कोविड संकट पर हाई कोर्ट ने की योगी सरकार की जबर्दस्त खिंचाई, कहा- केवल वीआईपी लोगों को ही मिल रही चिकित्सा

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि उत्तर प्रदेश राज्य में कोविड-19 महामारी की स्थिति बहुत गंभीर है, यहाँ तक की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी आइसोलेशन में हैं, और केवल वीआईपी लोगों को ही चिकित्सा मिल रही है। हाईकोर्ट ने आदेश दिया है कि वाराणसी, कानपुर नगर, लखनऊ, प्रयागराज और गोरखपुर में 26 अप्रैल तक लॉकडाउन लगाया जाए। इसे योगी सरकार ने मानने से इनकार करते हुए कहा है कि लोगों की जान बचाने के साथ-साथ जीविका भी बचानी है, ऐसे में संपूर्ण लॉकडाउन नहीं लगाया जा सकता है। योगी सरकार इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले को 20 अप्रैल को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देगी।

दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट के यह आदेश यदि योगी सरकार मान लेती है तो यह संदेश जायेगा कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की तल्ख टिप्पणियों को भी यूपी सरकार ने स्वीकार कर लिया है, जो राज्य सरकार की विफलता का दस्तावेज है। जस्टिस अजीत कुमार और सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने योगी सरकार की खिंचाई करते हुए कहा कि अगर जरूरी उपाय नहीं किए गए तो चिकित्सा व्यवस्था ध्वस्त हो सकती है। राज्य के मुख्यमंत्री भी आइसोलेशन में हैं और केवल वीआईपी लोगों को ही चिकित्सा मिल रही है।

खंडपीठ ने कहा कि सरकारी अस्पतालों में आईसीयू में मरीजों को भर्ती करने के लिए किसी वीआईपी के सोर्स की जरूरत पड़ रही है। यहां तक कि कोरोना मरीजों को दी जाने वाली दवा रेमडेसिविर भी वीआईपी के कहने के बाद ही मरीज को मिल रही है।सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के सभ्य समाज में चुनौतियों का सामना करने में सक्षम नहीं है और लोग उचित दवा के लिए मर जाते हैं, इसका मतलब है कि उचित विकास नहीं हुआ है।

खंडपीठ ने कहा कि इस तरह की स्थिति में कोरोना कर्फ्यू के नाम पर नाइट कर्फ्यू कुछ और नहीं, बल्कि आंख में धूल झोंकने वाला है। इसके जरिए संभवतः यह दिखाने का प्रयास किया गया कि हमारे पिछले आदेश का ख्याल रखा गया है। हम देख रहे हैं कि ज्यादातर लोग मास्क नहीं लगा रहे। खंडपीठ ने कहा कि हम इस तथ्य से आंख नहीं मूंद सकते कि किंग जॉर्ज अस्पताल और एसआरएन जैसे अन्य अस्पतालों के बड़ी संख्या में डॉक्टरों ने कोरोना संक्रमित होने के बाद खुद को आइसोलेट कर लिया है।

खंडपीठ ने कहा कि यदि लोकप्रिय सरकार की अपनी खुद की मजबूरियां हैं और वह इस महामारी में लोगों का आवागमन नहीं रोक सकती तो हम मूकदर्शक नहीं बने रह सकते। खंडपीठ ने कहा कि पिछले एक सप्ताह से स्थिति और खराब हुई है। यदि चीजों पर अंकुश नहीं लगाया गया तो पूरा सिस्‍टम बैठ जाएगा और राहत वीआईपी एवं वीवीआईपी तक ही सीमित रह जाएगी।

खंडपीठ ने कहा कि हम सरकारी अस्पतालों में देख रहे हैं कि आईसीयू में ज्यादातर मरीजों को वीआईपी की सिफारिश पर भर्ती किया जा रहा है। यहां तक कि रेमडेसिवर जैसी जीवनरक्षक दवाएं वीआईपी की सिफारिश पर दी जा रही हैं। जहां वीवीआईपी को आरटीपीसीआर रिपोर्ट 12 घंटे में मिल रही है, वहीं आम नागरिक को दो से तीन दिन इंतजार कराया जा रहा है, जिससे संक्रमण अन्य परिजनों में फैल रहा है। पीठ ने कहा कि लोगों का स्वास्थ्य सर्वोपरि है और कदम उठाना समय की जरूरत है। कोर्ट ने कहा, “किसी भी तरह की कोताही तबाही मचा सकती है। लोगों को इस महामारी से बचाने के लिए हम अपने संवैधानिक दायित्व से पल्ला नहीं झाड़ सकते।”

उत्तर प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। मेडिकल सुविधाएं बुरी तरह प्रभावित हैं। इस बीच योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि प्रदेश में संपूर्ण लॉकडाउन नहीं लगाया जा सकता है। योगी सरकार इस आदेश के खिलाफ 20 अप्रैल को सुबह सुप्रीम कोर्ट जाएगी।

योगी सरकार की तरफ से कहा गया है कि प्रदेश में कोरोना के मामले बढ़े हैं और सख्ती कोरोना के नियंत्रण के लिए आवश्यक है। सरकार ने कई कदम उठाए हैं और आगे भी सख्त कदम उठाए जा रहे हैं। जीवन बचाने के साथ गरीबों की आजीविका भी बचानी है। ऐसे में शहरों में संपूर्ण लॉकडाउन अभी नहीं लगेगा। लोग स्वतः स्फूर्ति भाव से कई जगह बंदी कर रहे हैं। यह जानकारी एससीएस सूचना, नवनीत सहगल की तरफ से दी गई।

