Friday, March 29, 2024

सिलेक्टिव तरीके से इतिहास नहीं बदला जा सकता, शहरों के नाम बदलने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट की खरी-खरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, देश अतीत का कैदी नहीं रह सकता। यह धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिकता और राज्य की कार्रवाई में निष्पक्षता से जुड़ा है। संस्थापक भारत को एक गणतंत्र मानते थे। देश को आगे बढ़ना चाहिए और यह अपरिहार्य है। अतीत की घटनाएं वर्तमान और भविष्य को परेशान नहीं कर सकतीं। वर्तमान पीढ़ी अतीत की कैदी नहीं बन सकती। विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थान के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने की मांग की बीजेपी नेता अश्विनी उपाध्याय की याचिका आज सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी।

सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर बड़े सवाल उठाए। कोर्ट ने कहा कि, आप इस याचिका से क्या हासिल करना चाहते हैं? क्या देश में और कोई मुद्दे नहीं हैं? इसमें कोई शक नहीं है कि भारत पर कई बार हमला किया गया, राज किया गया, यह सब इतिहास का हिस्सा है। आप सिलेक्टिव तरीके से इतिहास बदलने को नहीं कह सकते। अब इस मामले में जाकर क्या फायदा है?

जस्टिस केएम जोसेफ और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ ने देश की धर्मनिरपेक्ष प्रकृति की पुष्टि करते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्र का इतिहास वर्तमान और भविष्य इस हद तक परेशान नहीं कर सकता कि पीढ़‌ियां अतीत की कैदी बन जाएं। पीठ ने आदेश की शुरुआत में कहा कि इंडिया, यानी भारत, एक धर्मनिरपेक्ष देश है।

जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा कि, भारत आज एक धर्मनिरपेक्ष देश है। आपकी उंगलियां एक विशेष समुदाय पर उठाई जा रही हैं, जिसे बर्बर कहा जा रहा है। क्या आप देश को उबलते हुए रखना चाहते हैं। हम धर्मनिरपेक्ष हैं और संविधान की रक्षा करने वाले हैं। आप अतीत के बारे में चिंतित हैं और वर्तमान पीढ़ी पर इसका बोझ डालने के लिए इसे खोद रहे हैं। इस तरीके से और अधिक वैमनस्य पैदा होगा। भारत में लोकतंत्र कायम है।

जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, हिंदुत्व एक जीवन पद्धति है, जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है। उसी के कारण हम साथ रह पाते हैं। अंग्रेजों की बांटों और राज करो की नीति ने हमारे समाज में फूट डाल दी।

पीठ ने कहा कि, हमें यह ध्यान में रखना होगा कि यह न्यायालय अनुच्छेद 32 के तहत मामले को देख रहा है कि न्यायालय को मौलिक अधिकारों को लागू करने का काम सौंपा गया है। प्रस्तावना के संदर्भ में भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है। इसे नौ जजों ने बरकरार रखा है।

उपाध्याय सुनवाई के दरमियान व्यक्तिगत रूप में उपस्थित हुए और दलील दी कि शास्त्रों में वर्णित कई शहरों का नाम अब उन मुस्लिम शासकों के नाम पर रखे गए हैं, जिन्होंने भारत पर आक्रमण किया था। याचिकाकर्ता की दलीलों को सुनने के बाद बेंच ने चिंता जताई कि वह एक समुदाय विशेष पर उंगली उठा रहा है।

जस्टिस जोसेफ ने कहा कि आप मुद्दे को जीवित रखना चाहते हैं और देश को उबाल पर रखना चाहते हैं? एक विशेष समुदाय की ओर उंगलियां उठा रहे हैं। आप समाज के एक विशेष वर्ग को नीचा दिखा रहे हैं। भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है, यह एक धर्मनिरपेक्ष मंच है।

पीठ ने बन्धुत्व की अवधारणा पर प्रकाश डाला और बताया कि समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संबंध कैसे सच्चे सद्भाव और राष्ट्रीयता की भावना को जन्म देगा। बंधुत्व का सुनहरा सिद्धांत, जो प्रस्तावना में निहित है, सबसे अधिक महत्वपूर्ण है और प्रस्तावना में उचित रूप से सभी हितधारकों के लिए एक निरंतर अनुस्मारक के रूप में अपनी जगह पाता है कि अलग-अलग वर्गों के बीच सद्भाव बनाए रखने से ही राष्ट्रीयता की सच्ची धारणा पैदा होगी, राष्ट्र की अधिक भलाई के लिए वर्गों को एक साथ जोड़ा जाएगा और भाईचारा मिलेगा।

इसलिए, हमारा विचार है कि जो राहत मांगी गई है, उसे अनुच्छेद 32 के तहत मौलिक अधिकारों के संरक्षक के रूप में कार्य करने वाले न्यायालय द्वारा उन मूल्यों को ध्यान में रखते हुए प्रदान नहीं किया जाना चाहिए, जिन्हें अदालत को सबसे ऊपर रखना चाहिए जैसा कि प्रस्तावना हमें इस दिशा में एक स्पष्ट रोशनी देती है।

