ग्राउंड रिपोर्ट: शिक्षा के जरिए गरीब बच्चों की जिंदगी संवार रही हरिकिशन, आकाश और तनु की हमजोली

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भदोही। हरिकिशन, आकाश और तनु ने झुग्गी-झोपड़ी के वंचित बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने की अनोखी पहल शुरू की है। उनकी यह यात्रा तब शुरू होती है, जब इन्होंने कुछ बच्चों को हाथ में किताबें लिए सड़क और ओवर ब्रिज पर पेंसिल के लिए मदद मांगते हुए देखा। बस यहीं से इनके पूरे जीवन का परिदृश्य बदल गया।

गरीबी से लड़ने का एकमात्र तरीका शिक्षा है। हम केवल शिक्षा के जरिए ही समाज में शांति और समृद्धि फैला सकते हैं। साल 2019 में जब पाठशाला की शुरूआत हुई तो उसमें 3 बच्चे आए। अब 2023 में पाठशाला के जरिए करीब 150 बच्चों को सशक्त बनाया जा रहा है। अब इस पाठशाला को हिंद फाउंडेशन का नाम देकर गरीब बच्चों के लिए समर्पित कर दिया गया है।

हिंद फाउंडेशन गरीब बच्चों के लिए उम्मीद की किरण के रूप में उभरा है। फाउंडेशन मुसहर और सोनकर बस्ती से लेकर मजदूर, सफाईकर्मी और रिक्शा चलाने वाले परिवारों के 32 से अधिक बच्चों को मुफ्त शिक्षा दे रहा है। गरीब बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने वाले हरिकिशन का कहना है कि “मनुष्य की मानसिक शक्ति के विस्तार लिए शिक्षा बहुत जरूरी है। पुरुष हो या महिला, किसी को भी शिक्षा से वंचित करना, उसकी मानसिक क्षमता को विकसित होने से रोकना है।”

आज भी देखा जाता है, कि गरीबी के कारण अधिकांश बच्चे शिक्षा ग्रहण कर पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे ही बच्चों को शिक्षा प्रदान करने का इन युवाओं ने बीड़ा उठाया है। ये युवा हर रोज 3.30 बजे से शाम 5:00 बजे तक भदोही जनपद के ज्ञानपुर नगर स्थित हरिहरनाथ मंदिर के सामने गांधी पार्क सहित मुसहर और दलित बस्तियों में जाकर बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का काम कर रहे हैं। अवकाश के दिनों में अलग-अलग समय पर अलग-अलग स्थानों पर इनकी पाठशाला शुरू हो जाती है, ताकि गरीब परिवार के बच्चों को उनके अभिभावकों की सुविधानुसार पढ़ाया जा सके।

हरिकिशन शुक्ला

उत्तर प्रदेश की कालीन नगरी भदोही से करीब डेढ़ किमी दूर एक गांव है शिवरामपुर। आज से कोई एक दशक पहले यह गांव रायपुर गांव का ही हिस्सा हुआ करता था। बाद में यह रायपुर से कुछ हिस्सों में कट कर शिवरामपुर गांव के रूप में अस्तित्व में आया। लगभग दो हजार की आबादी वाले इस गांव में मुस्लिम बिरादरी को छोड़कर सभी जातियों की मिश्रित आबादी है। इनमें सर्वाधिक संख्या दलित और पिछड़े वर्ग के लोगों की बताई जाती है।

इसी गांव के निवासी संजय शुक्ला के एकलौते बेटे हैं 23 वर्षीय हरिकिशन शुक्ला। हरिकिशन ने फार्मेसी में डिप्लोमा किया है। डी-फार्मा करने के बाद अब वो बीएससी कर रहे हैं। परिवार में दो छोटी बहनों के साथ मां रुक्मिणी देवी का साथ है। मां गृहणी तो पिता होमगार्ड के जवान हैं। बचपन से ही समाज के लिए कुछ बेहतर करने की सोच के साथ हरिकिशन मृदु भाषी स्वभाव के धनी हैं। 

आकाश मिश्र

जबकि बैचलर ऑफ कंप्यूटर एप्लीकेशन (BCA) में डिप्लोमा कर चुके 24 वर्षीय आकाश मिश्र भदोही जनपद के धनीपुर, जंगीगंज के रहने वाले हैं। इनके पिता संजय मिश्रा किसान हैं। उनके 3 भाई और 1 बहन है। 11 वर्ष पूर्व उनके सर से मां का साया उठ गया था। आकाश मां के मर्म और एक बेटे को मां का अभाव कैसे खटकता है बखूबी महसूस करते हैं, सो वह गरीब, मुसहर, दलित बच्चों को शिक्षा देने के साथ-साथ उनकी खुशियों में ही अपनी खुशियों को समाहित किए हुए हैं।

