कलकत्ता हाईकोर्ट में टीएमसी मंत्रियों, विधायकों की जमानत पर आज भी सुनवाई

Estimated read time 2 min read

पश्चिम बंगाल के नारद स्टिंग केस में फंसे ममता बनर्जी सरकार के दो मंत्री और एक विधायक को एक रात और जेल में ही काटनी होगी। कलकत्ता हाई-कोर्ट के कार्यवाहक चीफ जस्टिस राजेश बिंदल और जस्टिस अरिजीत बनर्जी की खंडपीठ ने बुधवार को मामले में जमानत पर उनकी सुनवाई को एक दिन और टाल दिया है। अब इस मामले में गुरुवार की दोपहर को सुनवाई होगी। मामले में टीएमसी के तीन विधायक और एक पूर्व नेता को गिरफ्तार सीबीआई ने गिरफ्तार किया है।

गिरफ्तारी के बाद सीबीआई की स्पेशल कोर्ट ने चारों आरोपियों को अग्रिम जमानत दे दी थी लेकिन सीबीआई के हाई कोर्ट में अपील करने के बाद मामला उलझ गया। हाई-कोर्ट ने चारों की जमानत पर रोक लगा दी। बुधवार को मामले की सुनवाई को उच्च न्यायालय ने फिर स्थगित कर दिया है। इसके कारण मंत्री सुब्रत मुखर्जी और फिरहाद हाकिम, तृणमूल कांग्रेस के विधायक मदन मित्रा और कोलकाता के पूर्व महापौर सोवन चटर्जी न्यायिक हिरासत में रहेंगे।

नारद स्टिंग केस में सुनवाई स्थानांतरित करने की सीबीआई की याचिका और सोमवार को सीबीआई की एक अदालत द्वारा दिए गए जमानत पर हाई कोर्ट के स्थगन को वापस लेने की चारों नेताओं की याचिका पर मुख्य न्यायाधीश राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति अरिजीत बनर्जी की पीठ गुरुवार को सुनवाई करेगी। नारद स्टिंग मामले में सीबीआई द्वारा गिरफ्तार किए गए चारों नेताओं को निचली अदालत ने जमानत दे दी थी लेकिन हाईकोर्ट ने सोमवार की रात ही इस आदेश पर रोक लगा दी थी।

नारदा स्टिंग ऑपरेशन केस को राज्य से ट्रांसफर करने की मांग को लेकर सीबीआई ने कोलकाता हाईकोर्ट में याचिका लगाई है। इस याचिका में सीबीआई ने पश्चिम-बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और कानून मंत्री मोलॉय घटक को पार्टी बनाया है। इस केस से जुड़ी दूसरी याचिकाओं के साथ इस पर भी दो सदस्यीय खंडपीठ ने बुधवार को सुनवाई की। सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने सीबीआई से पूछा है कि क्या कोरोनाकाल में आरोपियों को जेल में रखा जाना जरूरी है। इन पर निचली अदालत से भी ज्यादा कड़ी शर्तें लगाई जा सकती हैं।

सुनवाई के दौरान सीबीआई का पक्ष रख रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि पहले दिन जब आरोपियों को जमानत दी गई, तब हमें अपना पक्ष रखने का मौका नहीं मिला था। हम कोर्ट के सामने केस डायरी भी पेश नहीं कर पाए थे, क्योंकि हमें ऐसा करने से रोका गया था। मेहता ने कहा कि चारों टीएमसी नेता इस वक्त अस्पताल में हैं, जबकि उन्हें जेल में होना चाहिए। मुझे नहीं लगता कि देश में ऐसा पहले कभी हुआ है। जब किसी केस की जांच कर रही एजेंसी को जांच करने से रोका गया हो। खंडपीठ ने कहा कि इस मामले में पांच याचिका आई हैं। रिकॉर्ड में चार्जशीट दाखिल है। क्या आपके पास इन्होंने मामले में सहयोग नहीं किया?

