी, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं पर किए गए परीक्षणों की अपर्याप्तता, अस्पतालों में सामाजिक दूरी के उल्लंघन और उत्पादों आदि की कमी के मुद्दों पर प्रकाश डाला गया है।

कोर्ट ने कहा कि एक इंडिपेंडेंट कमेटी को इस गुमनाम चिट्ठी में आई शिकायतों की ठीक से पूरी इन्वेस्टिगेशन करनी चाहिए। अपनी सुनवाई में जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने यह भी कहा कि, अगर डॉक्टर और नर्सिंग स्टाफ अपनी कामकाजी परिस्थितियों से खुश नहीं हैं, तो उनके काम काज पर भारी पड़ेगा और इसका असर कोरोना के रोगियों के इलाज पर होगा। गुजरात की बीजेपी सरकार ने जिस गुमनाम चिट्ठी को खारिज करने की एप्लीकेशन दी थी, उस एप्लीकेशन के निपटारे से पहले जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने यह कहते हुए सरकारी अमले को सावधान किया कि अस्पताल के अधिकारियों को किसी भी समय जजों द्वारा औचक निरीक्षण के लिए तैयार रहना चाहिए। यानी कि अस्पताल के अधिकारियों को किसी भी समय जजों की छापा मार कार्रवाई के लिए तैयार रहना चाहिए।

बेंच ने यह बिल्कुल साफ साफ कहा कि हम सावधान करते हैं। सिविल अस्पताल के सुपरिटेंडेंट और गुजरात के हेल्थ डिपार्टमेंट के दूसरे अधिकारी सिविल अस्पताल में किसी भी दिन एक सुबह हमारी उपस्थिति के लिए खुद को तैयार रखें। अहमदाबाद में सिविल अस्पताल के कामकाज के संबंध में सभी विवाद को यह छापा खत्म कर देगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि यह जानकर खुशी हुई कि राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सक्रिय हैं और सिविल अस्पताल के प्रशासन और कामकाज में गहरी रुचि ले रहे हैं। कोर्ट ने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री से यह अपेक्षा की जाती है कि वे गुजरात राज्य के नागरिकों के लिए अपनी जिम्मेदारियों का सबसे अच्छे तरीके से निर्वहन करेंगे। गुजरात राज्य को लापरवाही करने वाले किसी भी अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने में संकोच नहीं करना चाहिए। यही इकलौता तरीका है जिससे राज्य सरकार एक आम आदमी के मन में विश्वास पैदा कर सकेगी। राज्य सरकार का दावा है कि अहमदाबाद का सिविल अस्पताल एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल है, लेकिन, इसे अब बहुत प्रयास करने होंगे।

गुजरात की बीजेपी सरकार के इस तरह के दावे पर जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने कहा कि एशिया के सबसे अच्छे अस्पतालों में से एक बनना मुश्किल है। 22 मई को, कोर्ट ने अहमदाबाद सिविल अस्पताल में COVID-19 रोगियों के हाई सिकनेस रेट पर चिंता व्यक्त की थी। कोर्ट ने कहा कि अहमदाबाद के सिविल अस्पताल में डॉक्टरों, हेल्थ स्टाफ, मरीजों और उन सबको मिलने वाली सुविधाओं और उपचार की स्थितियां ‘दयनीय’ हैं। कोर्ट ने पूछा कि क्या गुजरात सरकार को इस बात की जानकारी है कि पर्याप्त संख्या में वेंटिलेटर की कमी ही वह वजह थी, जिसकी वजह से वहां के मरीजों की लगातार मौत पर मौत होती रही?

जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने पूछा कि क्या राज्य सरकार को इस तथ्य का कुछ पता भी है कि सिविल अस्पताल में पर्याप्त मात्रा में वेंटिलेटर हैं ही नहीं और इसकी वजह से मरीजों की मौत दर मौत होती जा रही है? बेंच ने भाजपा की गुजरात सरकार से पूछा कि राज्य सरकार वेंटिलेटर की इस प्रॉब्लम से निपटने के लिए क्या प्रस्ताव करती है? जस्टिस जे बी पर्दीवाला और जस्टिस इलेश जे वोरा की बेंच ने कहा कि यह नोट करना बहुत ही कष्टप्रद है कि सिविल अस्पताल में अधिकांश मरीज चार दिन या उससे अधिक समय के बाद मर रहे हैं।

यह देखभाल की गंभीर कमी को दिखाता है। अदालत ने यह भी कहा कि हमें यह बताते हुए बहुत अफसोस हो रहा है कि सिविल अस्पताल, अहमदाबाद, आज तक, एक बहुत ही खराब स्थिति में है। आमतौर पर, समाज के गरीब तबके से पीड़ित नागरिकों का सिविल अस्पताल में इलाज किया जाता है। इसका मतलब यह नहीं है कि उस मानव जीवन की रक्षा नहीं की जाए, क्योंकि वह महज गरीब है। मानव जीवन बेहद कीमती है और इसे अहमदाबाद के सिविल अस्पताल जैसी जगह पर गुम नहीं होने देना चाहिए।

(राइजिंग राहुल की रिपोर्ट।)

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