आकाश बताते हैं कि “मां की बहुत याद आती है, इसलिए ज्यादा से ज्यादा समय इन बच्चों को देकर अपने दर्द को कम कर लेता हूं। साथ ही गरीब परिवार के बच्चों को शिक्षा प्रदान कर उन्हें अंधकार भरी राह निकालने की कोशिश करता हूं। शिक्षा रूपी ज्ञान के जरिए इन बच्चों को प्रकाश की ओर ले जाने के कोशिश में जुटा हूं।”

तनु पांडेय

भदोही जिले के धनापुर उत्तरी गांव के रहने वाले किसान गणेश पांडेय की बेटी तनु पांडेय (23) बीटीसी कर चुकी हैं। हरिकिशन के रिश्ते में मौसेरी बहन तनु अपने गांव धनापुर में गरीब ग्रामीणों के बच्चों को पढ़ाने के साथ ज्ञानपुर की पाठशाला में भी बच्चों को पढ़ाती हैं।

कैसे शुरू हुई गरीब बच्चों की पाठशाला?

“जनचौक” से रुबरू होते हुए हरिकिशन बताते हैं कि “हमने यह यात्रा तब शुरू की, जब आज से कोई 6 वर्ष पूर्व मैं और आकाश कुछ बच्चों को ज्ञानपुर की सड़क पर एक हाथ में किताबें लिए सड़क पर पेंसिल के लिए मदद मांगते हुए देखा था। उस वक्त थोड़ा अचरज भी हुआ लेकिन मन में अंदर से आत्मग्लानि भी महसूस किया। कुछ क़दम आगे जाने के बाद हम पीछे लौटे और उन बच्चों के पास जाकर उनसे सड़क पर पेंसिल के लिए पैसे मांगने की वज़ह जानना चाहा तो उन बच्चों ने जो बताया वह अन्तर्मन को झकझोर कर रख देने वाला था।”

हरिकिशन आगे कहते हैं कि “बच्चों ने बताया कि उनके पिता शराब पीकर घर आते हैं, पढ़ने के लिए पैसे नहीं देते, घर के पैसे शराब में खर्च कर देते हैं। बच्चों के मुख से इतना सुनना था कि मेरे (हरिकिशन) जीवन में एक नए अध्याय का जुड़ाव शुरू हो जाता है, जो आज एक किताब का रूप ले चुका है।” वह बताते हैं “हिंद फाउंडेशन एक स्वतंत्र, गैर-लाभकारी संगठन है जो वंचित छात्रों को मुफ्त शिक्षा प्रदान करने का काम करता है।”

आप यह सब कैसे कर पा रहे हैं? का जवाब देते हुए हरिकिशन कहते हैं कि “खुद के खर्च में कुछ कटौती कर इन बच्चों के लिए कापी-किताब, पेंसिल की हम व्यवस्था करते हैं। इसमें हमारे दोस्तों का भी सहयोग मिल जाता है, तो कुछ अन्य लोग भी कापी, किताब, पेंसिल आदि का सहयोग कर देते हैं। इसी तरह यह कारवां दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।”

जिन बच्चों को आप पढ़ा रहे हैं उनके अभिभावकों की क्या अभिरुचि है? पर हरिकिशन और आकाश एक स्वर में बताते हैं कि “पहले तो थोड़ी मुश्किल होती थी, बच्चों को उनके घरों तक जाकर लाना और छोड़ना पड़ता था। अब काफी बदलाव आया है, बच्चे खुद चलकर आते और जाते हैं। कभी-कभी कुछ अभिभावक भी अपने बच्चों को लेकर आते हैं और साथ लेकर जाते हैं।

शुरू के उन दिनों को याद करते हुए हरिकिशन बताते हैं कि “शुरू-शुरू में कुछ बच्चों के माता-पिता तो बाकायदा पैसे मांगने लगे थे कि पैसा देंगे तभी वह अपने बच्चों को उनके पास पढ़ने के लिए भेजेंगे। ऐसे माता-पिता को काफी समझाया गया कि हम तो आपके बच्चों को मुफ्त में पढ़ायेंगे। तब जाकर वह बच्चों को उनके पास पढ़ने के लिए भेजने को राजी हुए थे।

हरिकिशन की माने तो इसके पीछे भी वज़ह रही है। कुछ लोगों द्वारा (जहां से बच्चे आते थे) उन बस्तियों में जाकर यह अफवाह फैला दी गई थी कि यह एनजीओ के लोग हैं, इन्हें आप के बच्चों को पढ़ाने के बदले भारी भरकम रकम मिलेगी। इसलिए पैसे के प्रलोभन में आकर ये लोग बच्चों को पाठशाला में भेजने को लेकर ना नुकूर करने लगे थे। बाद में समझाने पर राजी हुए, और अब वही लोग अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए लेकर आते हैं।