टीएमसी नेताओं की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता एएम सिंघवी ने दलील देते हुए कहा कि नारदा घोटाला मामले में सोमवार को चार टीएमसी नेताओं की गिरफ्तारी के खिलाफ सीबीआई कार्यालय के बाहर सीएम ममता बनर्जी के नेतृत्व में धरना प्रदर्शन विरोध का लोकतांत्रिक तरीका था। सिंघवी ने आरोप लगाया कि गैर-कानूनी तरीके से गिरफ्तारियां की गईं और लोगों को केंद्रीय एजेंसी की ऐसी गैर-कानूनी कार्रवाइयों के खिलाफ विरोध करने का अधिकार है। सिंघवी ने कहा कि सीबीआई ने गिरफ्तारी से पहले स्पीकर से मंजूरी नहीं ली और इसके बजाय राज्यपाल से संपर्क किया। सिंघवी ने तर्क दिया कि अगर गैरकानूनी तरीके से गिरफ्तारी की जाती है तो इसके खिलाफ विरोध करने का अधिकार है, जब तक कि एजेंसी के वैध कार्यों को प्रतिबंधित नहीं किया जाता है। सिंघवी ने कहा कि इस तरह की गैरकानूनी गिरफ्तारी के खिलाफ लोगों में आक्रोश है और नाराजगी जताने का अधिकार है।

कार्यवाहक चीफ जस्टिस ने पूछा कि 5-6 घंटे तक सीएम ममता बनर्जी सीबीआई कार्यालय में थीं। क्या आप इस बात से इनकार करते हैं कि कानून मंत्री का अदालत जाना व्यवस्थित नहीं है? सिंघवी ने कहा कि विधायक के मंत्री बनने के बाद स्थिति में अंतर आ जाता है। कार्यवाहक चीफ जस्टिस ने कहा कि आप एक साधारण विधायक नहीं हैं। एडवोकेट सिंघवी ने जवाब दिया कि, क्या सीएम के सीबीआई के पास जाने से ऐसी स्थिति पैदा होती है कि 4 घंटे की वर्चुअल सुनवाई के बाद भी अदालत द्वारा न्यायिक आदेश पारित नहीं किया जा सकता है? सिंघवी ने कहा कि सीएम ममता बनर्जी विधायक के तौर पर सीबीआई के पास गईं। जब कार्यवाहक चीफ जस्टिस ने विरोध प्रदर्शन के स्थान पर सीएम की उपस्थिति के बारे में पूछताछ की तब एडवोकेट सिंघवी ने कहा कि सीबीआई या विशेष सीबीआई कोर्ट को ममता बनर्जी प्रभावित नहीं कर सकतीं क्योंकि ऐसा करने की शक्ति उनके पास नहीं है।

गवाहों को डराने-धमकाने की संभावना के संबंध में सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता की चिंताओं का उल्लेख करते हुए, सिंघवी ने कहा कि 2014-21 से गवाहों को कोई धमकाया नहीं गया है। 2021 में वे उच्चतम न्यायालय  के संविधान पीठ के फैसले के बावजूद राज्यपाल के पास पहुंचे। आरोपियों की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने भी सिंघवी की दलीलों का समर्थन किया।

सिद्धार्थ लूथरा ने तो सीबीआई के अस्तित्व पर ही सवाल उठा दिया और कहा कि सीबीआई सात साल पहले सुप्रीम कोर्ट द्वारा पारित एक अंतरिम स्थगन आदेश के आधार पर काम कर रही है। यदि अंतरिम स्थगन आदेश ख़ारिज हो जाय तो सीबीआई का क्या होगा?

गौरतलब है कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय ने 06 नवंबर, 2013 को फैसला सुनाया था कि सीबीआई का गठन करने वाली केंद्र सरकार का 1963 का प्रस्ताव असंवैधानिक था और सीबीआई का गठन केवल एक क़ानून के माध्यम से किया जा सकता है। केंद्र सरकार तब सुप्रीम-कोर्ट पहुंची थी और शनिवार दोपहर भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश पी सदाशिवम् आवास पर तत्काल सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक लगा दी थी।

इसके बाद मामले को कई मौकों पर सूचीबद्ध किया गया था लेकिन अंतिम सुनवाई के लिए आना बाकी है। सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट के अनुसार, मामला आखिरी बार 21 जुलाई, 2020 को सूचीबद्ध किया गया था, हालांकि वेबसाइट पर उपलब्ध अंतिम आदेश की प्रति 26 जून, 2019 से है। उस तारीख को कोर्ट ने मामले को ग्रीष्म अवकाश के बाद सूचीबद्ध कहते हुए स्थगित कर दिया था।

(वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट।)

0 0 votes
Article Rating
Subscribe
Notify of
guest
0 Comments
Oldest
Newest Most Voted
Inline Feedbacks
View all comments

You May Also Like

More From Author