खंडपीठ ने कहा कि किसी भी सभ्य समाज में अगर जन स्वास्थ्य प्रणाली चुनौतियों का सामना नहीं कर पाती और दवा के अभाव में लोग मरते हैं तो इसका मतलब है कि समुचित विकास नहीं हुआ है। स्वास्थ्य और शिक्षा एक साथ चलते हैं,  शासन के मामलों के शीर्ष में रहने वाले लोगों को वर्तमान अराजक स्वास्थ्य समस्याओं के लिए दोषी ठहराया जा सकता है। ऐसे समय जबकि लोकतंत्र मौजूद है जिसका अर्थ है लोगों की सरकार, लोगों द्वारा और लोगों के लिए।

खंडपीठ ने कहा कि इस आदेश में हमने पूर्ण लॉकडाउन नहीं लगाया है, इसका अर्थ यह नहीं है कि हमें इसमें विश्वास नहीं है। हम अभी भी इस निश्चित मत पर हैं कि यदि कोरोना की चेन तोड़ना चाहते हैं तो कम से कम दो सप्ताह का पूर्ण लॉकडाउन अनिवार्य है। खंडपीठ  ने कहा कि लोग सड़कों पर बिना मास्क के चल रहे हैं। संक्रमण लगातार बढ़ता जा रहा है। अस्पतालों में दवा और ऑक्सीजन की भारी कमी है। लोग दवा के अभाव में दम तोड़ रहे हैं और सरकार की ओर से कोई फौरी योजना नहीं बनाई गई है। न ही पहले से कोई तैयारी की गई। डॉक्टर, मेडिकल स्टाफ सहित मुख्यमंत्री तक संक्रमित हैं। संकट से निपटने के लिए सरकार के लिए तुरंत इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करना मुश्किल है, लेकिन युद्धस्तर पर प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। खंडपीठ ने कहा कि नाइट कर्फ्यू और सप्ताहांत कर्फ्यू आंख में धूल झोंकने के सिवाय कुछ नहीं है। खंडपीठ कुछ लोगों की लापरवाही का खामियाजा आम जनता को भुगतने के लिए नहीं छोड़ सकती।

खंडपीठ  ने स्पष्ट किया कि वह अपने निर्देश के जरिए इस राज्य में पूर्ण लॉकडाउन नहीं थोप रही है। पीठ ने कहा कि हमारा विचार है कि मौजूदा समय के हालात को देखते हुए यदि लोगों को उनके घरों से बाहर जाने से एक सप्ताह के लिए रोक दिया जाता है तो कोरोना संक्रमण की चेन तोड़ी जा सकती है और इससे फ्रंट लाइन के स्वास्थ्य कर्मियों को भी कुछ राहत मिलेगी। उन्होंने कहा कि इस प्रकार से हम प्रयागराज, लखनऊ, वाराणसी, कानपुर नगर और गोरखपुर शहरों के संबंध में कुछ निर्देश पारित करते हैं और सरकार को तत्काल प्रभाव से इनका कड़ाई से पालन करने का निर्देश देते हैं।

सुनवाई के दौरान खंडपीठ को बताया गया कि राज्य सरकार लखनऊ में 1000 बिस्तरों के तीन अस्पताल और इलाहाबाद में प्रतिदिन 20 बिस्तरों की वृद्धि जैसी व्यवस्था कर रही है। इस पर खंडपीठ  ने कहा कि कोई भी हम पर इस बात को लेकर हंसेगा कि चुनाव पर खर्च करने के लिए हमारे पास पर्याप्त पैसा है और लोगों के स्वास्थ्य पर खर्च करने को बहुत कम है। हम कल्पना भी नहीं कर सकते कि यदि इस शहर की केवल 10 प्रतिशत आबादी भी संक्रमित हो जाती है और उसे चिकित्सा सहायता की जरूरत पड़ती है तो क्या होगा? सरकार कैसे मौजूदा ढांचे के साथ इससे निपटेगी, कोई भी अनुमान लगा सकता है।

खंडपीठ ने कहा कि सरकार हर समय केवल अर्थव्यवस्था की धुन लगाए बैठी है, लेकिन यदि एक व्यक्ति को ऑक्सीजन और दवाओं की जरूरत है और आप उसके पास ब्रेड और मक्खन लेकर जाएं तो वह उसके किसी काम ना आएगी। पीठ ने कहा कि यह शर्मनाक बात है कि जहां सरकार इस दूसरी लहर की गंभीरता को जानती है, उसने पहले से ही चीजों की योजना कभी नहीं बनाई।

महामारी के दौरान संपन्न कराए गए पंचायत चुनाव पर खंडपीठ ने कहा कि जिस प्रकार से सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव कराने को लेकर आगे बढ़े और अध्यापकों एवं अन्य सरकारी कर्मचारियों को ड्यूटी पर लगाकर उन्हें जोखिम में डाला, उसको लेकर हम नाखुश हैं। पुलिस को मतदान स्थलों पर लगाकर जन स्वास्थ्य से कहीं अधिक चुनाव को प्राथमिकता दी गयी। खंडपीठ ने कहा कि जहां चुनाव हुए, वहां की तस्वीरों से पता चलता है कि सामाजिक दूरी के नियमों का पालन नहीं किया गया। विभिन्न राजनीतिक रैलियों में कई मौकों पर लोगों द्वारा मास्क नहीं पहना गया। खंडपीठ ने इन राजनीतिक कार्यक्रमों के आयोजकों के खिलाफ कार्रवाई करने का अधिकारियों को निर्देश देते हुए सुनवाई की अगली तारीख 26 अप्रैल को कार्रवाई की रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं। वह इलाहाबाद में रहते हैं।)

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