आकाश कहते हैं कि शिक्षा सभी का अधिकार है और इसी में सभी की प्रगति समाहित है। उनकी कोशिश है कि उनके इलाके का कोई भी गरीब, बेसहारा बच्चा शिक्षा से वंचित न रहे। वह कहते हैं कि “शिक्षा के माध्यम से अर्जित किए गए ज्ञान, कौशल और जीवन के मूल्यों के बल पर लोग समाज में परिवर्तन ला सकते हैं। इससे आने वाली पीढ़ियों का पथ प्रदर्शन प्रभावशाली ढंग से किया जा सकता है। बच्चे किसी भी राष्ट्र की आधारशिला होते हैं। अगर वे शिक्षित रहेंगे तो बेहतर राष्ट्र का निर्माण करने में अपना योगदान देंगे। और तो और वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने में भी सक्षम होंगे।”

सहने पड़े समाज के ताने

हरिकिशन और आकाश बताते हैं कि इस काम को करने के चलते लोगों के तानों और व्यंग्य वाणों का भी सामना करना पड़ा है। कभी कोई “बडका मास्टर बना है” कह कर ताना मार दिया करता था, तो कोई उपहास उड़ा कर हौसला डिगाने में जुटा था, बावजूद इसके हमें हमारे परिवार की ओर से बराबर हौसला बढ़ाने का मंत्र मिलता रहा है जो हमेशा ऊर्जा देता आया है।

हरिकिशन बताते हैं कि “कुछ महीने पूर्व किडनी चोरी की अफवाह फैली थी, जिसके बाद लोगों ने अपने बच्चों को पाठशाला में भेजना बंद कर दिया था। जिन्हें मनाना मुश्किल होने लगा था, लेकिन कहते हैं न कि जब इरादे नेक हों तो बंद रास्ते खुद ही खुलते जाते हैं। काफी समझाने और जागरूक करने के बाद फिर से बच्चे पाठशाला में आने लगे।

क्या कहते हैं अभिभावक?

हरिकिशन और आकाश की पाठशाला में ऐसे परिवार के भी बच्चे पढ़ने आते हैं जो एक वक्त की रोटी के लिए मोहताज हुआ करते थे। बच्चों को स्कूल भेजना उनके लिए मुश्किल था, लेकिन हरिकिशन और आकाश को जोड़ी ने उनकी इस धारणा को न केवल बदला है बल्कि उनकी सोच को बदल नई राह दिखाई है। बकौल मनभावती (अभिभावक) बताती हैं कि “उनके चार बच्चे हरिकिशन और आकाश की पाठशाला में पढ़ने जाते हैं, बच्चों के हाथ में कापी, किताब, पेंसिल देखकर खुशी होती है कि चलो कम से कम हमारे बच्चे पढ़ लिखकर आगे बढ़ेंगे।”

आपके बच्चे सरकारी स्कूलों में क्यों नहीं जाते? के सवाल पर वह बोलती हैं, “यहां बच्चों को अच्छे से पढ़ाया जा रहा है। साथ ही जिस दिन बच्चे नहीं जाते हैं वो घर आकर खोज-खबर लेते हैं और बच्चों को पाठशाला में ले जाते हैं।”

ज्ञानपुर पुलिस लाइन के पास स्थित सुलभ शौचालय के जरिए अपने बच्चों को पाल-पोस रही संगीता बताती हैं कि उनके बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाते तो जरूर हैं, लेकिन इस पाठशाला में भी नियमित जाते हैं। हरिकिशन और आकाश की पाठशाला के बारे में बताते-बताते उनका गला भर आता है। वह कहती हैं कि “हमारे बच्चों को इन लोगों (आकाश-हरिकिशन) ने काफी सहारा दिया है। जिसका परिणाम है कि हमारे बच्चे जो कल तक यहां वहां घूमते हुए मिलते थे अब किताबों में उलझे रहते हैं।”

त्यौहार में बच्चों के संग बांटते हैं खुशियां

हरिकिशन और आकाश की पाठशाला में विभिन्न पर्व त्यौहारों के अलावा पाठशाला में आने वाले बच्चों के जन्मदिन को भी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। यूं कहें कि किताबी ज्ञान के साथ ही साथ बच्चों के सामाजिक, मानसिक, शारीरिक विकास की ओर भी ध्यान दिया जाता है। उनके साथ कुछ पल खुशियां बांटते हुए भी बिताया जाता है।

फिलहाल, हरिकिशन और आकाश की पाठशाला आसपास के गांवों में ही नहीं पूरे जिले में शोहरत बटोर रही है और गरीब बेसहारा बच्चों के लिए एक मिशाल कायम करते हुए नित्य आगे की ओर कदम बढ़ा रही है।

(भदोही से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट )

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