Monday, March 27, 2023

दिग्गज वामपंथी नेता गुरुदास दासगुप्ता का निधन

Janchowk
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दिग्गज वामपंथी नेता और सीपीआई के पूर्व सांसद गुरुदास दासगुप्ता का निधन हो गया। वह 82 साल के थे। गुरुदास दास गुप्ता पांच बार सांसद रहे। इनमें तीन बार राज्य सभा के सांसद रहे। 1985 में वह पहली बार राज्य सभा के लिए चुने गए थे। 2004 और 2009 में वह लोक सभा के सांसद रहे। उनकी क्रिकेट और रबिंद्र संगीत में गहरी रुचि थी।

एक बार वह यूनियन बैंक स्टॉफ एसोसिएशन यूपी के आज़मगढ़ राज्य सम्मेलन का उद्धाटन करने पहुंचे। उस वक्त वह हिंदी धाराप्रवाह नहीं बोल सकते थे। उन्होंने हिंदी, अंग्रेजी और बांग्ला भाषाओं में जब अपना भाषण शुरू किया तो शिबली कॉलेज के सभागार के बाहर उनकी आक्रामक शैली की वजह से सुनने वालों की हज़ारों की भीड़ इकट्ठा हो गई थी। उसी वक़्त हर्षद मेहता स्कैंडल पर उनकी पुस्तक प्रकाशित हुई थी जो तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को कटघरे में खड़ा करती थी।

उनका जन्म तीन नवंबर 1936 को हुआ था। उन्होंने अपना राजनीतिक सफर 1936 में गठित देश के पहले छात्र संगठन AISF से शुरू किया था। वह जाधवपुर विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष भी रहे। इसके साथ ही वह आल इंडिया ट्रेड यूनियन कांग्रेस (एटक) के पूर्व महासचिव भी रहे। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के दिग्गज नेता गुरुदास दासगुप्ता तीन बार राज्यसभा और दो बार लोकसभा के सदस्य रहे। देश के दिग्गज वामपंथी नेताओं में शुमार किए जाने वाले गुरुदास पहली बार 1985 में राज्यसभा सांसद बने। तीन बार राज्यसभा सांसद रहने के बाद वह 2004 में लोकसभा चुनाव में उतरे और चुने गए। इस दौरान वह वित्त समिति, लोक लेखा समिति और पब्लिक अंडरटेकिंग समिति के सदस्य भी रहे।

2004 के बाद गुरुदास दासगुप्ता 2009 में लगातार दूसरी बार लोकसभा के लिए चुने गए। इस बार वह लोकसभा में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता भी रहे। इस दौरान भी वह कई संसदीय समितियों से जुड़े रहे।

अपनी प्रखर वाकशैली के लिए मशहूर गुरुदास दासगुप्ता को क्रिकेट और रबिंद्र संगीत में बेहद रुचि थी। वह बंगाल क्रिकेट संघ (CAB) से भी जुड़े रहे और उन्होंने वहां कैब के सदस्य के रूप में काम किया। वो खुलकर अपनी बात रखने के लिए जाने जाते थे। मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल में वित्त वर्ष 2012-13 के बजट पर तीखी टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा था कि केंद्रीय वित्त मंत्री के रूप में प्रणब मुखर्जी की कोई आवश्यकता नहीं थी। यह बजट तो लिपिक भी तैयार कर सकते थे।

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