पीठ ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि एक गणतंत्र का मतलब एक निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में एक देश है, हालांकि यह राष्ट्र एक लोकतंत्र है। कोर्ट ने इस बात पर भी रोशनी डाली कि जब राज्य की कार्रवाई की बात आती है तो अनुच्छेद 14 कैसे निष्पक्षता की गारंटी देता है।

हमारा विचार है कि कानून का सवाल नहीं उठता है। एक देश अतीत का कैदी बनकर नहीं रह सकता। भारत कानून के शासन, धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिकता से जुड़ा हुआ है, जिसका अनुच्छेद 14 राज्य की कार्रवाई में समानता और निष्पक्षता दोनों की भव्य गारंटी के रूप में सामने आता है।

संस्थापकों ने भारत को एक गणतंत्र के रूप में देखा जो केवल एक निर्वाचित राष्ट्रपति तक ही सीमित नहीं है जो पारंपरिक समझ है बल्कि इसमें सभी वर्गों के लोग शामिल हैं; यह एक लोकतंत्र है। देश को आगे बढ़ना जरूरी है। मौलिक अधिकारों को ध्यान में रखते हुए नीति निर्देशक सिद्धांतों के अध्याय में निहित तिहरे लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए यह अनिवार्य है। ऐसी कार्रवाई की जानी चाहिए जो समाज के सभी वर्गों को एक साथ प्रभावित करे।

सुनवाई के दरमियान दोनों जजों ने याचिका पर कई टिप्पणियां की, जिसमें यह कहा गया कि यह धर्मनिरपेक्षता के खिलाफ है और देश में बेहतर समस्याओं से कैसे निपटा जाए। यह धार्मिक स्थलों की बहाली का मामला है।

उपाध्याय ने अपनी याचिका में यह तर्क दिया, जिसमें ‘बर्बर आक्रमणकारियों’ के नाम हटाने की मांग की गई थी, जिनके आधार पर प्राचीन, धार्मिक और ऐतिहासिक स्थानों का नाम रखा गया है। धार्मिक पूजा का सड़कों से कोई लेना-देना नहीं है। जस्टिस जोसेफ ने लगभग तुरंत इशारा करते हुए कहा कि बादशाह अकबर का उद्देश्य वास्तव में विभिन्न समुदायों के बीच सद्भाव पैदा करना था।

जस्टिस बीवी नागरत्न ने तब कहा था कि आक्रमण जो भारत की संस्कृति का हिस्सा हैं, उन्हें दूर नहीं किया जा सकता है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। क्या आप इतिहास से आक्रमणों को दूर कर सकते हैं? हम पर कई बार आक्रमण हो चुका है। क्या हमारे देश में पहले हुई चीजों को दूर करने के बजाय हमारे देश में अन्य समस्याएं नहीं हैं?

उपाध्याय ने पूछा, क्या जगहों और सड़कों के नाम देश को लूटने वाले लोगों पर आधारित होने चाहिए?

जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि हिंदू धर्म जीने का एक तरीका है, जिसके कारण भारत ने सभी को आत्मसात कर लिया है। उसी के कारण हम एक साथ रहने में सक्षम हैं। अंग्रेजों की फूट डालो और राज करो की नीति ने हमारे समाज में विद्वेष ला दिया था। वह वापस नहीं आना चाहिए।

याचिकाकर्ता ने जब यह महसूस करते हुए कि बेंच मामले पर विचार करने के लिए इच्छुक नहीं है, याचिका को को वापस लेने की अनुमति मांगी तब पीठ ने कहा कि वह मामले को वापस लेने की अनुमति नहीं देगी।

पीठ ने आदेश में कहा कि हमें इस तरह की याचिकाओं से समाज को नहीं तोड़ना चाहिए, कृपया देश को ध्यान में रखें, किसी धर्म को नहीं। जस्टिस नागरत्ना ने याचिकाकर्ता से कहा कि हिंदू धर्म में कोई कट्टरता नहीं है।

आदेश लिखने के बाद, पीठ ने याचिकाकर्ता से कहा कि उसने याचिका के बारे में जो कठोर टिप्पणियां करना चाही थी, लेकिन उसे मॉडरेट कर दिया है। जस्टिस जोसेफ ने कहा कि हिंदू धर्म की एक महान परंपरा है और इसे कमतर नहीं आंकना चाहिए।

दरअसल सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर देश में विदेशी आक्रमणकारियों के नाम पर शहरों, सड़कों, इमारतों और संस्थानों के नाम बदलने के लिए आयोग बनाने मांग की गई थी। याचिकाकर्ता वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका में हजार से ज्यादा नामों का हवाला दिया गया। री- नेमिंग कमीशन बनाने का आदेश जारी करने की अपील के लिए दाखिल इस याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21, 25 और 29 का हवाला देते हुए ऐतिहासिक गलतियों को सुधारने की बात भी कही गई।

इस सिलसिले में औरंगजेब रोड, औरंगाबाद, इलाहाबाद, राजपथ जैसे कई नामों में बदलाव कर उनका स्वदेशीकरण करने का जिक्र किया गया। ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करने के लिए अश्विनी उपाध्याय ने कोर्ट के कई निर्णयों का भी उल्लेख किया।

(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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